Search This Blog

Friday, 8 April 2022

रेल से रेक्सौल, मुक्तिनाथ धाम की ओर नेपाल यात्रा भाग 2 नीलम भागी Nepal Yatra Part 2 Neelam Bhagi

सीट पर बैठते ही आस पास देखा डिब्बा बिल्कुल नया था। दिसम्बर में खिड़कियों पर पर्दे नहीं थे। अब पर्दे लगे हुए थे। सब फेस बुक से यात्रा में जुड़े थे इसलिए भारत के अलग अलग शहरों से आपस में सहेलियां ने प्रोग्राम बनाया और नेपाल टूर में सब दिल्ली से इक्टठे हुए थे। मैं ही अकेली थी। गुप्ता जी ने व्हाट्अप पर नेपाल टूर का ग्रुप बनाया था। उसमें एक बैच की फोटो भेजी थी और बताया था कि यह सबको मिलेगा और इसे लगाना है। वे बैच लगा कर आए थे इसलिए उन्हें पहचानने में किसी को परेशानी नहीं हुई। जिसे मिलते उसे बैच देते। बैच देखते सब समझ जाते कि ये हमारे सहयात्री हैं। सारा मेल मिलाप मेरे डिब्बे के सामने हो रहा था। टिकट लेते ही मैं बिना बैच के सीट पर आ गई। 60 में से 57 सीट लोअर बर्थ थी यानि सीनियर सीटीजन और महिलाएं। पर मेरे सामने कोई भी हमारे टूर का नहीं था। मिडिल सीट पर एक सीआरपीफ से कोई छुट्टी पर गोरखपुर जा रहा था। गोरखपुर तक उसके बच्चों का बार बार फोन आता जो शायद पूछते पापा कहां तक पहुंचे हो? क्योंकि वह हर बार बाहर देख कर या अंदाज से स्टेशन का नाम बताता। साइड सीट वाला गलत होने पर करैक्शन करता और योगी जी की तारीफ करते हुए कहता कि योगी जी आ गए हैं इसलिए गाड़ी जितनी मर्जी कहीं भी खड़ी रहे पर गोरखपुर सही समय पर पहुंचायेगी। मैंने उनसे पूछ ही लिया कि गाड़ी गोरखपुर कब पहुंचेगी? उन्होंने कहा,’’सुबह दस बजे।’’रात दस बजे तक हमारी आस पास की सब सीटें भर गई। मैं भी सो गई। सुबह सुघड़ सुघड़ की आवाज से मेरी नींद खुली। देखा गाड़ी स्टेशन से बाहर कहीं खड़ी है। सामने का यात्री चाय पी रहा है और हरेक घूट के साथ विचित्र सी आवाज सुघड़ निकाल रहा था। इतने में चाय वाला आ गया। तुरंत मैंने भी चाय लेकर सुघड़ की आवाज निकाल कर पीनी शुरु कर दी। मेरे साथ कोई होता तो मैं उसे इशारा करती कि चाय पीते हुए स्वर निकालने का वीडियों बना ले। मेरी आवाज़ उससे ज्यादा वॉल्यूम से निकल रही थी। ऐसा करना मुझे अच्छा लग रहा था। कल पाँच बजे से गाड़ी में बैठी हूं। आज शाम 6 बजे रेक्सौल जं0 पहुंचेगी। खूब सो ली, मोबाइल से अभी ब्रेक ले रखा था। छोटी बातों को ही एंजॉय कर रही थी। कोरोना काल के बाद रेल में अब लोग बतियाते नहीं हैं। ज्यादातर मोबााइल में ही लगे रहते हैं। अब मैं घूमने चल दी।



टॉयलेट भी साफ थे। बस गुटका थूकने वालों ने वाशवेसिन पर दाग डाल रखे थे। हैंडवॉश की भी कमी नहीं थी। ठीक समय पर गाड़ी गोरखपुर पहुंची। साइड सीट वाला यह कहते हुए उतरा कि जगह जगह रुकने पर भी गाड़ी ने समय कवर कर लिया। योगी जी सब कुछ ठीक कर देंगे। अब मेरे आसपास कोई नहीं था। गाड़ी चलते ही बहुत मधुर स्वर में भजन गाने की आवाज़ आई, जिसका कोरस बहुत बढ़िया था मैं आवाज की दिशा में चल दी। देखा हमारे ग्रुप के सहयात्री गा रहे हैं। गुप्ता जी ताली बजा कर नाच रहें हैं। धर्म यात्रा है तो धार्मिक माहौल तो होगा ही! भजन समापन पर जयकारा भी मुक्तिनाथ धाम का लगाया।


अपनी सीट पर आ रही थी। बैच लगी महिला से बतियाने लगी। इनका नाम जयंती देबनाथ है जो होम मेकर हैं पर गज़ब का व्यक्तित्व! दो बेटियां हैं एक इंजीनियर, दूसरी डॉक्टर। कहते हैं न बच्चे बनते नहीं हैं, बनाए जाते हैं। इनके पति अधीर देबनाथ को कई बार अकेले मैनेज़ करना पड़ता जब जयंती जी बेटियों की प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग के लिए दूसरी जगह में बेटियों के साथ रहतीं। चारों की मेहनत का फल है ’लायक बेटियां’। इस यात्रा में ये लड़डू गोपाल संग लाए हैं। हम दोनों ने खूब बातें कीं। क्रमशः