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Wednesday, 26 October 2022

बेसन की बिना चाशनी की बर्फी सौंफ के फ़ायदे वाली बर्फी नीलम भागी Neelam Bhagi

 


रात को अमेरिका से उत्कर्षिनी का फोन आया। मां, "अम्मा(नानी) से जल्दी पूछो जो वे कभी-कभी बेसन बनाती थीं, उसमें क्या डालती थी?" वो सो तो नहीं गई थीं। मेरी बाजू में अम्मा सोती हैं। मैंने देखा वो सोई हुई हैं। पर उसे कहा कि मैं तुझे उनसे पूछ कर बताती हूं। 93 साल की अम्मा की हर कुकिंग ट्रिक्स मैं जानती हूं। 

कुछ समय बाद मैंने उत्कर्षिनी  को फोन किया उसे समझाया," बेटी  बच्चे छोटे हैं, इतनी मेहनत क्यों करती है? समय तेरे पास नहीं होता।" उसने जवाब दिया," हम अपनी बेटियों को अपनी  परंपरा से कैसे जोड़ेंगे? मेरी बेटियां तो फिर त्यौहार का मतलब  ऑनलाइन केक चॉकलेट मंगाना, कार्ड देना, डिजाइनर कपड़े पहनना और सोशल मीडिया पर विश करना है, यही जानेंगी। फिर ये फादर डे, मदर डे, फ्रेंड्स डे, वैलेंटाइन डे यही सब मनाएंगी। त्योहार पर मैं मिठाइयां,  बनाती हूं। छोटी सी गीता मेरी मदद करती है। हमारे यहां मित्र आते हैं त्योहार मनाने, और हैरान होते हैं, हमारे मनाने के तरीके पर। सुनकर बहुत अच्छा लगा। मैंने उसे रेसिपी बताई। और समझाया मात्रा तो अपने हिसाब से कम ज्यादा कर सकती है  वैसे भी तू लाजवाब कुक है बेहतर ही बनायेगी।

ढाई सौ ग्राम बेसन उतना ही घी, चीनी

मोटे पेंदे के बर्तन में  थोड़ा घी और बेसन डालकर  मीडियम आंच पर भूनना शुरू करना है। पहले बेसन बिल्कुल सूखा लगता है थोड़ा सा भूनने पर घी छोड़ने लगता है अगर नहीं छोड़ रहा है तो और भी घी डालो इतना कि बेसन अच्छी तरह  ढीला हो जाए। बेसन भूनते ही सारे घर में महक फैल जाती है। आंच का बहुत ध्यान रखना है जब खुशबू फैल जाए तब स्लो कर देना। बेसन अपना रंग बदलने लगता है। पसंद का भूनते ही गैस बंद कर देनी है फिर इसमें ड्राई फ्रूट डालना है और चलाते हुए  चीनी  और पीसी हुई सौंफ सबको अच्छी तरह मिलाना है। अब इस मिश्रण को घी लगी हुई थाली में फैलाना है इस पर ड्राई फ्रूट के कतरन डाल कर  कटोरी  ऊपर फिरा फिरा कर  चिकना कर देना है और ठंडा होने के लिए रख देना है। बाद में मन पसंद  आकार में काट लेना है।



    एक बार अम्मा बेसन बना रही थी छोटी इलायची खत्म थी। अम्मा ने उसमें सौंफ पाउडर डाल दिया। उसका  स्वाद अलग हो गया। उत्कर्षिनी के दिमाग में वह स्वाद अमेरिका में घर की याद के साथ आ गया और मुझे फोन कर दिया की अम्मा जैसा बेसन  बनाना है। हम हमेशा बेसन के लड्डू , बर्फी  में इलायची पाउडर गैस बंद करने के बाद में डालते हैं। सौंफ डालने से स्वाद बिल्कुल अलग हो जाता है। चीनी आप मिक्सी में पीस सकते हैं या बाजार से बुरा मिलता है उसे मिला सकते हैं। ड्राई फ्रूट्स डालना आपकी मर्जी है। हां सौंफ के फायदे आपको इसे खाने के बाद ही मिलेंगे।
 उत्कर्षिनी में बना कर तस्वीरें भेज दी। मैंने विधि लिख दी।

 


Monday, 24 October 2022

कैरेमल खोए के नारियल लड्डू नीलम भागी Mother's Little Helper Neelam Bhagi


 अंतरराष्ट्रीय लेखिका उत्कर्षिनी वशिष्ठ लेखन की तरह कुकिंग में भी पारंगत है। दिवाली पर अमेरिका में रहते हुए तरह-तरह की मिठाइयां घर पर बनाती है। मुझसे फोन पर रेस्पी  पूछती है और उसमें कुछ अपना बचपन में खाया  हुआ देसी स्वाद देकर, बहुत ही लाजवाब मिठाई बना लेती है। हमारी गंगा यमुना गायों का खूब दूध होता था। भडोली(इसमें  दूध से भरी मिट्टी की हंडिया रखी रहती है) में दूध धीमी आंच पर कढ़ते हुए शाम तक बादामी रंग का हो जाता था। ज्यादातर ये दूध की मिठाईयां बनाती है और वही स्वाद देती है। मुंबई में भी खोया (मावा) खुद ही बनाती थी। अब छोटी सी गीता मां की मदद करती है। जैसे  utkarshini मेरी करती थी। 
कैरेमल लड्डू बनाने के लिए उसने खोया भी घर में बनाया 2 किलो फुल क्रीम दूध को मोटी तली के चौड़े बर्तन में उबलने के लिए रख दिया।

दूध उबलते ही उसमें 200 ग्राम चीनी(बढ़ा भी सकते हैं) डाली और आंच को बिल्कुल हल्का कर दिया।  बीच-बीच में उसको हिलाती  जाती थी और किनारों से मलाई खुरच कर  मिलाती जाती। ना दूध तले में लगा, ना ही किनारों पर। जब थोड़ा सा रह गया तो लगातार चलाया। इसमें चीनी भी कैरेमलाइज हो गई, बहुत सुंदर चॉकलेटी कलर आ गया। गैस बंद कर दी हरी इलायची पाउडर मिलाया और इसे ठंडा होने के लिए रख दिया।

 अब गीता का खेलते हुए मावा लड्डू बनाना शुरू हो गया। एक कटोरे में नारियल का बुरादा रखा उनको नारियल के बुरादे में अच्छी तरीके से लपेटती और सजाती।


 दिवाली पर मां बेटी मिठाई बनाने में लगी हुई हैं और गीता की हिंदी स्पीकिंग क्लास भी चल रही है।



दिवाली पर मित्र आएंगे और हमारी भारतीय मिठाइयां उत्कर्षिनी के हाथ की बनी खाएंगे।

Wednesday, 5 October 2022

व्यस्त और रंगीन सांस्कृतिक गतिविधियों का अक्तूबर! भाग 2 उत्सव मंथन नीलम भागी Utsav Manthan October Part 2 Neelam Bhagi

 


आज हर रामकथा के मूल में भगवान बाल्मीकि की रामायण है।

पहले महाकाव्य ’रामायण’ के रचयिता महाकवि महर्षि वाल्मिकी जयंती अश्विन महीने की पूर्णिमा(9 अक्तूबर) को मनाई जाती है। जगह जगह जुलूस और शोेभायात्रा निकाली जाती है। लोगों में बहुत उत्साह होता है। 

कंगाली बिहु(13 अक्टूबर) इस समय धान की फसल लहलहा रही होती है। लेकिन किसानों के खलिहान खाली होते हैं। इसमें खेत में या तुलसी के नीचे दिया जला कर अच्छी फसल की कामना करते हैं यानि यह प्रार्थना उत्सव है। भेंट में एक दूसरे को गमझा(गामुस) देते हैं।


कोंगाली बिहू से ये भी युवाओं को समझ आ जाता है कि मितव्यवता से भी उत्सव मनाया जाता है।

 सौभाग्यवती महिलाएं पति की लम्बी आयु के लिए निर्जला करवाचौथ(13 अक्टूबर) का व्रत रखती हैं। महिलाएं श्रृंगार करके रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देकर पति के हाथ से पानी पीतीं हैं और व्रत का पारण करतीं हैं।   


अहोई अष्टमी(17 अक्तूबर)पुत्रवती महिलाएं पुत्र की लम्बी आयु और उसके सुखमय जीवन की कामना के लिये यह निर्जला व्रत रखती हैं। शाम को तारे को अर्ध्य देकर व्रत का पारण करतीं हैं।


मेरी अम्मा ने परिवार में इस व्रत को पुत्र की जगह संतान के लिए कर दिया है। पोती के जन्म पर अम्मा ने भारती से व्रत यह कह कर करवाया कि बेटा बेटी में कोई फर्क नहीं है। यह व्रत संतान के अच्छे स्वास्थ लिए करो। मेरी भाभी दोनों बेटियों शांभवी, सर्वज्ञा के लिये करती हैं। मेरी बेटी उत्कर्षिणी अपनी दोनों बेटियों गीता और दित्या के लिए करती है। 93 साल की अम्मा, दूसरी पीढ़ी में भी बेटियों के लिए अहोई का व्रत उत्कर्षिणी को रखते देख बहुत खुश हैं।




धनतेरस को खूब खरीदारी की जाती है। जिससे शुभ लाभ होता है और यह चार दिवसीय दिवाली का त्यौहार सब उल्लास से मनाते हैं।

दीपावली उत्सव धूमधाम से मिट्टी के दिए जलाकर मनाया जाता है। लक्ष्मी जी की पूजा खील बताशे से ही होती है ताकि गरीब अमीर सब करें। लेकिन मेवा, मिठाई खूब खाया जाता है।





दिवाली के अगले दिन पर्यावरण और समतावाद का संदेश देता, गोर्वधन पूजा अन्नकूट का उत्सव दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला कृष्ण प्रेमी परिवार या सामूहिक रुप से मनाता है। जिसमें 56 भोग बनते हैं।


 यम द्वितीया का त्यौहर, भाई दूज है। मथुरा में बहन भाई यमुना जी में नहा कर मनाते हैं। कथा है सूयदेव की पत्नी संज्ञा की दो संताने यमी और यमुना हैं। यम ने अपनी नगरी यमपुरी बसा ली। वहां वह पापियों को दण्ड देने का काम करते थे। यमराज का ये काम यमुना को अच्छा नहीं लगता तो वह गोलोक चली गईं। यमराज और यमुना में बहुत स्नेह था। यमुना जी उन्हें बार बार आने का निमन्त्रण देतीं, पर काम में बहुत व्यस्त होने के कारण, वे बहन का निमंत्रण स्वीकार नहीं कर सके। अचानक एक दिन उन्हें बहन की बहुत याद आई। उन्होंने यमुना जी को ढूंढने के लिए दूतों को भेजा, वे पता नहीं लगा पाए। फिर वे स्वयं ढूंढने आए। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को विश्राम घाट पर यमराज और यमुना का मिलन हुआ था। यमुना जी भाई को मिल कर बहुत प्रसन्न हुईं। उनके लिए स्वयं भोजन बनाया। यमराज बहन के व्यवहार से प्रसन्न होकर बोले कि वह उनसे कोई भी वरदान मांगे। यमुना जी ने छूटते ही मांगा कि जो नर नारी उनके जल में स्नान करें, वे यमपुरी न जाएं। सुनकर यमराज सोच में पड़ गये कि ऐसे तो यमपुरी का महत्व ही खत्म हो जायेगा। भाई को सोच विचार में पड़ते देख, यमुना जी बोली,’’नहीं नहीं, जो बहन भाई आज के दिन यहां स्नान करेंगे या आज के दिन भाई, बहन के घर जाकर भोजन करेगा, उसे यमपुरी न जाना पड़े। यमराज तुरंत प्रसन्न होकर बोले,’’ठीक है, ऐसा ही होगा।’’

  कहते हैं कि विवाह के बाद कृष्ण भी पहली बार सुभद्रा से यहीं मिले थे। भाई बहन का त्यौहार भइया दूज कहलाता है। भाई बहन के घर जाता है। बहन भाई का खूब आदर सत्कार करती है। भाई बहन को उपहार देता है।

सादगी, पवित्रता, लोकजीवन की मिठास का पर्व ’छठ’ है। छठ पर्व में प्रकृति पूजा सर्वकामना पूर्ति,  सूर्योपासना, निर्जला व्रत के इस पर्व को स्त्री, पुरुष और बच्चों के साथ अन्य धर्म के लोग भी मनाते हैं। 


पौराणिक और लोक कथाओं में छठ पूजा की परम्परा और महत्व की अनेक कथाएं हैं। देवता के रुप में सूर्य की वन्दना का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। सृष्टि पालनकर्ता सूर्य को, आरोग्य देवता के रुप में पूजा जाता है। भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था। रोगमुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गई। एक मान्यता के अनुसार भगवान राम ने लंका विजय के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सीता जी के साथ उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को पुनः सूर्योदय पर अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आर्शीवाद प्राप्त किया था।

एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई। कर्ण प्रतिदिन पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। आज भी छठ में अर्घ्य देने की यही पद्धति प्रचलित है। इन सब से अलग बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के जन सामान्य द्वारा किसान और ग्रामीणों के रंगों में रंगी अपनी उपासना पद्धति है। सूर्य, उषा, प्रकृति, जल, वायु सबसे जो कुछ उसे प्राप्त हैं, उसके आभार स्वरुप छठ मइया की कुटुम्ब, पड़ोसियों के साथ पूजा करना है, जिसमें किसी पुरोहित की जरुरत नहीं है। घाट साफ सफाई सब आपसी सहयोग से कर लेते हैं। बिहारियों का पर्व उनकी संस्कृति है। छठ उत्सव प्रवासी अपने प्रदेश जैसा ही मनाता है। 

चार दिन का कठोर व्रत नहाय खाय से शुरु होता है। सूर्य अस्त पर चावल और लौकी की सब्जी को खाता है। दूसरा दिन निर्जला व्रत खरना कहलाता है। शाम सात बजे गन्ने के रस और गुड़ की बनी खीर खाते हैं। चीनी नमक नहीं। अब सख्त व्रत शुरु होता है निर्जला व्रत , दिन भर व्रत के बाद सूर्य अस्त से पहले घर में देवकारी में रखा डाला(दउरा) उसमें प्रकृति ने जो हमें अनगिनत दिया है उनमें से इसे भर कर, डाला को सिर पर रख कर सपरिवार घाट पर जाते हैं। व्रती पानी में खड़े होकर हाथ में डाले के सामान से भरा सूप लेकर सूर्य को अर्घ्य देती है। सूर्या अस्त के बाद सब घर चले जातें हैं, फिर सूर्योदय अर्घ्य के बाद व्रत का पारण होता है।

हिन्दू देवी देवताओं की पूजा करना, परिवार और सामाजिक समारोहों, खरीदारी करना और उपहार देना, भण्डारे करना, पंडाल का भ्रमण, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन और पर्यटन के लिए छुट्टियां भी हैं।

प्रेरणा शोध संस्थान से प्रकाशित केशव संवाद पत्रिका के अक्टूबर अंक में यह लेख प्रकाशित हुआ है।





Monday, 3 October 2022

व्यस्त और रंगीन सांस्कृतिक गतिविधियों का अक्तूबर! भाग 1 उत्सव मंथन नीलम भागी Utsav Manthan October Part 1 Neelam Bhagi

 

व्रत और त्यौहारों से भरा मानसून के अंत से शुरू होकर शीत ऋतु का आगमन, एक अक्तूबर की शुरुवात ही दुर्गा पूजा से है।

यह भारतीय उपमहाद्वीप व दक्षिण एशिया में मनाया जाने वाला सामाजिक-सांस्कृतिक धार्मिक वार्षिक हिन्दू पर्व है। पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, झारखण्ड, मणिपुर, ओडिशा और त्रिपुरा में सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। नेपाल और बंगलादेश में भी बड़े त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा पश्चिमी भारत के अतिरिक्त दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में भी मनाया जाता है। हिन्दू सुधारकों ने ब्रिटिश राज में इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का प्रतीक भी बनाया। दिसम्बर 2021 में कोलकता की दुर्गापूजा को यूनेस्को की अगोचर सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। 




   आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य की महिलाएं बड़े उत्साह से पूरे नौ दिन बतुकम्मा महोत्सव मनातीं हैं। ये शेष भारत के शरद नवरात्रि से मेल खाता है। प्रत्येक दिन बतुकम्मा उत्सव को अलग नाम से पुकारा जाता है। जंगलों से ढेर सारे फूल लाते हैं।


फूलों की सात पर्तों से गोपुरम मंदिर की आकृति बनाकर बतुुकम्मा अर्थात देवियों की माँ पार्वती महागौरी के रूप में पूजा जाता है।


लोगों का मानना है कि बतुकम्मा त्यौहार पर देवी जीवित अवस्था में रहती हैं और श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी करतीं हैं। त्योहार के पहले दिन सार्वजनिक अवकाश होता है। नौ दिनों तक अलग अलग क्षेत्रिय पकवानों से गोपुरम को भोग लगाया जाता है। और इस फूलों के उत्सव का आनन्द उठाया जाता है। नवरात्रि की अष्टमी को यह त्यौहार दशहरे से दो दिन पहले 3 अक्तूबर को समाप्त है।



 बतुकम्मा से मिलता जुलता, तेलंगाना में कुवांरी लड़कियों द्वारा बोडेम्मा पर्व मनाया जाता है। जो सात दिनों तक चलने वाला गौरी पूजा का पर्व है।


महाअष्टमी और महानवमी को नौ बाल कन्याओं की पूजा की जाती है जो देवी नवदुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करतीं हैं। 

26 सितम्बर से 5 अक्तूबर तिरूमाला में ब्रह्मोत्सव मनाया जा रहा है किंवदंती है कि भगवान ब्रह्मा ने सबसे पहले तिरूमाला में ब्रह्मोत्सव मनाया था। तिरूमाला में तो हर दिन एक त्यौहार है और धन के भगवान श्री वेंकटेश्वर साल में 450 उत्सवों का आनन्द लेते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण ब्रह्मोत्सव है। जिसका शाब्दिक अर्थ है ’ब्रह्मा का उत्सव’ जिसमें हजारो श्रद्धालू इस राजसी उत्सव को देखने जाते हैं।

दशहरे की छुट्टियों में जगह जगह  रात को रामलीला मंचन मंच पर होता है। जिसे बच्चे बहुत ध्यान से देखते हैं। लौटते हुए रामलीला के मेले से गत्ते, बांस, चमकीले कागजों से बने चमचमाते धनुष बाण, तलवार और गदा आदि शस्त्र खरीद कर लाते और वे दिन में पार्कों में रामलीला का मंचन करते हैं। जिसमें सभी बच्चे कलाकार होते। उन्हें दर्शकों की जरुरत ही नहीं होती। इन दिनों सारा शहर ही राममय हो जाता।

बहू मेला जम्मू और कश्मीर, जम्मू में आयोजित होने वाले सबसे बड़े हिंदू त्योहारों में से एक है। यह जम्मू के बहू किले में साल में दो बार नवरात्रों के दौरान मनाया जाता है। इस दौरान पर्यटक और स्थानीय लोग रंगीन पोशाकें पहनते हैं और मेले में खरीदारी करते हैं और खाने के स्टॉल में वहाँ के पारम्परिक खानों का स्वाद लेते हैं।

शरदोत्सव दुर्गोत्सव एक वार्षिक हिन्दू पर्व है। जिसमें प्रांतों में अलग अलग पद्धति से देवी पूजन है। गुजरात का नवरात्र में किया जाने वाला गरबा, डांडिया नृत्य तो पूरे देश का हो गया है। जो नहीं करते वे देखने जाते हैं।

तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक में दशहरे से पहले नौ दिनों को तीन देवियों की समान पूजा के लिए तीन तीन दिनों में बांट दिया है। पहले तीन दिन धन और समृधि की देवी लक्ष्मी को समर्पित हैं। अगले तीन दिन शिक्षा और कला की देवी सरस्वती को समर्पित है


और माँ शक्ति दुर्गा को समर्पित हैं और विजयदशमी का दिन बहुत शुभ माना जाता है। बच्चों के लिए विद्या आरंभ के साथ कला में अपनी अपनी शिक्षा शुरु करने के लिए इस दिन सरस्वती पूजन किया जाता है। 

महाभारत के रचियता वेदव्यास महाभारत के बाद मानसिक उलझनों में उलझे थे, तब शांति के लिये वे तीर्थाटन पर चल दिए। दंडकारण्य(बासर का प्राचीन नाम) तेलंगाना में, गोदावरी के तट के सौन्दर्य ने उन्हें कुछ समय के लिए रोक लिया था। यहीं ऋषि वाल्मिकी ने रामायण लेखन से पहले, माँ सरस्वती को स्थापित किया और उनका आर्शीवाद प्राप्त किया था। मंदिर के निकट वाल्मीकि जी की संगमरमर की समाधि है। बासर गाँव में आठ तालाब हैं। जिसमें वाल्मीकि तीर्थ है। पास में ही वेदव्यास गुफा है। लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा की मूर्तियाँ हैं। पास ही महाकाली का विशाल मंदिर है। नवरात्र में बड़ी धूमधाम रहती है।  आज उस माँ शारदे निवास को ’श्री ज्ञान सरस्वती मंदिर’ कहते हैं। हिंदुओं का महत्वपूर्ण संस्कार ’अक्षर ज्ञान’ विजयदशमी को मंदिर में मनाया जाता है जो बच्चे के जीवन में औपचारिक शिक्षा को दर्शाता है।  बासर में गोदावरी तट पर स्थित इस मंदिर में बच्चों को अक्षर ज्ञान से पहले अक्षराभिषेक के लिए लाया जाता है और प्रसाद में हल्दी का लेप खाने को दिया जाता है।


विजयदशमी को देश में कहीें महिषासुर मर्दिनी को सिंदूर खेला के बाद विसर्जित किया जाता है। तो कहीं श्री राम की रावण पर विजय पर रावण, मेघनाथ, कुंभकरण के पुतले दहन किए जाते हैं। सबसे अनूठा 75 दिन तक मनाया जाने वाला बस्तर के दशहरे का रामायण से कोई संबंध नहीं है। अपितु बस्तर की आराध्या देवी माँ दन्तेश्वरी और देवी देवताओं की पूजा हैं।

मैसूर का दस दिवसीय दशहरा का मुख्य आर्कषण शाम 7 बजे से रात 10 बजे तक मैसूर पैलेस की रोशनी, सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम और विजयदशमी पर दशहरा जुलूस और प्रदर्शनी है। क्रमशः


    


प्रेरणा संस्थान से प्रकाशित केशव संवाद के अक्टूबर अंक में यह लेख प्रकाशित हुआ है।



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Sunday, 2 October 2022

वैष्णव जन तो तेने कहिये..... नीलम भागी Vaishvav Jan To Tene Kahiye Je Neelam Bhagi

 


नरसी मेहता द्वारा रचित महात्मा गांधी का प्रिय भजन

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 153 वीं जयंती के उपलक्ष्य में सूर्या संस्थान नोएडा एवं विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित समारोह में छात्राओं ने गांधी जी के प्रिय भजन गाये। मुख्य अतिथि गणेश शंकर त्रिपाठी आई.ए.एस(से.नि.) ने विशेष रुप से छात्र छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा महात्मा गांधी ने सत्य, अहिंसा और अपनी सादगी से उनसे अलग विचारधारा रखने वालों को भी प्रभावित किया। नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें राष्ट्रपिता कहा। संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ. रामशरण गौड़ और मराठी साहित्यकार उमाकांत खुबालकर ने भी  अपने उद्बोधन में कहा कि गांधी दर्शन की प्रासंगिता आज भी है और आगे भी रहेगी। न्यास मंत्री देवेन्द्र मित्तल ने अक्तूबर में महात्मा गांधी पर जो कार्यक्रम किए जायेंगे उनकी जानकारी दी। 

 इस समारोह में सेक्टर 54 स्थित सीवेज फार्म के सफाई कर्मियों शनिचरा, बरसाया और










शांति ने जलपान बनाया। उनका शॉल ओढ़ा कर सम्मान किया। सबने एक साथ गोल घेरे में बैठ कर जलपान किया। कार्यक्रम में सरला अग्रवाल, संजीव सक्सेना, भोला ठाकुर व कमलेश ठाकुर आदि सदस्य व गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। अतुल प्रभाकर जी ने सबका धन्यवाद किया। और.....

  हमारे सेक्टर में छाया राय जी के निवास पर आयोजित नौ दिवसीय नवरात्र उत्सव में आज आशा जी ने बापू की प्रार्थना सभा में प्रतिदिन गया जाने वाला भजन ’वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ परायी जाणे रे’’ गाना शुरु किया पर उनका गला साथ नहीं दे रहा था।  अनुराधा मंजीरकर, उषा बसंल, रेनू गुप्ता और ऋचा गुप्ता ने बहुत सुन्दर निभाया। धीरे धीरे सब मोबाइल में खोज कर समवेत स्वर में वैष्णव जन गाने लगे। फिर सबने मिल कर ’राघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीता राम गाया और इस तरह हमारी होम मेकर महिलाओं ने महात्मा गांधी की जयंती मना ली।  

   https://youtu.be/QVVOh5N8VwE