Search This Blog

Tuesday 6 July 2021

खाने की र्बबादी और महिलाएं !! नीलम भागीClean your plate---Reduce food wastage. Neelam Bhagi

बहुत यात्राएं करती हूं अक्सर मैंने राजधानी गाड़ी में देखा है कुछ महिलाएं खाना सर्व होते ही आसपास पूछतीं हैं कि किसी को चावल या रोटी चाहिए। जिसको जरुरत होती है वो ले लेता है। अगर कोई न लेने वाला हो तो वे रोटी या परांठे का पैकेट पर्स में रख लेतीं हैं और चावल खा लेतीं हैं। मजा़ल है जो उनकी नाश्ते या खाने की ट्रे में एक टुकड़ा भी जूठा पड़ा हो। जो भी फालतू होता है उसे निकाल कर अपने पर्स में रख लेतीं हैं। मैं ये देख कर मन ही मन उनकी सराहना करती हूं कि इन्होंने खाने को जूठा न छोड़ कर कचरे में जाने से बचाया है और ये कचरा तो पर्यावरण को ही दूषित करता है। डिनर के बाद जब सहयात्री बतियाते हैं तो मैं तारीफ़ करते हुए कहती हूं कि मुझे आपकी जूठा न छोड़ने की आदत बहुत अच्छी लगी।




ये सुनते ही उनके अब तक जवाब बहुत अच्छे मिले हैं। मसलन कुछ लोगों के लिए जूठा छोड़ना तमीज़ है। ग़वार लोग जूठा छोड़ कर ये जताना चाहते हैं कि वे बहुत खाते पीते घर के लोग हैं। और खा खाकर अघाए हुएं हैं। अगर वे थाली में कुछ छोड़ेंगे नहीं, तो दूसरों को लगेगा कि पता नहीं ये कब से भूखा है! नहीं जानती कि कैसे ये घटिया सोच इनकी खोपड़ी में जम गई है। सब को अपनी भूख पता होती है। फालतू खाना, खाने से पहले ही निकाल दो। ’उतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाए नाली में।’अब देखिए न, खाना बनाने में समय लगता है, पैसा लगता है और मेहनत लगती है। पर किसी की गलत सोच उसे कचरे में बदल देती है। ये कचरा पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है। हम वातानुकूलित डब्बे में सफ़र कर रहें हैं। ये जो हमने सूखा खाने का सामान निकाल कर रखा है। ये खराब तो होगा नहीं। जहां गाड़ी ज्यादा देर के लिए रुकेगी, गेट पर खड़े होते ही भिखारी आ जाते हैं उन्हें दे देगे। अगर किसी कारणवश नहीं दे पायी तो ये मेरे साथ घर जायेंगे। ( दिल्ली से मुंबई की गाड़ी थी) वह कुछ सोच कर कहने लगी,’’ वह वापी पर उतरेगी तब तक शायद नाश्ता सर्व नहीं होगा। घर जाते ही पैकेट में रोटी, परांठा जो भी है उसके तिकोने पीस काट कर, एयर फ्रायर में रख कर ऑन कर दूंगी। फ्रेश होकर आउंगी तब तक ये कुरकरे हो जायेंगे। कॉफी बना कर, इस नमकीन और फ्रीज़ से मनपसंद की डिप लेकर कुरकुरे रोटी के टुकड़े चिप्स की तरह मजे़ से खाउंगी।’’ अब टॉपिक बदला, बची हुई रोटियों से क्या क्या बन सकता है, इस पर चर्चा शुरु हो गई।

ये सुनकर एक सज्जन बोले,’’ये ताज़ी रोटी से भी तो बन सकता है क्योंकि मेरी पत्नी तो ताजा़ खाना उस समय बनाती है जब हमने खाना हो इसलिए कभी फालतू बनता ही नहीं है।’’ ये सुनते ही उनकी पत्नी ने जवाब दिया,’’दाल सब्ज़ी कभी ज्यादा हो जाती है तो अगर मुझे उसका अगले समय इस्तेमाल करना हो या उससे परांठे बनाने हों तो तुरंत ठंडा करके फ्रिज़ में रख देती हूं। वरना बाई, चौकीदार या प्रेसवाले को तुरंत दे देती हूं। कभी भी दो तीन दिन की बासी करके किसी को नहीं देती। बचपन से हमने सीखा है कि खाना भगवान का प्रसाद है और प्रसाद को फेंका नहीं जाता।’’            


4 comments:

Unknown said...

बढिया लिखा है, सत्य व तथ्य परक जानकारी

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार

Raj Sharma said...

यह अवधारणा हमें संस्कार रूप में प्राप्त रही। है कि भजन प्रसाद मात्र होता है। लगता है कि हमारी पीढ़ी से इस मान्यता का ह्रास होना आरंभ हुआ है। इसे पटरी पर फिर से लाने का आप का प्रयास सराहनीय है । मंजिल दूर भी है और कठिन भी। मेरी शुभकामनाएं ।

Good Indian Girl said...

Bahaut badhiya baat nahi hai.