श्री स्वामीनारायण मंदिर राजकोट गुजरात यात्रा भाग 4
नीलम भागी
गुलाबी सेंडस्टोन और मार्बल से बने विशाल मंदिर के प्रांगण में बस जाकर खड़ी हुई। बस से उतरते ही मैं अद्भुत शिल्प को देखती ही रह गई। दोपहर का एक बज चुका था। धूप बहुत तेज थी। काफी सीढ़ियां थी और उनके दोनों ओर पत्थर से बने हाथी थे। चप्पल निकालते ही, नंगे पांव मेरे जलने लगे लेकिन सीढ़ियों का तापमान धूप में भी नार्मल था। अब हम मजे से आस पास मंदिर को निहारते हुए सीढियां चढ़े। विशाल हॉल न जाने किस दिशा को ध्यान रख कर बनाया गया था, वहाँ जहाँ भी खड़ी होती थी, बहुत सुहानी हवा लग रही थी।़ 1998-99 में सत्ताइस हजार स्क्वायर वर्ग फीट में फैले इस मंदिर का निर्माण अम्बाजी र्माबल, मकराना र्माबल और उदयपुर के पिंक पत्थरों से हुआ था। केन्द में भगवान स्वामीनारायण की पंाच धातुओं के मिश्रण से मिश्रधातु की बनी मूर्ति है। एक कक्ष में स्वामी गुणातीत नंद, गोपाल नंद स्वामी, भागती जी महाराज है और र्माबल से बने राधा कृष्ण के कक्ष है। परिक्रमा पथ है। तीज त्यौहारों पर भगवान का विशेष श्रंृगार किया जाता है। श्री स्वामीनारायण संप्रदाय का मूर्तिकला और शिल्पकला अद्भुत है। इसे बनाने में प्राचीन वैदिक शिल्प शास्त्र का ध्यान रक्खा है। भक्त भोजनालय, कथा सभा मण्डल है। यहाँ 1100 छात्र पढ़ते हैं। उनका रहना खाना सब संप्रदाय की ओर से निशुल्क है। खाने का समय तो हमारा भी निकल ही चुका था। पता चला वहाँ के भोजनालय में हर समय खाना मिलता है। छात्रों ने खाना परोसा और बड़े आग्रह से खिलाया। अमूल की वासुंदी मुझे बहुत पसंद है। मुंम्बई में मिलती थी। हम फ्रिज में हमेशा रखते थे। नौएडा में मुझे कहीं नहीं दिखती पर यहाँ खाने के साथ वासुंदी, मोहनथाल, एक मिठाई का मुझे नाम नहीं याद आ रहा शायद राजभोग( मेरे पाठक जब पढ़ेगे, मुझे तुरंत नाम भेजेंगे) दाल, चावल , सब्जी, परांठे, आदि सब अनलिमिटिड। स्वाद ग़ज़ब का क्योंकि ये प्रशाद था। सबने छक कर खाया पर किसी ने भी प्रसाद का एक कण भी थाली में नहीं छोड़ा था, यह देख कर अच्छा लगा। मंदिर में यात्रिक निवास की सुविधा है। साथियों में अधिकतर सीनियर सीटिजन थे। कुछ तो अस्सी प्लस थे। उन्होंने विश्राम के लिये कमरे खोल दिये, टायलेट संलग्न था। यहाँ की विशेषता ’आप कहीं भी गंदगी नहीं ढूंढ सकते’। चलते समय हमें प्रशाद में लड्डू दिए। घर आने पर डिव्बा खोला। मोटे बेसन के बने बहुत स्वादिष्ट लड्डू थे। एक महीने तक खराब नहीं हुए थे। मंदिर बस स्टैंड से 3 कि.मी. और रेलवे स्टेशन से 2.5 कि.मी. दूर है। चार बजे हम फिर संगोष्ठी स्थान पर जाने के लिए बस में बैठ गए। क्र क्रमशः
नीलम भागी
गुलाबी सेंडस्टोन और मार्बल से बने विशाल मंदिर के प्रांगण में बस जाकर खड़ी हुई। बस से उतरते ही मैं अद्भुत शिल्प को देखती ही रह गई। दोपहर का एक बज चुका था। धूप बहुत तेज थी। काफी सीढ़ियां थी और उनके दोनों ओर पत्थर से बने हाथी थे। चप्पल निकालते ही, नंगे पांव मेरे जलने लगे लेकिन सीढ़ियों का तापमान धूप में भी नार्मल था। अब हम मजे से आस पास मंदिर को निहारते हुए सीढियां चढ़े। विशाल हॉल न जाने किस दिशा को ध्यान रख कर बनाया गया था, वहाँ जहाँ भी खड़ी होती थी, बहुत सुहानी हवा लग रही थी।़ 1998-99 में सत्ताइस हजार स्क्वायर वर्ग फीट में फैले इस मंदिर का निर्माण अम्बाजी र्माबल, मकराना र्माबल और उदयपुर के पिंक पत्थरों से हुआ था। केन्द में भगवान स्वामीनारायण की पंाच धातुओं के मिश्रण से मिश्रधातु की बनी मूर्ति है। एक कक्ष में स्वामी गुणातीत नंद, गोपाल नंद स्वामी, भागती जी महाराज है और र्माबल से बने राधा कृष्ण के कक्ष है। परिक्रमा पथ है। तीज त्यौहारों पर भगवान का विशेष श्रंृगार किया जाता है। श्री स्वामीनारायण संप्रदाय का मूर्तिकला और शिल्पकला अद्भुत है। इसे बनाने में प्राचीन वैदिक शिल्प शास्त्र का ध्यान रक्खा है। भक्त भोजनालय, कथा सभा मण्डल है। यहाँ 1100 छात्र पढ़ते हैं। उनका रहना खाना सब संप्रदाय की ओर से निशुल्क है। खाने का समय तो हमारा भी निकल ही चुका था। पता चला वहाँ के भोजनालय में हर समय खाना मिलता है। छात्रों ने खाना परोसा और बड़े आग्रह से खिलाया। अमूल की वासुंदी मुझे बहुत पसंद है। मुंम्बई में मिलती थी। हम फ्रिज में हमेशा रखते थे। नौएडा में मुझे कहीं नहीं दिखती पर यहाँ खाने के साथ वासुंदी, मोहनथाल, एक मिठाई का मुझे नाम नहीं याद आ रहा शायद राजभोग( मेरे पाठक जब पढ़ेगे, मुझे तुरंत नाम भेजेंगे) दाल, चावल , सब्जी, परांठे, आदि सब अनलिमिटिड। स्वाद ग़ज़ब का क्योंकि ये प्रशाद था। सबने छक कर खाया पर किसी ने भी प्रसाद का एक कण भी थाली में नहीं छोड़ा था, यह देख कर अच्छा लगा। मंदिर में यात्रिक निवास की सुविधा है। साथियों में अधिकतर सीनियर सीटिजन थे। कुछ तो अस्सी प्लस थे। उन्होंने विश्राम के लिये कमरे खोल दिये, टायलेट संलग्न था। यहाँ की विशेषता ’आप कहीं भी गंदगी नहीं ढूंढ सकते’। चलते समय हमें प्रशाद में लड्डू दिए। घर आने पर डिव्बा खोला। मोटे बेसन के बने बहुत स्वादिष्ट लड्डू थे। एक महीने तक खराब नहीं हुए थे। मंदिर बस स्टैंड से 3 कि.मी. और रेलवे स्टेशन से 2.5 कि.मी. दूर है। चार बजे हम फिर संगोष्ठी स्थान पर जाने के लिए बस में बैठ गए। क्र क्रमशः
4 comments:
आपका हर स्थान पर बारीकी से अवलोकन, समय सापेक्ष पकड़, ज़हन में घूमती स्थिति परिस्थिति का चित्रण अद्भुत है.. बधाई हो.. 🙏🙏
हार्दिक धन्यवाद
हार्दिक धन्यवाद
अति सुंदर वर्णन वर्णन एवं चित्रों द्वारा यही सविस्तार बरण जान लिया
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