उत्कर्षनी ने अमेरिका से अहोई पूजा की तस्वीर भेजी। साथ में लिखा कि है उसकी बेटियों गीता दित्या ने होई माता बनाई है। मैं देखती हूं कि कोई भी त्यौहार हो उत्कर्षनी ऐसे ही मनाती है, जैसे भारत में हमारे बड़े संयुक्त परिवार में मनाया जाता है। हमारे यहां बच्चे बड़े हो गए। देश विदेश में चले गए तो हम भी अहोई पर बाजार से कैलेंडर लाकर, दीवार पर लटका कर, पूजा करते हैं। लेकिन उत्कर्षनी राजीव अपनी बेटियों के साथ वैसे ही अपने बचपन की तरह त्यौहार मनाते हैं। तभी तो दीवार पर अहोई माता बनाई है। पहले उत्कर्षनी स्कूल से आते ही दीवार पर अहोई माता बनाती थी। फिर शांभवी सर्वज्ञा बनाती और बहुत खुश होती। उनकी मां, भारती उनके लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। उत्कर्षनी ने अपनी भारती मामी को बेटों के लिए रखा जाने वाला होई का व्रत, बेटियों के लिए रखते हुए हमेशा देखा। उसकी भी दो बेटियां हैं। वह भी उनके जन्म से रख रही है। उत्कर्षनी ने अगर बेटियों के लिए होई का व्रत ना रखा होता तो गीता दित्या को कैसे पता चलता!! अहोई अष्टमी का त्यौहार !! यह सब देखकर बहुत अच्छा लगता है कि गीता और दित्या अपने त्योहारों को भारत की तरह ही उत्कर्षनी के साथ पकवान बनाने में मदद करके मनाती हैं। उत्कर्षनी अपना बचपन दोहराती है। बचपन के दिन भुला ना देना, दीवार पर अहोई माता बनाई देख कर याद आता है। गीता मां का इतना सहयोग करती है कि पूजा के लिए उत्कर्षनी तैयार होती है तो अपना और दित्या का भी मेकअप कर लेती है।
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