चालीस दिन बाद चांदनी खाना बनाने गई। उसके लौटने पर सरोजा काम करने गई। मोनू को परशोतम की गोद में देकर चांदनी घर के काम निपटाती। परशोतम की शादी के बाद सरोजा गांव ही नहीं गई थी। इसलिये छुट्टी बहुत जरुरत पड़ने पर ही लेती थी। इस कारण मैडम लोग भी खुश रहतीं थी। चांदनी फिर हामिला हो गई। सुन कर सरोजा बहुत खुश हुई। उसके अनुसार अब परशोतम का घर मजबूती से बस गया। सरोजा ने चांदनी को समझाया कि जल्दी ही दूसरे बच्चे का पेट में आना बहुत अच्छा हुआ है। दोनो बालक साथ साथ पल जायेंगे। चांदनी को भी सास की बात ठीक लगी। वो वैसे भी आज्ञा पालन ही करती थी। बाहर का काम, घर का काम और मोनू को संभालना सब काम, वह गाना सुनते हुए ही करती थी। क्योंकि परशोतम घर में है तो रेडियो बंद नहीं हो सकता। चांदनी के काम की गति गाने की धुन के अनुसार होती थी। मसलन फास्ट म्यूजिक पर उसके हाथ तेज चलते और स्लो पर धीरे चलते थे। लेकिन दिन में एक बार परशोतम काने के खोखे पर जरुर जाता था। वह उसे बैठने को स्टूल देता था। जब उसका मन करता, तब घर लौटता। इस समय चांदनी परशोतम के बारे में सोचती। उसकी अंगुलियां ही आंखों का काम करती थीं। रुपए पैसे की सब उसे पहचान थी। अपनी पसंद की दो सब्जी वह रोज खरीदता था। सुबह और दोपहर कौन सी बनेगी और रात को कौन सी दाल बनेगी, वो ही बताता था। एक दिन चांदनी ने उससे पूछे बिना सब्जी बना दी। परशोतम तो रुठ गया। उसने खाना नहीं खाया। न मां ने खाया। बेटा भूखा रहे तो मां के गले से भला कौर उतरता है! न न। चांदनी तो कैसे खा सकती थी? वो तो खाती ही पति और सास के बाद थी। किसी ने नहीं सोचा कि इसकी गोदी में बच्चा है जो दूध मां का दूध पीता है और यह फिर गर्भवती हुई है। थोड़ी थोड़ी देर के बाद क्रोधित होकर, परशोतम खड़ा हो हो कर बोलता,’’ठीक करके रख दूंगा। मुझे ऐसा वैसा आदमी मत समझना।’’ सरोजा के कहने पर चांदनी ने उसके पांव पकड़ कर माफी मांगी फिर भी मां के समझाने पर बड़ी मुश्किल से परशोतम का गुस्सा उतरा और उसने अनशन खत्म किया। आराधना और मिसेज कुमार दोनो ने आपस में सलाह की कि अगर चांदनी के फिर लाल पैदा हुआ, तो ये लोग तो चांदनी को लालों की खान बना देंगे। इन लोगों को लड़कों का बहुत क्रेज़ रहता है। लड़के ही पैदा करवाते रहेंगे। उन्होंने सरोजा को समझाया कि चांदनी के दूसरे बच्चे के बाद परशोतम का अपरेशन करवा देना क्योंकि अंग्रेजी स्कूल में बच्चे पढ़ाने का खर्चा बहुत है। पर सरोजा डिलीवरी के साथ ही चांदनी का ऑपरेशन करवाने को राजी हो गई। सरोजा के दूसरा भी पोता हुआ। उसका नाम टोनू रक्खा। कपड़ा सुखाने में दिक्कत का कह कर सरोजा ने काने से छत खाली करवा ली। बाकि तीनो किरायेदार तो पत्नियों वाले थे। काने ने छत खाली कर दी,वहीं एक कमरा किराए पर ले लिया लेकिन परशोतम और उसकी दोस्ती में कोई कमी नहीं आयी। पीछे वाले घरों में पत्नी को पिटने की परंपरा थी। उनका कहना था कि औरत पैर की जूती होती है, जिसकी मरम्मत होती रहती है। और बड़े बूढ़े बुढ़ियों को चलते फिरते बेमतलब उपदेश देने की आदत थी। एक दिन परशोतम ने किसी बात से नाराज होकर चांदनी की पिटाई करनी शुरु की। चांदनी चुपचाप मार खाती रही। मोनू के चीख चीख कर रोने पर सरोजा दौडी़। देखती क्या है कि वह रुई की तरह उस पर डण्डा बरसा रहा था। सरोजा मदद के लिए चिल्लाने लगी। पड़ोसियों ने आकर छुड़ाया। मर्द लोग कहने लगे ,’’इस तरह भी लुगाई को कोई पीटता है। हम भी मारते हैं पर इसने तो हद ही कर दी।’ इनमें से ही कुछ घटिया औरते बोल रहीं थीं,’’ आदमी है, गुस्सा आयेगा तो पीटेगा ही।’’ चांदनी को अकेली देख कर कुछ भली औरतों ने समझाया कि जब आदमी पीटने को आये तो जोर जोर से रो रो कर चिल्लाओ ’अरी, मैया री मार डाला री।’ पड़ोसी आ जाते हैं बचाने। ऐसे चुपचाप मार नहीं खाते
क्रमशः
8 comments:
Loved it
Awesome write up
हार्दिक आभार
हार्दिक आभार
मैं आपकी kahani से बांध चूका हूँ।।।बहुत ही ाचा लेख है और भाषा बड़ी ही आम है !
हार्दिक आभार
धन्यवाद
सरल कथानक के माध्यम से निम्न आशिक्षित वर्ग की पुरुष पर आश्रित स्त्रियों की मनोदशा का सजीव विश्लेषण!
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