बच्चों को हॉस्टल में छोड़ कर, चांदनी भरी हुई आँखो से गाड़ी में बैठी। कुमार ने गाड़ी र्स्टाट करने के साथ ही म्यूजिक ऑन किया। गाना आया ’ सपनों के ऐसे जहां में, जहां प्यार ही प्यार खिला हो ’ पर चांदनी तो अपनी ही दुनिया में खोई हुई थी। उसे सब कुछ बहुत अजीब लग रहा था। कैसे वह घर में अकेली रहेगी? जब वह थोड़ी संयत लगी तो कुमार ने म्यूजिक बंद कर दिया। म्यूजिक बंद होते ही चांदनी की तंद्रा टूट गई। अब कुमार बोले,’’देख चांदनी, शर्मा जी के दोनों बच्चे बहुत लायक दोनो विदेश चले गये। हम अपने घर से, बच्चों से अलग आ गये। अगर हम दोनो परिवारों के बच्चे हम पर निर्भर होते तो जिंदगी और तरह से होती। पर हमें बहुत खुशी है कि हमने उन्हें काबिल बनाया। अब ये सोच कि जो हो रहा है, टोनू मोनू की भलाई के लिए ही तो हम कोशिश कर रहें हैं। सब तो नहीं, पर काने जैसे दो चार और भी होंगे वहां। बच्चे उस माहौल से दूर गये, शायद यही उनके लिए अच्छा है। हिम्मत से काम लो। घर आकर उसने खाना बनाया। कुमार को खिला कर जाने लगी, तो रात ज्यादा हो गई थी। कुमार उसे घर छोड़ने गया। अपना घर आज उसे खाने को दौड़ रहा था। सुबह वह काम पर आई, घर लौटी तो भी करने को कुछ नहीं था। वह समय से पहले ही कुमार के यहां पहुंच जाती। अब कुमार उसे पढ़ाने लगा। उनमें प्रेमी प्रेमिका के अल्हड़ से, बचकाना वार्तालाप खेल खेल में होने लगे। एक दिन कुमार का बेटा जो अपनी गृहस्थी की चिंता में पिता को शायद भूल गया था । अचानक परिवार सहित डैडी से इस तरह मिलने आया, जैसे पिकनिक पर आया हो। शर्मा जी उसे अलग ले जाकर अपने घर में समझाते हुए बोले,’’बेटा, कुमार मीनू को बहुत मिस करते हैं। तुम्हारी रिश्तेदारी, जान पहचान में कोई महिला हो तो इनका साथ करवा दो। इस उम्र में एक दूसरे को मोरल सुर्पोट ही होता है। बेटा कुर्सी से ऐसे उछला जैसे उसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो। वो जवाब में बोला,’’मेरे बच्चों की उम्र शादी लायक होने वाली है अंकल, मैं उनको छोड़ कर बाप के लिए रिश्ता ढंूढता फिरुं।’’और चला गया। एक दिन कुमार के डिनर करते ही, बारिश शुरु हो गई। ज्यादा बरसात में चांदनी की कॉलोनी में पानी भर जाता है। ये मूसलाधार बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। बिजली भी चली गई थी। कुमार ने उसे वहीं रोक लिया। अगले दिन चांदनी ने एक किलो पनीर खरीदा। उसे पारदर्शी पॉलीथिन में डालकर, वह पहले संतोषी के घर गई। उसे बोली,’’ आप न आराधना दीदी का काम ले लो क्योंकि मैंने पढ़ाई और सिलाई सीखनी शुरु कर दी है। इसलिए मैं बिल्कुल समय नहीं निकाल पा रहीं हूं। संतोषी तो काम मिलते ही उसे खुश रहने के आर्शीवाद देने लगी। फिर वह पनीर दर्शन करवाती, इधर उधर दुआ सलाम करती लौटी। अब वो कुमार के यहां ही रुक गई। दो चार दिन बाद कुमार नये जोश से समाज सेवा में लग गये। शर्मा जी को जब भी चांदनी दिखती, वो उसे कहते,’’कुमार को खुरा़क खिलाया कर।’’चांदनी खुराक के नाम पर देसी घी ही जानती थी। वह ढेर ढेर सारा डाल कर, उसी के खस्ता परांठे, मनुहार से उसे खिलाती। कुमार समझते थे कि पढ़ना सीखते ही इसे सब ज्ञान हो जायेगा। और पूरी लगन से चांदनी को ज्ञानी बनाने में लग गए। उसमें बदलाव भी आ रहा था। कुमार तो अब घर से बिल्कुल आजाद होकर सामाजिक कामों में लगे रहते। खरीदारी भी चांदनी करती थी। जब वह अपने घर का किराया लेने जाती तो हमेशा उसके हाथ में पारदर्शी पॉलिथीन में एक किलो बादाम, काजू या कोई भी मेवा या पनीर होता। वो थैली वाली बांह मटकाती हुई बतियाती, औरते उसकी कलाइयों को घूरतीं कि इसने मास्टर के नाम की चूड़ी तो पहनी नहीं!! क्रमशः
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