Search This Blog

Monday, 30 January 2023

धनुष धाम धनुषा नेपाल साहित्य संर्वधन यात्रा भाग14 नीलम भागी Dhanusha Nepal Sahitya Samvardhan Yatra Part 14 Neelam Bhagi

साफ बढ़िया बनी सड़क पर चारों गाड़ियाँ दौड़ने लगी। वृक्षारोपण किया गया हैं। कहीं कहीं तो लकड़ी के ट्री र्गाड हैं। सड़कों पर शहीद द्वार बने हैं तो किसी चौराहे पर राजा जनक हल जोत रहें हैं की मूर्ति है। कमला माई को भी देखा जैसी संगोष्ठी में पवित्र नदी की चिंता की गई थी वैसे ही पाया। 18 किमी. की दूरी 45 मिनट में पूरी करके मंदिर पहुंच गए। वहाँ शांत भीड़ मंदिर परिसर से बाहर खड़ी थी। पता चला कि वहाँ चुनाव हुए हैं वोटो की गिनती चल रही है। 








 जूते उतार कर मंदिर में प्रवेश किया।      

   लोकमान्यता के अनुसार दधीचि की अस्थियों से वज्र, सारंग तथा पिनाक नामक तीन धनुष रूपी अमोघ अस्त्रों का निर्माण हुआ था। वज्र इंद्र को मिला था। सारंग विष्णुजी को मिला था और पिनाक शिवजी का था जो धरोहर के रूप में जनक जी के पूर्वज देवरात के पास रखा हुआ था।

 इस धनुष को उठाना और उसकी प्रत्यंचा चढ़ाना, जनक जी के वंश में किसी के वश की बात नहीं थी। इसका कभी प्रयोग ही नहीं हुआ इसलिए यह पूजा घर में रखा गया था। उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ जब सीता जी ने पूजाघर की सफाई करते समय पिनाक को इधर से उधर कर दिया। उनका यह गुण देख कर मिथिला नरेश ने घोषणा की कि जानकी का विवाह उन्होंने उस व्यक्ति से करने का निश्चय किया है जो पिनाक की प्रत्यंचा चढ़ाने में समर्थ हो।

  जनक के यज्ञ स्थल यानि वर्तमान जनकपुर के जानकी मंदिर के निकट यह समारोह हुआ था।

यहां पंडित जी श्रद्धालुओं को चित्र दिखाते हुए बताते हैं कि जब पिनाक धनुष टूटा तो भयंकर विस्फोट हुआ था और एक भाग श्रीराम मंदिर के सामने तालाब में गिरा और दूसरा धनुषकोटी तमिलनाडु में गिरा और मध्य भाग यहां गिरा। धनुषा धाम के निवासियों ने इसके अवशेष को सुरक्षित रखा। जिसकी पूजा अनवरत चल रही है और मेरा सौभाग्य है कि मैं भी यहां दर्शन कर रहीं हूं। 550 साल से अधिक पुराना पेड़ है, जिसकी जड़ में पताल गंगा है। जिसका जल स्तर घटता बढ़ता रहता है। मंदिर से बाहर आकर सबका इंतजार कर रहे थे। एक छोटा लड़का मांगने लगा, डॉ. ख्याति पुरोहित उसे कुछ देने लगी तो श्रीधर पराड़कर जी ने उसे कहा कि तुम पहले कुछ भी सुना दो गाना, भजन कविता फिर तुम्हें देंगे। लड़का तो ये जा वो जा।






 हर साल मकर संक्राति के अवसर पर यहां मेला लगता है। दर्शन करके, सब चाय पीने लगे और मैं अपना मनपसंद शौक़, इधर उधर बतियाकर सबके आते ही गाड़ी में बैठ गई। और  गाड़ी जनकपुर की ओर चल दी। सब गाड़ियाँ एक साथ चल रहीं थीं। एक जगह चैकिंग हुई। एक ड्राइवर दारु पीकर गाड़ी चला रहा था। उसे रोक लिया। बाकियों को जाने दिया। यहाँ की दुरुस्त कानून व्यवस्था देखकर अच्छा लगा। हमारी गाड़ी मारवाड़ी धर्मशाला जाने के लिए शॉर्टकट रास्ते की ओर से चल दी। रास्ते में होलसेल मार्किट पड़ती थी। यहाँ जाम में गाड़ी फस गई। ऐसा जाम की कोई गाड़ी हिल भी नहीं पा रही थी। पीछे तीनों विद्वान ओ. पी. भार्गव जी(प्रधानाचार्य), धर्मेन्दर पाण्डेय(अधिमान्य पत्रकार), दीनानाथ द्विवेदीजी(कवि, लेखक अयोध्या), में बहुत ही लाजवाब किसी न किसी विषय पर गाड़ी में चर्चा चलती। मुझे तो यहाँ श्रोता बनना ही अच्छा लग रहा था। द्विवेदी जी मारीशियस के बारे में बता रहे थे। प्रसंग समाप्त होते ही ध्यान गया कि काफी देर से हम रुके हैं। ड्राइवर साहेब भी मेरी तरह मंत्रमुग्ध सुन रहे थे। भार्गव जी गाड़ी से यह कहते हुए उतरे कि अभी मैं जाम खुलवाता हूँ। नीचे उतरते ही उन्होंने अपनी कार्यवाही शुरु कर दी। उनके साथ और गाड़ी वाले भी लग गए। बड़ी शांति से 10 मिनट में रास्ता साफ हो गया और मुझे अपने साथियों पर गर्व हुआ। हमारे पहुँचने से पहले ही तीनों गाड़ियाँ पहुँची हुई थीं। क्रमशः      


No comments: