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Thursday, 9 June 2016

मेरा शौक !! विश्व जल दिवस World Water Day नीलम भागी








 ज्यादातर लोग कोई न कोई शौक रखते हैं जैसे कैक्टस और मनीपलान्ट चुराना, नौकरानी से छेड़छाड़ करना आदि। ये शौक कभी भी किसी भी मौसम में किए जा सकते हैं। मेरा शौक है पाइप लेकर पानी छिड़कना। ये मैं गर्मी में ही कर पाती हूँ। सर्दी में बीमार न पड़ जाऊँ इसलिए नहीं करती।
जैसे जैसे गर्मी बढ़ती जाती है पानी का दबाव कम होता जाता है। पानी का पहली मंजिल पर चढ़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता। निचले तल पर भी मोटर से आता है। वैसे ही मेरा शौक भी बढ़ता जाता है। मैं सुबह शाम पाइप लेकर मोटर चलाकर खूब छिड़काव करती  हूँ। मेरे घर के सामने सड़क है उसे मैं खूब धोती  हूँ बाहरी दीवारें ठंडी करती  हूँ। पाइप के आगे अंगुली लगाकर खूब पानी उछालती  हूँ। ऐसा करना मुझे बहुत अच्छा लगता है, ये उस समय मेरे चेहरे से भी लगता है। गर्मी के कारण सड़क थोड़ी देर में फिर सूख जाती है और नल चला जाता है। फिर मैं सड़क ठण्ड़ी करने का काम शाम को शुरू करती  हूँ। खूब दूर-दूर तक पानी की धार बिखेरती  हूँ पर गर्म हवा के कारण वह पहले जैसी गर्म हो जाती है। जितना पानी मैं छिड़कती  हूँ उतना पानी यदि किसी गड्ढे में भरूँ, तो उसमें मछली पालन हो सकता है।
लोग कार धोने के लिए एक बाल्टी पानी लेते हैं और उसमें कपड़ा गीला करके रगड़-रगड़ कर कार चमकाते हैं। मैं पानी की मोटी धार पाइप से डालकर गाड़ी धोती  हूँ। गाड़ी साफ और उसके नीचे छोटा सा तालाब बन जाता है। मेरे घर मे बर्तन साफ करने का तरीका भी अलग है। लोग नल बन्द करके बरतन मांजते हैं, जब धोते हैं तो नल खोल लेते हैं। मेरे घर में पहला बर्तन मंजने से नल खुला रहता है अन्तिम बर्तन धुलने तक। मेरे कूलर की टंकी हमेशा भरी रहती है उसमे एक पाइप से हल्की धार पानी की हर समय चलती रहती है। फालतू पानी नीचे गिरता रहता है और कूलर की टंकी हमेशा लबालब भरी रहती है।
मैं छत से पानी की मोटी धार से पेड़ धो रही थी। मेरी सहेली उत्कर्षिनी आई। आते ही बोली,’’तुम्हारा पानी का बिल तो बहुत आता होगा।’’ मैं बोली,’’ कम इस्तेमाल करो या ज्यादा बिल फ्लैट रेट है।’’ वह कहने लगी,’’तभी तुम पानी से खेलती हो।’’ मैंने उत्तर दिया,’’न न, ऐसी बात नहीं है, ये मेरा शौक है। प्रशासन का पानी नहीं आयेगा तो, मैं बोरिंग करवा लूंगी फिर मैं जितना मरज़ी पानी निकाल लूंगी।’’वह मुझे घूरने लगी फिर घूरना स्थगित कर बोली,’’तुम जैसे लोगों की वजह से भूजल बहुत नीचे जा चुका है।’’ पर मैं कहाँ हार मानने वाली? मैंने कहा,’’ मैं सबमरसिवल पम्प लगवा लूंगी। मुझे पानी की कमी होगी ही नहीं।’’
 उत्कर्षिनी ने कहा कि वह एक बूंद भी पानी व्यर्थ नहीं करती। कुछ समय पहले हमने सोचा था कि हमें पीने के लिए पानी खरीदना पड़ेगा। यदि हम पानी बरबाद करते रहे तो परिणाम अच्छा नहीं होगा। पानी बचाना, हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। हमारे शहर के स्लम एरिया में ही जाकर देखो, पानी के लिए कितनी लम्बी लाइन लगी होती है। पानी की बर्बादी तो अनपढ़ और गवार लोग करते हैं। तुम्हें याद है कुछ साल पहले ग्रिड फेल हो गया था। शायद दो दिन तक बिजली पानी नहीं आया था। टंकियों का पानी खत्म हो गया था। पानी का टैंकर देख कितनी खुशी हुई थी। हम तुम कैसे बाल्टियाँ भर-भर कर पानी लाए थे। मुझे याद आया कि मैं टैंकर से पानी की बाल्टी ला रही थी और साथ में रहीम की चेतावनी याद कर रही थी।
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी बिना न उबरैं, मोती मानुस चून।।
 और आज मैं पानी बरबाद कर रहीं हूं, ये याद आते ही मुझे अपनी इस आदत पर शर्म महसूस हुई।




10 comments:

Neelam Bhagi said...

Jal h to kal h

Unknown said...

बहुत मुश्किल है सँवरना तंग गलियों का
कहीं सांसों की किल्लत है कहीं मौज ऐ बहार है

Sanjay Awasthi said...

संभलकर उपयोग कर जल।

डॉ शोभा भारद्वाज said...

अपने बड़ी खूब्सूरती से उन लोगों पर कटाक्ष किये हैं जो जल के महत्व को नहीं समझते जब की जल ही जीवन है

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार

Unknown said...

समाज मे जल संरक्षण के प्रति जागरूक करनेवाला उत्तम लेख

Unknown said...

समाज मे जल संरक्षण के प्रति जागरूक करनेवाला उत्तम लेख

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद