https://youtu.be/IXstm355gGI?si=odjJoPo3aPefVXqH
इस महासम्मेलन से मैं एक अलग सी अनुभूति लेकर लौटी थी, जिसे लिखने में असमर्थ हूं। लौटते ही मैंने अपने काम पूरे किए ताकि जो मैंने यहां महसूस किया था, कोशिश करूं कि उसे वैसा ही लिख पाऊं। पांच भागों के बाद 20 मई को मेरा एक्सीडेंट हो गया था। बाईं बाह में प्लास्टर और दांई कलाई पूरी तरह जख्मी थी। माथे, सिर पर टांके थे। डेढ़ महीने बाद प्लास्टर कटा। फिजियोथैरेपी शुरू एक हाथ बिल्कुल भी चल नहीं रहा था। अब थोड़ा चलने लगा है एक हाथ से ही लैपटॉप पर लिखना शुरू किया। इसी बीच मेरी बहन की कैंसर से मृत्यु हो गई। दो शोध पत्र लिखें क्योंकि इनकी समय सीमा थी। 24 सितंबर को हरिद्वार में संगोष्ठी अटेंड की ।उसके बाद आत्मविश्वास आ गया। अब जरूरी लेखन समय से पहले भेजा। इसको लिखने बैठी हूं। दुर्घटना में मोबाइल का भी नुकसान पहुंचा। उसमें मेरी महासम्मेलन की फोटो, नोट्स वगैरहा थे। पहले तो बहुत दुखी हुई। वह इसलिए की हर एक सत्र बहुत विशेष था कैसे लिखूंगी! मैं समय पर पहुंचती और समापन पर ही उठती। देर से सोने वाली और देर से उठने वाली मैं सुबह 6:45 पर तैयार होकर मेडिटेशन के लिए भी जाती थी। फिर अपने मन को समझाया कि मैं कौन सा मरने वाली हूं। मरना होता तो दुर्घटना में मर जाती। अपनी मेमोरी को रिवर्स कर रही हूं। कुछ तस्वीरें ढूंढ रही हूं और कोशिश कर रही हूं कि जैसा सोच कर आई थी वैसा लिखा जाए। विद्वान वक्ताओं को सुना है जो बड़े सौभाग्य की बात है। ईश्वर चाहेगा तो फिर अटेंड कर लूंगी। अभी खूबसूरत परिसर के इस वीडियो को देखा तुरंत अपने मन का भाव लिख दिया है। इसमें प्रशंसनीय है बिल्ड अप फर्नीचर! जिसके लिए पेड़ों को नहीं काटा गया और लगातार काम चल रहा है। बिना घास को नुकसान पहुंचाए, आप घूम सकते हैं। इसके अंदर जाने से समय का पता ही नहीं चल रहा था। अब 5 मई शाम को 4:00 बजे रिसेप्शन सत्र में हार्मनी हाल में जाती हूं। क्रमशः
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