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Saturday 18 January 2020

आ लौट के आजा मेरे मीत....हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 16 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 16 Neelam Bhagi नीलम भागी


रात देर से धूमधाम से दिवाली मना कर सोए थे। चांदनी तो बहुत ही थकी हुई थी। आराधना के घर का त्यौहार का काम, कुमार के महमानो का काम फिर अपने घर को सजाना, पकवान बनाना। रात घोड़े बेच कर सोई। सुबह देर से नींद खुली। चाय बनाती, पीती पिलाती तो और देर हो जाती। मोनू चाय तो बना ही लेता है। ये सोच कर दो टुकड़े मिठाई के खाते हुए काम पर चल दी। दोपहर को काम से लौटी तो रेडियो बंद था। उसे कुछ अजीब लगा। परशोतम चुपचाप लेटा हुआ था। चांदनी ने उसका हाल पूछा तो उसने मरी हुई आवाज में बताया कि रात ज्यादा खा लिया था, डायरिया हो गया है। उसने पूछा,’’ मुझे क्यों नहीं जगाया?’’ वो बोला,’’ मेरे बार बार उठने से तेरी नींद नहीं खुली तो मैंने सोचा बहुत थकी हुई है। चलो सोने दो। वैसे तूं कौन सा डॉक्टर है?’’ वो बोली,’’मैंने भी सुबह नहीं जगाया कि पता नहीं रात को आप कब सोये होंगे। भारी खाना खाया था गहरी नींद में होंगे। ये सोच के तुम्हारी नींद नहीं खराब करती और चली गई। पर तुम दवा तो ले आते।’’ वो चुप रहा। अड़ोस पड़ोस बहुत एक दूसरे की मदद करने वाला है। पर किसी को पता चलता तो कोई आता न। ज्यादातर घरों में रात को दारु पी गई थी और जुआ खेला गया था। इस कारण क्लेश था। सब अपने नफे नुकसान के कारण परेशान थे। इसलिये किसी ने ध्यान नहीं दिया। दोपहर में आस पास के क्लीनिक बंद थे। संडे था शाम को भी क्लीनिक बंद रहे। फिर वे  पड़ोसियों की मदद से उसे सरकारी अस्पताल लेकर गये। इतवार और त्यौहारी माहौल या जो भी कारण रहा हो। अस्पताल से परशोतम की बॉडी आई। मौहल्ले में कोहराम मच गया। दूर पास के रिश्तेदारों को खबर की गई। चांदनी गुमसुम सी उसकी लाश के पास बैठी हुई आंसू बहा रही थी। जैसे ही रिश्तेदारों का जमावड़ा आया, संतोषी उनसे आगे जोर जोर से रोती, माथे पर हाथ मारती और दो हाथ चांदनी के मार कर विलाप करने लगी,’’हाय अंधा था पर लाड़ो तेरी इज्जत का रखवाला था।’’ अब चांदनी जमीन पर लोट लोट कर रोने लगी और कहने लगी हाय! मेरी इज्जत का रखवाला चला गया री। मर्द लोग अर्थी की तैयारी करने लगे। अर्थी उठाने से पहले बिरादरी की महिलाएं चांदनी को लेकर आईं। परशोतम के चेहरे से कफन हटाया ,औरतों ने रोते हुए कहा,’’अरी अंतिम दर्शन करले फिर न तुझे दिखेगा री।’मर्दो की भी़ड़ में कहां वह उसे आखिरी बार आंख भर कर देख सकी न ही उसे इस रुप में देखना चाहती थी। उसके दिल में तो रेडियो के साथ गाने वाले परशोतम की छवि बसी हुई थी। इतने में रिश्ते के एक बुर्जुग ने पत्थर से बड़ी बेरहमी से चांदनी की चूड़ियां तोड़ीं। कुछ कांच के टुकड़े उसकी कलाई मे भी चुभ गए। इस हृदय विदारक दृश्य को देखकर सब रो पड़े। और सुमित्रा भरे गले से आंसू बहाती हुई राजरानी से बोली,’’दीदी भंगेड़ी मुरारी जैसा भी है, भगवान उसे लम्बी उमर दे, बिन्नी चुड़ैल उसे ले गई है। पर मेरे श्रृंगार करने का हक तो मुझसे नहीं ले सकती न।’’ जैसे ही परशोतम की अर्थी उठी। उसी समय काने का मोबाइल बजा’ ’आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं।’ महिलाओं ने रो रो के चांदनी से कहना शुरु कर दिया अरी वो अब लौट के न आने का, न आने का।’ काने ने जल्दी से एक हाथ से अर्थी को कंधे पर सैट किया और दूसरे से मोबाइल बंद किया। क्रमशः        

3 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

मौत लेकिन प्रसंग रोचक लागा

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार