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Monday 30 October 2023

नदी नहीं तो हम नहीं! नवम्बर उत्सव उल्लास नीलम भागी Importance of River Neelam Bhagi



कार्तिक मास के उत्सव, नदी केन्द्रित हैं। अपने आस पास जो भी नदी झील, सरोवर होता हैं। वहाँ स्नान किया जाता है। मसलन कपूरथला में व्यासा की एक धारा बहती है, उसे कांजली कहते हैं। तो कार्तिक माह में वहाँ के स्नान को कहते हैं कांजली नहान कहते हैं। प्रतिदिन स्नान और तुलसी पूजन के साथ उत्सव नवम्बर को और भी जीवंत करते हैं। 


हमीर उत्सव (नवम्बर का पहला सप्ताह) ये उत्सव पर्वत प्रेमियों को हिमाचल आने का एक अनुरोध है। इसमें प्रसिद्ध गायकों का लाइव प्रर्दशन, शोभा यात्रा, नृत्य, भोजन आदि और प्राकृतिक सौन्दर्य तो है ही। 

 सौभाग्यवती महिलाएं पति की लम्बी आयु के लिए निर्जला करवाचौथ(1नवम्बर) का व्रत रखती हैं। 

अहोई अष्टमी(5नवम्बर) पुत्रवती महिलाएं पुत्र की लम्बी आयु और उसके सुखमय जीवन की कामना के लिये वे निर्जला व्रत रखती हैं। 

धनतेरस(11नवम्बर) को खूब खरीदारी की जाती है। दीपावली उत्सव(13 नवम्बर) धूमधाम से मिट्टी के दिए जलाकर मनाया जाता है। लक्ष्मी जी की पूजा खील बताशे से ही होती है ताकि गरीब अमीर सब करें। लेकिन मेवा, मिठाई खूब खाया जाता है।

दिवाली के अगले दिन पर्यावरण और समतावाद का संदेश देता, गोर्वधन पूजा अन्नकूट(14 नवम्बर) का उत्सव दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला कृष्ण प्रेमी परिवार सामूहिक रुप से मनाता है। जिसमें 56 भोग बनते हैं।




 यम द्वितीया का त्यौहर, भाई दूज(15 नवम्बर) है। मथुरा में बहन भाई यमुना जी में नहा कर मनाते हैं। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को विश्राम घाट पर यमराज और यमुना जी का मिलन हुआ था। यमुना जी भाई को मिल कर बहुत प्रसन्न हुईं। उनके लिए स्वयं भोजन बनाया। यमराज बहन के व्यवहार से प्रसन्न होकर बोले कि वह उनसे कोई भी वरदान मांगे।  यमुना जी बोली,’’ जो बहन भाई आज के दिन यहां स्नान करेंगे या आज के दिन भाई, बहन के घर जाकर भोजन करेगा, उसे यमपुरी न जाना पड़े।’’ कहते हैं कि विवाह के बाद कृष्ण भी पहली बार सुभद्रा से यहीं मिले थे। 


सादगी, पवित्रता, लोकजीवन की मिठास का पर्व ’छठ’(19 नवम्बर) है। छठ पर्व में प्रकृति पूजा सर्वकामना पूर्ति,  सूर्योपासना, निर्जला व्रत के इस पर्व को स्त्री, पुरुष और बच्चों के साथ अन्य धर्म के लोग भी मनाते हैं। 


इन सब से अलग बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के जन सामान्य द्वारा किसान और ग्रामीणों के रंगों में रंगी अपनी उपासना पद्धति है। सूर्य, उषा, प्रकृति, जल, वायु सबसे जो कुछ उसे प्राप्त हैं, उसके आभार स्वरुप छठ मइया की कुटुम्ब, पड़ोसियों के साथ पूजा करना है, जल में खड़े होकर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। 

कृष्ण और बलराम कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से गाय चराने गए और गोपाल बने। गोपाष्टमी पर्व(20नवम्बर) को है। यह उत्सव श्री कृष्ण और उनकी गायों को समर्पित है। इस दिन गौधन की पूजा की जाती है। गाय और बछड़े की पूजा करने की रस्म महाराष्ट्र में गोवत्स द्वादशी के समान है। भगवान कृष्ण के जीवन में गौ का महत्व बहुत अधिक था। उनकी गौसेवा के कारण ही इंद्र ने उनका नाम गोविंद रखा।

माजुली महोत्सव(21 से 24 नवम्बर) पूर्वोत्तर भारत में दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप, असम में लुइत नदी के तट पर मनाया जाता है। जो द्वीप की समृद्ध संस्कृति और प्रचुर प्राकृतिक सौन्दर्य को दर्शाता है।

 दक्षिण भारत में भी कार्तिक मास के पावन अवसर पर काकड़ आरती का प्रारंभ परम्परानुसार शरदपूर्णिमा के दूसरे दिन से होता हैं। देवउठनी एकादशी(24 नवम्बर) के अवसर पर काकड़ आरती को भव्य स्वरूप दिया जाता है। तुलसी सालिगराम के विवाह उत्सव को मनाया जाता है। वारकरी सम्प्रदाय के बुजुर्ग बताते हैं कि संत हिरामन वाताजी महाराज ने 365 वर्ष पहले काकड़ आरती की शुरुआत की थी। आरती में शामिल होने के लिए श्रद्धालु प्रातः 5 बजे विटठल मंदिर में आते हैं और भजन मंडलियां पकवाद, झांज, मंजीरों एवं झंडियों के साथ नगर भ्रमण करती है। जगह जगह चाय, कॉफी, दूध एव ंनाश्ते की व्यवस्था श्रद्धालुओं द्वारा रहती है। प्रत्येक मंदिर में सामुहिक काकड़ा जलाकर काकड़ आरती प्रातः 7 बजे तक प्रशाद वितरण के साथ सम्पन्न होती है। उत्तर भारत में प्रभात फेरी निकाली जाती है। 

लोक चाय उत्सव (24,25,26 नवम्बर) को हातिपति टी एस्टेट, बिश्वनाथ चरियाली, असम और अरुणाचल की हरि भरी पहाड़ियों में फोक टी फैस्टिवल एक अनूटा कार्यक्रम है। 

कार्तिक पूर्णिमा को पवित्र नदी, सरोवर एवं गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरुक्षेत्र अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। इसे देव दीपावली(26 या 27 नवम्बर) गंगा दीपावली के रूप में मनाते हैं। गंगा नदी और देवी देवताओं के सम्मान में घरों में रंगोली बना कर तेल के दियों से सजाते हैं।

 महाभारत काल में हुए 18 दिन युद्ध के बाद की स्थिति से युधिष्ठिर कुछ विचलित हो गए तो श्री कृष्ण पाण्डवों के साथ गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान में आए। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पाण्डवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया। इसके बाद दिवंगत आत्माओं की शंांित के लिए दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दिन गंगा स्नान का और विशेष रुप से गढ़मुक्तेश्वर में स्नान करने का विशेष महत्व है। यह देश भक्ति से भी जुड़ा हैं। इस दिन बहादुर सैनिक जो भारत के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए हैं उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है।  

  गुरू नानक जयंती(27नवंबर) को उत्सव की तरह मनाया जाता है। गुरुद्वारों में शबद कीर्तन होता है और लंगर वरताया जाता है। जैन का धार्मिक दिवस प्रकाश पर्व है। तमिल नाडु में अरुणाचलम पर्वत की 13 किमी की परिक्रमा की जाती है। यहाँ कार्तिक स्वामी का मंदिर है।

सामाजिक समरसता का प्रतीक ’वन भोजन’ भी कार्तिक मास में आयोजित किए जाते हैं। इसमें कुछ लोग मिलकर अपनी सुविधा के दिन, अपना बनाया खाना लेकर प्राकृतिक परिवेश में पिकनिक मनाते हैं। शाम को पास में जो भी नदी, झील हो वहाँ दीपक जला कर लौटते हैं।

पुष्कर मेला 20 नवम्बर से शुरु होकर 27 नवम्बर को समाप्त होगा। कई किलोमीटर तक यह मेला रेत में लगता है जिसमें खाने, झूले, लोक गीत, लोक नृत्य होते हैं। रात को आलाव जला कर गाथाएं भी सुनाई जाती हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन लाखांे श्रद्धालु पुष्कर झील में स्नान करके ब्रह्मा जी के मंदिर में दर्शन करते हैं। 

वंगाला(10नवंबर)मेघालय में गारो समुदाय द्वारा फसल कटाई से सम्बन्धित वंगाला उत्सव है। गारो भाषा में ’वंगाला’ का अर्थ ’सौ ढोल’ है। वर्षा अधिक होने के कारण सूर्यदेवता(सलजोंग) के सम्मान में गारो आदिवासी नवम्बर के दूसरे सप्ताह में ’वांगला’ नामक त्योहार मनाते हैं। 

रण उत्सव(1नवंबर से 20 फरवरी) गुजरात का रण उत्सव अपनी रंगीन कला और संस्कृति के लिए विश्व प्रसिद्ध है। 

सोनपुर मेला(20 नवंबर से ) गंगा और गंडक नदी के संगम पर एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। पर आज की जरुरत के अनुसार यह आटो एक्पो मेले का रुप लेता जा रहा हैं। हरिहर नाथ की पूजा होती है। नौका दौड़, दंगल खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।  

बूंदी महोत्सव(11से 13) राजस्थान के हड़ौती क्षेत्र में छोटा सा बूंदी अपनी ऐतिहासिक वास्तुकला और संस्कृति के लिए जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा की रात में महिला पुरुष दोनों पारंपरिक वेशभूषा पहनकर चंबल नदी के तट पर दिया जला कर, आर्शीवाद लेते हैं। 

का पोमबलांग नोंगक्रम नवम्बंर(तिथि घोषित होने वाली हैं)

 में मेघालय की खासी जनजातियों द्वारा मनाया जाता है। 

भगवान बाल्मिकी आश्रम, रामतीर्थ मंदिर अमृतसर में 3 किमी परीधि का सरोवर है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को यहाँ चार दिवसीय मेला लगता है। ’माता सीता की बावली’ जहाँ वे स्नान करतीं थीं। ऐसी मान्यता है कि उसमें नहाने से संतान की प्राप्ति होती है और वहां ईंटो का घर बनाने से अपना घर बन जाता है। सीता जी को भी तो असहायावस्था में भगवान बाल्मीकि पिता तुल्य का घर मिला और वे लव कुश पुत्रों की मां बनी।

   कार्तिक मास में तीर्थस्थान पर स्नान करते हैं। धर्म और लोककथाओं के बाद उत्सव की एक महत्वपूर्ण उत्पत्ति कृषि है। धार्मिक स्मरणोत्सव और अच्छी फसल के लिए धन्यवाद दिया जाता है। रवि की फसल की बुआई हो जाती है फिर बड़ी श्रद्धा और उत्साह से उत्सव मनाते हैं। इन सभी उत्सवों में प्रकृति वनस्पति और जल है। बेटों के लिए अहोई उत्सव व्रत अब बेटियों के लिए भी व रखा जाने लगा है यानि संतान के लिए। इसी तरह अब हमें नदियों को प्रदूषित होने से युद्ध स्तर से बचाना होगा क्योंकि नदी नहीं तो हम नहीं। 

नीलम भागी(लेखिका, जर्नलिस्ट, ब्लॉगर, टैवलर)  यह लेख प्रेरणा शोध संस्थान द्वारा प्रकाशित पत्रिका प्रेरणा विचार में प्रकाशित हुआ है।





Wednesday 5 October 2022

व्यस्त और रंगीन सांस्कृतिक गतिविधियों का अक्तूबर! भाग 2 उत्सव मंथन नीलम भागी Utsav Manthan October Part 2 Neelam Bhagi

 


आज हर रामकथा के मूल में भगवान बाल्मीकि की रामायण है।

पहले महाकाव्य ’रामायण’ के रचयिता महाकवि महर्षि वाल्मिकी जयंती अश्विन महीने की पूर्णिमा(9 अक्तूबर) को मनाई जाती है। जगह जगह जुलूस और शोेभायात्रा निकाली जाती है। लोगों में बहुत उत्साह होता है। 

कंगाली बिहु(13 अक्टूबर) इस समय धान की फसल लहलहा रही होती है। लेकिन किसानों के खलिहान खाली होते हैं। इसमें खेत में या तुलसी के नीचे दिया जला कर अच्छी फसल की कामना करते हैं यानि यह प्रार्थना उत्सव है। भेंट में एक दूसरे को गमझा(गामुस) देते हैं।


कोंगाली बिहू से ये भी युवाओं को समझ आ जाता है कि मितव्यवता से भी उत्सव मनाया जाता है।

 सौभाग्यवती महिलाएं पति की लम्बी आयु के लिए निर्जला करवाचौथ(13 अक्टूबर) का व्रत रखती हैं। महिलाएं श्रृंगार करके रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देकर पति के हाथ से पानी पीतीं हैं और व्रत का पारण करतीं हैं।   


अहोई अष्टमी(17 अक्तूबर)पुत्रवती महिलाएं पुत्र की लम्बी आयु और उसके सुखमय जीवन की कामना के लिये यह निर्जला व्रत रखती हैं। शाम को तारे को अर्ध्य देकर व्रत का पारण करतीं हैं।


मेरी अम्मा ने परिवार में इस व्रत को पुत्र की जगह संतान के लिए कर दिया है। पोती के जन्म पर अम्मा ने भारती से व्रत यह कह कर करवाया कि बेटा बेटी में कोई फर्क नहीं है। यह व्रत संतान के अच्छे स्वास्थ लिए करो। मेरी भाभी दोनों बेटियों शांभवी, सर्वज्ञा के लिये करती हैं। मेरी बेटी उत्कर्षिणी अपनी दोनों बेटियों गीता और दित्या के लिए करती है। 93 साल की अम्मा, दूसरी पीढ़ी में भी बेटियों के लिए अहोई का व्रत उत्कर्षिणी को रखते देख बहुत खुश हैं।




धनतेरस को खूब खरीदारी की जाती है। जिससे शुभ लाभ होता है और यह चार दिवसीय दिवाली का त्यौहार सब उल्लास से मनाते हैं।

दीपावली उत्सव धूमधाम से मिट्टी के दिए जलाकर मनाया जाता है। लक्ष्मी जी की पूजा खील बताशे से ही होती है ताकि गरीब अमीर सब करें। लेकिन मेवा, मिठाई खूब खाया जाता है।





दिवाली के अगले दिन पर्यावरण और समतावाद का संदेश देता, गोर्वधन पूजा अन्नकूट का उत्सव दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला कृष्ण प्रेमी परिवार या सामूहिक रुप से मनाता है। जिसमें 56 भोग बनते हैं।


 यम द्वितीया का त्यौहर, भाई दूज है। मथुरा में बहन भाई यमुना जी में नहा कर मनाते हैं। कथा है सूयदेव की पत्नी संज्ञा की दो संताने यमी और यमुना हैं। यम ने अपनी नगरी यमपुरी बसा ली। वहां वह पापियों को दण्ड देने का काम करते थे। यमराज का ये काम यमुना को अच्छा नहीं लगता तो वह गोलोक चली गईं। यमराज और यमुना में बहुत स्नेह था। यमुना जी उन्हें बार बार आने का निमन्त्रण देतीं, पर काम में बहुत व्यस्त होने के कारण, वे बहन का निमंत्रण स्वीकार नहीं कर सके। अचानक एक दिन उन्हें बहन की बहुत याद आई। उन्होंने यमुना जी को ढूंढने के लिए दूतों को भेजा, वे पता नहीं लगा पाए। फिर वे स्वयं ढूंढने आए। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को विश्राम घाट पर यमराज और यमुना का मिलन हुआ था। यमुना जी भाई को मिल कर बहुत प्रसन्न हुईं। उनके लिए स्वयं भोजन बनाया। यमराज बहन के व्यवहार से प्रसन्न होकर बोले कि वह उनसे कोई भी वरदान मांगे। यमुना जी ने छूटते ही मांगा कि जो नर नारी उनके जल में स्नान करें, वे यमपुरी न जाएं। सुनकर यमराज सोच में पड़ गये कि ऐसे तो यमपुरी का महत्व ही खत्म हो जायेगा। भाई को सोच विचार में पड़ते देख, यमुना जी बोली,’’नहीं नहीं, जो बहन भाई आज के दिन यहां स्नान करेंगे या आज के दिन भाई, बहन के घर जाकर भोजन करेगा, उसे यमपुरी न जाना पड़े। यमराज तुरंत प्रसन्न होकर बोले,’’ठीक है, ऐसा ही होगा।’’

  कहते हैं कि विवाह के बाद कृष्ण भी पहली बार सुभद्रा से यहीं मिले थे। भाई बहन का त्यौहार भइया दूज कहलाता है। भाई बहन के घर जाता है। बहन भाई का खूब आदर सत्कार करती है। भाई बहन को उपहार देता है।

सादगी, पवित्रता, लोकजीवन की मिठास का पर्व ’छठ’ है। छठ पर्व में प्रकृति पूजा सर्वकामना पूर्ति,  सूर्योपासना, निर्जला व्रत के इस पर्व को स्त्री, पुरुष और बच्चों के साथ अन्य धर्म के लोग भी मनाते हैं। 


पौराणिक और लोक कथाओं में छठ पूजा की परम्परा और महत्व की अनेक कथाएं हैं। देवता के रुप में सूर्य की वन्दना का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। सृष्टि पालनकर्ता सूर्य को, आरोग्य देवता के रुप में पूजा जाता है। भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था। रोगमुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गई। एक मान्यता के अनुसार भगवान राम ने लंका विजय के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सीता जी के साथ उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को पुनः सूर्योदय पर अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आर्शीवाद प्राप्त किया था।

एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई। कर्ण प्रतिदिन पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। आज भी छठ में अर्घ्य देने की यही पद्धति प्रचलित है। इन सब से अलग बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के जन सामान्य द्वारा किसान और ग्रामीणों के रंगों में रंगी अपनी उपासना पद्धति है। सूर्य, उषा, प्रकृति, जल, वायु सबसे जो कुछ उसे प्राप्त हैं, उसके आभार स्वरुप छठ मइया की कुटुम्ब, पड़ोसियों के साथ पूजा करना है, जिसमें किसी पुरोहित की जरुरत नहीं है। घाट साफ सफाई सब आपसी सहयोग से कर लेते हैं। बिहारियों का पर्व उनकी संस्कृति है। छठ उत्सव प्रवासी अपने प्रदेश जैसा ही मनाता है। 

चार दिन का कठोर व्रत नहाय खाय से शुरु होता है। सूर्य अस्त पर चावल और लौकी की सब्जी को खाता है। दूसरा दिन निर्जला व्रत खरना कहलाता है। शाम सात बजे गन्ने के रस और गुड़ की बनी खीर खाते हैं। चीनी नमक नहीं। अब सख्त व्रत शुरु होता है निर्जला व्रत , दिन भर व्रत के बाद सूर्य अस्त से पहले घर में देवकारी में रखा डाला(दउरा) उसमें प्रकृति ने जो हमें अनगिनत दिया है उनमें से इसे भर कर, डाला को सिर पर रख कर सपरिवार घाट पर जाते हैं। व्रती पानी में खड़े होकर हाथ में डाले के सामान से भरा सूप लेकर सूर्य को अर्घ्य देती है। सूर्या अस्त के बाद सब घर चले जातें हैं, फिर सूर्योदय अर्घ्य के बाद व्रत का पारण होता है।

हिन्दू देवी देवताओं की पूजा करना, परिवार और सामाजिक समारोहों, खरीदारी करना और उपहार देना, भण्डारे करना, पंडाल का भ्रमण, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन और पर्यटन के लिए छुट्टियां भी हैं।

प्रेरणा शोध संस्थान से प्रकाशित केशव संवाद पत्रिका के अक्टूबर अंक में यह लेख प्रकाशित हुआ है।