हमने एक मैनुअल रिक्शावाले से चौक पासियां गली निजड़ा जाने के लिए कहा। उसने जवाब दिया,’’बीबी, चौक पासियां उतार दूंगा, वहीं पर मटकी वाली गली, गली निजड़ा...उसने कई गलियों के नाम गिनवा दिए। हम रिक्शा पर बैठ गईं। संकरी गलियां, जिसके दोनो ओर माल से लदी दुकान और ग्राहक थे। रिक्शा हमारे दिल्ली, यूपी की रिक्शा से बड़ी थी, पीछे हुड और चलाने वाला भी तगड़ा। अब वैसी रिक्शा नहीं हैं पूरे रास्ते वह, ओ बहन, ओ वीर, ओ माई (बूढ़ी) , ओ पाइया (bude)बोल के रास्ता मांग रहा था। उत्कर्षिनी ने पूछा,’’मां घर का नम्बर तो है नहीं, कैसे पहुंचेगे?’’मैंने जवाब दिया,’’मेरे मौसा जी स्वर्गीय भगतराम शौरी और उनका बेटा विश्वनाथ शौरी दोनो एमरजैंसी में मीसाबंदी रहे हैं। उनको सब जानते हैं। चौक पासियां पूरी मार्किट! ऐसे लगा कि दिल्ली के सदर बाजार में आ गये हों। रिक्शा से उतर कर पैसे चुकाए। दो महिलाएं डब्बा लटकाए दूध लेने जा रहीं थीं। मैंने मौसा जी का पूरा नाम भी नहीं लिया, वह तो आ जाओ कह कर मुढ़ी और गली में घुसते ही बोली,’’वो वाला घर और चली गई। उत्कर्षिनी ने पीछे से कहा,’‘थैंक्यू, आंटी।’’वो पलट कर आई, मुझसे पूछा,’’बीजी आपके कौन लगते हैं? मैंने जवाब दिया रामलुभाइ जी न! वो मेरी मासी जी हैं। उसने तुरंत उत्कर्षिनी को गले लगा कर कहा कि मैं तेरी मांसी आं। और चली गई। पुराना बना हवेलीनुमा घर, आंगन पर लोहे का जंगला पड़ा था। हम दोनों ने सारा घर देख लिया, घर में कोई नहीं मिला। फिर सोचा गलत घर में न आ गए हों। बाहर आकर नेम प्लेट पढ़ी, उस पर पाजी(भाई) का नाम लिखा हुआ था यानि मासी जी का घर। हमें लौटते देख एक लड़की आकर बोली,’’बीजी ऊपर हैं।’’ अब हम ऊपर गए। सारा घर घूम लिया मासी जी खिड़की में पालथी मार कर बैठी, पिछली गली में निकलने वाली रामबारात की तैयारी देख रहीं थीं। इस तरफ जरा शोर नहीं था और इधर बैंड बाजे, ढोल, तासे नगाड़ों का खूब शोर। मासी जी ने हमें देखते ही जफ्फी डाली। बदले में मैं गुस्से से बोली’’सारा घर खुला पड़ा है। हम सारा घर घूम लिए, आपको पता चला!! नहीं न!! दरवाजा तो बंद रखना चाहिए। कोई चोरी कर जाए तो।’’सुन कर मेरी गोरी चिट्टी, घने सफेद बालों वाली प्यारी मासी, बड़े प्यार से मुस्कुरा कर बोलीं,’’नी कुड़िए,जब पाकिस्तान बनने से पहले यहां कभी चोरी नहीं हुई, बनने के बाद खाली हाथं अपने लोग यहां आए, तब भी नहीं हुई। अब क्यों होगी भला!! अच्छा अब तूं ये बता तूं क्या खाएगी? पहली बार अम्बरसर आई है। मैंने कहा कि मैं एक घण्टा पहले खाना खाकर आईं हूं। इतने में "शुभलता भाभी आ गई। वे ड्राइविंग जानती थीं इसलिए वे शादी में बाहर के काम देख रहीं थी| उन्होंने मासी जी के लिए खाना बनाया। एक रोटी उनकी थाली में रख कर हमसे बतियाने लगीं। मासी जी धीरे धीरे खाती रहीं। जैसे ही उन्होंने आखिरी कौर मुंह में रखा। भाभी ने दूसरा फुलका बनाकर उनकी थाली में रखा। मासी बहुत धीरे खाती हैं। दूसरी रोटी ठंडी न हो जाए। उन्हें चबाने में तकलीफ न हो इसलिए वे ऐसा करतीं हैं। मासी बोलीं,’’मैं खा लूंगी। तुम लोग गुड्डी के जाओ। यहां के रिवाज़ देखो। हम बाहर आए। हमें पता चल गया था कि गुड्डी का घर ज्यादा दूर नहीं है। मैंने कहा कि हम पैदल जायेंगे ओर चल पड़े। वहां पहूंचे मोना के माइंया(हल्दी) की रस्म हो चुकी थी। सब महिलाएं जलपान कर रहीं थीं। इसमें सबको गुने(गुड़ आटे की मठरी), बड़े उड़द की दाल के खिलाते हैं और घर के लिए देते हैं। सारा आंगन चमचम, बल्ले बल्ले लग रहा था। लिपस्कि का रंग सबका लाल और महरुन था, गहने और चमकीली कढ़ाइयों के सब सूट पहने थी। गुड़्डी ने दो दिन के गॉन(लेडीज़्संगीत ) रखे थे। र्काड में लिखा था फिर भी नीतू और उत्कर्षिनी सबके घर सद्दा(बुलावा) देने गईं। यहां तक कि जो महिलाएं माइयों में आईं थीं। उनके घर भी रात के गीतों का बुलावा देने गईं। क्रमशः
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Saturday, 20 June 2020
अम्बरसर!! Amritsar Yatra अमृतसर की यात्रा भाग 3 Neelam Bhagi नीलम भागी
हमने एक मैनुअल रिक्शावाले से चौक पासियां गली निजड़ा जाने के लिए कहा। उसने जवाब दिया,’’बीबी, चौक पासियां उतार दूंगा, वहीं पर मटकी वाली गली, गली निजड़ा...उसने कई गलियों के नाम गिनवा दिए। हम रिक्शा पर बैठ गईं। संकरी गलियां, जिसके दोनो ओर माल से लदी दुकान और ग्राहक थे। रिक्शा हमारे दिल्ली, यूपी की रिक्शा से बड़ी थी, पीछे हुड और चलाने वाला भी तगड़ा। अब वैसी रिक्शा नहीं हैं पूरे रास्ते वह, ओ बहन, ओ वीर, ओ माई (बूढ़ी) , ओ पाइया (bude)बोल के रास्ता मांग रहा था। उत्कर्षिनी ने पूछा,’’मां घर का नम्बर तो है नहीं, कैसे पहुंचेगे?’’मैंने जवाब दिया,’’मेरे मौसा जी स्वर्गीय भगतराम शौरी और उनका बेटा विश्वनाथ शौरी दोनो एमरजैंसी में मीसाबंदी रहे हैं। उनको सब जानते हैं। चौक पासियां पूरी मार्किट! ऐसे लगा कि दिल्ली के सदर बाजार में आ गये हों। रिक्शा से उतर कर पैसे चुकाए। दो महिलाएं डब्बा लटकाए दूध लेने जा रहीं थीं। मैंने मौसा जी का पूरा नाम भी नहीं लिया, वह तो आ जाओ कह कर मुढ़ी और गली में घुसते ही बोली,’’वो वाला घर और चली गई। उत्कर्षिनी ने पीछे से कहा,’‘थैंक्यू, आंटी।’’वो पलट कर आई, मुझसे पूछा,’’बीजी आपके कौन लगते हैं? मैंने जवाब दिया रामलुभाइ जी न! वो मेरी मासी जी हैं। उसने तुरंत उत्कर्षिनी को गले लगा कर कहा कि मैं तेरी मांसी आं। और चली गई। पुराना बना हवेलीनुमा घर, आंगन पर लोहे का जंगला पड़ा था। हम दोनों ने सारा घर देख लिया, घर में कोई नहीं मिला। फिर सोचा गलत घर में न आ गए हों। बाहर आकर नेम प्लेट पढ़ी, उस पर पाजी(भाई) का नाम लिखा हुआ था यानि मासी जी का घर। हमें लौटते देख एक लड़की आकर बोली,’’बीजी ऊपर हैं।’’ अब हम ऊपर गए। सारा घर घूम लिया मासी जी खिड़की में पालथी मार कर बैठी, पिछली गली में निकलने वाली रामबारात की तैयारी देख रहीं थीं। इस तरफ जरा शोर नहीं था और इधर बैंड बाजे, ढोल, तासे नगाड़ों का खूब शोर। मासी जी ने हमें देखते ही जफ्फी डाली। बदले में मैं गुस्से से बोली’’सारा घर खुला पड़ा है। हम सारा घर घूम लिए, आपको पता चला!! नहीं न!! दरवाजा तो बंद रखना चाहिए। कोई चोरी कर जाए तो।’’सुन कर मेरी गोरी चिट्टी, घने सफेद बालों वाली प्यारी मासी, बड़े प्यार से मुस्कुरा कर बोलीं,’’नी कुड़िए,जब पाकिस्तान बनने से पहले यहां कभी चोरी नहीं हुई, बनने के बाद खाली हाथं अपने लोग यहां आए, तब भी नहीं हुई। अब क्यों होगी भला!! अच्छा अब तूं ये बता तूं क्या खाएगी? पहली बार अम्बरसर आई है। मैंने कहा कि मैं एक घण्टा पहले खाना खाकर आईं हूं। इतने में "शुभलता भाभी आ गई। वे ड्राइविंग जानती थीं इसलिए वे शादी में बाहर के काम देख रहीं थी| उन्होंने मासी जी के लिए खाना बनाया। एक रोटी उनकी थाली में रख कर हमसे बतियाने लगीं। मासी जी धीरे धीरे खाती रहीं। जैसे ही उन्होंने आखिरी कौर मुंह में रखा। भाभी ने दूसरा फुलका बनाकर उनकी थाली में रखा। मासी बहुत धीरे खाती हैं। दूसरी रोटी ठंडी न हो जाए। उन्हें चबाने में तकलीफ न हो इसलिए वे ऐसा करतीं हैं। मासी बोलीं,’’मैं खा लूंगी। तुम लोग गुड्डी के जाओ। यहां के रिवाज़ देखो। हम बाहर आए। हमें पता चल गया था कि गुड्डी का घर ज्यादा दूर नहीं है। मैंने कहा कि हम पैदल जायेंगे ओर चल पड़े। वहां पहूंचे मोना के माइंया(हल्दी) की रस्म हो चुकी थी। सब महिलाएं जलपान कर रहीं थीं। इसमें सबको गुने(गुड़ आटे की मठरी), बड़े उड़द की दाल के खिलाते हैं और घर के लिए देते हैं। सारा आंगन चमचम, बल्ले बल्ले लग रहा था। लिपस्कि का रंग सबका लाल और महरुन था, गहने और चमकीली कढ़ाइयों के सब सूट पहने थी। गुड़्डी ने दो दिन के गॉन(लेडीज़्संगीत ) रखे थे। र्काड में लिखा था फिर भी नीतू और उत्कर्षिनी सबके घर सद्दा(बुलावा) देने गईं। यहां तक कि जो महिलाएं माइयों में आईं थीं। उनके घर भी रात के गीतों का बुलावा देने गईं। क्रमशः
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