पानी बेचने वाला आया तो मैंने दो बोतल रेल नीर की खरीदी। उसने 40रू मांगे। मैं देने लगी तो सभी कोरस में बोले,’’15रू की बोतल के तुम 20रू कैसे लोगे?’’मुझे हमेशा प्लेटर्फाम पर 15रु की बोतल मिलती थी। ट्रेन में 20रु मांगता तो मैं दे देती थी। अब उसने 100 में से 30रु काट कर मुझे 70रु लौटा दिए। एक बोतल भुवनेशजी के पास रखी तो वो बोल कि उनके पास भी दो लीटर. है। मैं बोली,’’ऊपर ही रखो, मैं ले लूंगी। अब वे डिनर के लिए नीचे आए तो बहुत परेशान लगे। पूछने पर बताया कि दिल्ली एमसीडी के चुनाव में वे बहुत व्यस्त हैं और साहित्य संर्वधन यात्रा के लिए 5 अगस्त से स्वीकृति दी हुई है। सीमित संख्या है जाना जरुरी है। उनके लगातार फोन आ रहे थे। मैंने कहा कि अब यात्रा में मन लगाओ। लौटने पर फिर वहाँ संभाल लेना। आपको मैंने मंच संचालन से लेकर कार्यक्रमों की कुशलता से व्यवस्था संभालते हुए देखा है। खाना खाकर वे जाकर सो गए। सुन्दरी परिवार ने मैसेज किया कि खाना सब यहीं खाकर जायेंगे। सब आते रहे खाते रहे, सुंदरी सबके साथ खाती रही। कुल 16 लोगों ने खाया। नीचे कचरे का ढेर लग गया। सामने फोटो लेती तोे लड़ाई का डर था। सोचा कि इनके सोने पर लूंगी। सुन्दरी ने लाइट बंद की। 4 न0 पर सुन्दरी दो बेटियों के साथ सो गई। छोटी बेटी के हाथ में नर्सरी राइम लगा कर मोबाइल दे दिया। 5 न0 पर भाई ने खिड़की की तरफ सिर किया और बहन ने रास्ते की ओर और 6 न0 पर भी इसी तरह दो लोग सो गए। मेरा तकिया पता नहीं कब उनके पास पहुंच गया। पर इनके पास 6 तकिए थे। बराबर के कैबिन में चर्चा भी चल रही थी और लाइट भी जल रही थी। चर्चा का विषय था अमुक गाँव में कितने आई.ए.एस, पी.सी.एस. और आई.आई.टी आदि में निकले हैं। नर्सरी राइम की धुन में मैं सो गई। बच्ची के रोने से और र्दुगन्ध से रात को दो बजे मेरी नींद खुल गई। पहले अंधेरे में कचरे की फोटो ली। गला सूख रहा था। मैंने अपनी बोतल में से दो घूट पानी पिया था, बोतल नहीं थी। 6 बजे की गाड़ी थी दिनभर का पानी का कोटा लगभग मैंने घर में ही पूरा कर लिया था। गंदे वाशरुम के कारण गाड़ी में मैं कम ही पानी पीती हूँ। जब मैं सोई तो साइड टेबल पर सुंदरी की आधी पानी की बोतल थी, मेरी लगभग पूरी थी। अब सिर्फ एक बोतल थी आधी। देखा सुंदरी ने मेरी ओर पीठ किए ही बिना देखे ही पानी की बोतल उठाई और लेटे लेटे गर्दन उठा कर गटगट पी गई। मैं बोली,’’यहाँ मेरा पानी था।’’उसने बिना इधर देखे जवाब दिया, वहीं होगा, हमारा तो अपना ही नीचे ढेर लगा हुआ है और सो गई। बच्ची उसी वॉल्यूम से रोती रही। फोन की चार्जिंग खत्म हो गई थी। सुंदरी ने उससे फोन लेकर नींद में ही पर्स में डाल लिया। और बच्ची को बिना चुप कराए गहरी नींद में सो गई। मैंने नीचे उसकी नैपी को पेपर से ढक दिया। भुवनेश जी ने नई पानी की बोतल ऊपर स्टैण्ड पर ही रख दी थी। मैंने उठा कर पी और सीट के कोने में रख ली। बच्ची के रुदन में ही मैं सो गई। सुबह जैसे ही मेरी आँख खुली मेरे उठने का ही इंतजार हो रहा था। मेरे पैरों के पास की जरा सी जगह में मीडिल सीट के कारण गर्दन झुकाए भइया सुन्दरी से बतिया रहे थे। तुरंत बोले,’’आप परेशान न होइए, हम अभी सीट खोल देते हैं। मेरे खड़े होते ही दो भइया ने बिस्तर हटा कर सीट खोल कर मेरे बैठने की जगह छोड़ कर दोनों बैठ कर बतियाने लगे। क्रमशः
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