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Saturday 4 June 2016

धारोष्ण दूध Dharoshn Doodh Neelam Bhagi




धारोष्ण
दूध
                               नीलम भागी
मेरे पूर्वजों को जाने कौन से वैद्यराज चरक या धन्वतरि ने कहा था कि धारोष्ण दूध (सामने दुहा दूध) पीने से सेहत अच्छी रहती है। इसलिये जब मैं यहाँ आई तो अपनी गाय गंगा, यमुना(मेरे परिवार में गाय का नाम नदियों के नाम पर रखने का रिवाज है) साथ लाई। खाली प्लाट थे गंगा, यमुना कहीं भी बंधी रहती थी। ये देख कर तो मुझे और भी खुशी हुई कि मेरी तरह धारोष्ण दूध के शौकीन और लोग भी हैं जिनके लिए बाहर से गाय भैसों का रेवड़ आता, दूधिए दूध दुह कर उन्हें बेचकर, पशु लेकर चले जाते हैं। एक दिन मेरी गंगा, यमुना भी चली गई फिर वो आज तक नहीं मिली। गंगा, यमुना की चोरी से मैं इतनी ग़मगीन हो गई कि वातावरण में करूणा तैरने लगी। पड़ोसियों ने समझाया कि ईश्वर की यही मरजी़,अब आप पाष्चुराइज्ड दूध पिया करो। पर मैं अपनी आदत क्यों छोड़ू भला?
अब मैं डब्बा हाथ में लटकाकर जहाँ भैंसे आती, वहाँ दूध लेने जाती हूं। वहाँ मैं लोगों से प्रशासन की निन्दा करती हूं कि उन्होंने भैंसे बाँधने के लिए पार्कों में खूटे नहीं गाढ़े हैं। ग्राहकों के बैठने के लिए बैंच क्यों नहीं लगवाए हैं?
मेरी सहेली उत्कर्षिणी आई। उसके मुँह पर मेकअप लगा हुआ था और सैंडिल में गोबर। गंगा यमुना की चोरी सुनकर बहुत खुश हुई। कहने लगी ’’अगर चोरी होती तो मैं उन्हें गऊशाला में दे आती।’’ मैंने दुखी होकर कहा कि अब मुझे धारोष्ण दूध खरीदने जाना पड़ता उत्कर्षिणी ने कहा, ’’तुम पाष्चुराइज्ड दूध क्यों नहीं लेती? धारोष्ण दूध पीने से तुम्हारा परिवार स्वस्थ परिवार का विज्ञापन देने लायक तो नहीं हुआ है। हाँ इतना धारोष्ण दूध का शौक है तो वहाँ से दूध लाओ न, जहाँ इनको पाला जाता है। भैंसे आती हैं, सड़कों पर गोबर पेशाब करती हैं। कई बार गोबर से लोगों के स्कूटर स्लिप कर जाते हैं। सुबह स्कूल का समय होता है। सड़कों पर भीड़ होती है। कोई भी भैंस झुण्ड में से पूँँछ उठा कर भागने लगती है। महिलाएँ, बच्चे डर कर इधर-उधर दौड़ते हैं। कुछ लोग जिन्होंने पशु नहीं पाला होता, उन्हें दौड़ती हुई भैंस ,भैैंस नहीं, वह यमराज का भैंसा दिखाई देता है। पार्कों की ग्रिल भैसों को बाँघने के काम आती है। पार्कों में गोबर और पेशाब की गन्ध आती है।
उसका उपदेश सुनकर मैं कनविंस भी होने लगी और बोर भी, पर मैं कहाँ मानने वाली। मैंने उसे कहा, ’’धारोष्ण दूध पीने से तुम मेरे चेहरे की चमक तो देखो’’ वह कुछ देर तक मुझे घूरती रही, फिर घूरना स्थगित कर बोली,’’ मुझे तो तुम्हारा चेहरा श्मशान भूमि जैसा दिखाई दे रहा है। रोज तुम कुढ़ती हो कि दुधिया दूध में पानी मिला दे, भैंस के थन भैंस के पेशाब से धो दे, दूध में ज्यादा झाग नाप दे, समय से आए।’’ यह कह कर उत्कर्षिणी चली गई। मैंने भी फैसला कर लिया कि अब उस शहर में रहूँगी जहाँ मैं गाय, भैंस पाल सकूँ। कम से कम भैंस का दूध बिना हाॅरमोन का इन्जेक्शन लगाए तो मिलेगा।





2 comments:

Sanjay Awasthi said...

सुंदर चित्रण।

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद