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Friday, 31 August 2018

भारत में चुनावों की विकास यात्रा Bharat mein Chunavo Ke Vikas Yatra Neelam Bhagi


भारत में चुनावों की विकास यात्रा
नीलम भागी
भारत को 15 अगस्त 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद, डॉ. अम्बेडकर के नेतृत्व में संविधान बना। 26 जनवरी, 1950 को भारत का अपना संविधान आया। तदनंतर लोकतांत्रिक ढंग से देश में सरकार बनाने के लिए प्रथम लोकसभा के चुनाव वर्ष 25.10.1951 से लेकर 21.2.1952 तक लगभग चार महीनों में हुए। इस चुनाव में कांग्रेस के साथ साथ कांग्रेस से अलग हुए डॉ.श्यामा प्रशाद मुखर्जी द्वारा अक्तूबर, 1951 में स्थापित की गई जनसंघ, बाबा साहिब भीमराव अंबेडकर द्वारा शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन को पुनर्जीवित कर रिपब्लिकिन पार्टी के नाम से बनाई गई नई पार्टी, पहले से मौजूद कम्यूनिस्ट पार्टी, आचार्य(भगवान दास) जे.बी. कृपलानी द्वारा गठित की गई किसान मजदूर प्रजा परिषद् तथा राममनोहर लोहिया एवं जयप्रकाश
 नारायण द्वारा बनाई गई सोशलिस्ट पार्टी लोकसभा की 489 सीटों के लिए चुनाव मैदान में उतरीं। इस चुनाव में कांग्रेस ने 44.5 प्रतिशत वोट प्राप्त कर 389 सीटें जीत कर प्रचंड बहुमत प्राप्त किया। पंडित जवाहर लाल नेहरु लोकतांत्रिक देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने तथा श्री मावलंकर प्रथम लोकसभा के स्पीकर बनाए गये।
    दूसरी लोकसभा की 494 सीटों के लिए वर्ष 1957 में 24.2.1957 से लेकर 9.6.1957 तक चुनाव हुआ। इसमें कांग्रेस ने 47.78 प्रतिशत वोट प्राप्त कर 371, कम्यूनिस्ट पार्टी ने 19 सीटें, जनसंघ ने 4 सीटें, शेड्यूल कास्ट फेडरेशन ने छह सीटों पर विजय प्राप्त की। साथ ही 42 निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनाव जीते। इस चुनाव में 42 महिला प्रत्याशियों में से 22 महिला चुनाव जीत कर लोक सभा में पहुँची। जनसंघ के नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव जीत कर पहली बार लोकसभा में पहुँचे। इस चुनाव में 19 करोड़ मतदाताओं ने भाग लिया तथा 45.5 प्रतिशत मतदान हुआ। इस लोक सभा में श्री फिरोज गाँधी, हरिदास मुंदड़ा वित्तीय घोटालों को उजागर करने के कारण चर्चा में रहे। इस घोटाला के कारण तत्कालीन वित्तमंत्री श्री टी.टी. कृष्णामाचारी को इस्तीफा देना पड़ा था।
  तृतीय लोकसभा की 494 सीटों के लिए वर्ष 1962 में, 19.2.62 से लेकर 25.2.1962 तक चुनाव हुए। श्री राम मनोहर लोहिया ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी छोड़कर नयी सोशलिस्ट पार्टी बनाई। इस चुनाव में पुरानी कांग्रेस आदि दलों के साथ श्री सी. राजागोपालाचारी द्वारा गठित स्वतंत्र पार्टी अस्तित्व में आई। इन चुनावों में कांग्रेस को 361 सीटें मिली। उसने 44.72 प्रतिशत मत प्राप्त किए। इसके अतिरिक्त कम्यूनिस्ट पार्टी 29 सीटों पर तथा जनसंघ 18 सीटों पर विजयी हुई। इस चुनाव मे 22 करोड़ मत दाताओं ने भाग लिया और मतदान का प्रतिशत 55 प्रतिशत रहा। इस अवधि की प्रमुख घटनाओं में भारत चीन का युद्ध, रक्षामंत्री कृष्णामेनन का हटाया जाना, 27 मई, 1964 को पंडित जवाहर लाल नेहरु की मृत्यु, श्री लाल बहादुर शास्त्री का प्रधान मंत्री बनना, 1965 भारत पाक युद्ध और उनके द्वारा दिया गया जय जवान जय किसान नारा, 1966 में श्री लाल बहादुर शास्त्री की आकस्मिक मृत्यु, तदनंतर, 24 जनवरी को सूचना प्रसारण मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्री बनना प्रमुख घटनाएँ रहीं।
  चौथी लोकसभा के लिए वर्ष 1967 में 520 सीटों पर मतदान हुआ। इसमें देश के 25 करोड़ लोगों ने मतदान किया। इस अवधि में क्षेत्रीय दल द्रमुक और अकाली दल, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से टूटकर बनी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी अस्तित्व में आ गई। मतदान 61 प्रतिशत हुआ। इन चुनावों में कांग्रेस को कुल 283 सीटें, स्वतंत्र पार्टी को 44, जनसंघ को 35, वामपंथी और समाजवादी पार्टी को 83, द्रमुक  और अकाली दल को 28 सीटें मिलीं। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने 23 सीटें जीतीं। वर्ष 1969 में कांग्रेस का विभाजन होकर कांग्रेस(ओ) और कांग्रेस(आई) दो पार्टियाँ अस्तित्व में आईं। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कम्यूनिस्ट पार्टी(भाकपा) से सहयोग से वर्ष 1971 तक अल्पमत की सरकार चलती रही।
    पाँचवीं लोकसभा की 518 सीटों के लिए वर्ष 1971 में 1.3.1971 तक हुए चुनाव में भारत के 27 करोड़ मतदाताओं ने भाग लिया। इस चुनाव में श्रीमती इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा देते हुए कांग्रेस का नेतृत्व किया। जिसमें कांग्रेस ने 352 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत प्राप्त किया। इस अवधि में भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान पराजित हुआ, परन्तु 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा रायबरेली से इंंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध ठहराने पर उनके द्वारा देश में लोकतांत्रिक  व्यवस्था को समाप्त कर देश में आपात व्यवस्था को समाप्त कर देश में आपात लागू कर दिया तथा विपक्षी दलों के अनेक नेताओं तथा विरोधी अनेक बुद्धिजीवियों को जेल में डाल दिया।
     छठवीं लोकसभा के लिए वर्ष 1977 में हुए आम चुनाव भारत की राजनीति में अपनी अहम स्थान रखते हैं। श्रीमती इंदिरा गांधी ने 23 जनवरी 1977 में आपातकाल  हटाकर चुनावों की घोषणा कर दी तथा राजनैतिक कैदियों को मुक्त कर दिया। तत्कालीन राजनैतिक और सामाजिक मूल्यों के पतन को देखकर उस समय जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में समग्र क्राँति का आंदोलन चल रहा था। उनके मार्ग र्दशन और प्रभाव से विपक्षी दल कांग्रेस(ओ), जनसंघ, भारतीय लोकदल और समाजवादी पार्टी ने मिलकर एक नयी जनता पार्टी बनाई। जिसने मार्च 1977 में हुए चुनावों में 298 सीट जीत कर पूर्ण बहुमत प्राप्त किया तथा श्री मुरार जी देसाई देश के पहले गै़र कांग्रेसी प्रधानमंत्री, के नेतृत्व में 24 मार्च 1977 को नई सरकार बनी। परन्तु नेताओं के आपसी मतभेद के कारण यह सरकार अधिक दिन नहीं चल पाई तथा वर्ष 1979 में जनता पार्टी का विभाजन हो गया, जब जनसंघ ने जनता पार्टी को छोड़ दिया। आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियाँ , मानव अधिकारों का हनन और श्रीमती इंदिरा गाँधी की तानाशाही प्रमुख मुद्दे थे। इस चुनाव में 542 सीटों के लिए मतदान हुआ जिसमें से जनता पार्टी के गठबंधन को 345 सीटों पर विजय मिली । इस चुनाव में मतदाताओं की संख्या 32 करोड़ थी तथा मतदान 60 प्रतिशत हुआ।
      जनता पार्टी आपातकाल के खिलाफ जनता के गुस्से के कारण सत्ता में आयी थी। जनता पार्टी में यदि अर्न्तकलह नहीं होती तो भारत में एक मजबूत प्रजातंत्र की स्थापना होती। इन्होंने इंदिरा गांधी पर अभियोग लगाने को प्राथमिकता दी। इन्दिरा जी ने एक कूटनीतिज्ञ की भांति इस अवसर का लाभ उठाया। अपने को क्षमाप्रार्थी और गलती स्वीकार करने वाली का प्रचार किया। जनता इन्दिरा जी से प्रेम तो करती ही थी, वह फिर जनता में प्रिय होती गई। जनता पार्टी ,1979 में विभाजित हो गई। भारतीय जनसंघ(बी.जे.एस) के नेता अटल बिहारी बाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी को छोड़ दिया और बी.जे.एस. ने सरकार से समर्थन वापिस ले लिया। इन्द्रा जी ने चौधरी चरण सिंह की महत्वाकांक्षा का फायदा  उठाकर उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए उत्साहित किया एवं उन्हें सर्मथन का वायदा किया। चौधरी चरणसिंह प्रधानमंत्री अवश्य बने परन्तु अल्पकाल तक के लिए। वे अकेले प्रधानमंत्री थे, जो कभी संसद नहीं गये।
     सातवीं लोकसभा में इन्दिरा जी 351 सीटों से, जनता पार्टी के बचे गठबंधन को 32 सीटें मिलीं। जनता पार्टी समाप्त जरुर हो गई परन्तु यह बात सिद्ध हो गई कि गठबंधन से कांग्रेस को हराया जा सकता है। इस कार्यकाल में इन्दिरा जी को बड़ी-बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा जैसे आपरेशन ब्लूस्टार। 31 अक्तूबर 1984 को इंदिरा जी के अंगरक्षको ने उनकी हत्या कर दी। इन्दिरा जी के साथ ही एक साहसी कूटनीतिज्ञ, जो राष्ट्रीय एवं अंर्तराष्ट्रीय राजनीति की माहिर थीं, की जीवन लीला समाप्त हो गई। देश को एक बार लगा, अब क्या होगा? लोकसभा भंग कर दिया गया और श्री राजीव गांधी(जिन्हें मिस्टर क्लीन कहा जाता था, जिनकी राजनीति में कोई रुचि नहीं थी) ने अंतरिम प्रधानमंत्री के रुप में शपथ ली। यदि श्री संजय गांधी की मृत्यु न होती और इन्दिरा जी की हत्या न होती तो देश की चुनावों की विकास यात्रा कुछ और तरह से होती।
   आठवीं लोकसभा में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत, 409 लोकसभा सीटें और लोकप्रिय मतों का 50 प्रतिशत अपने नाम किया। तेलुगू देशम पार्टी 30 सीटों के साथ संसद में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई। भारतीय संसद के इतिहास में ऐसा दुर्लभ है जब कोई क्षेत्रीय पार्टी मुख्य विपक्षी दल के रुप में उभरी। श्री राजीव गांधी ने आईटी और विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया। देश को 21वीं शताब्दी में ले जाने का स्वप्न दिखाया।
   नवीं लोकसभा 1989 के चुनाव ने राजनेताओं के मत मांगने के तरीके को बदल दिया, अब जाति और धर्म के आधार पर वोट मांगना केंद्र बिंदू बन गया। युवा राजीव गांधी कई आंतरिक और बाहरी संकटों से जूझ रहे थे। बोफोर्स कांड, पंजाब में बढ़ता आतंकवाद, एएलटीटीई और श्री लंका सरकार के बीच गृहयुद्ध उन समस्याओं में से कुछ थीं। राजीव के सबसे बड़े आलोचक विश्वनाथ प्रताप सिंह थे जिन्होंने सरकार में वित मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय का कामकाज  संभाल रखा था। रक्षामंत्री के रुप में श्री वी. पी. सिंह के कार्यकाल  के दौरान यह अफवाह थी कि उनके पास बोफोर्स रक्षा सौदे से सम्बंधित ऐसी जानकारी थी राजीव गांधी की प्रतिष्ठा को र्बबाद कर सकती थी।
   सिंह को शीघ्र ही मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने अरुण नेहरु और आरिफ मोहम्मद खान के साथ जन मोर्चा का गठन किया
  11 अक्टूबर ,1988 को, जन मोर्चा, जनता पार्टी, लोकदल और कांग्रेस(एस) के विलय से जनता दल की स्थापना हुई।  जल्द ही, द्रमुक, तेदेपा और अगप सहित कई क्षेत्रीय दल जनता दल से मिल गए और नेशनल फ्रंट की स्थापना की। ताकि सभी दल एक साथ मिलकर राजीव गांधी सरकार का विरोध कर सके। पाँच पार्टियों वाला नेशनल फ्रंट, भारतीय जनता पार्टी और दो कम्यूनिष्ट पार्टियों- भारतीय कम्यूनिष्ट पार्टी मार्क्यवादी (सीपीआई-एम) और भारतीय कम्यूनिष्ट पार्टी(सीपीआई) के साथ मिलकर 1989 के चुनाव मैदान में उतरा।
कांग्रेस अभी भी 197 सांसदों के साथ लोकसभा में अकेली सबसे बड़ी पार्टी थी। भाजपा 1984 के चुनावों में दो सीटों के मुकाबले इस बार के चुनावों में 85 सांसदों के साथ सबसे ज्यादा फायदे में रहीं। श्री वी.पी. सिंह भारत के 10वें प्रधानमंत्री बने और देवीलाल उपप्रधानमंत्री बने। श्री सिंह ने पिछड़ों को अपने पक्ष में करने के लिए मंडल कार्ड खेला। उन्होंने 2 दिसम्बर, 1989 से 10 नवंबर 1990 तक कार्यालय संभाला। भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवानी द्वारा राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद मुद्दे पर रथ यात्रा शुरु किए जाने और  मुख्यमंत्री लालू यादव द्वारा बिहार में गिरफ्तार किए जाने के बाद पार्टी ने वी.पी. सिंह सरकार से सर्मथन वापस ले लिया। सिंह ने विश्वास मत हारने के बाद इस्तीफा दे दिया।
   चंद्रशेखर 64 सांसदों के साथ जनता दल से अलग हो गए और उन्होंने समाजवादी जनता पार्टी बनाई। कांग्रेस ने उन्हें बाहर से सर्मथन दिया और वे भारत के 11वें प्रधानमंत्री बने। उन्होंने 6 मार्च ,1991 को इस्तीफा दे दिया, जब कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार राजीव गांधी पर जासूसी कर रही है।
 10वीं लोकसभा (1991) के चुनाव मध्यावधि चुनाव थे क्योंकि 9 वीं लोकसभा को सरकार के गठन के सिर्फ 16 महीने बाद भंग कर दिया गया था।
इन चुनावों को ’मंडल- मंदिर’ चुनाव भी कहा जाता है। चुनाव तीन चरणों में 20 मई, 12 जून और 15 जून, 1991 में आयोजित किए गए। यह कांग्रेस, भाजपा और राष्ट्रीय मोर्चा जनता दल(एस) वामपंथियों मोर्चे के गठबंधन के बीच एक त्रिशंकु मुकाबला था।
  मतदान के पहले दौर के बाद 20 मई को, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिल ईलम लिबरेशन टाइगर ,द्वारा श्रीपेरंबदूर में चुनाव प्रचार करते हुए हत्या कर दी। अंत में मतदान 12 जून और 15 जून को हुआ। इस बार सबसे कम मतदान, कुल 53 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया।
 इन चुनावों के परिणामों से एक त्रिशंकु संसद बनी। कांग्रेस 232 सीट पहले स्थान, 120 सीटों के साथ भाजपा दूसरे स्थान पर और जनता दल सिर्फ 59 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रहा
21 जून को कांग्रेस के श्री पी. वी. नरसिंह राव ने प्रधानमंत्री के रुप में शपथ ली।
ग्यारहवीं लोकसभा(1996) के लिए हुए चुनाव के परिणामों से एक त्रिशंकु संसद का गठन हुआ। इसका जीवन काल बहुत छोटा रहा और दो वर्ष तक राजनैतिक अस्थिरता रही। जिसके दौरान देश के तीन प्रधानमंत्री बने।
श्री नरसिंम्हा राव ने सुधारों की एक श्रखंला को लागू किया जिसने विदेशी निवेशकों के लिए देश की अर्थव्यवस्था को खोल दिया। लेकिन हर्षद मेहता घोटाले, राजनीति के अपराधीकरण पर वोहरा की रिर्पोट ,जैन हवाला कांड और तंदूर हत्याकांड मामले ने राव सरकार की विश्वसनीयता को क्षतिग्रस्त किया। भाजपा व उसके सहयोगी दल और संयुक्त मोर्चा, वाम मोर्चा और जनता दल का गठबंधन, चुनावों में कांग्रेस के मुख्य प्रतिद्वंद्वी थे।
तीन सप्ताह के चुनाव अभियान के दौरान, राव ने अपने द्वारा लागू किए आर्थिक सुधारों को मुद्दा बना कर मतदाताओं को आकर्षित किया और भाजपा ने िंहंदुत्व और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर मतदाताओं को रिछाया।
 मतदाता किसी से भी प्रभावित नहीं लगते थे। भाजपा ने 161 सीटें जीती और कांग्रेस ने 140. 16 मई को बीजेपी अन्य दलों के र्स्पोट से सत्ता में आई और श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री के रुप में पदभार संभाला और संसद में क्षेत्रीय दलों से समर्थन पाने की कोशिश की। वह असफल रहे और 13 दिन बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
जनता दल के नेता  देवगौड़ा ने एक संयुक्त मोर्चा गठबंधन कर प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। उनकी सरकार 18 महीने चली। इंद्रकुमार गुजराल ने अप्रैल 1997 में प्रधानमंत्री का पदभार संभाला जो एक कामचलाऊ व्यवस्था के रुप में थे। आवश्यकता थी एक मजबूत सरकार की। अतः रीइलैक्शन।
 बारहवीं लोकसभा(1998)
चुनाव पश्चात गठबंधन की रणनीति ने भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को 265 सीटों का कार्यकारी बहुमत प्राप्त हुआ। 19 मार्च को श्री वाजपेयी ने प्रधानमंत्री के रुप में शपथ ली।
तेहरवीं लोकसभा(1999) 17 अप्रैल 1999 को श्री वाजपेयी ने लोकसभा में विश्वास मत खो दिया। इस समय 24 पार्टी वाला गठबंधन था। 1999 के चुनाव 40 महीने में तीसरी बार हो रहे थे। कुल मिलाकर 45 पार्टियों ने(छह राष्ट्रीय, बाकि क्षेत्रीय) 543 लोकसभा सीटों पर चुनाव हुआ। 1998 में सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित किया। उन्होंने कांग्रेस में जान फूकने का प्रयत्न किया। सोनिया जी की जन्मभूमि इटली है। भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दे के रुप में प्रयोग किया।
कांग्रेस और भाजपा की विदेश नीति और आर्थिक नीति एक सी थी। श्री वाजपेयी द्वारा  कारगिल युद्ध से निपटने का सकारात्मक ट्टष्टिकोण भी एक मुद्दा था, जो भाजपा के पक्ष में काम कर रहा था। 6 अक्तूबर को आए परिणाम में राजग को 298 सीटें मिलीं, कांग्रेस और उसके सहयोगियों को 136 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। श्री वाजपेयी ने 13 अक्तूबर को प्रधानमंत्री के रुप में शपथ ली।
चौदवीं लोकसभा(2004) इस चुनाव में ऐसा लग रहा था कि एनडीए की जीत होगी। फील गुड, इंडिया शाइनिंग का खूब प्रचार था पर दो व्यक्तित्वों का टकराव (श्री वाजपेयी और सोनिया जी ) अधिक देखा गया। 13 मई को भाजपा ने अपनी हार स्वीकार की। कांग्रेस अपने सहयोगियों की मदद और सोनिया गांधी के मार्गदर्शन में 543 में से 335 सदस्यों का बहुमत प्राप्त करने में सफल रहीं, चुनाव बाद हुए इस गठबंधन को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन कहा गया।
 सोनिया गांधी ने स्वयं प्रधानमंत्री बनने से इन्कार कर, डॉ. मनमोहन सिंह से यह दायित्व उठाने को कहा। डॉ. मनमोहन सिंह को भारत की ऐसी पहली आर्थिक उदारीकरण नीति के रचियताओं में से एक माना जाता था जिसने आसन्न राष्ट्रीय मौद्रिक संकट से उबरने में मदद की थी। लोकसभा ने अपना कार्यकाल पूरा किया। इसमें इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल हुआ।
 पंद्रवीं लोकसभा(2009) फिर यूपीए सरकार का गठन हुआ। डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने।
 अब 16वीं लोकसभा के लिए चुनावों की विकास यात्रा चली । इस यात्रा में लोकसभा की संख्या और वोटरों की संख्या में वृद्धि हुई है और मतदाता में मतदान के प्रति जागरुकता का विकास हुआ है। 7 अप्रैल से 12 मई 2014 तक 9 चरणों चुनाव सम्पन्न हुए। 543 में से 282 सांसदों के पूर्ण बहुमत  से भारतीय जनता पार्टी के श्री नरेन्द्र मोदी ने 26 मई 2014 को 15वें प्रधानमंत्री की शपथ ली। 
  17वी लोकसभा चुनाव 11 अप्रैल से 19 मई के बीच 9 चरणों में आयोजित करवाए गए। 23 मई 2019 को परिणाम में बीजेपी को 303 अपना पूर्ण बहुमत मिला और गठबंधन को 353 । भाजपा का वोट प्रतिशत 37 .36%  और राजग 45% कांग्रेस स्कोर 19. 51%  और संप्रग 26% रहा।
   मेरी दादी जी 1952 में अपनी चरखा कातने वाली सखियों के साथ वोट डालने ’ओ रे सांवरिया, ला दे चुनरिया खादी की , जै बोलो महात्मा गांधी की’ गाते हुए गई थीं। मेरी अम्मा और उनकी सखियाँ घूंघट निकाल कर अपनी सासू माँओं  के पीछे चल रहीं थीं। पहले सासों ने दो बैलों की जोड़ी पर ठप्पा लगाया। फिर बहुओं को वैसा ही करने को कहा। अम्मा और साथ की बहुओं ने वैसा ही किया। दादी जी को 1977 में पीठ पर उठा कर वोट डलवाने गए तो, बैलेट पेपर को आँखों के पास लाकर पूछा,’’नेहरु की बेटी का निशान कहाँ है? उस पर मोहर लगानी है।’’ मेरी अम्मा ने दादी की परम्परा को  राम मंदिर के समय तोड़ा, तब से इस बार तो इसको या उसको अखबार पढ़ती रहती हैं, पार्टी बदलती रहतीं हैं। 90 साल की अम्मा, दो साल पहले चिकनगुनिया होने से अब घर मेंं ही चल फिर सकती हैं लेकिन उन्हें वोट डालने का इंतजार है। अम्मा के नाती पोतों के तो हाथ में मोबाइल रहता है। ख़बर पढ़ी और फेसबुक और ट्वीटर से तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं और दूसरों की भी जानते हैं। इसलिए वोट भी सोच समझ कर देते हैं।   

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