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Wednesday 18 January 2023

महर्षि बोधायन जन्मस्थली साहित्य संर्वधन यात्रा भाग 8 नीलम भागी Baudhayana Mathematician Neelam Bhagi

प्रकांड विद्वान, गणित का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों में होने वाले कर्मकांडों के लिए करने वाले बोधायन की जन्मस्थली में हम रात को सात बजे पहुँचे। सीतामढ़ी जिले के बाजपट्टी प्रखंड के बनगाँव में बोधायन जन्मस्थली 12 एकड़ में फैला हुआ है। पूरा परिसर साफ सुथरा है और मंदिर की सफाई तो प्रशंसनीय है। अनुमान के अनुसार 800 ईसा पूर्व जन्में भगवान बोधायन भारत के महान दार्शनिक और गणितज्ञ थे। उन्होंने गणित के कई महत्वपूर्ण सिद्धांत दिये । प्राचीन काल में रेखागणित को शुल्व शास्त्र कहा जाता था। महान गणितज्ञ बोधायन के समस्त सूत्र वैदिक संस्कृत भाषा में लिखित हैं और ये सूत्र संस्कृत श्लोक की तरह पढ़े जा सकते हैं। बोधायन के सूत्र के अर्न्तगत 6 ग्रन्थ आते हैं। वो यूनानी दार्शनिकों और गणितज्ञों से बहुत आगे चल रहे थे। समकोण त्रिभुज से सम्बन्धित पाइथागोरस प्रमेय सर्वप्रथम महर्षि बोधायन की देन है।






मंदिर के पुजारी शिवम दास जी ने बताया कि यहां हर वर्ष पौष कृष्ण द्वादशी को उनकी जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। इस बार 20 दिसम्बर को मेला लगेगा। बोधायन मंदिर का संचालन अयोध्या का सार्वभौम दार्शनिक आश्रम करता है। पुजारी जी हमारे लिए चाय पिलाने, खाना खिलाने और रात्रि विश्राम के लिए वहीं रुकने का आग्रह कर रहे थे। हमें तो लौटना ही था। पर मुझे तो वहाँ बहुत अच्छा लग रहा था। सब आलथी पालथी मार कर मंदिर में बैठ गए। मुझे डॉक्टर ने नीचे बैठने को और पालथी मारने को मना किया है। वहाँ खुला एरिया होने के कारण ठंड थी। मैं तो फुटमैट के लिए जो बोरी बिछी थी उसे खींच कर उस पर मंदिर की सीढ़ी पर पैर लटका कर बैठ गई।


अब मैं सोचने लगी कि मैं सीतामढ़ी तीसरी बार आई हूँ पर महर्षि बोधायन की जन्मस्थली पर पहली बार आईं हूँ। अगर मैं यहाँ के बारे में जानती तो जरूर आती। इस गौरवशाली जन्मस्थली का विकास तो पर्यटनस्थल की तरह होना चाहिए। जितेन्द्र झा ’आजाद’ के घर से चाय आ गई। चाय पीकर डॉ0 मीनाक्षी मीनल और मैं तालाब की ओर चल दिए। उसके पक्के किनारे बने हुए थे और बत्तखें तैर रहीं थीं। रोशनी की व्यवस्था अच्छी नहीं थी। इतने में पास के गाँव की कुछ महिलाएँ घड़ा लेकर गाती हुईं, तालाब के किनारे आईं। अब मैं उनकी ओर चल दी।




एक महिला से मैंने पूछा कि आप लोग तालाब पर रात में क्या करने आई हो? वह बताने लगी कि उनके यहाँ शादी में एक रस्म होती हैं, जब बारात जाती है तो हम यहाँ का पानी ले जाकर घर में रखते हैं। बारात शादी के बाद लौट आती है। दुल्हा वहीं रूकता है। वह चार दिन बाद दुल्हन को लेकर आता है। ये जो पानी हम ले जा रहें हैं। इससे दुल्हा दुल्हिन आकर नहाएंगे। डॉ0 मीनाक्षी मीनल उस ग्रुप से चार महिलाओं को भी मंदिर में ले आईं। उनसे उस रस्म के लोकगीत सुने। यहाँ कविता पाठ भी हुआ और भजन भी गाए गए। श्रीधर पराड़कर जी ने डॉ0 कलाधर आर्य जी से गाने को कहा तो उन्होंने माँ शारदे पर बहुत सुन्दर गाया। बतियाना घूमना चलता रहा।



मनीष कुमार से मैंने पूछा,’’मंदिर तालाब में बहुत मछलियाँ हैं, अंधेरे में भी पता चल रहा था। मछलियाँ तो खूब मिलती होंगी।’’ उनका जवाब था कि यहाँ तो दस, पंद्रह, पैंतीस किलो तक कि मछलियाँ हैं। जो मंदिर की संपत्ति है। इस मंदिर की संपत्ति जो खाता है, उसका वंश नहीं चलता इसलिए कोई मछली भी नहीं खाता। छठ से पहले सब मिलकर तालाब की सफाई करते हैं। पतझड़ में पत्तियाँ हवा से खूब भर जाती हैं। बाकि तो तालाब को बत्तखें साफ कर देती हैं। सुबह आप देखियेगा इसके चारों ओर लोग घूमते हैं। क्रमशः       


2 comments:

Monika Tewari said...

Nice Massi ji

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद प्रिय मोनिका