उत्कर्शिनी मेरे पास आई। वह बहुत दुखी थी। दुख में उसका चेहरा लौकी की तरह लटका हुआ था। उसे मैंने कभी मुंह लटकाए नहीं देखा क्योंकि वह हमेशा पेड़ पौधों में मस्त रहती है इसलिए मैंने उतावलेपन से पूछा,’’क्या हुआ? सब ठीक तो है न।’’उसने जवाब दिया,’’कुछ भी ठीक नहीं है। पेड़ के कारण पड़ोसन रोज दस बातें सुनाती है, कहती है तुम्हारे घर के आगे जो पेड़ लगा है, वह मेरे घर के आगे गंदगी फैलाता है। सफाई कर्मचारी तो सुबह झाड़ू लगा कर जाता है। इसके कभी भी पत्ते गिरते रहते हैं। बंदर आते हैं कच्चे फल तोड़ कर फैंक जाते हैं। जितना पेड़ मेरे घर के सामने आ रहा है, उसे कटवाओ।’’आप तो जानती हो आपके साथ ही मैं इसे खरीद कर लाई। कितना ध्यान रक्खा!! अब जाकर बड़ा हुआ है। खाद पानी मैं देती हूं। उनकी तरफ के फलों की ओर मैंने कभी देखा ही नहीं है। ऐसा कहीं होता है कि जब ये फल खा लें तो मैं उनकी तरफ की टहनियां कटवा दूं। यानि पेड़ का संतुलन बिगाड़ दूं। पेड़ तो फिर उसकी तरफ बढ़ेगा। ये सुनकर मुझे एक घटना याद आ गई।
मैं जा रही थी, एक पेड़ का तना सुलग रहा था। ताजा कटा था , एक भी हरी कटी टहनी पास में नहीं थी। गीला था, इसलिये सुलगता रहा। उसका धुआँ सभ्य पड़ोसियों की आँखें नहीं, दिल दुखा रहा था, क्योंकि वे जानते हैं कि पेड़-पौधों में जीवन होता है। वे तुलसी ,पीपल आदि की पूजा करते हैं तो अपने फायदे के लिए पेड़ों की हत्या नहीं करते। लेकिन अपने फायदे के लिए पेड़ काटने वाला जानता है कि पेड़ काटना अपराध है। पेड़ काटने की सजा है। पेड़ काटने की परमिशन देने के लिए उद्यान विभाग भी नहीं ऑथोराइज़्ड है। इसके लिए वन विभाग से परमिशन लेनी पड़ती है। उसके लिए जिला वन अधिकारी अपने एक अधिकारी को नियुक्त करता है। वो मुआइना करके अपनी रिर्पोट देगा। केवल गाड़ी खडी करने के लिए और धूप सेकने के लिए पेड़ काटने की परमिशन नहीं दी जाती है।
पेड़ कटने की सूचना मिलते ही उसकी पोस्टर्माटम रिर्पोट तैयार होती है। जिसमें टहनियों, तनों की नाप जोख लिखी जाती है। तभी तो उसने कटे पेड़ की शाखाएँ, तने वहाँ से तुरन्त हटा दिए और तने में आग लगा दी। पड़ोस में लड़ाई कभी अच्छी नहीं होती। सभ्य इनसान, पर्यावरण प्रेमी अपने आस पास जितना हो सके पेड़ पौधे लगाता है, उनकी रक्षा करता है। लड़ना उसकी फितरत में नहीं है, वह चुप रह जाता है।
उत्कर्शिनी ने पूछा,’’पर मैं उसका क्या इलाज़ करुं?’’ मैंने कहा कि उसे कह दे कि मैं तो इसे कटवाउंगी नहीं। कोई काटेगा तो रिर्पोट कर दूंगी। जो इस पेड़ के फल नहीं खा रहे वे इसकी ऑक्सीजन में सांस तो ले रहे हैं। जीवन भर तुमने कोई पेड़ लगाया हो, तो तुम कटवाने की बात कर ही नहीं सकते। कभी हमने सोचा था कि ऐसा भी समय आयेगा, जिसमें एक छोटे से अदृश्य वाइरस ने मुंह पर मास्क बंधवा दिया है। याद रखना यदि पेड़ नहीं लगाए तो एक दिन पीठ पर ऑक्सीजन का सिलेंण्डर भी बांधना पड़ेगा।