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Sunday, 28 April 2024

Jagannath Puri Orissa Yatra Part 20 नीलम भागी Neelam Bhagi

 


अभी तक मैं बस से शहर का परिचय कर रही थी जैसे ही पुरी आया, मेरे बाजू में लड़कियां बैठी थीं, मैंने उनसे पूछा, "क्या मैं आज कोणार्क भी जा सकती हूं?" उसने समय देखा, एक ने जवाब दिया," हम लोग भी जगन्नाथ जी के दर्शन करने जा रहे हैं, देखिए कितना समय लगता है! उसके बाद आप जा सकती हैं और वहां से भुवनेश्वर निकल जाना।" उस समय 10:05 बजे थे।   सड़कों को चौड़ा किया जा रहा था इसलिए  तोड़ा गया था, जिससे पीछे के भवन ऑन रोड हो रहे थे। सेंट्रल वर्जिज  पौधों, फूलों से लदी हुई थी। सबसे ज्यादा मुझे प्रभावित किया उसकी बांस की फेंसिंग ने! विकास चारों ओर नजर आ रहा था।  जैसे ही हमें बस ने उतारा, मैं लड़कियों के पीछे लग गई। एक बस पर हम सब चढ़ गई ₹10 किराया था। बस अड्डे पर जहां उतारा, वहां से मंदिर एक किलोमीटर दूर है। यहां से सीनियर सिटीजन के लिए बैटरी वाली गाड़ी थी, उसका कोई किराया नहीं था और वहां से मंदिर शायद एक किलोमीटर है। इस जगह पर कोई सवारी नहीं है, पैदल ही जा सकते हैं। इस पथ पर कोई परिवर्तन नहीं यह बहुत चौड़ा है, पहले देखा भी था। श्रद्धालु मंदिर की दिशा में चलते जा रहे हैं। यहां पर भी बस वाले कोणार्क, कोणार्क चिल्ला रहे थे। मैंने उससे पूछा," कितनी देर में दूसरी बस मिलेगी?" उसने कहा," 1 घंटे का प्राइवेट बसेज है । मो बस का टाइम टेबल आप काउंटर से पूछ लो। यहां से कोणार्क 40; से 45 मिनट में पहुंच जाते हैं। मैंने बैटरी गाड़ी का इंतजार नहीं किया।  लड़कियों के साथ चल दी, यह सोच करके कि रास्ते में कोई बैटरी गाड़ी पकड़ लूंगी। जो भी बैटरी गाड़ी पास से गुजरी, वह  श्रद्धालुओं से भरी हुई थी।  लड़कियों के साथ साथ बतियाती हुई, मैं मंदिर के पास पहुंच गई। जहां दर्शनार्थियों की लाइन लगी हुई थी, लड़कियां लाइन में लग गई वे  परीक्षा से पहले भगवान के दर्शन करने आई थीं। बीच-बीच में लाइन रोक देते थे। बहुत उत्तम व्यवस्था थी। लाइन में ऊपर वॉटरप्रूफ टेंट था नीचे पाइप लगे हुए थे, उनमें लाइन से चलना था। पीने के पानी की व्यवस्था थी। यहां श्रद्धा में किसी को भी अपनी चप्पल  की परवाह न थी जहां से लाइन शुरू होती थी। चप्पलों के ढेर लगे हुए थे। पता नहीं लौटने पर कैसे पहचानेंगे। अभी लाइन रुकी हुई थी फिर एकदम चल पड़ी। लोग लाइन में लगने से पहले अपने मोबाइल जमा करा  कर आए थे। मैं बाहर लिखे नियम कायदे पढ़ रही थी।  लोगों से पूछ रही थी उन्होंने अंदाज से बताया की 4 से 6 घंटे तो लगेंगे। मैं भी दौड़ कर  चलती हुई लाइन में लगी। पर यहां तो दूर तक सिर ही सिर नजर आ रहे थे। एक  पंडा मेरे पास आया बोला," दर्शन करवा देता हूं जल्दी से।" मैंने कहा," क्या देना होगा?" उसने कहा,"₹2000 में पुरी के दर्शनीय स्थल।"मैं हमेशा साधारण लाइन में लगकर दर्शन करती हूं पर आज कोणार्क  जाने के कारण, उससे बात करने लगी। पहली बार आई होती तो कोणार्क के लालच में  दे देती पर यहां सिर्फ़ जगन्नाथ जी के दर्शन करना था, महाप्रसाद खाना था और  सब मेरा घुमा हुआ था। मैंने उसे कहा तो ₹500 में वह मान गया। उसने पूछा," आपने मोबाइल जमा कर दिया?" इस पर मैंने ध्यान ही नहीं दिया था कि कई जगह अलग-अलग लाइन लगी हुई थी मोबाइल आदि जमा करने की। मैंने उसे जवाब दिया," नहीं।" उसने एक दुकान पर  मेरा मोबाइल, चप्पल आदि रखवा दी।


अब मैं उसके साथ चल पड़ी अचानक मुझे ध्यान आया मेरी तो टिकट वगैरा सब मोबाइल में ही है पर मुझे टेंशन नहीं हुई क्योंकि बहुत साल पहले जब मैं आई थी तब से मुझे यहां की ईमानदारी पर बहुत यकीन है। वह पंडा तेज़ चल रहा था और मुड़ के कहता," मां, चलो।" मैंने उसके गमछे का एक सिरा पकड़ लिया कि इतनी भीड़ में मैं खो ना जाऊं और यह तेज न चले।  मैं यहां कोई प्रश्न नहीं कर रही थी क्योंकि मैं बिल्कुल श्रद्धा में अभिभूत थी। वह मुझे लगातार मंदिर के बारे में बताता जा रहा था। बस उसका गमछा, मेरी मुट्ठी में था, जिसे मुझे छोड़ना नहीं था।

https://www.instagram.com/reel/C7KHLH9PC7V/?igsh=MXQzbWN1OXUyaGFodg==

क्रमशः