पार्किंग के बाद अंकुर टिकट लेने चले गए।
यहां सबके मास्क लगे हुए थे। 3 दिन लगनेवाला मेला इस बार 3 सप्ताह के लिए लगा है। खूब भीड थी शायद कोरोना के लंबे दौर के कारण लोग बोर हो चुके थे और यहां खूब एंजॉय कर रहे थे। मुंह पर मास्क था पर बहुत चहक रहे थे। भीड़ देख कर खुशी से बच्चे बेमतलब इधर से उधर और उधर से इधर भाग रहे थे। अंकुर ने अदम्य की दोनों बाहों पर अपना फोन नम्बर लिख कर
समझाया कि अगर खो जाओ तो वहीं खड़े रहना। सिक्योरटी को दिखा कर कहा कि जिन्होंने ऐसी यूनीर्फाम पहनी होंगी वे सिक्योरटी हैं उन्हे फोन नम्बर दिखा देना वो हमें फोन कर देंगे, हम तुम्हें आकर ले जायेंगे। घबराना नहीं। अब तो अदम्य आपे से बाहर हो गया। मौका देखते ही जिधर दिल करे भागे। पकड़ कर लाएं और उसे डांटे तो वह हमें बांह दिखा कर समझाए कि घबराओ नहीं जब मैं खो जाउंगा तो अंकल को फोन नम्बर दिखा दूंगा। वो आपको बुला देंगे। हम हैंगिंग बास्केट पर अटके तो बच्चे फ्लोरल, जानवर, पक्षियों और मोन्यूमैंट को खड़े निहारते जा रहे थे। बहुतायत में यहां प्रेमी युगल थे।
वे जम कर सेल्फी ले रहे थे। अदम्य को सू सू आ गया तो सब टॉयलेट गए। महिला प्रसाधन बने तो अच्छे हैं पर गंदे थे।
शायद खाली न रहने के कारण सफाई नही हो पा रही थी। पर शीशे और वॉशवेसिन एकदम साफ थे। हैण्डवाश भी रखा था। लड़कियां आते ही फिर से मेकअप लगाने के लिए चेहरा धोतीं। टिशूपेपर से चेहरा साफ करके कहां फैंके? डस्टबिन था ही नहीं। अब घर से लड़कियां टॉवल तो लेकर चलती नहीं। कर्मचारी बोलती,’’ यहीं फैंक दो न, हम बाद में झाड़ू लगा देंगी।’’ एक लड़की ने तो डस्टबिन न होने पर ’देश स्वच्छ क्यों नहीं रह पाता?’, इस पर व्याख्यान देना शुरु कर दिया। मैंने तो रुक कर सुना नहीं क्योंकि मैं तो गार्डन उत्सब में प्रकृति के रंग देखने गई थी और सजाने वालों की रचनात्मकता! बेकार टायरों का इतना सुंदर उपयोग!!
जिसे देख कर कोई ये नहीं बहाना कर सकता कि र्गाडनिंग महंगा शौक है हम इसलिए नहीं करते क्योंकि कंटेनर बहुत महंगे आते हैं। या हमारे पास जगह कम है। हमारे पास जगह नहीं है। ध्यान से देखते हुए घूमों तो हमारे हर प्रश्न का जवाब मिल रहा था। साथ ही पीने के पानी की उचित व्यवस्था थी साथ में पेपेर ग्लास भी रखे थे। थकने पर बैठो फिर देखो। क्रमशः ़
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