सुबह हैवी ब्रेकफास्ट किया था इसलिए अब तक आराम से हैं। बाबाधाम के आस पास अधिकतर दुकानें खाने पीने की हैं पेड़े तो जिधर देखो, नज़र आयेंगे। हजारों दुकानों पर पेड़ा ही बिकता है। हम रैस्टोरैंट में बैठे। वहाँ रेटलिस्ट भी लगी है। पर वेटर ने हमें मैन्यूर्काड दिया। गुप्ता जी ने कहा कि जो जिसने ऑर्डर करना है, कर दो। मेरी आदत है कि मैं जहाँ जाती हूँ वहाँ का स्थानीय खाना पसंद करती हूँ। यहाँ दो दिन एक रात ही बिताना है जिसमें अगले दिन बासुकिनाथ जाना है। मैंने वैद्यनाथ प्रशाद्म थाली ऑडर की क्योंकि इसमें खाने की वैरायटी ज्यादा है पर मात्रा भी ज्यादा आई। मैं तो इतना नहीं खा सकती पर खाना बहुत स्वाद है। यहाँ रैस्टोरैंट में महिला पुरुष दोनों ही काम करते हैं। खाने के बाद आकर होटल में आराम किया। थकान उतरते ही मैं और डॉ.शोभा बाहर आये। हमने लाजवाब चाय कुल्हड़ में पी। मैंने सोच लिया था कि डिनर नहीं करुंगी। यहाँ की मिठाइयों के थोड़े थोड़े स्वाद लूंगी।
बिहार का हिस्सा रहने से बिहार का खाना तो यहाँ है ही जैसे लिट्टी चोखा, खाजा, ठेकुआ, दहीं चिवड़ा, सफेद रसगुल्ला आदि। बिहार यात्रा में ये खाने तो मैं खा चुकी थी। दहीं यहाँ बहुत ही लजी़ज मिलता है। सुबह, दोपहर, शाम जमाया जाता है। चार घण्टे बाद वह पुराना कहलाता है। हमारे घर में गाय रहतीं थीं और 90 प्लस महिला हैं जो दहीं जमाने में एक्सपर्ट होती हैं। उनकी तरह मैं भी बढ़िया जमाती हूँ पर यहाँ के दहीं में जो मिठास और मिट्टी की महक है वो शायद बाबा बैजनाथ का ही प्रताप है। दो दिन में मैंने चार जगह दहीं खाया, बिना चीनी मिलाये, हर जगह ग़ज़ब का स्वाद! रबड़ी इस तरह काढ़ कर बनाते हैं कि उसमें हल्का बदामी रंग आ जाता है, साथ में दूध की महक! ये स्वाद तो खाने के बाद ही जब आप यहाँ जाये तो बताइएगा। मैंने रबड़ी खाने के बाद फिर से दहीं खाया तब भी बहुत स्वाद लगा। सबसे पहले राजेन्द्र स्वीट की काली जलेबी जैसी मिठाई ने हमें आकर्षित किया। उसका नाम छेने की तूत है, छेना मुर्की चाशनी में इतना पकाते हैं कि वह सफेदी खो देता है। गुलाबजामुन की दो वैरायटी गुड़ की चाशनी के गुलाब जामुन भी। कुछ ही दुकानों में मिठाई की वैराइटी हैं या नमकीन स्नैक्स की हैं। पेड़ों की दो वैराइटीे। ये पेड़े 20-25 दिन तक बिना रैफ्रीजिरेटर के खराब नहीं होते जो प्रसादी में श्रद्धालू ले जाते हैं। पेड़ों की सबसे बड़ी विशेषता है कि इनमें मीठा ज्यादा नहीं होता है। दूसरा केसर पेड़ा यह खूबसूरत पेड़ा सफेदी में केसर का कंट्रास्ट। इसकी उम्र 10 दिन होती है। दुकानदार भी बहुत भले हैं। एक प्लेट में सब वैरायटी लगा देते हैं। इतने कम दाम में मुझे लगता है कि ये केवल बाबाधाम में ही सम्भव है।
जंगल से जुड़ा होने से खान पान में आदि संस्कृति दिखती है। गोल गप्पे हरे दोने में मैंने खाते देखा। श्रावणी मेले में सवा महीने तक बाबा पर गंगा जल चढ़ता है। 45 लाख तक शिव भक्त पहुंचते हैं। वहाँ इतनी भीड़ में भी खाने की शुद्धता और क्वालिटी नहीं गिराते। मैंने दोनों दिन दुकानों से ही बना खाया, कुछ भी पैकेट बंद नहीं खाया। खाना गलत होता तो मुझे बहुत जल्दी इन्फैक्शन होता। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। क्रमशः