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Sunday, 4 December 2022

झांसी से दिल्ली झांसी यात्रा भाग 14 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 14Neelam Bhagi


 रात 10:00 बजे मैं और डॉ. सारिका लगेज लिए  स्टेशन के लिए निकले दूर रिसॉर्ट के गेट से दो लेखक आते दिखे और कार जाती। मैं जोर से चिल्लाई गाड़ी रोको पर इतनी दूर मेरी आवाज नहीं पहुंची। पास आने पर उन्होंने बताया,"  वे पितांबरा देवी के दर्शन करके आए हैं और उनका तीसरा साथी स्टेशन गया। हम दतिया से आए हैं।" यानि कार गई। इस जगह से तो कोई सवारी भी नहीं गुजर रही थी। मैं सामान के साथ चलते हुए डॉक्टर महेश पांडे को फोन लगा रही थी, जो अंगेज आ रहा था। डॉ. सारिका जल्दी-जल्दी चलती जा रही थी, चौराहे पर रुक गई। मैं उनके पीछे-पीछे डॉ. महेश पांडे का कॉल आया, मैंने उन्हें बताया कि कार तो चली गई है।  मेरी 11:00 बजे  की गाड़ी है, कैसे करें?  अगर कोई मोटरसाइकल गुजरता तो डॉ सारिका उसे कहती कि रास्ते में ऑटो  टैक्सी मिले तो इधर स्टेशन जाने के लिए भेजना।  डॉ. महेश पांडे  फोन पर बोले," प्लीज आप रुकिए, मैं अभी आ रहा हूं और बस उसी वक्त चल पड़े और हमारे पास लगभग दौड़ते हुए आए बोले," आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए। हम आपको कैसे भी पहुंचाएंगे और ड्राइवर से फोन पर बात करने लगे उसने कहा कि जो गेस्ट हैं, मैं अभी उनको स्टेशन पर छोड़कर आता हूं और इनको ले जाता हूं।  इतने में एक  खाली शेयरिंग ऑटो वाला आया बोला," मुझे किसी ने भेजा है,  स्टेशन के लिए। डॉ. महेश पांडे ने उसे भेज दिया और मुझे समझाने लगे कि आप बिल्कुल घबराइए नहीं, इनसे तेज कार पहुंचा देगी, ड्राइवर आ रहा है बस इतने में पीछे से अरुण जी भी आते दिखे उनकी भी 11:30 बजे की गाड़ी थी। डॉ. सारिका गाड़ी का टाइम चेक कर रही थी। मेरी गाड़ी भी समय पर थी यानी पूरे 11:00 बजे. अब वे कहने लगे कि आप हमारे सामने निकल गई थी ना किला देखने को और बोला था वहीं से स्टेशन चले जाएंगी। अभी आपका फोन आया तब हमें पता चला कि आप नहीं  गई। हमें पता होता तो ऐसा बिल्कुल ना होता, पर आप बिल्कुल परेशान मत होइए और हल्की बूंदाबांदी तो चल रही थी। कभी भी तेज बारिश हो सकती थी और वह बताते जा रहे थे  गाड़ी आने वाली है, आने वाली है और गाड़ी आ गई।  अगला दरवाजा खोलकर बैठ गई उन्होंने हमारा सामान बगैरा रखा और गाड़ी हम तीनों को लेकर उड़ती हुई चल दी। जल्दी में मुझे डॉ. महेश पांडे को धन्यवाद करना भी याद नहीं रहा। उन्होंने किसी को जरा भी असुविधा नहीं होने दी।  ड्राइवर ने 10 मिनट पहले स्टेशन पर पहुंचा दिया। अब इन दोनों को बाय किए बिना  मैं प्लेटफार्म नंबर 4 की ओर चल दी। हड़बड़ाहट में प्लेटफार्म नंबर 3 पर उतर गई। मेरी परेशानी देखकर एक लड़के ने मेरे हाथ से किताबों का बंडल भी ले लिया और सामान भी ले लिया और अपने साथी से कहा मैं इनको 4 नंबर प्लेटफार्म पर छोड़ कर आता हूं। और वो छोड़ के जहां मेरा बी 2 डब्बा लगना था, वहां सामान रख कर चला गया। उसी वक्त गाड़ी आ गई। वहीं खड़े कुछ लड़कों ने जो मेरे डिब्बे के थे। मेरा सामान रख दिया। मेरी सीट  पर एक महिला सो रही थी। मेरे बैठते  ही उठ कर चली गई। सामने लोअर सीट पर दो लड़कियां बैठी थी, एक ब्लैक ब्यूटी और दूसरी गोरी ब्यूटी। गोरी ने मुझे कहा कि आप बी 1  में चली जाएंगी क्योंकि इसकी सीट वहां पर है यह हिंदी बिल्कुल नहीं जानती है, अकेली  मेरे बिना नहीं जाना चाहती। मैंने कहा कि अगर वह लोअर सीट है  तो मैं चली जाऊंगी। लोअर नहीं थी ।  जो मेरे साथ लड़के  चढ़े थे उनमें से एक बोला," मैं चला जाता हूं और वह चला गया। अब ब्लैक ब्यूटी उसकी सीट पर बिस्तर  लगाकर लेट गई, थोड़ी देर में वह लड़का वापस आया पता नहीं उस ने सीट की क्या कहानी सुनाई मैं नींद में थी। अब ब्लैक ब्यूटी फिर गोरी के पास अधलेटी बैठ गई। रात भर  कुछ सीट का चक्कर चलता रहा। ढंग से सो नहीं पाई। क्योंकि मेरा ध्यान इन कम उम्र लड़कियों पर ही लगा रहा। दिल्ली आने से पहले सब लड़के वगैरा उतरने की तैयारी में लग गए। सुंदरी ने एक प्रश्न उछाला कि हमें कोई ऐसी जगह आप लोगों को पता है जहां हम शाम तक रुक जाए थोड़ा रेस्ट कर लें, फ्रेश हो लें। अब वह सब जॉब वाले लड़के  गूगल से उनके लिए सर्च करने लगे और फिर गोरी बोली, "जो मिल रहे हैं , वह पैसा बहुत मांग रहे हैं,  हमें तो कुल थोड़ी देरी रुकना है। 11  बजे हम सरोजनी नगर मार्केट में शॉपिंग करने जाएंगे तो चार बज जाएंगे। शाम को देहरादून की ट्रेन है, समय पास करना है। लड़कियों के लिए सभी बहुत गंभीर हो गए। उन्होंने कहा कि पहाड़गंज के पास में मत ठहरना। बेहतर यही है कि स्टेशन के डोरमेंट्री में सामान रखकर टाइम बिताना। निजामुद्दीन स्टेशन पर गाड़ी लगती हैं। खूब बारिश थी सुबह 5:00 बजे थे पर बिल्कुल अंधेरा था। मेरे घर तक ऑटो डेढ़ सौ रुपए में आता है पर बारिश में 300 में आई। मेरी किताबो का कोई नुकसान नहीं हुआ और मेरी यात्रा को विराम मिला।

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