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Friday, 29 July 2022

भूतेश्वर तीर्थ रानी तालाब और रुपया चौक जींद भाग 8 हरियाणा नीलम भागी Jind Haryana Part 8

        पुरानी सब्ज़ी मंडी मोड़ से गुजरे तो चौक  पर स्टील से बना रुपया और ईंट लगी देखकर बहुत हैरानी हुई। नाम भी उसका रुपया चौक है। क्लॉसिक लाइटें लगी हुई हैं। पता चला पहले यहां खाली पड़े इस चौक पर पशु खड़े रहते थे जो आते जाते वाहनों की चपेट में आने से घायल हो जाते थे। अखिल भारतीय अग्रवाल समाज जिला जींद ने 2007 में इस चौक का सौंन्दर्यकरण करवाना शुरु किया, जिसका नतीज़ा यह है कि रुपया चौक सबका ध्यान आकर्षित करता है। 


    अब हम रानी तालाब की ओर चलते हैं। स्वर्ण मंदिर की तर्ज पर जींद रियासत के राजा रघुबीर सिंह द्वारा सरोवर में श्री हरि कैलाश मंदिर का निर्माण करवाया गया था। कहा जाता है कि राजा ने महल से तालाब को जोड़ती हुई एक सुरंग बनवाई थी। रानी यहां आकर स्नान पूजा करती थी। इसलिए इसका नाम रानी तालाब बन गया। मंदिर में देवी देवताओं की मूर्तियां हैं। यहां बंदर भी खूब हैं। 1970 में ’पवित्र पापी’ फिल्म का गाना ’तेरी दुनिया से होके मजबूर चला, मैं बहुत दूर बहुत दूर चला’ का यहां  शूट हुआ था। जब पानी की व्यवस्था ठीक रहती है तो यहां बोटिंग की जाती है।







12 जून को 45 डिग्री तापमान था। 4:00 बजे तो ज्यादा ही होगा।  अच्छे मौसम में फिर से ऐतिहासिक जिला जींद के पर्यटन स्थलों का भ्रमण करने आउंगी। मैंने मन में सोचा और हम नौएडा की ओर चल दिए। अक्षय कुमार अग्रवाल जी तो रात को नरवाना चले गए थे। सुबह सत्र के समय आ गए थे। रास्ते में उनका यात्रा वृतांत सुनना है। पर वे तो भुवन सिंघल जी से कविता सुनने की फरमाइश करते जा रहे थे। मंच लूटने वाले कवि भुवनेश सिंगल जी को कैसे छोड़ा जा सकता है कविता सुने बिना!


Thursday, 28 July 2022

श्री जयन्ती देवी मंदिर(सिद्धपीठ), जीन्द भाग 7 नीलम भागी

 


12 जून दोपहर 3 बजे अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, उत्तर क्षेत्रिय अभ्यास वर्ग के समापन के पश्चात  अक्षय कुमार अग्रवाल, भुवनेश सिंगल, राजकुमार जैन और मैं, जयंती देवी मंदिर के लिए निकले। भीषण गर्मी होने से सड़के भी खाली थीं। मन में मंदिर के बारे में जो सुना था वह सब याद आ रहा था। मंदिर के नाम से ही जिले का नाम जींद पड़ा। आज यह प्राचीन मंदिर जिले के आर्कषण का केन्द्र है। लोगों की मंदिर में गहरी आस्था है। हमें दूर से मंदिर का मुख्यद्वार बंद लगा। यह सोच कर गाड़ी से उतरे कि बाहर से ही इस पवित्र स्थान पर माथा टेक कर लौट जायेंगे। बाहर विशाल वट वृक्ष था। उसके चबूतरे पर बैठ कर मंदिर को देखने लगे। प्रवेश द्वार पर दोनो ओर माता की सवारी शेर और ऊपर बंजरंग बली विराजमान हैं। बाएं हाथ पर अन्नक्षेत्र जहां 1.30 बजे तक भोजन मिलता है। एकदम ध्यान में आया कि गेट पर ताला नहीं था। गेट तो हाथ लगाते ही खुल गया। हम विशाल मंदिर प्रांगण में पहुंच गए। और दूर से दर्शन भी किए। मंदिर में शिवजी, गणपति, लक्ष्मी जी और स्थानीय लोकदेव व बालसुंदरी की मूर्तियां भी हैं। यज्ञशाला अलग से है। मंदिर का एक पार्क और जयंती पुरातत्व संग्रहालय भी है।






 मंदिर की स्थापना से जुड़ी कई कथाएं हैं। वामन पुराण, नारद पुराण और पद्म पुराण में भी जींद का उल्लेख मिलता है। यहां कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय भी देव सेनापति जयन्त ने यहाँ दानवों से अमृत कलश पाने के लिए इसी स्थान पर पूजा अर्चना कर विजय का आर्शीवाद मांगा था और अमृत कलश को देवताओं के पास पहुँचाया था। इसके बाद महाभारत काल में पांडवों ने यहाँ पर विजय के लिए जयंती देवी(विजय की देवी) की पूजा की थी। विजयी होने पर जयंती देवी मंदिर का निर्माण करवाया। जयंती देवी मंदिर के नाम से इसका नाम जयंताय प्रस्थः रखा गया था। समय के साथ जयंतीपुरी का नाम बदलकर जीन्द हो गया। 

इसके बाद महाराजा जीन्द ने लजवाना गांव विजय के बाद यहां पर एक राजराजेश्वरी मंदिर का निर्माण करवाया था। 


  एक दंतकथा भी प्रचलित है जो इस प्रकार है यहां के राजा के एक भाई का विवाह कांगड़ा के राजा की बेटी से हुआ। कन्या जयंती देवी की बहुत भक्त थी। विवाह के समय वह बहुत चिंतित थी क्योंकि वह देवी से दूर नहीं जाना चाहती थी। उसने प्रार्थना की और अपना दुख देवी को बताया। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर जयंती देवी, उसके सपने में आयीं और कहा कि वह उसके साथ जायेंगी। शादी के बाद जब दुल्हन की डोली चली तो अचानक उसकी डोली बहुत भारी हो गई। दुल्हन ने अपने पिता को अपना सपना बताया। उन्होंने तुरंत दूसरी डोली सजा कर उसमें जयंती देवी की मूर्ति को विराजमान किया। बेटी के साथ उसकी अराध्य जयंती देवी को भी साथ भेजा। राजा ने जयंती देवी मंदिर का निर्माण कर उसमें मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की।    

  आज भी भक्तजन अपने मनोरथों को पूर्ण करने के लिए मंदिर में यज्ञ, पूजा-अर्चना व भण्डारे आदि का आयोजन करते हैं। विशेष दिनों में यहां मेले जैसा माहौल होता है। क्रमशः 





Wednesday, 27 July 2022

भारतीय साहित्य की परंपरा नीलम भागी भाग 6 Part 6 Neelam Bhagi

 

    आयोजन के दूसरे दिन पहले सत्र में राष्ट्रीय महामंत्री ऋषिकुमार मिश्र द्वारा भारतीय साहित्य परंपरा पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। उन्होंने कहा कि अपनी उदात्त परम्पराओं को पुष्ट करने वाला साहित्य ही कालजयी साहित्य होता है। डॉ. मनीषी ने भी इसका पूरक वक्तव्य दिया। इसके बाद प्रो. नीलम राठी राष्ट्रीय मंत्री ने सभी साहित्यकारों को अपने दायित्वों के प्रति जागरण, मूल्यांकन के लिए कार्यक्रम, संगठन, कार्यकर्ता, साहित्य व विस्तार के विविध पहलुओं से संबंधित 45 प्रश्नों पर चर्चा की।
ऋषिकुमार मिश्र द्वारा प्रशिक्षण के तात्त्विक सार, पाथेय और भविष्य के लक्ष्यों के निर्धारण के साथ प्रशिक्षण सत्र का समापन किया गया। प्रान्तीय अध्यक्ष प्रो. सारस्वत मोहन मनीषी ने आशा भरे शब्दों से सभी को सक्रियता का सन्देश दिया। उन्होंने अपने स्वभाव के अनुरूप स्थान स्थान पर अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम के सभी सात बौद्धिक सत्रों का संचालन प्रान्तीय महामन्त्री डॉ योगेश वशिष्ठ द्वारा किया गया।
समापन अवसर पर मंचस्थ अधिकारियों ने दिल्ली सहित करनाल, कैथल, कुरुक्षेत्र, चरखी दादरी, गुरुग्राम, जींद, पानीपत, भिवानी, रेवाडी, सिरसा, सोनीपत आदि सभी इकाइयों से आए प्रतिभागियों को स्मृति चिह्न और सहभागिता प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया।






इस कार्यक्रम में मेज़बान प्राचार्य डॉ. राममेहर रेढु, प्रान्तीय मार्गदर्शक डॉ. पूर्णमल गौड़, कार्यकारी अध्यक्ष रमेशचंद्र शर्मा, उपाध्यक्ष रामधन शर्मा, कोषाध्यक्ष हरीन्द्र यादव, संगठन मन्त्री डॉ. मनोज भारत, संयुक्त मन्त्री डॉ. जगदीप राही, दिल्ली प्रान्तीय महामन्त्री डॉ. भुवनेश सिंहल, जय सिंह आर्य, विनोद बब्बर ने विविध सत्रों में अपना सान्निध्य प्रदान किया। प्रान्तीय प्रचार मंत्री शिवनीत इस आयोजन में मौन भाव से कार्यक्रम की रीढ़ बने रहे। जींद इकाई अध्यक्ष डॉ. मंजुलता ने सभी के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया। डॉ योगेश वशिष्ठ द्वारा परिषद परम्परानुसार प्रस्तुत कल्याण मंत्र से सफल अभ्यासवर्ग सम्पन्न हुआ।
दो सत्र के बीच के टी ब्रेक में  प्रतिभागियों के साथ हमारे  आदरणीय कुर्सियां छोड़ कर, नीचे आलती पालती मार के बहुत अपनेपन से बैठ जाते। हम जो जानना चाहते, जो पूछते ये बताते । क्योंकि संकोचव प्रश्नोत्तर काल में नहीं पूछ पाते थे 

ऋषि कुमार मिश्र जी समझाते समय उदाहरण बहुत अच्छे दे रहे थे। मिश्र जी ने पांच बौद्धिक सत्रों में प्रशिक्षित किया।  कहीं भी उबाऊपन नहीं लगा।
एक महिला ने मुझे बहुत ध्यान से देखा फिर बोली," आपने तो 1 ग्राम भी सोना नहीं पहना हुआ है।" मैंने जवाब दिया," मेरे पास नहीं है।" फिर उसने और अच्छी तरह मेरा मुआयना किया और कहा," खरीद लो।" ये सुन कर, मैं खिलखिला कर हंस पड़ी। अब सोच रही हूं कि मैं क्यों हंसी थी! मुझे लगता है कि दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में जो मैंने महसूस किया। वह सोना धारण करके तो मेरी आत्मा को कभी नहीं मिलता। हां हैंडलूम के कपड़े, साड़ी पहनना मुझे खुशी देता है।
लंच के बाद हम ऐतिहासिक जिला जींद के पर्यटन स्थल देखने के लिए निकले। क्रमशः

Monday, 25 July 2022

परिषद के कार्यक्रम और भव्य कवि सम्मेलन भाग 5 नीलम भागी Part 5Neelam Bhagi


    परिषद के कार्यक्रम’ सत्र की मुख्य वक्ता प्रो. नीलम राठी ने परिषद के तीन अनिवार्य कार्यक्रमों सहित सामयिक कविता, संगोष्ठी, पुस्तक चर्चा आदि के सम्बन्ध में विस्तार से बात रखी। उन्होंने साहित्य संवर्धन यात्रा व परिषद द्वारा इनके प्रकाशन की बात बतलाने सहित साहित्य परिक्रमा की सदस्यता बढ़ाने व इसमें अपनी रचनाएँ भेजने का आवाहन किया। कार्यक्रम के सूत्रधार डॉ. योगेश वासिष्ठ ने इस अवसर पर जानकारी दी कि हरियाणा में तीन नहीं अपितु प्रत्येक तिमाही आधार पर नव संवत्सर, व्यास जयंती, वाल्मीकि जयन्ती व वसन्त पंचमी के चार कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।


परिषद कार्य विस्तार सत्र में राष्ट्रीय महामन्त्री ऋषि कुमार मिश्र जी ने बतलाया कि 27 राज्यों में परिषद की 695 इकाइयाँ कार्य कर रही हैं। प्रदेशों में प्रान्त, प्रान्त में ज़िला, तहसील व इकाई स्तर पर कार्य हो रहा है। देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी साहित्य संवर्धन यात्राएँ हुई हैं। प्रश्न चर्चा के दौरान प्रवास को भी कार्य विस्तार के लिए महत्त्वपूर्ण माना गया।


राष्ट्रीय प्रचार मन्त्री प्रवीण आर्य ने इस अवसर पर जानकारी दी कि इस वक्त परिषद कार्यकर्ता अपनी विदेश यात्राओं के दौरान वहाँ परिषद के बैनर तले कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। वहाँ साहित्य परिक्रमा भी भेजी जाने लगी हैं, जिससे विश्व स्तर पर इसका प्रसार हो रहा है। इस दृष्टि से उन्होंने अमेरिका में सुनीता बग्गा के योगदान का विशेष उल्लेख किया।

रात्रिकालीन सत्र में भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता ओज के सशक्त हस्ताक्षर हरियाणा प्रान्तीय अध्यक्ष प्रो. सारस्वत मोहन मनीषी ने की। हास्य-व्यंग्य की फुलझड़ियों तथा ओज की बुलंदियों के आरोहण-अवरोहण के स्वरों से युक्त सधा हुआ मंच संचालन डॉ मनोज भारत द्वारा किया गया। कवि सम्मेलन की शुरुआत डॉ. जगदीप राही द्वारा की गई सरस्वती वंदना से हुई। जय सिंह आर्य, हंस राज रल्हन, कर्मवीर तिगड़ाना, नाहर सिंह दहिया और डॉ सुरेश पंचारिया ने अपनी रचनाओं के माध्यम से दुश्मन पड़ोसियों को ललकारा तो अखिलेश द्विवेदी, सत्यपाल पराशर ओर महेंद्र सिंह सागर द्वारा प्रस्तुत की गई गजलों के अशआर भी खूब सराहे गए। डॉ. शकुंतला शर्मा, भारत भूषण वर्मा, अनूप अनजान, डॉ. कविता और मोनिका शर्मा के शृंगारिक प्रतीक भी सभी के कोमल भावों को उद्वेलित करने में सफल रहे। इस कवि सम्मेलन में 21 कवियों ने सहभागिता की। कवि सम्मेलन की सबसे बड़ी विशेषता उसका सरस होने के साथ-साथ चिंतनपरक और राष्ट्र जागरण के संदेश से युक्त रहा। हरीन्द्र यादव ने जब लोकछन्द माहिया में राष्ट्रीयता के प्रतीकों को पिरोया तो श्रोता झूमने को मजबूर हो गए। अधिक समय होने पर भी प्रो. सारस्वत मोहन मनीषी के स्वर जब मंच पर गूँजे तो श्रोता उत्साह से सराबोर हो गए। छोटी बहर की उनकी ग़ज़ल एक आँख रानी, एक आँख पानी। तृप्ति है बुढापा, प्यास है जवानी पर तो श्रोता साथ-साथ काव्य पाठ करने लगे।



   डिनर के बाद  हम  8 महिलाएं एक हॉल में सोने के लिए गईं। पर सोने की किसी को भी जल्दी नहीं थी। सत्र के बीच में ऋषि कुमार मिश्र जी ने परिचय तो सबका करवा ही दिया था। हमने ज़रा भी समय गवाएं बिना अंताक्षरी शुरू कर दी। कोई सोफे पर लेटा है,कोई गद्दे पर तो कोई खड़ा है। 4,4 की टीम में जबरदस्त मुकाबला हुआ। मजेदार बात यह कि एक भी गला बेसुरा नहीं था। डॉ शकुंतला शर्मा इस आयु में भी ने सधी हुई आवाज में गा रही थी और ऐसे ऐसे गीत निकाल रही थी कि जो किसी ने सुने ही नहीं थे। मैं गीतों की बहुत शौकीन हूं इसलिए मैंने सुने हुए थे। मोनिका शर्मा की तो आवाज बिल्कुल अलग तरह की  बहुत अच्छी है। एक श्रीमान शायद हाल के आगे से गुजर रहे होंगे, आवाज सुनकर अंदर आए, और बैठ गए, पर मुकाबला वैसे ही चलता रहा। इंदु दत्ता तिवारी कुछ जरूरी काम में लग गई तो वह सज्जन ने भी भाग लेना शुरू कर दिया। रात के 1:30 बजे वह बोले," अच्छा अब मैं चलता हूं।" तो सबने बस ओके कहा और वह चले गए। मैंने दरवाजा बंद कर दिया। मीनाक्षी गुप्ता ने पूछा," यह कौन था?"सब ने कोरस में जवाब दिया," पता नहीं।" फिर सब बोलीं कि हम तो सोचते रहे किसी का पहचान का होगा, कुछ देना या लेना भूल गया होगा। फिर सब खूब हंसी। मुकाबला फिर शुरू। डॉ. कविता और श्रुति शर्मा इन्हें तो कोई हरा ही नहीं सकता। दोनों अलग टीम में , लग रहा था कि कोई भी टीम नहीं हारेगी।  सुबह हो जाएगी तब विधु कालरा जी ने गेम समाप्त करवाया। मैं तो 3:00 बजे सो गई थी। 4:30 मेरी नींद खुली तो देखा ये तैयारी कर रही है जींद घूमने की क्योंकि 9:00 बजे से सत्र शुरू था तो मोनिका शर्मा, श्रुति शर्मा, डॉ. कविता  बाद में रुकने के बजाय पहले से   घूमने का काम करने को चल दीं ताकि सत्र से पहले आ जाए। हमारे लिए खूब तेज मीठे की चाय आ गई। उस चाय को  पीकर हमारे अंदर एनर्जी आ गई। अब हम पांचों की बतरस गोष्टी शुरू हो गई। ये गोष्ठी इतनी मनोरंजन थी कि फ्रेश होने जो भी जाता था फटाफट तैयार होकर आ जाता था ताकि वह कुछ मिस न कर दे। तीनों घूम कर आ गईं। अचानक पता चला कि कोई हाथ देखना जानता है। अब सबको अपने भविष्य की जानकारी लेनी थी तो उन सज्जन लेकर आ गई और सब ने नंबर लगा लिया । जिसका नंबर आता वह हस्त रेखा विशेषज्ञ के आगे अपना हाथ फैला कर जानकारी लेता। नाश्ता लग गया। डिनर से लेकर ब्रेकफास्ट तक जो हमारा आपस में सत्र चला था इसको क्या नाम दूं!



   अब 12 जून के पहले सत्र के लिए चल दीं। क्रमशः


 


 

Saturday, 23 July 2022

संस्कृति संरक्षण अभियान उत्तर क्षेत्रिय अभ्यासवर्ग भाग 4 नीलम भागी Part 4 Neelam Bhagi


सत्यराज लोक कला सदन हरियाणा की प्राचीन ग्रामीण लोक कला और संस्कृति को सुरक्षित रखने का प्रयास   

      यहां कपूरथला पंजाब में नानी के घर बचपन में उपयोग होने वाली लगभग सभी वस्तुएं थीं। मैं तो नौएडा में भी हमारी गाय गंगा, यमुना साथ लाई थी इसलिए मुझे सबसे पहले वे वस्तुएं नज़र आईं जो दूध के लिए इस्तेमाल होती थीं। कुछ के नाम मैं हिंदी में नहीं जानती क्योंकि उन्हें दादी और अम्मा जो पंजाबी में कहतीं थीं, वही मैं जानती हूं। आंगन में एक तरफ पड़ोली रखी रहती थी। जिसमें उपला(गोबर का कंडा) कोई न कोई डालता रहता था, उस पर बड़ी चाटी(मिट्टी की हण्डिया) दूध से भरी कढ़ती रहती थी। ये बदामी रंग का, धुएं की महक वाला दूध, पीतल के कंगनी वाले गिलास में गुड़ की डली के साथ पीना याद आने लगा। बचा दूध बड़ी चाटी में जमाया जाता। सुबह हाथ से बुनी पीढ़ी पर बैठ कर दहीं की मात्रा के हिसाब से मथनी का चुनाव होता, पुड लगा कर दोनों पैरों के अंगूठे उस पर टिका कर दहीं बिलोया जाता।



उसकी लय में नींद बहुत गहराने लगती, साथ ही साथ दादी का लड़की की जात पर भाषण शुरु हो जाता। अम्मा कानों से लैक्चर सुनते हुए जब तक मक्खन नहीं आ जाता, हाथ नहीं रोकती थी। नींद भगा कर उठते। जल्दी जल्दी काम में हाथ बटा कर, मक्खन रोटी और छाछ का ब्रेकफास्ट करके कॉलिज जाते। कांसे पीतल के बर्तन देख रही थी दादी याद आ रही थी जिसने अपने जीते जी लोहे(स्टील) के बर्तन नहीं आने दिए। बल्टोई देखकर लड़ाकी कृष्णा याद आई। उसका दूध बल्टोई में दूहते थे क्योंकि अगर उसकी लात पड़ी तो बल्टोई से ज्यादा दूध नहीं गिरता था। कंचे अब बच्चों को देखने को नहीं मिलते, यहां दिखे। ट्रांजिस्टर, रेडियो। लालटेन घर से बाहर खिड़की के आगे लटकी हुई जिससे कमरे में और बाहर भी रोशनी फैले।

      महिलाएँ कुछ भी बरबाद नहीं करतीं। बेकार कागज़ और मुल्तानी मिट्टी से लुगदी बना कर उससे टोकरियां बनातीं। ये टोकरियां नाज़ुक होतीं हैं इसलिए उसमें रुई की पुनिया और चरखें से काता सूत रखतीं थीं। कुछ महिलाओं में तो इतनी रचनात्मकता होती है कि वे घर की दीवारों और इन टोकरियों पर भी बेल, बूटे, फूल, पत्तियां, परिंदे बना देतीं हैं।



खजूर के पत्तों आदि से बने टोकरे टोकरियाँ देखीं। जब प्लास्टिक की तारे आ गईं तो उनसे बनी हैंण्डिल वाली खरीदारी करने के लिए डोलचियां भी रखीं थीं। तकड़ी(तराजू) यह आजकल सिर्फ कबाड़ियों के पास ही मिलता है।

दरातियां, रम्बे, गेहूँ छानने की छन्नियाँ, गंडासे, पत्थर की चक्की। खड़ाउं,

जोगियों के हाथ में रहने वाला वाद्ययंत्र जिसे तूंबा कहा जाता है। वो भी रखा था। किसी भी शुभ कार्य में महिला संगीत में तूंबे पर कोरस वाला गीत ज़रुर गाया जाता था।

कंचे
साधूवाद सत्यराज लोक कला सदन गांव ढिगाना जिला जींद को जिनके द्वारा किया गया है।   

 इस प्रदर्शनी को डिमोस्ट्रेशन करने वालों के लिए हार्दिक धन्यवाद करती हूं। मैंने तो कुल 30 मिनट उसे देखने में उनसे बातचीत करने में लगाए। उस समय मैं अकेली ही देख रही थी। उन्होंने मेरी तस्वीरें भी खींची। वे तो शाम तक भीषण गर्मी में प्रर्दशनी लगा कर बैठे थे। लंच अभी चल ही रहा था। मैं प्रशिक्षण हॉल में आई। ब्रेक में सब आपस में बतिया रहे थे। मैं भी बतरस में शामिल हो गई। 2.30 बजते ही सब अगले सत्र जिसका विषय था ’परिषद् के कार्यक्रम’ के लिए हम अपनी सीटों पर आकर बैठ गए। क्रमशः 


Friday, 22 July 2022

उत्तर क्षेत्रिय अभ्यासवर्ग भाग 3 नीलम भागी Part 3 Neelam Bhagi

 


           सड़क का रास्ता मुझे सदा अच्छा लगता है क्योंकि इससे शहर का परिचय हो जाता है। जींद की सीमा से पहले खूब बंदर सड़क के दोनो ओर थे।


शहर में घुसते ही भीड़ भाड़ वाला पुराना शहर है। कहीं सड़क के किनारे ही चारा मशीने लगी हुई हैं। भीषण गर्मी में भी हरे चारे से लदे हुए ट्रैक्टर की ट्रालियां खड़ी थीं। इसका मतलब है कि घर में गाय भैंस पाल सकते हैं क्योंकि चारा आस पास ही मिल जाता है।


कहीं सड़क के किनारे परिवार खजूर के पत्तों से झाड़ू बना और बेच रहे थे।

सम्पन्न शहर है दुकाने सामान से भरी हुईं थी और खरीदार भी थे। हुक्के की दुकाने भी आई जिसमें तरह तरह के हुक्के सजे हुए थे।


प्रशिक्षण शिविर में समय पर पहुंचने की जल्दी में मैं गाड़ी से नहीं उतरी। हुक्कों की तस्वीरें लेती रही। राजकुमार जी तम्बाकू की किस्में बताते रहे। रेलवे स्टेशन से छोटूराम किसान महाविद्यालय एक किमी दूर था। अब हम पहुंच चुके थे। आस पास बीजों की दुकाने देख कर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने सोच लिया था कि लौटते समय बीज खरीदूगीं। समय पर पहुंचने की कोशिश में हम रास्ते में कहीं चाय के लिए भी नहीं रुके क्योंकि नरेला मार्ग में निर्माण की वजह से वन वे ट्रैफिक होने से हम काफी लेट हो गए थे। महाविद्यालय सड़क पर ही है। पहुंचते ही हमने पंजीकरण करवाया। सभी आगंतुकों का अक्षत -रोली व तिलक के परम्परागत अभिनंदन



सहित महाविद्यालय प्राचार्य प्रो. राममेहर रेढु तथा जींद इकाई अध्यक्ष डॉ. मंजू रेढु ने हरियाणा, दिल्ली व कश्मीर से साहित्य परिषद के कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों का मंच पर भी विशेष सम्मान किया। पदाधिकारियों व अतिथियों के स्वागत के लिए पूरे महाविद्यालय परिसर को हरियाणवीं सांस्कृतिक प्रतीकों से सजाया गया था। आयोजन की शुरुआत माँ सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख अतिथियों द्वारा द्वीप प्रज्वलित कर की गई। डॉ. क्यूटी ने सरस्वती वंदना की और परिषद गीत का गायन किया।

          राष्ट्रीय महामंत्री ऋषि कुमार मिश्र ने कहा कि परिषद के साहित्यकारों का लक्ष्य सदैव लोक मंगल की भावना से युक्त होना चाहिए। विचारहीन साहित्य क्षणिक होता है। दूसरे सत्र में उन्होंने नए कार्यकर्ताओं के जुड़ाव, लक्ष्य के प्रति निष्ठा, संगठन में आने वाली बाधाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। स्थानीय इकाइयां ही किसी भी संगठन के मूल क्रियात्मक संघटक होते हैं। परिषद प्रसार के लिए प्रत्येक पदाधिकारी को अपना उत्तराधिकारी कार्यकर्ता अवश्य बनाना चाहिए। प्रांतीय अध्यक्ष प्रो. सारस्वत मोहन मनीषी ने सभी कार्यकर्ताओं से परिषद दायित्वों का तन्मयता से निर्वहन करते हुए राष्ट्र जागरण में जुट जाने का आवाहन किया।

         एक घण्टे का लंच ब्रेक था। महाविद्यालय में जब प्रवेश किया था तो मुझे दूर से विशाल बरगद के पेड़ के नीचे प्रदर्शनी सी दिखी थी। मैंने सोच रखा था लंच के बाद वहां जाकर देखूंगी। सुस्वादु भोजन के बाद मैं चल दी। गर्म लू के थपेड़े लग रहे थे। ग्रिल से बाहर मैं हैरान होकर प्रदर्शनी देखने लगीं। मैंने उनसे पूछा,’’मैं इन वस्तुओं को पास से देख सकती हूं।’’उन्होंने कहा,’’उधर से रास्ता है आप आइए।’’ मैं खुशी से उधर चल दी। पर वहां तो बंदरों का झुण्ड पहरेदारी कर रहा था। दो लोगों ने बंदरों को भगा कर मुझे वहां पहुंचाया। जहां संस्कृति संरक्षण अभियान के तहत प्रदर्शनी लगी थी। तेज गर्म हवा से मेरे बाल कपड़े उड़ रहे थे पर यहां तो मुझे अपनी 90़+ दादी, नानी याद आने लगीं और अब 93 साल की अम्मा, जो इनमें से प्रतिदिन किसी न किसी चीज का नाम लेती हैं। क्रमशः