जब भी आंधी आती तो हमारे ब्लॉक में हमारी पानी की टंकियों के कारण कोलाहल मच जाता था। उस समय मैं भीष्म प्रतिज्ञा करती कि कल जरुर कबाड़ी को बुला कर, ये पुरानी हजार हजार लीटर की तीनों टंकियां दूंगी। मौसम साफ होते ही दिमाग से टंकियां भी साफ हो जाती। जब नई टंकियां बदलीं थीं तब मैंने पल्ंबर से पुरानी ले जाने को कहा तो उसने कहा कि ये सीढ़ियों से उतरेंगी नहीं। उसने उतारने का लंबा चौड़ा खर्च और ले जाने का टैम्पू का भाड़ा और जोड़ दिया। नौएडा में ऐसे समय में मुझे मेरठ बहुत याद आता है। खै़र उस समय मैंने नहीं उठवाई। फिर भूल गई। अब ये आंधी के समय छत पर लुड़कती, एक दूसरे से टकराती हुई शोर करतीं थीं लेकिन रोज रोज तो आंधी आती नहीं। काफी समय से मेरा छत पर जाना नहीं हुआ था। कोरोना काल में घर में ही रहना है और कड़ाके की ठंड पड़ने से मैं छत पर धूप सेकने गई तो देखा टंकियों की आपस में टकराने से शेप ही बदल गई थी।
बराबर के घर में रिनोवेशन चल रहा था। लेबर लंच के समय में धूप में आग ताप रही थी। हमारी छत पर एकदम स्वस्थ एलोवेरा लगा था जबकि नीचे लगा हुआ एलोवेरा मुर्दे की तरह बेजान सा था। बाकि पौधों की नीचे, मैं खूब देखभाल करती हूं पर बड़े पेड़ों के कारण मनचाहा परिणाम नहीं मिलता है। क्योंकि उन्हें ठीक से धूप नहीं मिलती है। और यहां एलोवेरा में भी फूल लग रहें हैं। ये देखकर मैं टैरेस गार्डिनिंग के बारे में सोचने लगी, जिसका पहला सिद्धांत है कि छत पर भार कम हो। यहां तो एलोवेरा से कंटेनर फट रहे थे। इतने में एक मजदूर ने मुझसे टंकियों की ओर इशारा करके पूछा कि ये प्लास्टिक वह ले जाये। मैं तपाक से बोली,’’हां हां ले जाना।’’छुट्टी के बाद जब वह औजार लेकर टंकियों को काटने लगा तो मेरे दिमाग में टेैरेस गार्डिनिंग ने जन्म ले लिया। मैंने सोचा कि पता नहीं मैं छत पर पौधों की देखभाल कर पाउंगी!! मैं पहले कंटेनर पर कम, अच्छे बीजों और हल्की मिट्टी तैयार करने पर खर्च करती हूं। फल लगे या न लगें। इसलिए शुरुवात पत्तेदार सब्जियों से करती हूं। मैंने उसे कहा कि तुम मुझे आधे या उससे थोड़े कम टंकियां काट कर तीन घेर दे दो। मुझे उनमें पौधे लगाने हैं। कटवाई के मैं तुम्हें पैसे दूंगी। वह बोला,’’लंच और छुट्टी के बाद मै करता रहूंगा। सर्दियों की बरसात थी। धूप नहीं निकल रही थी। एक हफ्ते बाद मैं छत पर गई। तो मुझे तीन बड़े टंकियों के कंटेनर मिले। जिसकी गहराई 10’’ से कम ही थी। और ड्रेनेज होल भी कर रखे थे। उनके नीचे ईंटें लगा रखीं थीं। और ऐसी ऐसी जगह रखे थे जहां सारा दिन धूप रहती है।
इनमें मैंने काट काट के एलोवेरा आधे भाग में भर दी। उपर पॉटिंग मिक्स भर कर मेथी, पालक, सरसों, धनिया बो दिया। बथुआ अपने आप उग गया। इतने स्वस्थ पौधे हैं कि देख कर मन खुश हो जाता है।
सीढ़ियां चढ़ने में जरा आलस नहीं आता। दिन में दो बार मैं उन्हें देखने जाती हूं। रोज कुछ न कुछ तोड़ कर लाती हूं।
No comments:
Post a Comment