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Sunday, 4 December 2022

झांसी से दिल्ली झांसी यात्रा भाग 14 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 14Neelam Bhagi


 रात 10:00 बजे मैं और डॉ. सारिका लगेज लिए  स्टेशन के लिए निकले दूर रिसॉर्ट के गेट से दो लेखक आते दिखे और कार जाती। मैं जोर से चिल्लाई गाड़ी रोको पर इतनी दूर मेरी आवाज नहीं पहुंची। पास आने पर उन्होंने बताया,"  वे पितांबरा देवी के दर्शन करके आए हैं और उनका तीसरा साथी स्टेशन गया। हम दतिया से आए हैं।" यानि कार गई। इस जगह से तो कोई सवारी भी नहीं गुजर रही थी। मैं सामान के साथ चलते हुए डॉक्टर महेश पांडे को फोन लगा रही थी, जो अंगेज आ रहा था। डॉ. सारिका जल्दी-जल्दी चलती जा रही थी, चौराहे पर रुक गई। मैं उनके पीछे-पीछे डॉ. महेश पांडे का कॉल आया, मैंने उन्हें बताया कि कार तो चली गई है।  मेरी 11:00 बजे  की गाड़ी है, कैसे करें?  अगर कोई मोटरसाइकल गुजरता तो डॉ सारिका उसे कहती कि रास्ते में ऑटो  टैक्सी मिले तो इधर स्टेशन जाने के लिए भेजना।  डॉ. महेश पांडे  फोन पर बोले," प्लीज आप रुकिए, मैं अभी आ रहा हूं और बस उसी वक्त चल पड़े और हमारे पास लगभग दौड़ते हुए आए बोले," आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए। हम आपको कैसे भी पहुंचाएंगे और ड्राइवर से फोन पर बात करने लगे उसने कहा कि जो गेस्ट हैं, मैं अभी उनको स्टेशन पर छोड़कर आता हूं और इनको ले जाता हूं।  इतने में एक  खाली शेयरिंग ऑटो वाला आया बोला," मुझे किसी ने भेजा है,  स्टेशन के लिए। डॉ. महेश पांडे ने उसे भेज दिया और मुझे समझाने लगे कि आप बिल्कुल घबराइए नहीं, इनसे तेज कार पहुंचा देगी, ड्राइवर आ रहा है बस इतने में पीछे से अरुण जी भी आते दिखे उनकी भी 11:30 बजे की गाड़ी थी। डॉ. सारिका गाड़ी का टाइम चेक कर रही थी। मेरी गाड़ी भी समय पर थी यानी पूरे 11:00 बजे. अब वे कहने लगे कि आप हमारे सामने निकल गई थी ना किला देखने को और बोला था वहीं से स्टेशन चले जाएंगी। अभी आपका फोन आया तब हमें पता चला कि आप नहीं  गई। हमें पता होता तो ऐसा बिल्कुल ना होता, पर आप बिल्कुल परेशान मत होइए और हल्की बूंदाबांदी तो चल रही थी। कभी भी तेज बारिश हो सकती थी और वह बताते जा रहे थे  गाड़ी आने वाली है, आने वाली है और गाड़ी आ गई।  अगला दरवाजा खोलकर बैठ गई उन्होंने हमारा सामान बगैरा रखा और गाड़ी हम तीनों को लेकर उड़ती हुई चल दी। जल्दी में मुझे डॉ. महेश पांडे को धन्यवाद करना भी याद नहीं रहा। उन्होंने किसी को जरा भी असुविधा नहीं होने दी।  ड्राइवर ने 10 मिनट पहले स्टेशन पर पहुंचा दिया। अब इन दोनों को बाय किए बिना  मैं प्लेटफार्म नंबर 4 की ओर चल दी। हड़बड़ाहट में प्लेटफार्म नंबर 3 पर उतर गई। मेरी परेशानी देखकर एक लड़के ने मेरे हाथ से किताबों का बंडल भी ले लिया और सामान भी ले लिया और अपने साथी से कहा मैं इनको 4 नंबर प्लेटफार्म पर छोड़ कर आता हूं। और वो छोड़ के जहां मेरा बी 2 डब्बा लगना था, वहां सामान रख कर चला गया। उसी वक्त गाड़ी आ गई। वहीं खड़े कुछ लड़कों ने जो मेरे डिब्बे के थे। मेरा सामान रख दिया। मेरी सीट  पर एक महिला सो रही थी। मेरे बैठते  ही उठ कर चली गई। सामने लोअर सीट पर दो लड़कियां बैठी थी, एक ब्लैक ब्यूटी और दूसरी गोरी ब्यूटी। गोरी ने मुझे कहा कि आप बी 1  में चली जाएंगी क्योंकि इसकी सीट वहां पर है यह हिंदी बिल्कुल नहीं जानती है, अकेली  मेरे बिना नहीं जाना चाहती। मैंने कहा कि अगर वह लोअर सीट है  तो मैं चली जाऊंगी। लोअर नहीं थी ।  जो मेरे साथ लड़के  चढ़े थे उनमें से एक बोला," मैं चला जाता हूं और वह चला गया। अब ब्लैक ब्यूटी उसकी सीट पर बिस्तर  लगाकर लेट गई, थोड़ी देर में वह लड़का वापस आया पता नहीं उस ने सीट की क्या कहानी सुनाई मैं नींद में थी। अब ब्लैक ब्यूटी फिर गोरी के पास अधलेटी बैठ गई। रात भर  कुछ सीट का चक्कर चलता रहा। ढंग से सो नहीं पाई। क्योंकि मेरा ध्यान इन कम उम्र लड़कियों पर ही लगा रहा। दिल्ली आने से पहले सब लड़के वगैरा उतरने की तैयारी में लग गए। सुंदरी ने एक प्रश्न उछाला कि हमें कोई ऐसी जगह आप लोगों को पता है जहां हम शाम तक रुक जाए थोड़ा रेस्ट कर लें, फ्रेश हो लें। अब वह सब जॉब वाले लड़के  गूगल से उनके लिए सर्च करने लगे और फिर गोरी बोली, "जो मिल रहे हैं , वह पैसा बहुत मांग रहे हैं,  हमें तो कुल थोड़ी देरी रुकना है। 11  बजे हम सरोजनी नगर मार्केट में शॉपिंग करने जाएंगे तो चार बज जाएंगे। शाम को देहरादून की ट्रेन है, समय पास करना है। लड़कियों के लिए सभी बहुत गंभीर हो गए। उन्होंने कहा कि पहाड़गंज के पास में मत ठहरना। बेहतर यही है कि स्टेशन के डोरमेंट्री में सामान रखकर टाइम बिताना। निजामुद्दीन स्टेशन पर गाड़ी लगती हैं। खूब बारिश थी सुबह 5:00 बजे थे पर बिल्कुल अंधेरा था। मेरे घर तक ऑटो डेढ़ सौ रुपए में आता है पर बारिश में 300 में आई। मेरी किताबो का कोई नुकसान नहीं हुआ और मेरी यात्रा को विराम मिला।

Saturday, 3 December 2022

पुनिया से राय प्रवीण! बुंदेलखंड की लोकगाथा झांसी यात्रा भाग 12 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 13 Neelam Bhagi

  





रात 9.00 बजे हम रिर्सोट पहुँचें, डिनर किया। मेरी 11 बजे की गाड़ी थी। डॉ. सारिका की 11.30 की। स्टेशन पहुँचाने के लिए एक गाड़ी खड़ी थी। हमने 10 बजे यहाँ से निकलना था। ओरछा का राय प्रवीण महल समय अभाव के कारण नहीं देख पाई। पर इस विदुषी महिला की जीवन यात्रा मेरे जे़हन बस गई, जिसने अपने वाक्यचार्तुय के बल पर अकबर को उसकी जिद छोड़ने पर मजबूर कर दिया और साथ ही उसे एक करोड़ रूपये का जुर्माना भी माफ करना पड़ा था। अपूर्व सुन्दरी, कुशल नृत्यांगना, संगीत साधिका, आचार्य केशव की शिष्या राय प्रवीण ने बुंदेलखंड का मस्तिष्क ऊँचा कर दिया था। वह सम्मान के साथ अपनी मातृभूमि पर लौटी थी। 

16वीं शताब्दी में ओरछा बड़ा और समृद्ध राज्य था। ओरछा के राजा मधुकर शाह ने अपने तीन बेटों वीर सिंह, राम सिंह और इंद्रजीत को अलग अलग जागीर दी। एक दिन इंद्रजीत ने अपनी जागीर में एक लड़की को नाचते और भजन गाते सुना जिसका नाम पुनिया था। इंद्रजीत ने उसके पिता को उसे राजा की ओर से शिक्षित करने को कहा। ये पुनिया बड़ी होने पर अब राय प्रवीण थी। इस दरबार की गायिका, कवियत्री, नर्तकी की ख़ूबसूरती पर राजा इंद्रजीत मोहित थे। उसके रूप के चर्चे दूर दूर तक फैले। मुग़ल बादशाह अकबर ने उसे अपने दरबार में भेजने का फरमान जारी किया। फरमान पाते ही इंद्रजीत हतप्रभ हो गए। ओरछा नरेश इंद्रजीत राय प्रवीण को पाकर अपने को गौरवशाली और धन्य समझते थे। वे उसे भेजना नहीं चाहते थे। उन्होंने दूत को वापिस लौटा दिया। तब अकबर ने ओरछा नरेश पर एक करोड़ रुपये का जुर्माना कर दिया। अब राजा इंद्रजीत परेशान हो गए। आचार्य केशवदास ने इंद्रजीत को समझाया कि हम लोग अकबर से टक्कर नहीं ले सकते इसलिए राय प्रवीण को उनके साथ शाही दरबार में भेज दीजिए। उन्हें उसकी बुद्धिमता पर विश्वास हैं वह अपने वाक्यचातुर्य के बल पर अपनी मर्यादा की रक्षा स्वयं कर लेगी। कहीं राय प्रवीण के दिल में भी इंद्रजीत को छोड़ कर जाते हुए मन में डर था कि अगर वह दरबार से न लौट सकी तो! उसने अपने मन की बात गुरूदेव से कह दी। आचार्य ने उसे भली भंाति समझाया। दोनों अकबर के दरबार में पहुंच कर, उन्हें प्रणाम करके बैठ गए। अकबर ने राय प्रवीण से कुछ प्रश्न पूछे, जिसके उसने काव्यमय उत्तर दिए। अकबर का मन उसे वहाँ रखने का था और उसने राय प्रवीण से प्रश्न भी कर दिया,’’क्या आप हमारे दरबार की शोभा बढ़ा सकती हो?’ राय प्रवीण ने जवाब दिया,’’आप महान विद्वान, गुणग्राही बादशाह हैं। मेरा अहोभाग्य है जो मुझे आपके शाही दरबार में आश्रय प्राप्त हो। जरा मेरी एक विनती सुन लीजिए -    

विनती राय प्रवीण की, सुनिये शाह सुजान।

जूठी पातर भकत को, वारी वायस श्वान।

 जिसका अर्थ है कि राजा की जूठी पत्तल को नौकर, कौवा, कुत्ता खाते हैं। कुछ देर अपनी भावनाओं पर अकबर ने काबू रखा फिर उसने जुर्माना माफ करके गुरू शिष्या को ससम्मान ओरछा भेजा। 

 इंद्रजीत ने राय प्रवीण के लिए बाग से घिरा ’राय प्रवीण महल’ बनवाया। ओरछा जाने वाले पर्यटकों को इसकी दीवारों पर बनी चित्र, पेंटिंग आकर्षित करते हैं। क्रमशः



Friday, 2 December 2022

आजाद पार्क ओरछा झांसी यात्रा भाग 11 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 11 Neelam Bhagi

 



आजाद पार्क ओरछा झांसी यात्रा भाग 11 नीलम भागी हम कुछ ही कदम चले, हमें एक ई रिक्शा


मिल गया। दो सौ रुपए रिर्सोट तक के उसने हमसे मांगे, हम झट से बैठ गए। हल्की बूंदाबांदी तो हो ही रही थी। सुबह श्रीधर पराड़कर जी रास्ते भर यहाँ के बारे में बताते जा रहे थे। चंद्रशेखर आजाद के बारे में बताया कि उन्होंने यहाँ अज्ञातवास बिताया। बैठक में समय से पहुँचना था इसलिए जब आजाद पार्क के सामने से गुजरे तो मैंने गाड़ी से ही फोटो ले ली थी। मेरे ज़हन में तो सुबह श्रीधर पराड़कर जी के बताए आजाद, कवि केशव और रायप्रवीण दिमाग में छा जाने वाले परिचय ही घूम रहे थे। पर ये क्या!! रिक्शावाले ने रिक्शा साइड में लगा कर आजाद पार्क के बारे में बताना शुरु किया। मैं तुरंत उतर कर चल दी। डॉ सारिका और डॉ. संजय पंकज भी आ गए। हमने वहाँ बाहर से ही तस्वीरें लीं।    

आजाद पार्क आजादपुरा(पुराना नाम ढिमरपुरा) में है।ं श्री राजाराम सरकार के दर्शन के लिए जाते हैं तो मेनरोड पर ही है।

क्रांतिकारी आंदोलन के प्रतीक अमर शहीद च्ंाद्रशेखर आजाद यहाँ 1924 में ओरछा में आए थे। ओरछा में रह कर वे क्रांति के सूत्रों का संचालन करते थे। 1930 तक ये सन्यासी के भेष में ब्रह्मचारी हरिशंकर के नाम से रहते हुए, यहाँ बच्चों को पढ़ाते थे और रामायण बांचते थे। उनकी कुल सम्पत्ति एक कंबल और रामायण का गुटका था। चंद्रशेखर आजाद का कोई क्रांतिकारी साथी समझाता कि उन्हें शहर में रहना चाहिए तो उनका जवाब होता कि ओरछा के आस पास आल्हा-ऊदल की भूमि, सदाचार के साधक हरदौला का चबूतरा है। कवि केशव और उनकी शिष्या राय प्रवीण की संगीत साधना है और सबसे बड़ी बात राजा राम सरकार पास में हैं। 

 पार्क के बगल से सतारा नदी निकलती है। 31 मार्च 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आदमकद कांस्य की चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा का लोर्कापण किया। पार्क की दीवारों पर बहुत सुन्दर चित्रकारी की गई है जो दिन में बहुत सुन्दर लगती है और रात में सड़क पर चलती गाड़ियों की लाइट जब बाउण्ड्रीवाल पर पड़ती है तो ये चित्रकारी बहुत आर्कषक लगती है। हम रिक्शा पर बैठे। और मैंने रिक्शावाले की देशभक्ति को मन ही मन सराहा जिसने खराब मौसम में बिना हमारे कहे। हमारा आजाद पार्क से परिचय करवाया। क्रमशः 







 


Thursday, 1 December 2022

सशस्त्र सलामी दी जाती है श्री राजाराम सरकार को! झाँसी यात्रा भाग 10 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 10 Neelam Bhagi



मैं तो सुबह यहाँ आ चुकी थी। सब आरती के लिए चले गए। मैं अपनी आदत के अनुसार  साफ सुथरे मंदिर प्रांगण में घूमती रही, दुकाने देखती रही। करोड़ों लोगों की आस्था के केन्द्र इन प्राचीन मंदिरों में, मुझे यहां बैठने से अलग सा सकून मिलता है इसलिए मैं हमेशा की तरह बैठ गई।

राजा राम के अयोध्या से ओरछा आने की कथा बहुत मनोहारी है। कथाओं के अनुसार ओरछा के शासक मधुकर शाह कृष्ण भक्त थे पर उनकी रानी रामभक्त थीं। राजा मधुकर शाह ने एक बार महारानी कुंवरि गणेश से वृंदावन चलने कर प्रस्ताव किया तो उन्होंने विनम्रता से टाल कर अयोध्या जाने का आग्रह किया। राजा ने कहा कि आप अपने राम को ओरछा लाकर दिखाओ। महारानी ने चैलेंज स्वीकार कर लिया। उन्होंने अयोध्या जाकर 21 दिन तक तप किया। कोई परिणाम न मिलने पर उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी। जहाँ श्रीराम का बाल रूप उनकी गोदी में आ गया। महारानी ने उनसे अयोध्या चलने की विनती की। भगवान ने तीन शर्तें रख दीं। 

ओरछा में जहाँ बैठ जाउँगा वहाँ से नहीं उठूंगा।

राजा के रुप में विराजमान होने पर वहाँ किसी और की सत्ता नहीं चलेगी।

स्वयं बालरूप में पैदल पुष्प नक्षत्र में साधु संतों के साथ चलेंगे।

 भगवान के ओरछा आने का सुन कर राजा ने उन्हें बैठाने के लिए भव्य चर्तुभुज मंदिर का निर्माण करवाया इस तैयारी के दौरान महारानी ने भगवान को रसोई में ठहराया। अब भव्य मंदिर सूना पड़ा है और भगवान रसोई में ही विराजमान हैं। पर ओरछा में श्रीरामराजा सरकार का ही शासन चलता है। सब कुछ समय से होता है। चार पहर आरती होती हैं, सशस्त्र सलामी दी जाती हैं। ओरछा की चारदीवारी में कोई वीवीआईपी हो तो भी उन्हें सलामी नहीं दी जाती हैं। 31 मार्च 1984 को श्रीमती इंदिरा गांधी दर्शनों के लिए पहुँची। भगवान को भोग लग रहा था। उनको नियम बताए तो उन्होंने भी लगभग आधा घण्टा दर्शन के लिए इंतजार किया। 

क्योंकि 600 साल पहले महारानी कुंवरि गणेश  की गोद में रामलला आए थे। उनके लिए बनवाए भव्य मंदिर में न विराजकर वे उनकी रसोई में विराज गए थे तब से ब्ंाुदेलखंड में यह गूंजता है।           

राम के दो निवास खास, दिवस ओरछा रहत, शयन अयोध्या वास

यहाँ राजा श्रीराम का शासन चलता है। दिन भर ओरछा रहने के बाद शयन के लिए भगवान अयोध्या चले जाते हैं। रात में आरती होने के बाद ज्योति निकलती है, जो पास ही स्थित पाताली हनुमान मंदिर ले जाई जाती है। मान्यता है कि ज्योति के रूप में श्रीराम को हनुमान जी शयन के लिए अयोध्या ले जाते हैं। सबके आने पर हम मंदिर से बाहर आकर सवारी ढूंढने लगे मंदिर से दर्शनार्थियों की भीड़ निकली। झांसी जाने वाली कुछ ही ऑटो थे और लोग ज्यादा थे। हम पैदल चल दिए कि जो भी सवारी मिलेगी ले लेंगे। क्रमशः










Wednesday, 30 November 2022

झांसी का किला और पर्यटन स्थल झांसी यात्रा भाग 9 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 9 Neelam Bhagi

मैं श्री राजा राम सरकार का मंदिर ओरछाधाम में सुबह दर्शन कर आई थी। अब मैंने झांसी के किले को देखना था। जानती थी कि किला इस समय बंद हो गया है। पर बचपन से मेरे मन पर वीरांगना की जो छवि बनी है, जिसने आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया था और ये किला उसका गवाह है। इसके कारण मैं किले पर जरुर जाना चाहती थी। डॉ. सारिका कालरा सुबह ही लेखक समूह की बैठक में दिल्ली से रातभर का सफ़र करके पहुँची थीं। उनकी 11.30 की गाड़ी थी मेरी 11 बजे की थी। हम दोनों ने एक साथ स्टेशन पर आना था। श्रीराजाराम सरकार की आरती 8 बजे से थी। डॉ. सारिका थोड़ा आराम करके वहाँ जाना चाहतीं थी। मैंने कहा तो मेरे साथ किले के लिए चल दीं। वीना राज जी को स्टेशन छोड़ने जो गाड़ी जा रही थी, वही हमें किले पर छोड़कर आती और वहाँ शो देखकर हम स्टेशन पर अपने आप चले जाते। जाते समय हमें खाने के पैकेट भी पकड़ा दिए। हल्की बूंदाबांदी तो हमारे चलते ही शुरु हो गई थी। झांसी से परिचय करते हुए हम जा रहे थे। ड्राइवर भी शहर के बारे में बताता जा रहा था। स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्तियाँ चौराहों पर लगी हुई थीं। पर बूंदाबांदी के कारण गाड़ी से उतर कर हम ऐतिहासिक शहर की तस्वीरें नहीं ले पा रहे थे। अंदर से जो लीं वो बरसात से साफ नहीं हैं। 15 एकड़ में फैला झांसी का किला सुबह सात से शाम 6 बजे तक खुलता है। सायं 7.30 बजे शो होता है। बंगरा नामक पहाड़ी पर 1613ई. में यह दुर्ग ओरछा के बुन्देल राजा बीरसिंह जुदेव ने बनवाया था। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इस किले की महत्वपूर्ण भूमिका थी। किला दूर से ही दिखने लगा था, कुछ दूर पर गाड़ी रोक दी। ड्राइवर ने कहा कि आप जाकर पूछ लो कि समान जमा करने की कोई जगह है तो लौटते समय वहाँ से ले लेना। मैं और डॉ. सारिका किले के मुख्यद्वार पर पहुँचे जो कॉफी ऊँचाई पर था। वहाँ  पूछा कि टिकट कब मिलेगी? उसने कहा,’’सात बजे।’’ मैंने पूछा,’’आप हमारा सामान रख लेंगे हम शो के बाद ले लेंगे।’’उसने जवाब दिया,’’नहीं।’’ मैंने पूछा,’’यहाँ से कितनी दूरी पर शो होता है,’’ उन्होंने बताया,’’पहले इधर, फिर उधर, जिधर फिर फाँसी घर आयेगा उसके पास शो होता है। अगर बरसात हो गई तो कैंसिल हो जायेगा।’’ उनके बताए मार्ग में जिधर तक मेरी नज़र गई, बहुत अच्छी बनी हुई है पर सड़क पर चढ़ाई थी। हमारे पास किताबें बहुत थीं। सामान लेकर हम नहीं जा सकते थे। वहाँ ऊँचाई से रात में झाँसी बहुत सुन्दर लग रहा था। उस दिन बारावफात था। किले के आस पास बहुत रौनक थी। लौट कर गाड़ी में बैठ गए और रिर्सोट की ओर चल दिए कि वहाँ सामान रख कर ओरछाधाम चले जायेंगे। कुछ लोगों ने कल जाना था। बहुत कम लोगों ने स्टेशन जाना था। एक गाड़ी समय से स्टेशन पर छोड़ने जाती। रिर्सोट के सामने जा रहे एक ऑटो को ड्राइवर ने रुकवा दिया। दोनों रिर्सोट में सामान रखने गए तो डॉ. संजय पंकज(बिहार) और अरुण जी(राजस्थान) ओरछाधाम के  लिए आ रहे थे। हमने उनसे कहाकि वे जाकर ऑटो पर बैठे और हम आ रहीं हैं। हमारे आते ही ऑटो हमें ले चला। आरती से पहले हम पहुँच गए। क्रमशः 









        

       


Sunday, 27 November 2022

अखिल भारतीय साहित्य परिषद की लेखक समूह की राष्ट्रीय बैठक, झांसी यात्रा भाग 8 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 8 Neelam Bhagi

 


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भारतीय भाषाओं का देशव्यापी राष्ट्रीय संघटन अखिल भारतीय साहित्य परिषद की 9 अक्टूबर को लेखक समूह की राष्ट्रीय बैठक का आयोजन, ओरछा तिगेला स्थित रॉयल गार्डन में किया गया। इस बैठक में देशभर के 15 राज्यों के सैंकडा़ से अधिक प्रतिष्ठित लेखकों ने सहभागिता करते हुए समाज, संस्कार सहित राष्ट्रीय चिंतन से जुड़े विभिन्न विषयों पर चर्चा परिचर्चा करते हुए देश के विकास व संस्कृति के उत्थान में लेखकों का दायित्व कैसा हो, इस पर मंथन व मनन किया।




बैठक के मुख्य अतिथि परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री व देश के वरिष्ठ लेखक श्रीधर पराड़कर ने वर्तमान समय के लेखकों  से ईमानदारी व सत्यता के साथ लिखने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि लेखक समाज की धूरी होते हैं। इन्हें अपने दायित्वों का निर्वाह सजगता पूर्वक करना चाहिए। समय बदला है पाठकों की मानसिकता बदली है, लेखन में भी इसका प्रभाव आ रहा है।  मुख्य वक्ता श्रीधर पराड़कर और अन्य वक्ताओं में श्रीकृष्ण उपाध्याय ने कहाकि कुछ समय पहले तक साहित्य का अर्थ था जिस पर कुछ विशेष लोगों का कब्जा़। नये लोगों के लेखन की खिल्ली उड़ाना, जिससे कुछ तो लिखना ही छोड़ देते थे। साहित्य परिक्रमा पत्रिका के संपादक इंदुप्रकाश ’तत्पुरुष’ ने लेखकों को बताया कि इस वैचारिक पत्रिका में किस प्रकार के लेख, कहानियाँ, कविता, गज़ल, लधु कथा, यात्राएँ(संवेदना) ललित निबंध, पुस्तक समीक्षा छपते हैं। परिषद  के राष्ट्रीय महामंत्री ऋषिकुमार मिश्रा और राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ0 पवनपुत्र बादल, उन्होंने संस्कृति, संस्कार व लेखन का आपस में संबंध कैसा और किस प्रकार हो, इस पर भी चर्चा की। साहित्य लेखन के विकृत रुप पर भी चर्चा की गई। इसके अलावा अन्य आमन्त्रित वक्ताओं ने अपने अपने विचार व्यक्त कर लेखकों को समाज हित में लेखन के लिए आह्वाहन किया।

  बैठक के चौथे सत्र में लेखकों का अलग अलग विधाओं का समूह बना दिया गया। मुझे कथा समूह में रखा गया और हमें गाइड डॉ0 दिनेश प्रताप सिंह ने किया। मंच पर बैठने वाले विद्वान वक्ता समूह के साथ गोल घेरे में बैठकर हमसे प्रश्न पूछ रहे थे, हमारे प्रश्नों का जवाब दे रहे थे। ऋषिकुमार मिश्रा जी ने सबको गिफ्ट भी दिया। प्रो0 नीलम राठी(राष्ट्रीय मंत्री), डॉ0 साधना बलवटे(राष्ट्रीय मंत्री), उत्तर प्रदेश के महामंत्री डॉ0 महेश पाण्डेय, परिषद् के कानपुर प्रांत के अध्यक्ष डॉ0 प्रहलाद बाजपेयी, प्रांतीय उपाध्यक्ष डॉ0 पवन गुप्ता तूफान, प्रांतीय संगठन मंत्री डॉ0 महेन्द्र शुक्ला, प्रांतीय मंत्री शिव कमल मिश्रा, शिवमंगल सिंह, रीता तिवारी लखनऊ, आदि राज्यों के लोग मौजूद रहे। स्थानीय लोगों में परिषद के जिला अध्यक्ष प्रताप नारायण द्विवेदी, महामंत्री विजय प्रकाश सैनी, उपाध्यक्ष के. एन. श्रीवास्तव, बृजलता मिश्रा आदि लोग मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन क्रमवार डॉ0 पवनपुत्र बादल, ऋषि कुमार मिश्र व अन्य लोगों ने अलग अलग सत्रों में किया। अतिथियों का स्वागत धीरज मिश्रा व रवि मिश्रा एवं आभार व्यक्त डॉ0 महेश पाण्डे बजरंग ने किया। आठ घण्टे कैसे बीत जाते पता ही नहीं चलता। मान. श्री रामरतन कुशवाहा एड. विधायक ललितपुर भी आकर सबके बीच में बैठ कर विद्वान वक्ता को सुनते रहे और उस सत्र के समापन पर ही गए। और हमारी लेखक समूह की राष्ट्रीय बैठक का समापन हुआ। रात 11 बजे की गाड़ी थी अब पर्यटन की तैयारी शुरु।  क्रमशः    






Saturday, 26 November 2022

श्री राम राजा सरकार मंदिर जी ओरछा धाम झांसी यात्रा भाग 7 नीलम भागी Jhansi Yatra Part7 Neelam Bhagi

 


गाड़ी स्टार्ट होते ही प्रोफेसर नीलम राठी अपने फोन में लग गई पर फोन काम नहीं कर रहा था। इतने में प्रवीण गुगलानी जी बोले," एक एक प्लेट पोहा खाते हैं।" प्रो. नीलम  बोली," बिल्कुल नहीं, पहले धीरज मिश्रा से पूछ लो कि हम लोग इतनी देर से आ रहे हैं, हमें खाना मिल जाएगा! अगर खाना नहीं मिल रहा है तो खाना पैक करवा लो ताकि खाने में भी समय खराब ना हो।" मैंने कहा," आप बिल्कुल चिंता न करें। यहां कल रात को जो 2:00 बजे भी आ रहा था, उसे भी गरम खाना मिल रहा था। अब देखना जाकर ऐसा ही होगा।" जब हम पहुंचे हमें खाना तैयार मिला। फुल्के गरम गरम थाली में आ रहे थे।  रूम में आते ही प्रो. नीलम ने फोन पर मेहनत की पर फोन नहीं चला। जब  प्रवीण गुगलानी जी की जप साधना समाप्त होने के इंतजार में  प्रो. नीलम सबके  साथ बैठी थीं, तब उन्हें कोने में जगह मिली। वहां से गुजरने वाले किसी श्रद्धालु की लात लगने से उनका फोन गिर गया और खराब हो गया। उसी में उनकी टिकट भी थी। फोन नंबर आजकल कोई याद नहीं रखता यानि बहुत परेशानी! कल संचालन भी करना था। सुबह उठते ही वह मीटिंग के लिए गई। आकर बताया कि जल्दी से  बाहर आ जाओ, राजाराम के दर्शन करने जाना है। मैं तो तैयार ही बैठी थी तुरंत उनके साथ चल दी। श्रीधर पराड़कर जी, ऋषि कुमार मिश्रा जी, प्रोफ़ेसर दिनेश प्रताप सिंह जी, डॉ. देवी प्रसाद तिवारी हम चल दिए। श्रीधर पराड़कर जी रास्ते में उस जगह के बारे में बताने लगे और नृत्यकी राय प्रवीण, कवि केशव, चंद्रशेखर आजाद के बारे में बताया। सड़क के दोनों ओर  हरियाली से भरे रास्ते में श्रीधर पराड़कर जी को सुनते हुए जा रहे थे। बहुत जल्दी मंदिर आ गया। एक ओर खूबसूरत मंदिर का भवन खड़ा है। सामने महल जैसा मंदिर है जिसमें राजा राम विराजमान है।




चप्पल संभालने की व्यवस्था अच्छी है। सबसे अच्छी बात लगी जैसे ही मैंने जूते रैक में रखे, तुरंत  बोतल के ढक्कन में कई छेद करके, उसमें पानी भरा हुआ था। बिना कहे उस बोतल की फुहार से मेरे हाथ धुलवा दिए।  हाथ धोने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता। मंदिर के अंदर फोटो लेना मना है इसलिए मोबाइल पर्स में रख कर हाथ जोड़ें हम लाइन में लगे थे।  कीर्तन चल रहा था। बहुत श्रद्धा भाव से गाया जा रहा था। जिससे  मन में एक अलग सा भाव आ रहा था। लाइन में चल रहे थे और कानों में भक्ति भाव से गाए भजन सुनाई दे रहे थे। बहुत अच्छे से दर्शन हुए। घर के लिए प्रसाद खरीदा। प्रसाद ले जाने की व्यवस्था बहुत पसंद आई।  अलग-अलग रेट से थी। आपको प्रसाद छोटी-छोटी पैकिंग में मिलेगा जो मित्रों पड़ोसियों को देने में बहुत आसान है। साथ में जितने बॉक्स उतने पान ।






मंदिर के आसपास सौभाग्यवती महिलाओं के सामान की दुकाने हैं। मिठाई खानपान , गिफ्ट आइटम, पूजा का सामान आदि।  मंदिर के आसपास की दुकानें देखते हुए बाहर आए। एक महिला जमीन से ताजी निकाली हुई कच्ची मूंगफली बेच रही थी। 

प्रोफेसर दिनेश नहीं आए हम गाड़ी में उनका इंतजार करते रहे। कुछ देर बाद आए तो उनके हाथ में खूबसूरत दीपक जलाने वाला पीतल का लैंप था। उनके बैठते ही गाड़ी चल पड़ी। श्रीधर पराड़कर जी ने उसे देखने के लिए लिया और सोच में पड़ गए कि इसके अंदर दीपक कैसे रखा जाएगा! इस चर्चा में  आयोजन स्थल आ गया।   लेखक समूह की बैठक थी इसलिए हम जल्दी आ गए । मुझे धार्मिक स्थल में कुछ देर बैठना,  अच्छा लगता है।  हमेशा ग्रुप में गई हूं।  जहां नहीं  बैठ पाती, वहां अपने आप से कहती हूं,  मैं कौन सा मरने वाली हूं, मैं फिर आऊंगी। आयोजन स्थल पर पहुंचे तो  बहुत लाजवाब दक्षिण भारतीय पर मिठाई उत्तर भारतीय, नाश्ता लगा हुआ था। बतियाते हुए नाश्ते का आनंद उठाया और लेखक समूह की बैठक के लिए हॉल में गए। क्रमशः