चांदनी की पढ़ाई में कुमार कभी लापरवाही नहीं करते थे। पढ़ाने का काम वह सुबह ही निबटा लेते थे। उसके बाद घर से निकलते थे। जब घर आते उन्हें गर्म गर्म खाना मिलता। उन्होंने ढेरों काम अपने सिर पर ले लिए थे। अब वे हर समय व्यस्त रहते और मस्त रहते। सोसाइटी में कोई किसी की निजी जिंदगी में नहीं झांकता था। कम्प्यूटर सीखने से और विडियो कॉलिंग से टोनू मोनू भी चांदनी के पास हो गये। जब कुमार ने चांदनी का ड्राइविंग स्कूल में नाम लिखवाया तो उसने आना कानी की। कुमार ने कहा,’’अगर मेरी रात को अचानक तबीयत खराब हो जाये, तुरंत अस्पताल जाना पड़े तो तूं किसका इंतजार करेगी?’’ वो तुरंत राजी हो गई। मां के पढ़ने सेे बच्चे भी बहुत खुश थे। दशहरे की दस दिनों की छुट्टियों में बच्चों ने घर आना था। चांदनी के दिल में खुशी भी थी और घबराहट भी। कुमार वैसे ही मस्त थे। कुमार कहीं भी जाते थे तो गाड़ी चांदनी से चलवाते थे। उसमें कूट कूट कर आत्मविश्वास भर रहे थे। दोनों बच्चों को लेने गये। लौटने पर कुमार पिछली सीट पर मोनू के साथ बैठे। टोनू आगे बैठा। मां को गाड़ी चलाते देख कर मोनू की शक्ल देखने लायक थी। कुमार मोनू को देख रहे थे। फिर उन्होंने पढ़ाई के बारे में बातें की और उसे समझाया कि वो छुट्टियों में मैथ करे और जो सवाल न हों। उन पर निशान लगाता जाये। उन्हें वे करवा देंगे। कुमार ने कहा कि छुट्टियां इनकी मर्जी से बितानी है। घर और होस्टल में यही फर्क होता है घर में बच्चों की पसंद का खाना बनता है और होस्टल में जो वे बनाते हैं वे बच्चे खाते हैं। पहले ये अपने बाउ जी के घर पर जायेंगे। फिर बच्चे जहां कहेंगे, वहां जायेंगे। बच्चों ने एक बार भी अपनी कॉलौनी में जाने को नहीं कहा, न ही उनसे किसी ने पूछा। एक दिन रात को डिनर के समय कुमार ने मोनू से सलाह मांगी कि सरोजा की तुम्हें पढ़ाने की बड़ी इच्छा थी जो तुम पूरी कर रहे हो। चांदनी चाहती है कि उसके नाम से लड़कियों के लिए निशुल्क सिलाई स्कूल खोला जाये। उसके लिए जगह का किराया, टीचर का वेतन, मशीने आदि का खर्च होगा। मोनू तपाक से बोला,’’हमारे नीचे घर में खोल दीजिए न सरोजा सिलाई केन्द्र, दो दिन बाद सिलाई केन्द्र का उदघाटन रक्खा गया।
समरथ को नहिं दोस गुसाईं। कुमार ने सोसाइटी के नोटिस र्बोड पर सबको इनविटेशन दिया था। कुमार के बुलावे का कौन मान नहीं रक्खेगा भला! बड़ी संख्या में महिलाएं आई। कइयों ने तो अपने जन्मदिन, शादी की सालगिरह पर एक एक महीने का केन्द्र का खर्च उठा लिया। मोनू टोनू और चांदनी ने केन्द्र का उदघाटन किया। मोनू टोनू खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। चांदनी की आंखों से टप टप आंसू बह रहे थे। दस नई पैर की सिलाई मशीने रक्खी हुईं थी। कुमार ने सबको कहा कि आप लोगो के घर में जितने बेकार कपड़े हैं जिन्हें आप नहीं पहनते, सोसाइटी के ऑफिस में रख दीजिए। सिलाई सीखने वाली हर लड़की को 20 थैले सिलने होंगे। थैले सोसाइटी ऑफिस से आप ले सकते हैं । वहां एक दान पात्र होगा। आपका दिल करे तो उसमें कुछ डाल दें। छुट्टी खत्म होते ही बच्चे चले गये। चांदनी केन्द्र के काम में व्यस्त हो गई। चांदनी कुमार के खाने के समय हमेशा घर में रहती। आज आराधना ने बुलाया था। देखा चांदनी गाड़ी में पुराने कपड़े भर रही थी। देखते ही नमस्ते करके बोली,’’मेरे आने तक रुकना दीदी।’’आराधना बोली,’’हां, कुमार के खाने के समय आयेगी तूं तो।’’हम दोनो बतियाने बैठ गई। आज आराधना फिलॉस्फर की तरह बात कर रही थी। कहने लगी कि मीनू के मरने पर बेटों ने कहा,’’डैडी अर्पाटमैंट बेच कर हमारे साथ चलो। कुमार ने न जाकर, कैसा सार्थक जीवन कर लिया है। कितनों की जरुरत बन गये हैं। ये देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है। चांदनी उनका बहुत ध्यान रखती है। मैंने पूछा,’’चांदनी अब भी पारदर्शी पॉलिथीन में पनीर, बादाम लाती है।’’आराधना हंसते हुए बोली,’’कुमार ने सिलाई केन्द्र के झोले सबके हाथ में नहीं लटकवा दिए। लौटते हुए मैं सिलाई केन्द्र के आगे से निकली । पुरानी बातें याद आने लगीं। सरोजा की इज्जत का रखवाला, कुमकुम और मंगलसूत्र था, सुमित्रा का बिछुए और सोलह सिंगार’, चांदनी का ऐसा, जो जन्म से दूसरों के सहारे पर था। शायद सिलाई केन्द्र से हुनरमंद होकर महिलाओं का वहम मिट जाए कि उन्हें साथी चाहिए या इज्जत का रखवाला। समाप्त
समरथ को नहिं दोस गुसाईं। कुमार ने सोसाइटी के नोटिस र्बोड पर सबको इनविटेशन दिया था। कुमार के बुलावे का कौन मान नहीं रक्खेगा भला! बड़ी संख्या में महिलाएं आई। कइयों ने तो अपने जन्मदिन, शादी की सालगिरह पर एक एक महीने का केन्द्र का खर्च उठा लिया। मोनू टोनू और चांदनी ने केन्द्र का उदघाटन किया। मोनू टोनू खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। चांदनी की आंखों से टप टप आंसू बह रहे थे। दस नई पैर की सिलाई मशीने रक्खी हुईं थी। कुमार ने सबको कहा कि आप लोगो के घर में जितने बेकार कपड़े हैं जिन्हें आप नहीं पहनते, सोसाइटी के ऑफिस में रख दीजिए। सिलाई सीखने वाली हर लड़की को 20 थैले सिलने होंगे। थैले सोसाइटी ऑफिस से आप ले सकते हैं । वहां एक दान पात्र होगा। आपका दिल करे तो उसमें कुछ डाल दें। छुट्टी खत्म होते ही बच्चे चले गये। चांदनी केन्द्र के काम में व्यस्त हो गई। चांदनी कुमार के खाने के समय हमेशा घर में रहती। आज आराधना ने बुलाया था। देखा चांदनी गाड़ी में पुराने कपड़े भर रही थी। देखते ही नमस्ते करके बोली,’’मेरे आने तक रुकना दीदी।’’आराधना बोली,’’हां, कुमार के खाने के समय आयेगी तूं तो।’’हम दोनो बतियाने बैठ गई। आज आराधना फिलॉस्फर की तरह बात कर रही थी। कहने लगी कि मीनू के मरने पर बेटों ने कहा,’’डैडी अर्पाटमैंट बेच कर हमारे साथ चलो। कुमार ने न जाकर, कैसा सार्थक जीवन कर लिया है। कितनों की जरुरत बन गये हैं। ये देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है। चांदनी उनका बहुत ध्यान रखती है। मैंने पूछा,’’चांदनी अब भी पारदर्शी पॉलिथीन में पनीर, बादाम लाती है।’’आराधना हंसते हुए बोली,’’कुमार ने सिलाई केन्द्र के झोले सबके हाथ में नहीं लटकवा दिए। लौटते हुए मैं सिलाई केन्द्र के आगे से निकली । पुरानी बातें याद आने लगीं। सरोजा की इज्जत का रखवाला, कुमकुम और मंगलसूत्र था, सुमित्रा का बिछुए और सोलह सिंगार’, चांदनी का ऐसा, जो जन्म से दूसरों के सहारे पर था। शायद सिलाई केन्द्र से हुनरमंद होकर महिलाओं का वहम मिट जाए कि उन्हें साथी चाहिए या इज्जत का रखवाला। समाप्त