नीलम भागी
मंदिर की पताका दिन में पाँच बार बदली जाती है। बैण्ड बाजे के साथ पताका लाने वालों का भक्ति डांस देखना, बहुत सुखद लग रहा था। मंदिर सुबह 6 से 1 बजे तक, शाम को 5 से 9.30 बजे तक खुलता है। मंदिर के दो प्रवेश द्वार हैं। बाजार की ओर से मुख्य द्वार, जिससे हम आये थे, ये उत्तर दिशा में है, इसे मोक्ष द्वार कहते हैं। 72 स्तम्भों, 5 मंजिला इमारत का मुख्यमंदिर, जगत मंदिर या निज मंदिर के रूप में जाना जाता है। पुरात्तववेत्ताओं का कहना है कि ये 2200-2500 साल पुराना है। चालुक्य शैली में इसका निर्माण हुआ है। मंदिर की सबसे ऊँची चोटी 51.8 मीटर ऊँची है। ध्वज का सूर्य, चंद्र दर्शाता है कि जब तक सूर्य चंद्र है तब तक कृष्ण है। और मेरे मन में तो कन्हैया ही बसे थे। और उन्हें द्वारकाधीश के रूप में देखना! अंजना ने तो ’जय नंदलाला, जय गोपाला’ भजन गाना शुरू कर दिया और हम सब कोरस करने लगे। वहाँ जो मैं महसूस कर रही थी, उसे लिखने में असमर्थ हूं। माया शर्मा ने बताया कि उनका परिवार तो सुबह बिना नहाये दर्शन के लिये आ गया था तब द्वारकाधीश का श्रृंगार नहीं था। वे दक्षिण प्रवेश द्वार से, 56 सीढ़ियां से गोमती द्वारका की ओर गये। जिसे निष्पाप कुण्ड कहते हैं। यहाँ स्नान करते हैं। फिर अपनी श्रद्धा से तुलादान और गऊ दान करते हैं। उसने कहा कि गोमती दर्शन जरूर करना चाहिये क्योंकि गोमती सागर से मिलने से पहले भगवान से प्रार्थना करती हुई कहने लगी कि भगवान आपके बिना मेरे दिन कैसे कटेंगे? ये सुनकर भगवान ने कहा कि मैं प्रतिदिन यहाँ दो समय आऊंगा और जो व्यक्ति द्वारकानाथ के दर्शन करेगा तो उसको आधी यात्रा का फल मिलेगा। हम बाहर आये, बाजार से निकल कर सागर की ओर गये। समय कम था गोमती जी के दर्शन किये । सजे हुए ऊँट थे उन पर सवारी कर सकते हैं। सागर दर्शन किये। सागर तट की हवा का आनन्द उठाया। धूप तीखी लगने लगी। रात दो ढाई घण्टे की नींद ली थी और सुबह खाली चाय पी थी। मन में था कि पहले दर्शन फिर जलपान। अब एक रैस्टोरैंट में गये। जे. पी. गौड़ आलू का परांठा, भाजी और लस्सी का आर्डर कर आये। मुझसे सलाह करते तो मैं नया गुजराती खाना ढूंढती। पर फिर मैं कैसे जान पाती कि यहाँ पंजाब जैसा परांठा मिला, खूब मसाला भरा हुआ कि कई जगह से कवर से मसाला बाहर आ जाता है, जो बनाने में मुश्किल होता है पर स्वाद लाजवाज!!क्योंकि जहां से मसाला तवे पर डायरेक्ट सिकता है तो वो आलू टिक्की का स्वाद देता है। लस्सी ने तो मुझे गाय पालने के दिन याद करवा दिये। हमारी जर्सी और साहिवाल गाय बहुत दूध देती थीं। हम दहीं में तेज चीनी डाल कर , मथा हुआ फ्रिज में रख देते। ठंडा होने पर पीते। वैसी लस्सी यहाँ मिली। अब पैदल बाजार घूमने लगे। गुजराती रंगों में हाथ के काम की सिंधी कढ़ाई की, शीशे के काम के अनगिनत सामान, बैग और दुप्पट्टे आदि। पूनम माटिया तो एक दुप्पट्टे पर बुरी तरह रीझ गई। तुरंत खरीद कर जिंस र्शट पर शॉल की तरह ओढ़ कर चल दी। द्वारका पुरी में कहीं भी कूड़े के ढेर नहीं दिखे। एक टैर्क्टर रूक रूक कर निकल रहा था। लोग उसमें कूड़ा डाल रहे थे। लोगों से पूछने पर पता चला कि भद्रकाली चौक पर टूर एण्ड टैर्वल्स की दुकाने हैं। वहाँ से वॉल्वो बुक होती है। जिसे आराम करना था , वह होटल चल पड़े। मुझे तो शहर से परिचित होना था। मैं बुकिंग के लिये साथ चल दी। दुकान पर और हैरान हुए, यहाँ से 100रू में एक बजे बस चलती है बेट द्वारका के लिये, रास्ते में रूक्मणी मंदिर, नागेश्वर, गोपी तालाब दर्शन करवाती ले जाती है। अहमदाबाद के लिए ए.सी. स्लिीपर वॉल्वो 550रू में रात 9 बजे की टिकट ले ली और बेट द्वारका की भी। 12 बजे होटल से चैक आउट करना था। पैकिंग तो मैंं सुबह कर आई थी। त्यागी जी को होटल का हिसाब करना था,’’ मैं बोली,"मैं आती हूँ।’’ और मैं अकेली इधर उधर डोलती रही। एक टाँगा देख कर मैंने उसमें भी चक्कर लगाया। मैंने होटल आकर सीरियसली सबसे से कहा कि इकोफैंडली टाँगा ,यातायात का बहुत अच्छा साधन है। सब हंसते हुए बोल,’’अगर तुम घोड़े का चारा लाने और घोड़े की लीद उठा कर, ठिकाने लगाने की ड्यूटी ले लो, तो हम पॉल्यूशन फैलाने वाली गाड़ी हटा कर, इकोफैंडली टांगा रख लेंगे। जिस पर तुम घुड़सवारी भी कर लेना| क्रमशः
3 comments:
Good Post.
हार्दिक धन्यवाद हार्दिक धन्यवाद
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