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Tuesday 29 September 2020

घर की बेटी, तुलसी का पौधा और तुलसी विवाह नीलम भागी # Holy Basil









कुछ साल पहले राधा कृष्ण गर्ग जी ने मुझे तुलसी


विवाह का न्योता दिया कि दीदी देवउठनी एकादशी को हमारे घर में तुलसी जी की शादी है। बारात दोपहर 1बजे आएगी। मैंने सोचा किसी रिश्ते की लड़की तुलसी की शादी कर रहे होंगे क्योंकि इनके तो अतुल, अनुज और कपिल तीन बेटे हैं। पर यहां तो हमारे घर आंगन की शोभा तुलसी के पौधे की बेटी की तरह शादी थी

शादी में पहुंची तो बारात के स्वागत में सब गेट पर खड़े थे। सामने से बैंड बाजे के साथ जम कर नाचते बाराती आ रहे थे। दुल्हे सालिगराम को सजी हुई परात में विराजमान कर, उन्हें सिर पर रक्खा हुआ था। भगवान के बरातियों का श्रृद्धा नृत्य देखना, उसमें शामिल होकर भक्ति भाव से नाचना लोग अपना सौभाग्य समझ रहे थे। दुल्हिन थी, चमचमाते लाल दुप्पटा ओढ़े गमले में स्वस्थ घनी तुलसी जी। खाना पीना बेटी की शादी की तरह आगमन से उपस्थिति तक था। फेरे, कन्यादान और विदाई के बाद राधाकृष्ण जी बोले,’’तुलसी जी का कन्यादान करके अच्छा लग रहा है।’’ तुलसी के पवित्र पौधे को बेटी की तरह मानना पेड़ पौधों के प्रति संरक्षण ही तो दर्शाता है। मैं जब भी इनके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में गई हूं। वहां सम्मान में पौधे ही मिलते हैं।    

हमारे घर की तुलसी सबसे पहले बच्चे को प्रकृति से जोड़ती है। मेरे लिए तुलसी, तुलसी है। चरणामृत में बहुत अच्छी लगती है इसलिए मुझे मिठी दहीं में तुलसी पत्ते, चाय में तुलसी बहुत पसंद है। किसी भी चटनी जिसमें प्याज, लहसून न हो, उसमें से थोड़ी चटनी अलग निकाल कर उसमें वन तुलसी (मरुवा) को पीस कर मिला देने से वह अलग फ्लेवर की चटनी बन जाती है। हमारे यहां ज्यादातर तुलसी जी का गमला, सब गमलों से अलग होता है। तभी तो हमारी महिलाएं वनस्पति विशेषज्ञ की तरह तुलसी जी का पत्ता देखते ही बता देतीं हैं ये राम तुलसी,


श्यामा तुलसी या कृष्ण तुलसी

, कपूर तुलसी

या नींबू तुलसी है। फिर अपने आप बोलेंगी कि घर में तो रामा या श्यामा तुलसी ही होती है। उत्कर्षिणी कुछ विदेशी खाने  बनाती है उसमें बेसिल लीफ यानि तुलसी बहुत जरुरी है।

 कोशिश करो तुलसी को मिट्टी के गमलों में उगाओ। मैंने तुलसी को सुन्दर चीनी मिट्टी के गमलों में  रक्खा पर मिट्टी के गमलों में उगी वह बहुत खुश लगी।


पहला पौधा मैंने जो तीन पहिए के ठेले पर छोटी सी बगिया सजा कर चलते हैं उनसे खरीदा और गमलों के बीच में रख दिया।
कुछ दिनों में उसमें मंजरी आई और काले काले दिल के आकर के बीज बने। सर्दी में पौधा सूख गया। सर्दी जाते ही सूखा पौधा तो हरा नहीं हुआ पर

आस पास के गमलों और मिट्टी में छोटे छोटे तुलसी के पौधे निकल आए। ये देख मैं बहुत खुश हुई कि इतने पौधे लगाउंगी कि मेरी कोई चाय तुलसी के बिना न बने। अब मैंने 70% मिट्टी, 20% रेत, 10% वर्मी कम्पोस्ट को मिला कर मिट्टी तैयार की। गमले के ड्रेनेज होल पर ठिकरा रक्खा ताकि फालतू पानी तो निकले पर मिट्टी न बह जाए। गमले में यह तैयार मिट्टी भर दी। शाम के समय पौधे को ध्यान से निकाला ताकि उसकी जड़े न टूटें। गमले की मिट्टी के बीच में गड्ढा कर दिया। उसमें छोटे तुलसी के पौधे को लगा दिया। आस पास से मिट्टी की उपरी सतह को इस तरह दबा दिया ताकि पौधा सीधा रहे और पानी दे कर दो दिन तक पेड़ की छाया में रक्खा। फिर धूप में रख दिया। तुलसी मच्छर  और जुकाम भगाने वाला पौधा है। महीने में एक बार वर्मी कम्पोस्ट डालती हूं और गुड़ाई करती हूं। मंजरी आने पर उसे कैंची से काट कर, चाय में डालती हूं। पौधा घना होता जाता है।