मेरी कोरोना पॉजिटिव रिर्पोट के बाद मैं अपने कमरे से ही महसूस कर रही थी कि घर में सन्नाटा छाया हुआ है। और मुझे भी रिर्पोट आने के बाद घबराहट सी होने लगी वो इसलिए कि जरुरत पड़ने पर क्या मुझे बैड और ऑक्सीजन मिल जायेगी? क्योंकि उसकी कमी चल रही थी। पहली डोज़ खाने के बाद मेरे दिमाग में डिबेट चलने लगी कि मुझे जरुरत पड़ने पर नहीं मिला तो!! मैं तो मर जाउंगी। मैं मरना नहीं चाहती, एक ही तो जीवन मिला है। मुझे नहीं जाना स्वर्ग क्योंकि कोई भी स्वर्ग जाकर, लौट कर बताने नहीं आया है कि स्वर्ग कैसा होता है? और स्वर्ग जाने के लिए तो मरना जरुरी होता है। आज मैं मरने की बातें क्यों सोच रहीं हूं! आज तो मेरा रिर्पोट के बाद कोरोना का इलाज़ शुरु हुआ है। अभी तक तो शायद मौसमी बुखार खांसी का इलाज़ हो रहा था। 14 अप्रैल से मुझे बुखार था। 16 अप्रैल को सैंपल गया है। तब मुझे कोरोना था तभी तो रिर्पोट पॉजिटिव आई है। पिछले चार दिनों से मुझे कोरोना है, पर मुझे पता नहीं था तो मैं सरवाइव कर रही थी, रिर्पोट से पता चल गया तो मुझे घबराहट होने लगी। ऐसा मन में आते ही घबराहट तो चली गई पर बुखार नहीं गया। कैसा होता है कोरोना! चार दिन से यह अज्ञात शत्रु मेरे साथ है। 24 मार्च 2020 से सुन रही हूं ’कोरोना से डरना नहीं, लड़ना है!’ चार दिन से तो मैं भी लड़ रही हूं। अब तो मेरे पास दवा भी आ गई है। इस दिमागी डिबेट से मैं बुरी तरह थक गई। एक गिलास ओआरएस बना कर पिया। बुखार में सो गई। उठी तो दवाइयां कम वाली देेखीं, गिनी तो उनमें एक 3 गोली थीं। अब एक ही रह गई थी। एक दिन में एक खानी थीं। कल खाई थी और आज की खा चुकी थी। दिमाग में आया कि ये तीन ही दी हैं, कल तीसरी गोली खाने के बाद मैं ठीक होने लगूंगी। ये सोच कर मन शांत हो गया। रात का कैप्सूल और बुखार की गोली खाकर गहरी नींद आ जाती थी। खांसी आने पर खुलती पर फिर नींद लग जाती। सुबह ही नींद खुलती। उठते ही ब्लड प्रैशर की गोली खाकर कुछ समय बाद से कोरोना जंग शुरु। खाना अच्छा नहीं लगता पर थोड़ा थोड़ा खाती डॉक्टर के कहे अनुसार समय पर दवा लेती। भाप लेती, गरारे करती, ऑक्सीजन नापती। इस एकांतवास में, समस्याओं से भरे मन में प्रश्न बहुत उठते थे। मसलन बैड और ऑक्सीजन की कमी है अगर मेरी तबियत बिगड़ी, मुझे न मिला तो! फिर अपने आप मन को समझाती कि बैड पर लेटी हूं और घर के चारों ओर मैंने पेड़ पौधे लगा रखें हैं जो सूरज की रोशनी में फोटोसिंथेसिस करके ये ऑक्सीजन देते हैं। और तब से मेरा मुंह खिड़की की तरफ ही रहता। गहरी सांसे लेती, ज्यादा गहरी नहीं क्योंकि खांसी लग जाती। नींद में ही करवट बदली जाती। मच्छरदानी इस तरह फिट की थी कि कोई मच्छर नहीं घुस सकता था। जब तीसरे दिन तीन गोलियां खत्म हो गईं। शाम तक बुखार नहीं टूटा तो दुखी हो गई फिर मन को समझाया कि ये जो 5 दिन सुबह शाम खाने की 10 गोलियां हैं न, ये खत्म होते ही मैं ठीक हो जाउंगी। 6 मैं खा चुकी हूं अब दो कल और दो परसों फिर मैं ठीक हो जाउंगी। नीलम भागी क्रमशः