जय शंकर साही, अरुण साही, राम निहोरा साही और भी हम सब को पंथ पाकड़ के बारे में बता रहे थे। मसलन पतझड़ के मौसम में कभी भी इन सभी पेड़ों के पत्ते एक साथ नहीं झड़ते। लगता है जैसे इन वृक्षों ने आपस में अपना क्रम तय कर रखा है कि कब किसको पत्ते छोड़ने है। इसलिए यह स्थान हरा भरा सदाबहार है। कोई टहनी तक नहीं तोड़ता। यहाँ के पत्तों से भी बहुत स्नेह है जिन्हें कभी जलाया नहीं गया। धरती में दबा देते हैं। बारह महीने किसी न किसी पेड़ पर फल लगा रहता है। मंदिर की परिक्रमा करते समय झुकना भी पड़ता है। क्योंकि कोई शाखा नीचे है। बच्चे की छठी पूजने यहाँ आते हैं। गाय के गोबर से कोई आकृति सी बना देते हैं। पेड़ों से घिरा एक बहुत सुन्दर तालाब है।
उसके पानी में कभी कीड़े नहीं पड़े। घने पेड़ों की छाँव में उसका पानी हरा लगता है। कहा जाता है कि यहाँ सीता जी ने स्नान किया था। इस जगह पर आज भी इस क्षेत्र के बड़े बड़े विवादों का निपटारा किया जाता है। ऐसा लोगों का विश्वास है कि इस स्थल पर किसी विवाद का सहज और सत्य निपटारा हो जाता है। एक यह भी लोककथा है कि सीता जी ने रात्रि विश्राम के बाद पाकड़ की दातुन से अपने दाँत साफ किए थे और उस दातुन को फेंक दिया था। जिससे एक पाकड़ का पेड़ जन्मा और विशाल दायरे में फैला यह स्थान उसी एक पेड़ की शाखाओं से स्वयं नए नए बने पेड़ों से आच्छादित है। पंथ पाकड़ को पंडौल के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ साल भर भारत और नेपाल से श्रद्धालु आते हैं। विवाह योग्य लडका लड़की दिखाने का यहाँ परिवार आपस में तय करते हैं।
यहाँ हमें नाश्ता करवाया गया। दहीं बहुत गज़ब का जमा हुआ था।
सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन से यह 8 किमी. दूर है और नजदीकी हवाई अड्डा पटना है।
क्रमशः