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Sunday, 30 August 2020

टुन्नू के प्यारे गणपति बप्पा मोरया भाग 2 नीलम भागी Ganpati Bappa Morya Part 2 Neelam Bhagi





बारिश तो इन दिनों कभी भी आ जाती है पर कोई परवाह नहीं, न ही कभी किसी के श्रद्धा और उत्साह में कमी दिखती है। जो जहां कहीं भी जा रहे होते या आ रहे होते वैसे ही आना जाना करते। इन दिनों मुझे यहां कुछ न कुछ प्रभावित जरुर करता रहता था। घरों में भी गणपति बिठाते हैं, पूजन होता है। 1, 3, या पांच दिन बिठाते हैं। गौरी पूजन, दो दिन लक्ष्मी पूजन, छप्पन भोग, त्यौहार के बीच में बेटियां भी मायके आती हैं गणपति से मिलने और बहुएं भी मायके जाती हैं बप्पा से मिलने। मसलन जैसे हमारे सामने के फ्लैट में रहने वाले परिवार ने गणपति बिठाए तो उनके तीनों भाइयों के परिवार वहीं आ गए। पूजा तो हर समय नहीं होती है, बच्चे आपस में घुल मिल रहें हैं। महिलाओं पुरुषों की अपनी गोष्ठियां चल रहीं थी। एक दिन अप्टमी मनाई गई। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन गौंरा अपने गणपति से मिलने आती हैं। उपवास रखकर, कुल्हड़ के आकार या गुड़ियों के रुप में गौरी पूजते और खिलाते हैं ।

 सबको भोजन कराते हैं। दक्षिणा उपहार देते हैं पर उस दिन जूठन तक नहीं फेंकते। यहां तक कि पान खिलाया तो उसका कागज भी दहलीज से बाहर नहीं डालते। अगले दिन दक्षिणा उपहार ले जा सकते हैं। शाम को आरती के बाद कीर्तन होता। उसमें नाचते गाते हैं। मंगलकारी बप्पा साल में एक बार तो आते हैं। इसलिए उनके सत्कार में कोई कमी न रह जाए। अपनी सामर्थ्य के अनुसार मोदक, लड्डू के साथ तरह तरह के व्यंजनों का भोग लगाते हैं। जो सब मिल जुल कर, प्रशाद में खाते हैं। थोड़ी सी जगह में संबंधियों मित्रों के साथ आनंद पूर्वक नाच भी लेते हैं। लगातार तीन साल के गणेशोत्सव में मैं प्रतिदिन कहीं न कहीं गई हूं। वहां हर जगह नियंत्रित भीड़ और जिस भी सोसाइटी के गणपति उत्सव में मैं गई, देखा सब थोड़ी जगह में एडजस्ट हो जाते हैं, इससे मैं बहुत प्रभावित हुई। दोनों समय की आरती में सभी की कोशिश होती है कि वे जरुर पहुंचें। मेड और मैम दोनो एक दूसरे का सहयोग करते हैं। मेड सुबह जल्दी आती हैं आरती से पहले या बाद में। काम में नागा विसर्जन पर ही एक दिन का। आपके घर मेड काम कर रही है। सोसाइटी के गणपति की आरती शुरु हो गई। उसी समय काम छोड कर, हाथ धो कर बोलेगी,’’दीदी, मैं जाकऱ आती।’’ और आरती में जाकर शामिल हो जाती। समापन पर आकर वैसे ही जल्दी जल्दी काम में लग जाती। विर्सजन का दिन तो मुझे घर से बाहर ही रहने को मजबूर करता। गणेश चतुर्थी के बाद मैं पहली बार लोखण्डवाला से इन्फीनीटी मॉल के लिए निकली। ढोल नगाड़ों की आवाजें तो आ रहीं थीं। सोसाइटी के गेट से बाहर निकलते ही देखती हूं। एक लड़की ने बड़ी श्रद्धा से गणपति गोद में ले रखे हैं। दूसरी लड़की साथ चल रही है। दोनों जोर लगा कर कुछ बोल रहीं हैं और ढोल की ताल पर उनके पैर चल रहें हैं।  उनके चेहरे से टपकती श्रद्धा को तो मैं लिखने में असमर्थ हूं। मनचला तो मुंबई में होता ही नहीं।  कुछ सुनाई नहीं दे रहा था क्योंकि ढोल वाला भी जोर जोर से ढोल बजा रहा था। उनके पीछे, सामने से भी बड़ा विर्सजन जूलूस आ रहा था। यहां ढोल से ज्यादा ऊंची आवाज़ में श्रद्धालु जयकारे लगा रहे थे,’’गणपति बप्पा मोरिया, अगले बरस तूं जल्दी आ।’’मैंने सैयद से पूछा,’’ये दोनों लड़कियां क्यों विर्सजन के लिए अकेली जा रहीं थीं?’’सैयद बोले,’’बाहर की होंगी। बप्पा ने जल्दी सुन ली होगी। नई नौकरी होगी, तभी तो एक दिन के बिठाएं हैं।’’ क्रमशः