मेरी पड़ोसी शर्मिला जी ने इस हफ्ते अपनी बाल्कोनी में वजन को ध्यान में रखते हुए खूब पौधे खरीदे। उनकी बेटी माधवी मायके आई उसने भी खूब पौधे खरीदे, जिसे जाते समय वह अपने साथ ले गई।
5 जून 2021 के पर्यावरण दिवस पर सोशल मीडिया में लोगो ने अपने पेड़ पौधों के साथ तस्वीरें लगा कर शुभकामनाएं दी। ये सामाजिक चेतना कैसे आई है।
दश कूप सम वापी, दश वापी समोहृदः।
दशहृदसमः पुत्रो, दशपुत्रसमो द्रुमः।
दस कुओं के बराबर एक बावड़ी है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र है और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष। मत्स्य पुराण का यह कथन
हमें पेड़ लगाने और उनकी देखभाल करने के लिए प्रोत्साहित करता है। पर अपने स्वार्थ के लिये पेड़ काटने में हम संकोच नहीें करते क्योंकि गाड़ी जो पार्क करनी है। 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। जगह जगह कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जिसमें वक्ता से लेकर श्रोता तक सभी पर्यावरण पर चिंता करते हुए बहुत लाजवाब उदाहरण देते हैं मसलन “विश्व भौतिक विकास की ओर तो तेजी से बढ़ रहा है, मगर प्रकृति से उतना ही दूर हो रहा है। पानी दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है। भूजल स्तर गिरता जा रहा है। इसे बचाने के लिए खूब पेड़ लगाए जाएं। पेड़ बादल बनने में सहायक होंगे और उन्हीं बादलों से बारिश होगी। राजस्थान में इंदिरा कैनाल बनने के बाद उसके आसपास खूब पेड़ लगाये गये। अब उस इलाके में बारिश होती रहती है। पॉलिथिन का उपयोग नहीं करना है। (फिर पत्रकारों की ओर देखते हुए) मीडिया का काम खबरें देना ही नहीं है, बल्कि सामाजिक चेतना लाना भी है। पेड़ लगाना है, पानी की एक बूंद भी र्बबाद नहीं करनी है। पब्लिक ट्रांसर्पोट का इस्तेमाल करें।़” कार्यक्रम के समापन पर अतिथियों को जो शॉल प्रतीक चिन्ह, नारियल आदि मिला होता है। उसे पॉलिथिन में रख कर ले जाते हैं। घर से झोला आदि नहीं लाते। पानी की बोतल आधी पीकर छोड़ देते हैं।
लेकिन हम भी तो इकोफैंडली साइकिल नहीं चलायेंगे। न ही पेड़ पौधों की देखभाल करेंगे। हमारा पड़ोसी अगर पेड़ काट रहा होगा तो हम चुप रहेंगे।
कोरोना काल में पर्यावरण प्रेमियों ने लॉकडाउन में गार्डनिंग करते हुए अपने हिस्से का वायुप्रदूषण कम किया। 5 जून 2020 को अपने पेड़ पौधों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट कीं। जिससे गार्डिनिंग का लोगो में शौक बढ़ा।
कोरोना की दूसरी लहर में जिस तरह लोगों को ऑक्सीजन की कमी के कारण जान गवानी पड़ी, उसके बाद से लोगों को पेड़ पौधों की जरुरत का अहसास हो गया है। क्योंकि एक पेड़ एक साल में 20 किलो धूल सोखता है। 700 किलो ऑक्सीजन देता है। 20 टन कार्बनडाइआक्साइड सोखता है। गर्मी में पेड़ के नीचे 4 डिग्री तापमान कम होता है। वायुमंडल की जहरीली धातुओं के मिश्रण को इसमें सोखने की क्षमता है। दूषित हवा को फिल्टर करता है। घर के करीब एक पेड़ शोर को सोखता है। यानि अकॉस्टिक वॉल की तरह काम करता है। घर के पास यदि खूब पेड़ हैं तो जीवन कुछ साल बढ़ सकता है। मुझे ये तो बिल्कुल ठीक लग रहा है। क्योंकि चार साल पहले मेरी अम्मा को चिकनगुनिया हो गया था, बचने की उम्मीद नहीं थी। जब जरा ठीक हुईं तो रोज मेरे सहारे से बाहर पेड़ के नीचे जाकर लेटतीं। अब 92वें साल में अपने काम स्वयं करती हैं। पेड़ के नीचे ही उनका पढ़ना, आराम करना होता है। घर के सामने पार्क में कोई डण्डी भी तोड़ रहा हो तो मुझे आवाज़ लगा कर कहेंगी,’’देख, कोई पेड़ काट रहा है।’’मैं तुरंत रोकने जाती हूं।