Search This Blog

Saturday, 23 October 2021

कटड़ा 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 19 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

 

रास्ते भर माता की भेंटे गाते बजाते पौं फटते ही कटड़ा आ गया। किसी के चेहरे पर कोई थकान नहीं। उषा जी के परिवार ने हैलिकॉप्टर से जाना था और मुझे भी उन्होंने अपने परिवार में शामिल कर लिया। जैसे ही बस रुकी हम लोगों ने सामने काउंटर से यात्रा पर्ची बनवा ली।


जो निशुल्क बनती है। इसके बिना बान गंगा से कोई भी यात्री आगे नहीं बढ़ सकता। कुछ यात्री यात्रा स्लिप ऑनलाइन बनवा कर, घर से उसका प्रिंटआउट लेकर आए थे और साथ ही त्रिकुट भवन में अपने लिए 100रु में बैड भी बुक करवा रखा था। सामान तो बस में रखा ही था। वे तो बस से कूद कर उतरे और ये जा वो जा। हम लोगों ने उसी होटल में कमरे लिए जिसमें पहले उषा जी का परिवार रुकता था। ये बस स्टॉप के पास ही था। होटल में सामान रखकर धमेन्द्र भडाना और गौतम बंसल हम सबके आई.डी वगैरह लेकर हैलीकॉप्टर की सीट बुकिंग के लिए चले गए। हम सब तैयार होकर उनका इंतजार करने लगे। होटल में मेरे फोन पर वाई फाई आते ही अंकुर का फोन उसने पूछा कि मैं कटड़ा पहुंच गई। उसने बताया कि मौसम खराब होने के कारण आज हैलीकॉप्टर नहीं चलेंगें। पर मैंने किसी को नहीं बताया ये सोच कर कि जो सुबह से गए हुए हैं, शायद मौसम ठीक हो जाए और हमारी बुकिंग हो जाए। एक बजे धर्मेन्द्र और गौतम लौट आए उन्होंने बताया कि हैलीकॉप्टर आज नहीं चल रहे हैं। प्रेरणा तुरंत मुझे बताने आई। अब सब चल पड़े कि बान गंगा से घोड़े पर आद्ध कवारी तक जायेंगे और वहां से बैटरी कार 354रु प्रति सवारी जाती है। उसमें बैठ कर चले जायेंगे। मैंने जाने से मना कर दिया क्योंकि मुझे घोड़े पर बैठने से डर लगता है और पैदल मेरा स्वास्थ साथ नहीं दे रहा था। सब गाड़ी में बैठे और बान गंगा की ओर चले गए। थोड़ी देर बाद मैं पैदल चल दी लंच करने। कुछ भी कटड़ा स्पैशल नहीं। सब यहां जैसा लेकिन शाकाहारी। लंच के बाद थोड़ा पैदल चलती जिस रास्ते से गई थी उसी से वापिस आ गई। सुबह कोने की जिस दुकान से चाय आई थी। उसे एक चाय बनाने को बोला। उसने पहले मुझसे हैरान होकर पूछा,’’आप नहीं गईं दर्शन करने! क्यों नहीं गए?’’ मैंने जवाब दिया,’’हैलीकॉप्टर आज नहीं चले। माता रानी चाहतीं हैं, मैं फिर से आऊं। अब जब बुलावा आयेगा, उस दिन जरुर चलेंगे।’’ उसने चाय बहुत अच्छी बनाई। मैंने रुम में लाकर पी और पैर ऊँचे करके सो गई। जब उठी तो सूजन बहुत कम रह गई थी। अचानक मेरे दिमाग में एक प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि बाण गंगा तक तो गाड़ी जाती है। मैं सबके साथ जाकर लौट आती। मैंने ऐसा क्यों नहीं किया?’’ फिर अपने आप ही जवाब आ गया कि अब कर लेती हूं।  शाम के 5.30 बजे थे। मैं बाहर आई। बस स्टैण्ड के आगे खड़ी हो गई और ऑटो देखने लगी। बस स्टैण्ड जैसे आम तौर पर गंदे होते हैं, वैसे ही गंदा। लेकिन यहां मुझे गंदा होना बुरा लगा क्योंकि कटड़ा वैष्णों देवी यात्रा का आधार शिविर है।

देश विदेश से लोग यहां आते हैं। प्रकृति ने इसके आस पास भरपूर सौन्दर्य बिखेरा है। तो यहां के प्रशासन को भी सफाई का बहुत ध्यान रखना चाहिए। पीछे मुड़ कर देखती हूं। दो खड़ी बसों के बीच में यात्री शायद पॉलिथिन बिछा कर उस पर बैठे देवी मां के गीत गा रहें हैं। जहां की फिजा़ में लोगों की श्रद्धा का भाव हो वहां गंदगी होना शोभा नहीं देता।

इतने में एक खाली ऑटो दिखा। उसे मैंने रोक कर पूछा,’’बाण गंगा जाना है और मुझे यहीं लाकर छोड़ना है। कितना भाड़ा?’’उसने कहा कि 250रु। मैं बैठ गई। कटरा से परिचय करती जा रही थी। बाजार सामान से लदे हुए थे। जगह जगह हाथी जो ट्रक से छोटा होता है, उसमें सेब भरे हुए बिक रहे थे 30रु किलो। दोपहर में मैंने 75रु किलो लिए थे। ऑटोवाले का नाम अशोक था। मैंने उसे अगले दिन कटरे के दर्शनीय स्थल घूमाने को तय कर लिया। उसने कहा वह सुबह 7 बजे ऑटो होटल पर लगा देगा। बाण गंगा पहुुंचा कर वह बताने लगा.... क्रमशः