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Saturday 29 August 2020

सजाया घर को दुल्हन सा, गजानन घर में आएं हैं Ganpati Bappa Morya Neelam Bhagi Part 1 गणपति बाप्पामोरया भाग 1 नीलम भागी




अरुणा ने आज चहकते हुए घर में कदम रक्खा और बड़ी खुशी से मुझे बताया,’’दीदी मेरे बेटे ने कहा कि इस गणपति पर वह मुझे सोने की चेन लेकर देगा।’’मैंने पूछा कि तेरे बेटे की बढ़िया नौकरी लग गई हेै क्या?" वो बोली,’’नहीं दीदी, मेरा बेटा बहुत अच्छा ढोल बजाता है। बप्पा को ढोल, नगाड़े बजाते, नाचते हुए लाते हैं  और ऐसे ही विसर्जन के लिए ले जाते हैं। इन दिनों बेटे की सूरत भी बड़ी मुश्किल से देखने को मिलती है पर गणपति बप्पा उस पर बड़ी मेहरबानी करते हैं।’’ और बिना कहे गाते हुए ’सजा दो घर को दुल्हन सा, गजानन मेरे घर में आएं हैं ’ घर का कोना कोना चमकाने लगी। मेरा मुम्बई में यह पहला गणपति उत्सव था। मेरे मन में बड़ा उत्साह था कि मैं स्वतत्रंता सेनानी समाज सुधारक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा रोपा पौधा सार्वजनिक गणेश उत्सव, जो आज विशाल वट वृक्ष बन गया है उसे मुम्बई में मनाउंगी। आज जिसकी शाखाएं पूरे देश में जम गईं हैं और ग्यारह दिनों तक चलने वाला सबसे बड़ा त्यौहार है। तिलक ने हमारे अग्रपूज्य, दक्षिण भारत के कला शिरोमणि गणपति को, 1893 में पेशवाओं के पूज्यदेव गजानन को बाहर आंगन में विराजमान किया था। आम आदमी ने भी, छुआछूत का भेद न मानते हुए पूजा अर्चना की, सबने दर्शन किए। उस समय का उनका शुरु किया गणेशोत्सव, राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बना और समाज को संगठित किया। आज यह पारिवारिक उत्सव, समुदायिक त्योहार बन गया है।

कई दिन पहले जगह जगह लगी अस्थाई दुकानों में बरसात से बचाते हुए, हर साइज के गणपति सजे हुए थे। लोगों की श्रद्धा के कारण मुझे तो मुम्बई में इन दिनों भक्ति भाव का माहौल लग रहा था और महानगर गणपतिमय था।    

हमारी सोसाइटी में बड़ी जगह का इंतजाम किया गया था| उसके लिए कुछ गाड़ियों को दूसरी जगह पार्किंग दी गई। गणपति के लिए वाटर प्रूफ मंदिर बनाया, स्टेज़ बनाई गई और बैठने की व्यवस्था की गई। सभी फ्लैट्स में गणेश चतुर्थी से अनंत चतुदर्शी तक होने वाले बौद्धिक भाषण, कविता पाठ, शास़्त्रीय नृत्य, भक्ति गीत, संगीत समारोह, लोक नृत्य के कार्यक्रमों की समय सूची पहुंच गई थी। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मैं सूची पढ़ती जा रही थी और अपनी कल्पना में, मैं तिलक की आजादी की लड़ाई से इसे जोड़ती जा रही थी। इनके द्वारा ही समाज संगठित हो रहा था, आम आदमी का ज्ञान वर्धन हो रहा था और छुआछूत का विरोध हो रहा था। गणेश चतुर्थी की पूर्व संध्या को सब तैयार होकर गणपति के स्वागत में सोसाइटी के गेट पर खड़े हो गए। ढोल नगाड़े बज रहे थे और सब नाच रहे थे। गणपति को पण्डाल में ले गए। अब सबने जम कर नाच नाच कर, उनके आने की खुशी मनाई। आवाहन से लेकर विर्सजन तक श्रद्धालु, आरती, पूजा, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लगभग सभी उपस्थित रहते। गणपति को कभी अकेला नहीं छोड़ा जाता था। गीता को तो इन दिनों घर में रहना पसंद ही नहीं था। यही हाल उसके हम उम्र सब बच्चों का था। मांए खींच खींच कर इन्हें घर में खिलाने पिलाने लातीं, खा पीकर बच्चे फिर पण्डाल में। रात को ये नन्हें दर्शक, जो प्रोग्राम यहां देखते, दिन में गर्मी की परवाह किए बिना वे उसकी नकल दिन भर स्टेज पर करते। सभी बच्चे इस समय कलाकार होते। दर्शकों की उन्हें जरुरत ही नहीं थी। मुझे बच्चों के इस कार्यक्रम में बहुत आनंद आता। क्रमशः



2 comments:

kulkarni said...

super duper

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार कुलकर्णी जी