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Tuesday, 3 January 2023

जानकी प्रकटया मंदिर सीतामढ़ी साहित्य संवर्धन यात्रा नीलम भागी Janki Mandir Part 4 Neelam Bhagi

 


होटल में मेरे साथ अहमदाबाद की डॉ0 ख्याति पुरोहित ने रुम शेयर किया। तैयार होकर हम सब डिनर के लिए गए। लौटने पर बैठक हुई। जिसमें सबका परिचय हुआ और श्रीधर पराड़कर जी(राष्ट्रीय संगठन मंत्री) ने यात्रा का मकसद बताया। पराड़कर जी को सुनने के बाद लगा कि ये यात्रा मेरी पहले इन्हीं स्थानों पर दो बार की गई यात्राओं से अलग होगी। काठमाण्डु में चुनाव था इसके कारण वहाँ जाना सम्भव नहीं था इसलिए यात्रा एक दिन कम हो गई। लेकिन रिर्जवेशन न मिलने के कारण, हम वहाँ रह कर घूम सकते थे। मैंने पराड़कर जी को बहुत ध्यान से सुना। उनको सुनने से पहले जिन बिन्दुओं की उन्होंने चर्चा की मैं वह सब नहीं जानती थी। ये मेरे मन की बात है, मुझे लगा कि मैं इस यात्रा में एक विद्यार्थी हूँ। सुबह सात बजे हमें जानकी प्रकट्या मंदिर जाना था। मैं समय से तैयार होकर आ गई। बाजू की दुकान पर चाय का आर्डर किया। सब बाहर खड़े बतिया रहे थे। मैं जाकर अंदर बैंच पर बैठ गई। जो चाय बना रहा था, उसकी मेरी तरफ पीठ थी। वह बड़ी लगन से चाय बना रहा था। जब चाय उबलती तो पैन का हैंण्डल पकड़ कर उसे घूमाता साथ ही उसकी कमर भी घूमती थी। चाय बनते ही कुल्हड़ में फटाफट डाल देता। चाय पीते हुए मेरा मनोरंजन भी हो रहा था। जैसे ही ई रिक्शा आई, मैं चालक के साथ आगे बैठ गई।

रेलवे स्टेशन से डेढ़ किमी. की दूरी पर जानकी मंदिर है। दस बीस रूपये में ई रिक्शा ले आता है। बस स्टैएड से पाँच किमी दूर है इसलिए 40रू लेता है। होटल से जानकी मंदिर ज्यादा दूर था। सुबह के समय सड़कों पर झाड़ लग रहा था और फुटपाथ पर ताजी सब्जियाँ बेचने के लिए सजाई जा रहीं थी। उतनी ही यहाँ की नदियों, तालाबों की अधिकता के कारण, उनमें पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की मछलियाँ बिक रही थी। टोकरों में मखाने बिक रहे थे। जब रिक्शा विजय शंकर मार्किट से निकली तो चालक बताने लगा कि ये कपड़े की सबसे बड़ी मार्किट है। नेपाल से यहाँ बहुत ग्राहक आता है। जैसे ही रिक्शा रुका तो मंदिर के पास मैथिली के बहुत मधुर भजन बजने सेे वहाँ अलग सा भाव पैदा हो रहा था।

मंदिर में प्रवेश करते ही सामने बापू की संगमरमर की मूर्ति नज़र आई, अब बापू तो बिहार की आत्मा में बसे हैं और आत्मा तो परमात्मा का रूप है शायद इसलिये मंदिर में विराजमान हैं।


मैं जब पहली बार आई थी तो इस मूर्ति को देख कर पूछा था,’’ये कौन देवता हैं?’’ जवाब मिला कि बापू हैं। चंपारन, मोतीहारी गई तो वहाँ की तस्वीरों मूर्तियों में बापू बूढे़ नहीं थे और काठियावाड़ी परिधान में थे। चम्पारन आंदोलन से लौटते हुए उनका वेश दरिद्र नारायण का था और वे बापू कहलाए। जैसे भगवान की मूर्तियों की पूजा में रोली टिका लगाते हैं, ऐसे ही किसी ने बापू को भी लगाया था। शायद शिवलिंग की तरह बापू पर जल भी चढ़ाया था। इसलिए उनके शरीर पर कहीं कहीं रंग भी फैला हुआ था। सबके एक जगह एकत्रित होने पर वाल्मीकि कुमार जी जानकी मंदिर के बारे में जानकारी देने लगे।क्रमशः

  



2 comments:

tiktok said...

Bahut he badiya balog . Or bahut achi jankari .

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार