अगर यात्रा में खुश रहना चाहते हैं तो टूर में जाते समय अपना एटीट्यूड घर में छोड़ कर आना चाहिए और जरुरत का सामान साथ ले कर जाना चाहिए। मेरा अपना ये अनुभव है।
यात्रा अनुभव के साथ साथ अनुभूति भी है। इसमें हम अपने साथ समय व्यतीत करते हैं और स्वयं के बारे में बेहतर जान पाते हैं। यात्रा हमें बदल देती है। कंर्फट ज़ोन से बाहर निकालती है। जब भी हमें दैनिक जीवन के कार्यकलापों से ब्रेक लेना हो तो सबसे पहले हमें विचार करना है कि हमें जाना कहां है? अपने बजट के अनुसार देश में या विदेश में जगह प्लान करते ही, ये सुनिश्चित करें कि कितने दिन के लिए जाना है। रेल, बस, हवाईयात्रा है या अपनी गाड़ी से जाना है। तो उसके कागजात, ड्राइविंग लाइसेंस आदि रखें । अगर सोलो, कपल में, परिवार के साथ या ग्रुप में तो फिर टिकट कनर्फम करें यानि रिजर्वेशन। आजकल चार महीने पहले रेलवे में रिर्जेवेशन हो जाता है। फ्लाइट की टिकट पर नज़र रखें। जब ऑफर हो सा सस्ती हों तब बुक करने पर बहुत बचत होती है। कुछ देशों में वीज़ा ऑन एराइवल है। अब रिव्यू देख कर होटल या जहां भी ठहरना है, बुक करें। ग्रुप में पैकेज़ पर जा रहें हैं तो कुछ करने की जरुरत नहीं, बस पैसा दे दो और बाकि सब कुछ वे देखेंगे। ये किफायती भी होता है। बुक करने से पहले वे क्या क्या सुविधाएं आपको देंगे, नियम कायदे सब समझ लो। कई तरह के ग्रुप होते हैं सीनियर सीटिजन ग्रुप, केवल महिला ग्रुप, फैमली टूर आदि। कई प्रकार के टूर एंड ट्रैवलस हैं अच्छी तरह जांच पड़ताल करके, उनसे संपर्क कर सकते हैं। यात्रा क्रम की उनसे एक प्रतिलिपि लो और फिर दिनों के अनुसार अपनी यात्रा की तैयारी शुरु करोे। टूर पर जहां भी जाना है उस स्थान के मौसम के बारे में जानकारी होनी चाहिए।
दिमाग में एक बात हमेशा रखिए कि यदि सफ़र का मजा लेना है तो सामान कम रखिए। गहने अगर बिल्कुल भी नहीं लेकर जायेंगे तो बेफिक्री रहेगी न!! अब सबसे पहले चेकलिस्ट बनानी चाहिए। इसमें जरुरी सामान लिखते जाइए। हमने 22 दिन की यात्रा में जाने की तैयारी कैसे की, इसके बारे में लिखूंगी। इसके बाद मेरी सब तरह की यात्राएं आराम से होती हैं। एक चैकलिस्ट तैयार कर ली। यात्राएं करती हूं उसमें कम, ज्यादा और जगह और मौसम और दिनों के अनुसार बदलाव करती रहती हूं। कोरोना काल के कारण इसमें कुछ बढ़ोतरी हो गई है और बदलाव भी।
सैनेटाइज़र, मास्क, स्लिपिंग बैग लाइनर, आरामदायक जूते, लगेज़ बैग, पोर्टेबल चार्जर और पावर र्सज प्रोटैक्टर, ट्रैवल तकिया, पानी की बोतल, लाइटवेट डे पैक, वायरलैस इयरबड्स, नॉयस कनसीलिंग इयर बड्स, मैडिकल किट, स्किन केयर प्रोडक्ट। यदि पहाड़ों पर जा रहे हैं तो कोल्ड क्रीम ज्यादा लेनी है क्योंकि यहां खुश्क हवा के कारण बार बार त्वचा रुखी सी हो जाती है, ट्रैवल एडॉप्टर, ट्रैवल अण्डरवियर, स्लीपर्स, जुराबें, डिसइनफैक्टिड वाइप्स, एनर्जी ड्रिंक्स और मल्टीविटामिन की टैबलेट्स।
प्रसाधन टूथब्रश, टूथपेस्ट, डैंटल फ्लॉस, माउथवॉश, डिऑडरैंट, कॉटन बॉल्स, ट्वीज़र, सोप वाशक्लॉथ, शैंपू और कंडीशनर, नेल केयर सप्लाई, शेविंग सप्लाई, मेकअप किट और मेकअप रिमूवर, ब्रश या कंघा, शीशा, सनस्क्रीन, मॉस्चराइज़र, लिप बाम, इनसैक्ट रिपलैंट, पासर्पोट विजा़, मैडिकल इंश्योरैंस र्काड, वैक्सीनेशन र्काड, पासर्पोट कॉपी, जरुरी कागजात कॉपी, लॉण्ड्री बैग, सुई धागा, मोबाइल चार्जर, कैमरा चार्जर।
मैडिकल किट जिसमें जरुरी दवाइयां, बच्चा है तो उसकी तुरंत जरुरत के सामान का बैग जो आपके हर वक्त साथ हो। उसकी फोल्डिंग प्रैम भी लेनी है क्योंकि आप बच्चा उठा कर घूम नहीं सकते। मैं, मेरी बेटी उत्कर्षिनी और उसकी ढाई साल की बेटी गीता, तीनों ने प्रैम, मैट्रो टैªन के साथ, हांग कांग, मकाउ घूम लिया। छोटे बच्चे के कारण वहां पैकेज़्ा नहीं ले सकते थे। गीता को टैक्सी और बस यात्रा पसंद नहीं आ रही थी। वो ट्रेन ट्रेन का जाप करने लगती। कारण ट्रेन में जाते ही उसकी प्रैम फोल्ड कर देते थे। गीता खुशी से घूमती रहती और लोगों से मिलती, बच्चों से सभी प्यार करते है। ट्रेन से बाहर के दृश्य भी तो दर्शनीय थे। कहीं भी पानी, पुल और हरियाली दिखते ही खुश होती। हम उम्र बच्चे होते तो एक दूसरे की भाषा न जानते हुए भी पता नहीं क्या आपस में बतियाते। प्रैम में उसकी जरुरत का सामान भी लटका रहता। हम मैप देख कर पैदल भी खूब घूमें। घुमक्कड़ तो जानते हैं कि पैदल चलने में और गाड़ी से गुजरने में क्या फर्क होता है!! सबसे अच्छा लगा जब हम केबल कार से मैजेस्टिक ब्राँज बुद्धा और मोनैस्टी हाँग काँग जाने लगे तो गीता सो रही थी। उन्होंने गीता को जगाने नहीं दिया। वैसे ही गीता को प्रैम समेत चढ़ा दिया। बच्ची की नींद नहीं खराब की। हम दोंनों को जरा भी बच्ची के कारण तकलीफ नहीं हुई। तीनों की मन मुताबिक यात्रा हुई। हर जगह 24 ×7 स्टोर मिले, जहां जरुरत का सामान मिल जाता था। यहां एक बात ध्यान देने की है कि पैकिंग में कई बार हम बैग में इतनी चीजें रख लेते हैं कि बाद में एयरर्पोट पर एक्स्ट्रा चार्ज देना पड़ता है। और कई बार हम फोन का र्चाजर ही भूल जाते हैं। तब यदि ग्रुप में जा रहे हैं तो मोबाइल लेकर सबको परेशान करते रहते हैं, जब तक नया नहीं मिलता। कई बार किसी का भी नहीं लगता । पर ग्रुप में यही फायदा है। समयबद्ध यात्रा होती है। अगर सड़क का रास्ता है तो सहयात्री शहर से परिचय करने की बजाय, खिड़की से बाहर आंखें गड़ाय, चार्जर की दुकान खोजते हैं। गैजेट्स सामान का सबसे नाजुक और महंगा हिस्सा है। इसे जिप लॉक बैग में रखना है। ये प्लॉस्टिक बैग आपके गैजेट्स को ड्राई रखेंगे और उन्हें किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचेगा। इसे कपड़ों के बीच में रखें। इसके अलावा सेल फोन चार्जर, हैडफोन और डेटा केबल को भी एक पुराने सनग्लास केस में रखा जा सकता है।
यदि अपनी गाड़ी से जा रहें हैं तो उसके कागजात, ड्राइविंग लाइसेंस आदि जाने से पहले जरुर चैक करें।
टैªवल मैप, होटल या जहां भी ठहरना हो उसका पता मोबाइल नम्बर पास में होना चाहिण्। केवल मोबाइल पर निर्भर नहीं रहना हैं। छोटी डायरी पैन या पैंसिल जरुर होनी चाहिए जिस पर जरुरी नम्बर लिखें हों। जाने से पहले जरुरी दस्तावेज़ जांच लें।
सही लगेज़ का चुनाव करना है जितना छोटा उतनी परेशानी कम होगी। अब है सही कपड़ों का चुनाव जो रिंकल फ्री हों। सामान पर हमेशा नज़र रखें। सभी सहयात्रियों के साथ कनैक्ट में रहें।
अगर बीच या कोस्टल एरिया जा रहे हैं तो शॉर्ट, टी र्शट, हल्के रंगों के कॉटन के कपड़े लें। कॉटन की कैप भी रखें। आप घूमने जा रहें हैं न कि ए.सी. रुम में बैठने। कोई भी साइट अकेले देखने न जाएं। कोशिश करें की हमारी वजह से बाकियों का समय खराब न हो। इसमें समय और पैसा खर्च होता है साथ ही आराम छोड़ना पड़ता है और बदले में हम बहुत कुछ पाते हैं। यात्रा में सब कुछ क्रमानुसार करना होता है। गाइड जरुर लें। वे उस जगह के बारे में बहुत रोचक कहानियां सुनाकर यात्रा का आनन्द दुगुना कर देते हैं। अगर रेन फॉरेस्ट या नेचर वॉक पर जायेंगे तो गाइड आपको उसी जगह के अनुकूल जूते रेनकोट, छाता आदि कुछ पैसों में अरेंज करवा देता है। पेड़ पौधों की विचित्र कहानियां सुनाता, दिखाता नए तरह से प्रकृति से संपर्क करवाता है। जंगल में जाना है तो वन विभाग के मान्यता प्राप्त गाइड और जिप्सी लेनी होगी। इन्हें रास्तों और जानवरों का ज्ञान होता है। पहाड़ों पर यात्रा पर जाते समय, उस समय के तापमान के अनुसार कपड़े लें। यहां अगर सर्दी लग गई तो सारी यात्रा बेकार हो जायेगी। र्थमल आदि से लैस होकर, सर्दी से पूरी मोर्चा बंदी करके जाना है। जूते टैªवल बैग में सबसे ज्यादा जगह घेरते हैं। इसलिए आप वही जूते टैªवल पर लेकर जाओ जिन्हें आप पूरे ट्रिप पर पहन सकते हो। टैªवल पर भारी जूते पहन सकते हैं। अगर ले जाने हैं तो उसके तलवों पर शॉवर कैप चढ़ा कर उसमें मोजे अंडर गारमेंट रख सकते हैं। इससे फालतू जगह नहीं घिरेगी।
मैं कोरोना से जंग जीती थी। इसलिए दस दिन की धांिर्मक यात्रा पर अकेली ग्रुप के साथ चल दी। 24 सितम्बर से 3 अक्टूबर नौ देवियों और शिव खोड़ी की यात्रा थी। परिवार ने वैष्णों देवी इस शर्त पर भेजा कि मैं हैलीकॉप्टर से जाउंगी। जब मैं पहले दिन 24 सितम्बर को बस पर बैठी तो मैं किसी को नहीं जानती थी। 3 अक्टूबर को लौटी तो सब मेरे परिवार की तरह थे। ये यात्रा बस से थी और मेरा कोई साथ नहीं था। इसमें ये सोचकर की खुद ही सामान उठाना है। इसलिए बहुत कम सामान में मेरी यह यात्रा सम्पन्न हुई। इसमें मैंने जिंस के साथ 10 में से ऐसे 5 पुराने कुर्ते रखे जो अच्छे प्रिंट के थे पर दोबारा नहीं पहनने थे। उन्हें पहनने के बाद छोड़ती गई। सबसे पहले हरिद्वार जाना था। रिटायर सलवार कुर्ता गहरे रंग का पहन कर गई। उसी में गंगा स्नान के बाद वही हर की पैड़ी पर चेंजिंग कैबिन पर लटका छोड़ आई। गीले कपड़े सुखाने का झंझट भी नहीं। हैंड बैग ऐसा जिसे गले में पहने रखती हूं ताकि दोनों हाथ खाली रहेें। इस यात्रा ने मुझे बहुत कम सामान में यात्रा करना सिखाया है। अब मेरा सामान बहुत कम होता है कभी मैंने किसी से कुछ मांगा भी नहीं था। जितना मैं उठा सकती हूं उतना ही सामान। कोराना काल के कारण सर्दी में इसमें कुछ बढ़ोतरी हो गई है तो मैंने बदलाव किया था। 24 दिसम्बर से 27 दिसम्बर तक हरदोई में अखिल भारतीय साहित्य परिषद के त्रैवार्षिक अधिवेशन में जाना था। कड़ाके की सर्दी थी। पहले यात्रा में ए.सी कंर्पाटमैंट में बिस्तर मिलता था, लगा कर पढ़ने बैठ जाती। अब कोरोना के कारण बिस्तर नहीं मिलना था। रात का सफर था जितना शरीर पर गर्म चढ़ा सकती थी जरुरत के अनुसार चढाए। अब खिड़की पर पर्दा भी नहीं था। सिर पर ठंड न पहुंचे तो ऊनी टोपी लगा ली। एक गर्म शॉल ओढ़ कर सो गई। भार उठाना कम पड़ा। वहां से नैमिषारण्य गई। कड़ाके की ठंड थी। नंगे पांव जगह जगह दर्शन करने में ठंड लग जाती इसलिए जुराबों पर मोटी पुरानी जुराबें चढ़ा कर मजे से दर्शन किए। लौटते समय पुरानी वहीं रख दीं। मेरी यात्रा में गले में एक पर्स होता है टैªवल बैग खींचती चलती हूं। जाते समय पॉलीथिन में डिस्पोजेबिल बर्तनों में खाना होता है। खाना पेट में बर्तन डस्टबिन में और पॉलीथिन तह करके पर्स में, ये सोच कर की कहीं न कही काम आ जायेगा और कुर्ते जेब वाले पहनती हूं और मेरे दोनों हाथ खाली।
नीलम भागी
र्जनलिस्ट, लेखिका, ब्लॉगर, स्तंभकार, ट्रैवलर
युवा शक्ति पत्रिका में प्रकाशित यह लेख