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Thursday, 25 April 2019

फील्ड मार्शल और गोवाणी कन्या छात्रालय में कुलपति - उपकुलपति अभिवादन समारोह गंाधी विचार यात्रा संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार राजकोट गुजरात यात्रा 5 नीलम भागी

 फील्ड मार्शल और गोवाणी कन्या छात्रालय में कुलपति - उपकुलपति अभिवादन समारोह
गांधी विचार यात्रा संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार राजकोट गुजरात यात्रा 5 नीलम भागी
सायं 5 बजे हम छात्रालय के प्रांगण में पहँुच गए। बापू के स्वच्छता के संदेश और अनुशासन का पूर्णतः पालन किया गया था। सब कुछ छात्राएं कर रहीं थीं। हमारे बैठते ही एक पानी दे रही थी तो पीते ही  दूसरी आपके सोचने से पहले कि डस्टबिन तक जाएं, आगे खाली ट्रे कर देती। ऐसे ही चाय पिलाई गई।   भवन में जाने से पहले तिलक लगाकर  कार्यक्रम हॉल के रास्ते में पुष्पवर्षा की। हॉल के आगे लाइन से चप्पलें उतार कर रक्खीं थीं। हॉल खचाखच छात्राओं से भरा हुआ था। मंच पर डॉ. नितिन पेथानी सर(कुलपति श्री-सौराष्ट्र युनिवर्सिटी), डॉ. विजय देसानी सर(कुलपति श्री-सौराष्ट्र युनिवर्सिटी), डॉ. राम शरण गौड़(चेयरमैन दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी र्बोड), श्री महेश चंद्र शर्मा(पूर्व महापौर दिल्ली), श्री गौरीशंकर भारद्वाज(पूर्व एम.एल.ए.दिल्ली), श्री विनोद बब्बर(संपादक राष्ट्रकिंकर पत्रिका दिल्ली), श्री चंदुभाई कणसागरा(प्रमुख फील्डमार्शल और गोवाणी कन्या छात्रालय), श्री परसोतमभाई फल्दु(मैनेजिंग ट्रस्टी), डॉ.जे.एम.पनारा सर(कैंपस डायरेक्टर), श्री नरोतमभाई कणसागरा(ट्रस्टी श्री), श्री वसंतभाई भालोडिया(ट्रस्टी श्री), डॉ. मालती(पूर्व प्रधानाचार्या कालिंदी कॉलेज, दिल्ली)। महिला दिवस की पूर्व संध्या थी इसलिए डेलीगेशन की सभी महिलाओं यानि मुझे नीलम भागी, अंजना भागी, पूनम माटिया, अंजना अंजुम और श्को पुष्पगुच्छ और कुमकुम तिलक से स्वागत कर मंचासीन किया गया। प्रार्थना, स्वागत गीत, स्वागत, प्रवचन एवं प्रासंगिक उद्भोधन, दीप प्रज्वलन, देशभक्ति नृत्य, एवं सम्मान किया गया। डॉ. नितीन पेथानी और डॉ. विजय देसानी का उद्बोधन ग़ज़ब का था। उनके बोलने पर  हॉल में सन्नाटा छा गया था। छात्राएं मंत्रमुग्ध उन्हें सुन रहीं थीं। यूनिवर्सिटी की परीक्षा शुरू होने वाली थी। वे जो भी उदाहरण दे रहे थे, वे छात्राओं को मोटिवेट करने वाले थे। उन्हे सुनकर मुझे लगता है सभी छात्राएं परीक्षा में जी जान से जुट गई होंगी। मैं यहाँ बहुत प्रभावित हुई। फोटोग्राफी, साउण्ड सिस्टम, रिकॉर्डिंग, विडियोग्राफी सब कुछ छात्राएं बिल्कुल प्रोफैशनल की तरह कर रहीं थी। डॉ. राम शरण गौड़ ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इस सराहनीय कार्यक्रम के संयोजक एवं संचालक प्रो. डॉ. यशवंत के. गोस्वामी(एन.एस.एस प्रोग्राम ऑफिसर) रहे। साफ सुथरे ओपन किचन वाले भोजनालय में भोजन करने गए। छात्राएं भोजन परोस रहीं थीं। इतनी वैराइटी!!! सात तरह के तो आचार ही थे। थोड़ी थोड़ी वैरायटी रखने पर भी थाली ओवरफ्लो हो रही थी। हर व्यंजन स्वादिष्ट और खिलाने का तरीका प्रशंसनीय। वि.वि. गैस्ट हाउस में लौटे। आते ही हम सो गईं। सुबह साढ़े सात बजे जूनागढ़ के लिए निकलना था। सुबह फिर बैड टी के लिए हमारा दरवाजा पीट कर उठाया गया। उन सज्जन ने फिर बताया कि उन लोगों ने रात को भी सैर की सुबह भी सैर की। तैयार होकर बस में बैठे जूनागढ़ जाने के लिए, समयबद्ध कार्यक्रम था। आप राजकोट में राजकुमारी उद्यान, जबूली उद्यान, वारसन संग्राहलय, रामकृष्ण आश्रम, लाल परी झील, विलास पैलेस, रणछोड़ दास आश्रम, डॉल संग्रालय देखना न  भूलें। मेरे स्कूल के. वि डोगरा मेरठ के सहपाठी द्विजेन्द्र पंत ने मैसेज किया कि रसिक भाई नो चिवड़ो और काजू चटनी चख लीजिएगा। चोटिला का पेड़ा प्रसिद्ध है। गोलगप्पे के पानी में कच्चे लहसुन का स्वाद आये तो चौंकियेगा मत, यही तो विशेषता है, पर  हम उत्तर भारतीयों के लिए  नया है न। क्रमशः     






Monday, 22 April 2019

श्री स्वामीनारायण मंदिर राजकोट Shri Swaminarayan Mandir Rajkot Gujaratगुजरात यात्रा भाग 4 नीलम भागी

श्री स्वामीनारायण मंदिर राजकोट गुजरात यात्रा भाग 4
   नीलम भागी
गुलाबी सेंडस्टोन और मार्बल से बने विशाल मंदिर के प्रांगण में बस जाकर खड़ी हुई। बस से उतरते ही मैं अद्भुत शिल्प को देखती ही रह गई। दोपहर का एक बज चुका था। धूप बहुत तेज थी। काफी सीढ़ियां थी और उनके दोनों ओर पत्थर से बने हाथी थे। चप्पल निकालते ही, नंगे पांव मेरे जलने लगे लेकिन सीढ़ियों का तापमान धूप में भी नार्मल था। अब हम मजे से आस पास मंदिर को निहारते हुए सीढियां चढ़े। विशाल हॉल न जाने किस दिशा को ध्यान रख कर बनाया गया था, वहाँ जहाँ भी खड़ी होती थी, बहुत सुहानी हवा लग रही थी।़ 1998-99 में सत्ताइस हजार स्क्वायर वर्ग फीट में फैले इस मंदिर का निर्माण अम्बाजी र्माबल, मकराना र्माबल और उदयपुर के पिंक पत्थरों से हुआ था। केन्द में भगवान स्वामीनारायण की पंाच धातुओं के  मिश्रण  से मिश्रधातु की  बनी मूर्ति है। एक कक्ष में स्वामी गुणातीत नंद, गोपाल नंद स्वामी, भागती जी महाराज है और र्माबल से बने राधा कृष्ण के कक्ष है। परिक्रमा पथ है। तीज त्यौहारों पर भगवान का विशेष श्रंृगार किया जाता है। श्री स्वामीनारायण संप्रदाय का मूर्तिकला और शिल्पकला अद्भुत है। इसे बनाने में प्राचीन वैदिक शिल्प शास्त्र का ध्यान रक्खा है। भक्त भोजनालय, कथा सभा मण्डल है। यहाँ 1100 छात्र पढ़ते हैं। उनका रहना खाना सब संप्रदाय की ओर से निशुल्क है। खाने का समय तो हमारा भी निकल ही चुका था। पता चला वहाँ के भोजनालय में हर समय खाना मिलता है। छात्रों ने खाना परोसा और बड़े आग्रह से खिलाया। अमूल की वासुंदी मुझे बहुत पसंद है। मुंम्बई में मिलती थी। हम फ्रिज में हमेशा रखते थे। नौएडा में मुझे कहीं नहीं दिखती पर यहाँ खाने के साथ वासुंदी, मोहनथाल, एक मिठाई का मुझे नाम नहीं याद आ रहा शायद राजभोग( मेरे पाठक जब पढ़ेगे, मुझे तुरंत नाम भेजेंगे) दाल, चावल , सब्जी, परांठे, आदि सब अनलिमिटिड। स्वाद ग़ज़ब का क्योंकि ये प्रशाद था। सबने छक कर खाया पर किसी ने भी प्रसाद का एक कण भी थाली में नहीं छोड़ा था, यह देख कर अच्छा लगा। मंदिर में यात्रिक निवास की सुविधा है। साथियों में अधिकतर सीनियर सीटिजन थे। कुछ तो अस्सी प्लस थे। उन्होंने विश्राम के लिये कमरे खोल दिये, टायलेट संलग्न था। यहाँ की विशेषता ’आप कहीं भी गंदगी नहीं ढूंढ सकते’। चलते समय हमें प्रशाद में लड्डू दिए। घर आने पर डिव्बा खोला। मोटे बेसन के बने बहुत स्वादिष्ट लड्डू थे। एक महीने तक खराब नहीं हुए थे। मंदिर बस स्टैंड से 3 कि.मी. और रेलवे स्टेशन से 2.5 कि.मी. दूर है। चार बजे हम फिर संगोष्ठी स्थान पर जाने के लिए बस में बैठ गए। क्र क्रमशः







Saturday, 20 April 2019

महात्मा गांधी म्यूजियम राजकोट गुजरात यात्रा भाग 3 Mahatma Gandhi Museum Rajkot Gujarat Yatra Part 3 Neelam Bhagi भाग 3 नीलम भागी

महात्मा गांधी म्यूजियम राजकोट गुजरात यात्रा भाग 3
    नीलम भागी
अब हम राजकोट के 17.10.1853 में खुले पहले इंगलिश मीडियम अल्फ्रेड हाई स्कूल गए। आज की इस इमारत को जूनागढ़ के नवाब ने 1875 में बनवाया था। इस स्कूल का नाम डयूक ऑफ एडिनर्बग प्रिंस के नाम पर रक्खा गया था। बापू इस स्कूल में पढ़े थे। यहीं पर उन्हें भारतीय और अंग्रेजी रहन सहन का अंतर समझ आने लगा था। 1947 में आजादी के बाद इस स्कूल का नाम मोहनदास करमचंद स्कूल  रख दिया गया। बापू की 150वीं जयंती पर इसे महात्मा गांधी म्यूजियम में बदल दिया गया। 30 सितम्बर 2018 को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने इसका उद्घाटन किया। 25रू का टिकट प्रतिव्यक्ति है। अंदर प्रवेश करते ही गाइड हमारे साथ थे। यहाँ बापू की राजकोट की यादें और उनकी जीवन यात्रा में परिवर्तन लाने वाली घटनाएं तस्वीरों उनके लेखों के प्रिंट 2132 और फोटोज़, मल्टीमीडिया मिनी थियेटर, मोशन ग्राफिक्स, थ्री डी प्रोजेक्शन एवं गांधी जी के जीवन पर बनी मेपिंग फिल्म के जरिए गांधी दर्शन कर सकते हैं। गांधी पुस्तकालय के अलावा डिजिटल तकनीक के जरिए गांधी जी के जीवन पर प्रकाश डाला गया है। किशोरावस्था में जो किशोर नादानियां किया करते हैं, मोहन ने भी की थीं। सब का ज़िक्र किया और कैसे उन गलतियों को स्वीकार कर, वे अपने गुरू स्वयं बने और उनसे दूर हुए। जीवन संर्घष, आशा निराशा सब आम आदमी से महात्मा बनने में, उनके जीवन में भी आईं। किसी स्कूल की छात्राएं भी थीं। वे शांति से बापू के जीवन को देखती, पढ़ती आगे बढ़ रहीं थीं। उन्हें कोई चुप रहने को नहीं कह रहा था। बापू का तो जीवन ही उनका संदेश है। मुझे लगा वे उसे आत्मसात कर रहीं हैं। तीन चीजों से दूर रहने की प्रतिज्ञा, लंदन से मैट्रिक पास किया, वैजिटेरियन सोसाइटी में शामिल हुए, विश्व के धर्मों का परिचय, संर्घष, बैरिस्टर गांधी पहुंचे मुंबई, हरी पुस्तिका, परिवार के साथ दक्षिण अफ्रीका की समुद्र यात्रा, फीनिक्स आश्रम की स्थापना, आहार शास्त्र पर गुजराती में लेख, ट्रान्सवॉल एशियाटिक लॉ अमेंडमेंट आर्डिनेन्स, इंग्लैंड प्रस्थान, सत्याग्रह का जन्म, टॉल्स्टॉय र्फाम- सहकारी गणतंत्र, महा कूच, गिरफ्तारी ,ट्रायल, सजा, रिहाई, स्वदेश आगमन, दक्षिण अफीका में की गई सेवाओं के लिए सम्मान, भारत की परिस्थिति,
1916 से 1920 सत्याग्रह आश्रम की स्थापना, चरखा-भारतीय अर्थ व्यवस्था का आधार, चंपारण सत्याग्रह, अहमदाबाद मिल मजदूरों की हड़ताल, खेड़ा सत्याग्रह, गंाधी जी समय के साथ पोशाक में परिवर्तन,
1920 से 1922 असहयोग आंदोलन , चौरी चौरा कांड, जलियांवाला बाग कांड,
1922 से 1930 हिन्दु मुस्लिम एकता के लिए 21 दिन का उपवास, अखिल भारतीय बुनकर संघ की स्थापना, बारडोली सत्याग्रह, साइमन कमीशन, पूर्ण स्वराज, दांडी मार्च
1930 से 1944  द्वितीय गोलमेज सम्मेलन, अस्पृश्यता निवारण के लिए अभियान, कांग्रेस से त्यागपत्र, र्वधा सेवाग्राम में कार्यरत, राजकोट सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन, आगा खान पैलेस में बंदी, कस्तूरबा का निधन
1944 से 1948 सिमला सम्मेलन, साम्प्रदायिक दंगे, भारत स्वतंत्र हुआ, महात्मा को वैश्विक श्रद्धाज्ंली
ब्रहमर्चय, सत्य, अहिंसा  अस्पृश्यता निवारण, अस्तेय(चोरी न करना), जात मेहनत, सहिष्णुता(बरदाश्त), इतने में मेरे मोबाइल पर देवेन्द्र वशिष्ठ की कॉल आई कि सब साथी बस में मेरा इंतजार कर रहें हैं। सामने सरदार पटेल थे और आस पास मेरे साथियों में कोई नहीं था। मैं र्कमचारियों से बाहर का रास्ता पूछते चल रहीं हूं और मेरे दिमाग में विचार चल रहें हैं कि मैं दो व्यक्तित्वोंं से  बहुत ज्यादा प्रभावित हूं ,वे हैं बापू और सरदार पटेल। पिछली बार मैं दो दिन के लिए अहमदाबाद काम से आई थी। जिसमें एक दिन साबरमती आश्रम में बिताना, मुझे बहुत अच्छा लगा था। मैंने अपने आप से कहाकि मैं कौन सा मरनेवाली हूैं! महात्मा गांधी म्यूजियम के मोह में फिर आ जाउंगी। बस मुझे दूर से देखते ही र्स्टाट हो गई। जैसे ही बस में मैंने प्रवेश किया।  कोरस में मुझे कहा ’बहुत देर लगा दी।’ बस  स्वामीनारायण मंदिर की ओर चल पड़ी और मैं अपनी सीट पर बैठ गई। क्रमशः 


 















काबा गाँधीना देलो राजकोट Rajkot Gujarat Yatra Part 2 गुजरात यात्रा भाग 2 Neelam Bhagi नीलम भागी




सुबह दरवाजा पीटा गया कि बैड टी ले आओ और पीटने वाले साथी ने बताया कि उन लोगों ने तो रात को भी सैर की और सुबह जल्दी उठ कर भी सैर की और हमें तो सुबह भी उठाना पड़ा था। सुन कर मैं अपने आप पर दुखी होने लगी। ये देख कर मैंने अपने मन को  समझाया कि दुखी मत हो, ये सब ज्यादा जी लेंगें। हम दोनों जल्दी मर जायेंगे और मैं समझ गई। मैसेज देखा देवेंद्र वशिष्ठ का मैसेज, 'आठ बजे नाश्ता था और साढ़े आठ बस में बैठना था।' नाश्ता ओपन में पेड़ों के नीचे कुर्सियां मेज लगीं थीं सामने बन रहा था। कुछ भी खा सकते थे लेकिन कॉम्बीनेशन था चाय के साथ थेपला और दहीं के साथ परांठा। मुझे बिमारी है कि मैं जहाँ भी जाती हूं, वहाँ का स्थानीय खाना पसंद करती हूं। इसलिये मैंने तो चाय थेपला का आनन्द उठाया। विश्वविद्यालय परिसर प्रदूषण रहित एकदम साफ था। मैं इधर उधर डोलती रही। बस चलने के समय उसमें आकर आखिरी सीट की खिड़की पर बैठ गई क्योंकि वही खाली थी। राजकोट सम्पन्नता र्दशाता पुराने और आधुनिक भवनों का मिला जुला शहर है। न ही यह शहर रिहायशी और कमर्शियल खण्डों में बटा है। मसलन कई जगह नई आबादी में मल्टीस्टोरी रैजी़डैन्शियल फ्लैट्स हैं तो ग्राउण्ड फ्लोर में कमर्शियल गतिविधियां हैं। वहाँ घरों की बाउण्ड्रीवाल बहुत ही छोटी थी और महिलाएं सोना पहने घूम रहीं थी। इसका मतलब चोरी चकारी और झपटमारी नहीं थी। टूविलर बिना हैल्मेट पहने लोग चला रहे थे। अब हम सामान से लदे पुराने शहर के बाजार में जा रहे थे। इस शहर की स्थापना जडेजा वंश के ठाकुर साहब विभाजी जडेजा ने 1612 ई में की थी। सौराष्ट्र की राजधानी रहे इस शहर की राजनीतिक और सांस्कृतिक यादें हैं। अहिंसा सत्याग्रह के साथ साथ यह शहर उद्योग के लिए भी बहुत मशहूर है। सोनी बाजार सोने के लिए मशहूर है। वाहन पुर्जों और छोटे ट्रैक्टरों  का भी निर्माण यहीं से हुआ है। तरह तरह की चाट और पतंग मेले के लिये तो राजकोट विख्यात है। दबेली तो एशिया में मशहूर है। यहाँ बापू का निवास स्थान यानि ’काबा गाँधीना देले’ है। बापू के पिता  कर्मचंद गांधी सौराष्ट्र के दीवान थे। अपने सिद्धांतों  पर अटल रहने वाले, पोरबंदर छोड़ कर यहाँ आ गए थे। बस आगे जा नहीं सकती थी। हम पैदल उन गलियों में जा रहे थे। जहाँ खेल कर बापू का बचपन बिता। प्रवेश करते ही दाएं हाथ पर एक कमरा है जहाँ उनके जीवन यात्रा पर लघु फिल्म चलती है। हम देखने बैठ गए। पहले हमारे लिए पानी फिर नींबू र्शबत की बोतलें आईं। जूते उतार कर अब हम घूमने लगे और तस्वीरें लेने लगे। सारे विश्व से लोग, बापू के इस निवास को और उनकी जीवन यात्रा को तस्वीरों के माध्यम से देखने आते हैं। अब भी विदेशी पर्यटक ज्यादा थे। सब चुपचाप तस्वीरों को देखते हैं, वहाँ लिखे को पढ़ते हैं और आगे बढ़ते हैं। लेकिन मेरे ज़हन में तो उस समय उनको पढ़ा हुआ भी चल रहा था। बाहर आने पर बाजार में अंजना ने एक ठेले से टूथब्रश लिया कुल बीस रू. का यानि सस्ता शहर है। हम जो भी रेट पूछते नौएडा से सस्ता लगा। होली आनेवाली थी एक महिला ठेले पर पिचकारी बेच रही थी। मैं वैसे ही देखने के लिए खड़ी हो गई। उसने उस फौव्वारे के इतने फायदे बताये। पहले बोतल पर लगा कर रंग खेलो फिर पौधों को पानी दो न जाने क्या क्या। बाजार देखते हुए बस पर पहुँचे। बस में बैठे और महात्मा गांधी म्यूजियम की ओर चल पड़े। क्रमशः     












Thursday, 18 April 2019

दिल्ली से राजकोट गुजरात यात्रा भाग 1 Delhi se Rajkot Gujrat Yatra 1 नीलम भागी




6 मार्च को ’महात्मा गांधी को जानो’ दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी(सांस्कृतिक मंत्रालय भारत सरकार का संगठन, डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी मार्ग, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने) का एक डेलीगेशन गुजरात यात्रा पर गया। जिसमें लेखकों, साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों और पत्रकारों ने भाग लिया। सवा पाँच बजे की हमारी एअर इंडिया की फ्लाइट थी। किसी कारण वश हमने जाना स्थगित कर दिया था। 6 तारीख को हमने चैक किया तो हमारी टिकट कैंसिल नहीं हुई थी। उस समय बारह बजे थे। अंजना बोली,’’चलो, चलते हैं।’’ ग्रुप में मैसेज चैक किया। देवेन्द्र वशिष्ठ ने लिखा था कि साढ़े तीन बजे तक इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल तीन पर सब पहुँचे। जल्दी जल्दी बैग में कपड़े ठूसे, जरूरत का सामान लिया, हम चल दीं। मैट्रो पर ही भरोसा था कि वह हमें समय पर पहुंचा सकती है। घर से मैट्रो स्टेशन के बीच इतना जाम मिला कि लगा कि फ्लाइट तो मिस होगी ही, उसी समय देवेन्द्र जी का मैसेज आ गया कि फ्लाइट लेट है, 6 बजे उड़ान भरेगी। नौएडा से नई दिल्ली मैट्रो फिर दौड़ते हुए नई दिल्ली स्टेशन से एयरर्पोट मैट्रो पकड़ी। एयरपोर्ट पर पहुंचते ही अंजना बोली,’’मैं तेज चलती हूं और तुम धीरे। मैं जा रहीं हूं, यह कह कर वह चल दी। वो लोगों से पूछ पूछ कर, टर्मिनल तीन की ओर तेज तेज जा रही थी। मैं दौड़ दौड़ कर उसका पीछा कर रही थी। मुझे ये फायदा था कि  किसी से रास्ता नहीं पूछना पड़ रहा था। एयरर्पोट में प्रवेश करते ही जल्दी से चैक इन काउण्टर खोज कर वहाँ पहुँचे, र्बोडिंग पास लिया, दौड़ते हुए सुरक्षा जाँच की लाइन में लगे। उन्होंने एक नई लाइन बनवा दी। वहाँ हमारा पहला दूसरा नम्बर था। जाँच होते ही हम गेट नम्बर 32 की ओर चल दिये। वहाँ हम दोनो के अलावा कोई सवारी नहीं थी क्योंकि सब प्लेन में बैठ चुकी थीं। प्लेन में प्रवेश करते ही हमारे साथियों के चेहरे हमें देख कर खिल गये। ये देख बहुत अच्छा लगा। अंजना तेज चलती है न इसलिये मुझसे आगे जाकर विंडो सीट पर बैठ गई। मैं उसके बराबर में, सागर जी तो किनारे पर अपने सीट नम्बर पर बैठे ही हुए थे। मेरे बैठते ही अंजना बोली,’’अब मुझसे बोलना कि तुम तेज नहीं चल सकती हो। अपनी चीटी चाल से चलती तो शर्तिया फ्लाइट मिस होती न।  तुम मेरे पीछे जेब कतरे की चाल से लगी हुई थी।’’मैंने उसे सुधारते हुए कहा कि मैं ऐसे चल रही थी जैसे महात्मा गांधी दाण्डी यात्रा पर जा रहे हों। यह बोल कर मैंने लंबी लंबी सांसे लेकर अपने को र्नामल किया। उसका बारहवीं में पढ़ने वाला लाडला बेटा, पहली बार माँ से अलग रूका था। वह फोन पर बेटे को दुखी होकर समझा रही थी, उधर बेटा रो रहा था। पूरा खानदान उसको आश्वासन दे रहा था कि सब उसका बहुत ध्यान रक्खेंगे। खैर एक घण्टे चालीस मिनट में हम राजकोट पहुँच गये। जिस बात ने मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित किया वह था,  एअरर्पोट पर गुजरात टुरिज्म का काउण्टर। बाहर से आने वाला टूरिस्ट वहाँ से पूरी जानकारी ले सकता है। वह मेरा और अपना लगेज लेकर सब के साथ बस का इंतजार करने लगी। मैं आस पास घूमती रही। बापू को शिक्षित करने वाले शहर में मेरे मन में अलग सा भाव आ रहा था। बस आ गई। विंडो सीट पर बैठी मैं साफ सुथरे राजकोट से परिचय करती जा रही हूँ। बस सौराष्ट्र विश्वविद्यालय के अतिथी गृह के आगे रूकी। सबको कमरे एलॉट हो गए। दस मिनट बाद ही भोजन के लिए बुलावा आ गया। मैस में बुफे लगा हुआ था। प्लेट बहुत बड़ी थीं पर हल्की। मिक्स वैजीटेबल, छोले, आलू, दाल, चावल, कड़ी, खिचड़ी , फारसण, सलाद लेकर आप बैठ जायें और रोटी जहाँ बैठ कर आप खायेंगे, वहाँ कई वैराइटी की पहुँच रही थी, आप अपनी पसंद की लें लें। टेबल पर छाछ से भरे जग रक्खे थे। वही दाल सब्जियाँ थीं पर पकाने की कला अलग थी इसलिये स्वाद भी उत्तर भारत से अलग था।  सफेद कढ़ी बिना पकौड़े की खट्टी मिठी और पतली उसकी सुंदरता, बघारी हुई साबुत लाल र्मिच बढ़ा रहीं थीं, बाजरे की रोटी को रोटला कहा जा रहा था। भाखरी बिस्कुट जो मुझे राजकोट के अलावा कहीं नहीं दिखा ,फीका पर इतना कुरकुरा उसके लिये एक ही शब्द ’लाजवाब’। लहसून मिर्च की चटनी  मिली। प्रत्येक मेज पर मिर्च के आचार और गुड़ की शीशियाँ थी। हैरानी तो मुझे तब हुई जब इतने चटपटे खाने के साथ लोकल, मिर्च का आचार भी खा रहे थे। डिनर के बाद हम अपने रूम में आ गये। अंजना अपना टुथब्रश भूल आई थी। हम दोनों तो जीमने के बाद, आते ही सो गईं। क्रमशः 












         




Tuesday, 16 April 2019

चुम्मू बंद हो गया नीलम भागी Unlocking Chummu Neelam Bhagi


                   

             
      ऑफिस से लौटते समय चूम्मू को मैं क्रैच से साथ ही ले आती हूँ। चौथी मंजिल के अर्पाटमैंट में लॉक खोलने से पहले मैं चुम्मू को अपने स्टॉल या  दुपट्टे के साथ अपनी टाँगों से बाँध लेती हूँ क्योंकि मेरा डेढ़ साल का चुम्मू बहुत शैतान है। ताला खोलने के लिए मैं जैसे ही उसका हाथ छोड़ती हूं, वह भाग कर सीढ़ियां चढ़ने लगता है या उतरने। इसलिए बांधना मेरी मजबूरी है। सबसे पहले लोहे के दरवाजे का इंटरलॉक खुलता है, चुम्मू चाबी झपटने की ताक में लगा रहता है। दूसरे लकड़ी के दरवाजे का लॉक खुलते ही चुम्मू बंधन मुक्त। मैं अपना और चुम्मू का बैग उठा कर, हम दोनो घर में प्रवेश करते हैं। टी.वी. ऑन करते ही वह नाचने लगता है और मैं जल्दी से उसके लिए दूध की बोतल तैयार कर लेती हूँ।
आज लॉक खुलते ही जितनी देर में मैं बैग उठाती, चुम्मू झट से अन्दर गया और लकड़ी का दरवाजा बंद कर दिया। दरवाजा बंद होते ही ऑटोमैटिक लॉक लग गया। चाबी वह पता नहीं कैसे अन्दर ले गया। इतनी देर में मैने पड़ोसियों को बुला लिया। तीनो कमरों की बालकोनी पर, अपनी बालकोनी से पड़ोसी, पड़ोसन कूदे। कोई बढ़ई को फोन लगा रहा था, तो कोई बढ़ई लेने चल दिया, कोई डुपलिकेट चाबी बनाने वाले को, पर सभी दरवाजे, खिड़कियों पर ग्रिल, शीशे, जाली के दरवाजे, और उस पर परदे लगे थे। अंदर से वे अच्छी तरह बंद थे।
भूखा-प्यासा मेरा चुम्मू ,अन्दर हलक फाड़ के, चीख-चीख कर रो रहा था। मैंने उसके पापा को चुम्मू के बन्द होने की सूचना दी। एक सैट चाबियों का उनके पास रहता है। वे बोले, ’’इस समय मैं मीटिंग में गुड़गाँव में हूँ। गाड़ी छोड़कर ,मैं मैट्रो से जल्दी आ रहा हूँ।’’
रोते-रोते चुम्मू की घिग्गी बंध गई। मैं पड़ोसियों की बालकोनी से कूद कर, अपने ड्राइंग रूम की बालकोनी पर बैठकर मैं उसे आवाजें देती रही। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। कुछ समय बाद मेरी आवाज सुनकर, उसने ड्राइंग रुम की खिड़की का परदा हटाया, मुझे देखते ही बाँह पसार कर बोला, ’’मम्मा गोदी ले लू।’’ मैं टाइम पास के लिए उसे बहलाते हुए, “पापा आ रहे हैं,” का जाप करने लगी। पता नहीं मजबूरी समझकर या रो रो के थक कर ,चुम्मू भी चुप बैठ गया। मैंने पडोसन  को धन्यवाद देते हुए कहा, ’’मैं तो बैठी हूँ। आप अब चली जाओ।’’ उसने नीचे झाँका, अब उसकी वापिस कूदने की हिम्मत नहीं थी। वह भी मेरे साथ इन्तजार करने लगी। और मैं सोचने लगी कि मैं ऐसी क्यूँ हूँ!
यह हादसा किसी भी बच्चे या परिवार के वृद्ध सदस्य के साथ हो सकता है। इसके पापा मुझे हमेशा कहते हैं कि एक चाबी हमें कहीं और रखनी चाहिये। अब मैं सोच रही थी कि बेहतर होगा कि हम घर की एक चाबी अपने किसी भरोसेमंद पड़ोसी परिवार के पास रख छोड़े, जिससे कोई दुष्परिणाम न भुगतना पड़े। 

Friday, 12 April 2019

मेरा देश महान, मुफ्त सलाह देना, जहाँ लोगों का काम!! नीलम भागी

मेरा देश महान, मुफ्त सलाह देना,
जहाँ लोगों का काम!!
 नीलम भागी
मैं ये दावे के साथ कह सकती हूँ कि मेरे जैसी गंभीर समस्या औरों के घर में भी होगी, जिनके यहाँ दो से चार साल तक के बच्चे हैं। हुआ यूं कि ढाई साल की गीता को शॉपिंग में ंसाथ जाना बहुत पसंद है पर प्रैम में बैठना बिल्कुल भी पसंद नहीं है। न लेकर जाओ तो जब  तक लौटो नहीं, चीख चीख कर रोती रहती है। लेकर जाओ तो गाड़ी से उतरते ही भागना शुरू कर देती है। कितना समझाओ कि चोट लग जायेगी पर बच्चा कहाँ मानता है! जब तक चोट खाने का अनुभव न हो और हम बच्चे को ऐसा अनुभव होने नहीं देते। अंगुली पकड़ कर चलो तो वह अंगुली छोड़ देता है क्योंकि हम लम्बे होते हैं और बच्चा छोटा होता है। हमारी अंगुली पकड़े पकड़े उसकी बाँह ऊँची रहती है, जिससे उसके कंधों में दर्द होने लगता है। बोलो कुर्ते का कोना पकड़ कर चलो, तोे जब दिल करता है तो उसे भी छोड़ कर सड़क पर भागने लगता है। शो रूम में कुछ सलैक्ट करने में हम खो गये तो, तो बेबी भी खो जाता है। बच्चा कहीं भी मुहँ उठा के चल देता है। फिर शॉपिंग छोड़ उसे खोजो। यू. के. में बेबी लीष (ठंइल समंेीमे) की सहायता से बच्चे मजे से माँ के साथ शॉपिंग एनजॉय कर रहे थे। हम भी गीता के लिये ले आये। पहली बार मैं और गीता बाँहों में पहन कर शॉपिंग के लिये निकले गीता बहुत खुश, मैंने भी इत्मीनान से खरीदारी की घर लौटे रहे थे तो एक सज्जन बोले,’’अरे! वाह कुत्ते के गले में पट्टा होता है और बच्चे की बाँह में होता है। जैसे मर्जी हो घुमाओ।’’बच्चे की कुत्ते से तुलना करने पर, गुस्सा तो मुझे बहुत आया, पर उनकी उम्र का लिहाज कर चुप रही और गुस्सा मैंने थूक दिया। अगले दिन गीता ने मेरे हाथ में लीष दिया और बोली,’’घुम्मी चलो।’’ मैं भी उसे घुमाने ले गई। जो देख रहा था, मुस्कुराये बिना नहीं जा रहा था। इतने में एक गाड़ी आकर मेरे पास रूकी, उसमें से एक महिला उतरी। उतरते ही उसने मुझे अपना परिचय दिया कि वो एक चाइल्ड साइकोलोजिस्ट है और छुटते ही एक लैक्चर दे दिया। जिसे मैंने  अपनी बी.एड. में पढ़ी चाइल्ड साइकोलोजि में नहीं पढ़ा था। अब मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं गीता की खुशी और उसकी सुरक्षा देखूँ या उस महिला के द्वारा दिये गए बाल मनोविज्ञान के लैक्चर को मानू। 

प्याज़ एक बार लायें और बार बार खायें नीलम भागी Spring Onion Ek Bar laye Aur Bar Bar Khaye Neelam Bhagi






                          मुझे एक व्यंजन(dish) को बनाने के लिए  थोड़े से हरे प्याज(spring onion) की जरूरत थी। एक छोटी गड्डी खरीद लाई। हरे भाग को इस्तेमाल के बाद बची प्याज को फ्रिज में रखने से उसमें गंध आने लगती है और बाहर रखने पर सूख जाती है। अगले दिन मुझे ग्रिल्ड सैंडविच में भी इस्तेमाल करना था। मैंने एक बेकार बर्तन में थोड़ा सा पानी लेकर उसमें प्याज खड़ी कर दीं। सभी प्याजों की सफेद जो दाढ़ी जैसी जड़ें होती हैं। वे पानी में अच्छे से डूबी रहीं। मैंने बाहर हल्की धूप में रख दी। अगले दिन प्याज जहाँ से मैंने काटा था, वहाँ से आधा इंच बाहर हरा भाग बढ़ गया था। मैंने उसका पानी बदल दिया। दिन में एक बार पानी बदल देती हूं। पहली बार मैंने पानी ज्यादा डाला था तो कुछ के तने गलने लगे

तो मैंने उन्हें मिटटी में दबा दिया| कुछ दिन बाद हरी पत्तियां निकलने लगी|  उसके बाद जड़ें ही पानी में डुबोए  रखना और पानी ऱोज बदलती हूँ| कुछ बनाती हूँ तो ताजे पत्ते तोड़ लेते




है। कहीं बाहर जाना हो तो गमले में मिट्टी में लगा जाती हूं। मेरा अपना अनुभव है कि आर. ओ. के बेकार पानी में जल्दी





बढ़त होती है। अब मैं छोटी छोटी प्याज़ गमले की मिट्टी में दबा 
देती हूँ| जड़ वाला हिस्सा नीचे दबाना हैं| कुछ दिनों में हरा तना निकल जाता है| जरुरत के समय बाज़ार नहीं भागना पड़ता|