उपाध्याय जी ने तुलसी उद्यान का बैक साइड हमें दिखा दिया था। जहां हम ऑटो से उतरे, यहां भी ऑटो खाली बाद में होता था, सवारियां पहले लद जातीं थीं। गली से बाहर आए देखा विशाल जनसमूह नए घाट की ओर जा रहा था और लौट रहा था जिसका कोई अंत नहीं था। फुटपाथ की रेलिंग के साथ साथ, हम तुलसी उद्यान पर पहुंचे। यहां भी जिसको जहां-जगह मिल रही थी। वह अपने बंधु बांधवों के साथ बैठा सुस्ता रहा था। तुलसी बाबा की मूर्ति के आसपास भी लोग बैठे हुए थे। मैं भी थोड़ी सी जगह बनाकर बैठ गई। कोई तो सीढ़ी पर ही बैठकर पैरों में आलता लगा रहा है। यहां का दृश्य बहुत ही अलग सा था। यहां कोई गाना नहीं बज रहा था। बस अनाउंसमेंट हो रहे थे। जैसे कोई परिवार से बिछड़ गया है। तो मुझे सबसे अच्छा लगा कि जो चौकी पर पहुंचा है। वही अपनी भाषा में अनाउंसमेंट कर रहा है। आवाज में भी घबराहट है और एक आवाज तो ऐसी भारतीयता की प्रतीक! महिलाएं पति का नाम नहीं लेती हैं। वह माइक पर बोल रही है," संतोष के बापू ,हम ई हाईन बेइठे हैं।" आप बता रही है। सूचना पर कोई ध्यान दें या ना दे पर परिवार तो आवाज पहचान ही ले न। और मैं इस विभाग की, मन ही मन सराहना कर रही थी। आप वीडियो देखकर सुन सकते हैं।
यह पार्क पहले विक्टोरिया पार्क कहलाता था। जो फैजाबाद और अयोध्या रोड पर स्थित है। 28 दिसंबर 1963 को समाज सेविका रीना शर्मा के प्रयास से इस नया घाट क्षेत्र में महारानी विक्टोरिया के स्टेचू के स्थान पर तुलसीदास जी की मूर्ति लगवाई थी। जिसका उस समय के गवर्नर विश्वनाथ दास ने अनावरण किया था। इस खूबसूरत पार्क की तुलसी सेवा समिति देखरेख का पूरा ध्यान रखती है। उस दिन मौनी अमावस थी। यहां बैठकर मुख्य मार्ग से गुजरती हुई भीड़ को देखा है, जो सड़क पर गुजरते हुए गोस्वामी जी को हाथ जोड़ती थी फिर आगे बढ़ जाती थी। यह देखना भी अयोध्या जी का दर्शन लग रहा था। कुछ अयोध्या जी दर्शन के लिए आए श्रद्धालु, अपना राशन भी लाए थे। जिसे सिर पर उठा कर चल रहे थे। हर प्रांत की अपनी परंपरा है। कुछ महिलाएं पीले कपड़ों घाघरा, चोली, ओढ़नी में पीली मटकी पर चित्रकारी करके, सरयू जी की ओर जा रही थीं। सब इतना तेज चल रहे थे कि मैं जल्दी से फोटो लेने के लिए पहुंची। यह ग्रुप पता नहीं कहां पहुंच गया। इस मार्ग पर कोई सवारी अलाउड नहीं थी। इतनी भीड़ में हो भी नहीं सकती थी। मैंने जीवन में पहली बार इतना विशाल जनसमूह चलता हुआ देखा था! जिसका कोई नेतृत्व नहीं कर रहा है। सब बस सरयू जी की ओर चले जा रहे हैं या वहां से लौट रहे हैं। मैंने भी अब अयोध्या जी के बाकी दर्शनीय स्थलों पर जाना स्थगित कर दिया। सरयू जी के पास बैठ कर श्रद्धालुओं को देखने चल दी। किस तरह से यह बहुत सीमित साधन में भी अपनी परंपरा का पालन करते हैं ।
क्रमशः