मेरा 9 तारीख को राजधानी में 8 नंबर वेटिंग लिस्ट में था। 5 मई को वह पांच हो गया। उसके बाद पांच पर ही रहा। बी.के मेधा दीदी ने सौगात देने के लिए बुलाया। मैंने उन्हें बताया कि मेरा वेटिंग में है। उन्होंने समझाया कि टेंशन करने से कुछ नहीं होगा। लास्ट ऑप्शन सोच लो और यहां जो कर रहे हो, उसे पूरे मन से करो। टिकट कंफर्म नहीं हुई तो 10 तारीख को मोदी जी उद्घाटन के लिए आ रहे हैं वह अटेंड कर लेना और हंसने लगीं। मैं भी मस्त हो गई। मैंने भी घबराना बंद कर दिया। नोएडा में अंकुर तो कोशिश कर ही रहा था। उसने कहा कि टिकट कंफर्म नहीं हुआ तो अहमदाबाद या उदयपुर से फ्लाइट बुक कर दूंगा। अब 9 तारीख को लास्ट चार्ट का इंतजार था। मुझे बहुत अच्छा लगता, बीच-बीच में मेधा दीदी फोन करके पूछती कि मैं टैंस तो नहीं हूं और कहती शांति वन में दस तक हमारे पास रुकना। इसलिए मैं पूरे मन से माउंट आबू से परिचय कर रही थी। 8 मई को हमारा घूमने का दिन था इसलिए डाइनिंग हॉल में खाना हर वक्त था। जिन लोगों ने लौटना था, उनके लिए रास्ते में खाने के लिए पैकेट थे। आने के बाद डिनर करके रूम में गई। मेरी रूम पार्टनर जयश्री भी आ चुकी थी। उन्होंने हमसे ज्यादा पॉइंट देखें। जो छूट गए थे वह मैंने नोट कर लिए दुखी नहीं हुई। मैं कौन सा मरने वाली हूं फिर जाना होगा तो देख लूंगी। जय श्री तो सुबह ही निकल गई, उन्हें महाराष्ट्र जाना था। 3:00 बजे हमें गाड़ियों से शांतिवन आबू रोड ले जाया गया। वहां मेधा दीदी ने फोन से पूछा कि मुझे स्टे मिल गया। मैंने बताया मिल गया। उसी समय मेरी टिकट कंफर्म होने का मैसेज आ गया। बी.के ज्योति पॉल ने अपनी मित्र स्वाति से मेरा परिचय कराया था। अब हम दोनों साथ थीं। हमने खूब बातें की और जो गाड़ी पहले आ रही थी उसी से बहुत पहले स्टेशन आ गए। बड़ी मुश्किल से टिकट कंफर्म हुई थी, डर था कि गाड़ी छूट न जाए। यहां भी बतियाते रहे। मैं अपनी सीट पर पहुंची कोई गुजराती ग्रुप था। उन्होंने गेट के पास साइड सीट अपनी मुझे देकर, आप मेरी सीट ले ली। उन्हें अपने ग्रुप के साथ सीट मिल गई। वह बहुत खुश थे। अटेंडेंट पानी की बोतल पकड़ा के डिनर देने ही नहीं आया। जब मैंने कहा तब बोला आपका डिनर लिखा नहीं है मैंने टिकट आगे की फिर सॉरी सॉरी करता हुआ लेकर आया। क्योंकि वह खाना मेरी ओरिजिनल सीट पर जो सज्जन बैठे थे, उनको दिया था। वे खा कर डकार भी ले चुके थे। मेरी एक्सचेंज सीट पर खाना नहीं था पर मुझे मिल गया आइसक्रीम देने आया तो चम्मच नहीं। जब तक मांगने पर चम्मच आया, आइसक्रीम दूध में बदल गई थी, मैंने पी ली। कुछ देर बाद एक अटेंडेंट मेरे पास आया बड़ी रिक्वेस्ट से बोल कि एक फैमिली में, सबकी टिकट कंफर्म हो गई, बस एक उनकी लड़की की नहीं हुई है क्या आपकी सीट के आगे यहां लेट जाएं, कपड़ा बिछा कर लड़की है ना इसलिए आपसे कह रहा हूं। जवाब मेरे ऊपर वाले ने दिया कि फैमिली से बोलो लड़की को अपनी सीट दे दे, जैसे आपने टॉयलेट के रास्ते में लोगों को बिठा, लिटा रखा है। उनके मेल फैमिली मेंबर को भी, वहां बैठा दो। वह चुपचाप चला गया। अब एक आदमी झगड़ा करने लगा कि मेरा शाम का नाश्ता दो। उसने पता नहीं कितना पेमेंट कर रखा था। कह रहा था कि डिनर इतने का नहीं है। वह सारी बात ठेकेदार पर डाले जा रहा था कि हम तो मुलाजिम हैं। बाकि अब राजधानी में पहले जैसी बात नहीं है। वही हॉकर आवाज लगाकर सामान बेच रहे थे। और मैं दिन भर ज्ञान सरोवर में, शांतिवन में घूमती रही अब थकी हुई इसलिए बार-बार मेरे सिर पर दरवाजा खुलने का भी असर नहीं था और मैं सो गई । मधुर स्मृतियां लेकर वहां से लौटी हूं। ॐ शांति