16वीं शताब्दी में ओरछा बड़ा और समृद्ध राज्य था। ओरछा के राजा मधुकर शाह ने अपने तीन बेटों वीर सिंह, राम सिंह और इंद्रजीत को अलग अलग जागीर दी। एक दिन इंद्रजीत ने अपनी जागीर में एक लड़की को नाचते और भजन गाते सुना जिसका नाम पुनिया था। इंद्रजीत ने उसके पिता को उसे राजा की ओर से शिक्षित करने को कहा। ये पुनिया बड़ी होने पर अब राय प्रवीण थी। इस दरबार की गायिका, कवियत्री, नर्तकी की ख़ूबसूरती पर राजा इंद्रजीत मोहित थे। उसके रूप के चर्चे दूर दूर तक फैले। मुग़ल बादशाह अकबर ने उसे अपने दरबार में भेजने का फरमान जारी किया। फरमान पाते ही इंद्रजीत हतप्रभ हो गए। ओरछा नरेश इंद्रजीत राय प्रवीण को पाकर अपने को गौरवशाली और धन्य समझते थे। वे उसे भेजना नहीं चाहते थे। उन्होंने दूत को वापिस लौटा दिया। तब अकबर ने ओरछा नरेश पर एक करोड़ रुपये का जुर्माना कर दिया। अब राजा इंद्रजीत परेशान हो गए। आचार्य केशवदास ने इंद्रजीत को समझाया कि हम लोग अकबर से टक्कर नहीं ले सकते इसलिए राय प्रवीण को उनके साथ शाही दरबार में भेज दीजिए। उन्हें उसकी बुद्धिमता पर विश्वास हैं वह अपने वाक्यचातुर्य के बल पर अपनी मर्यादा की रक्षा स्वयं कर लेगी। कहीं राय प्रवीण के दिल में भी इंद्रजीत को छोड़ कर जाते हुए मन में डर था कि अगर वह दरबार से न लौट सकी तो! उसने अपने मन की बात गुरूदेव से कह दी। आचार्य ने उसे भली भंाति समझाया। दोनों अकबर के दरबार में पहुंच कर, उन्हें प्रणाम करके बैठ गए। अकबर ने राय प्रवीण से कुछ प्रश्न पूछे, जिसके उसने काव्यमय उत्तर दिए। अकबर का मन उसे वहाँ रखने का था और उसने राय प्रवीण से प्रश्न भी कर दिया,’’क्या आप हमारे दरबार की शोभा बढ़ा सकती हो?’ राय प्रवीण ने जवाब दिया,’’आप महान विद्वान, गुणग्राही बादशाह हैं। मेरा अहोभाग्य है जो मुझे आपके शाही दरबार में आश्रय प्राप्त हो। जरा मेरी एक विनती सुन लीजिए -
विनती राय प्रवीण की, सुनिये शाह सुजान।
जूठी पातर भकत को, वारी वायस श्वान।
जिसका अर्थ है कि राजा की जूठी पत्तल को नौकर, कौवा, कुत्ता खाते हैं। कुछ देर अपनी भावनाओं पर अकबर ने काबू रखा फिर उसने जुर्माना माफ करके गुरू शिष्या को ससम्मान ओरछा भेजा।
इंद्रजीत ने राय प्रवीण के लिए बाग से घिरा ’राय प्रवीण महल’ बनवाया। ओरछा जाने वाले पर्यटकों को इसकी दीवारों पर बनी चित्र, पेंटिंग आकर्षित करते हैं। क्रमशः
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