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Sunday, 31 March 2024

धौली विश्व शांति स्तूप White Peace Pagoda Dhauli Odisha उड़ीसा यात्रा भाग 14 नीलम भागी Part 14 अखिल भारतीय सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह

 


हम धौली की ओर जा रहे हैं। रास्ते में नदी देखते ही मैं नरेंद्र से उसका नाम पूछती हूं। वह बताता है," यह दया नदी है।" सुनकर मुझे कलिंग युद्ध  स्कूल में पढ़ा याद आने लग जाता है कि सम्राट अशोक ने अंतिम कलिंग युद्ध  261 ईसा पूर्व  में  लड़ा और इस युद्ध में कलिंग का पूरी तरह विनाश कर दिया था। कहते हैं कि दया नदी खून से लाल हो गई थी। सम्राट अशोक का एकदम हृदय परिवर्तन हो गया था। धौली  वह स्थान है जिसने चंडाशोक को धर्माशोक में बदल दिया था और हम धौली पहुंच गए। यह एक विशाल हरे भरे मैदान में जहां दया नदी बहती है, धौली की पहाड़ियां है, पहाड़ी के शिखर पर है  शांति का प्रतीक 'विश्व पीस पगोडा'  जिसे 'धौली शांति स्तूप' कहते हैं। जो  विश्व को शांति और सद्भाव का संदेश देता है। यहां एक चट्टान पर अशोक के चार शिलालेखों में से एक शिलालेख  उत्कीर्ण  है।  यह कलिंग का युद्ध क्षेत्र भी कहलाता है। यहां अशोक को युद्ध के बाद पश्चाताप की अग्नि में जलना पड़ा था और उसने बौद्ध धर्म अपना लिया था। वह पूरी दुनिया के कल्याण के लिए चिंता करने लगा। और यह स्थान बौद्ध गतिविधियों का केंद्र बन गया था। चैतिय, स्तूपों, स्तंभों के साथ यहां पर बाजू में शिवालय भी है, जिसमें अन्य देवी देवताओं की भी मूर्तियां है। इस स्थान ने अशोक को इस तरह से बदल दिया कि वह पूरी दुनिया के कल्याण के लिए लग गया।  युद्ध का अंत भयावह स्थिति है।  ऐसी घटना कहीं और ना घटे।  इसलिए वह अहिंसा का संदेश देने लगा।

    भुवनेश्वर से 8 किलोमीटर दक्षिण की ओर धौली है। यहां बहुत बड़ी पार्किंग  बस के लिए है और गाड़ियां काफी ऊपर तक चली जाती हैं, वहां पर टू व्हीलर फोर व्हीलर पार्किंग है। मीताजी के लिए तो यह यात्रा बहुत थकान भरी थी और वे वहां रहती हैं, अनगिनत बार आ चुकी हैं इसलिए वह गाड़ी में ही रुक गई। नरेंद्र पार्किंग के लिए जगह तलाश में लगा और मैं तो  जल्दी-जल्दी चल दी। कुछ  चढ़ाई के बाद  शांति का प्रतीक सफेद रंग का सामने! और सीढ़ियां। यह देखकर मैंने सोचा 1970 में जापान बुद्ध संघ और कलिंग  निष्पान बुद्ध संघ द्वारा निर्मित आधुनिक वास्तु कला की यह एक बड़ी उपलब्धि है। ऐसा हो नहीं सकता कि यहां लिफ्ट ना हो। आसपास नजर घुमाई, बाएं हाथ पर लिफ्ट का निशान दिखा। मैं खुश हो गई।  और लिफ्ट से  ऊपर आ गई। मेरे बांई ओर  बहुत सुंदर नज़ारा ऊपर से भी नज़र आ रहा था। दया नदी बह रही थी। साथ ही ड्रम बजने की आवाज आ रही थी जिसकी ताल ऐसी थी जो अलग सा सुकून दे रहा था।  मैं वहां गई खूब भीड़ थी पर जरा भी कोलाहल सा नहीं था। अलग तरह की  शांति थी और ड्रम  की भी आवाज थी।  मैंने वहां घूमना शुरू  किया।  सफेद रंग में एकदम सफाई वाला, यह स्थान बहुत अच्छा लगा था। यहां आकर, सुबह से जो मन स्थिति थी, उससे अलग सी हो गई थी।  ऊपर फिर सीढ़ियां, वहां जाते हैं, वहां बुद्ध की बहुत बड़ी प्रतिमा है और चारों ओर बुद्ध के जीवन से संबंधित अलग-अलग उनकी मूर्तियां उकेरी गई हैं। अकेली   एक विश्राम की जो अवस्था में मूर्ति है, वह काठमांडू के स्वयंभू में भी उसी तरह की मैंने देखी थी। खूब फोटोग्राफर घूमते हैं, जो तुरंत आपकी फोटो बना देते हैं। यहां से  बाजू में रास्ता है जिसके दोनों ओर काजू और पूजा के समान, गिफ्ट की दुकान हैं और आगे साफ सुथरा शिवालय है और अन्य देवी देवताओं के मंदिर है लेकिन इसे धौली  शिवालय  कहा जाता है। यहां से लौटते समय दीवार के बाजू में खूब पेड़ है वहां कुछ लोगों ने सीढ़ियों पर रैपर वगैरा फेंके हुए थे।  क्योंकि इतनी सफाई देखने के बाद यह थोड़ी सी चीज भी ऐसे लोगों के प्रति क्रोध उत्पन्न कर रही थी। मेरा पाठको  से निवेदन है कि किसी को भी ऐसा करते देखें तो फिर टोक जरूर दें। यह विश्व पर्यटन स्थल है। सीढ़ियां उतरकर मैं नीचे आती हूं। खाने पीने की दुकाने , नारियल पानी की दुकाने काजू तो हद से ज्यादा और बहुत सस्ता! सबसे अच्छा मुझे लगा कि उड़ीसा टूरिज्म की बस वहां खड़ी जबकि हमें तो पार्किंग तक जाना था। मैंने फटाफट उसकी वेबसाइट की फोटो ली,  आपको शेयर कर रही हूं। रेट भी बहुत कम है। धौली शांति स्तूप का कोई प्रवेश शुल्क नहीं है। सभी दिन खुला रहता है, सुबह 6:00 से शाम 6:00 तक। मैं यहां   मानवीयता के विजय का महान प्रतीक धौली शांति स्तूप पर दूसरी बार आई हूं। यहां आने पर बिल्कुल अलग सी फीलिंग होती है। आसपास देखती हुई, मैं पार्किंग पर पहुंच गई। उस दिन बहुत भीड़ थी। नरेंद्र आकर मुझे गाड़ी तक ले गया।

 क्रमशः 









Friday, 29 March 2024

बाली जात्रा कटक Bali Jatra Cuttack उड़ीसा यात्रा भाग 13 नीलम भागी Odisha Part 13 अखिल भारतीय सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह

 


गाड़ी भुवनेश्वर की ओर जा रही थी और मैं महानदी को निहार रही थी। मीताजी एकदम बोली," गाड़ी रोको नरेंद्र, नीलम  यहां पर बाली  यात्रा का मेला कार्तिक पूर्णिमा को लगता है जो एशिया का सबसे बड़ा मेला है।" सामने  बाली यात्रा का प्रवेश द्वार और पीछे विशाल मैदान था। जिसका मुझे अंतिम छोर नजर नहीं आ रहा था कई किमी तो होगा ही। उस मैदान को देखकर ही अनुमान लगा सकते हैं कि यह मेला कितना विशाल लगता है! जो महानदी के गडगड़िया घाट पर लगता है। बाली यात्रा कटक  2000 साल पुराने समुद्री संस्कृतिक संबंधों को दर्शाता है। प्राचीन काल में यहां के ओड़िआ नाविक व्यापारी  जिन्हें सदाबास  'साधवा' कहा जाता था, जावा 

 , सुमात्रा, बोर्नियो (इंडोनेशिया), वर्मा (म्यांमार) सिलोन (श्रीलंका) से व्यापार करते थे। कार्तिक पूर्णिमा के दिन से यह 4 महीने के लिए व्यापार के लिए निकलते थे। इस समुद्री यात्रा में हवा इनका साथ देती थी। पाल वाली नाव हवा की दिशा और पवन ऊर्जा  पर निर्भर यह नाविक, समुद्री 

 व्यापारी,  व्यापार के लिए चल देते थे।  इस बड़ी-बड़ी जहाजनुमा नाव को #बोइतास" कहा जाता है और इन व्यापारियों को #साधवा।  जब यह व्यापार को जाते थे तो परिवार की महिलाएं उनकी  कुशल वापसी के लिए अनुष्ठान करती थीं।  जिसे  'बोइता वंदना' कहते हैं। जो एक परंपरा बन गया है। उसके प्रतीकात्मक आज इसमें #बोइता (छोटी नाव) उत्सव भी मनाया जाता है। यानि कार्तिक पूर्णिमा को सुबह जल्दी पूर्वजों की याद में 'बोइता वंदना' अपने घर के आसपास नदी के तट, तालाब, पानी की टंकी, जहां भी जल उपलब्ध होता है। उसमें सुबह-सुबह कागज या सूखे केले  के पत्तों से नाव बनाकर, उसमें दीपक जलाकर और पान रखकर जल में प्रवाहित करते हैं।  उन जांबाज नविको की याद में।  पूर्वजों की यात्रा के प्रतीकात्मक  रूप में समुद्री नाविक व्यापारियों के लिए है बाली यात्रा।  कटक नगर निगम द्वारा आयोजित बाली यात्रा के एक कार्यक्रम में 22 स्कूलों के 2100 बच्चों ने 35 मिनट में 22000 कागज की नाव बनाने का विश्व विश्व रिकॉर्ड बनाया है। बाली यात्रा  कीर्तिमान है और गिनी बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।

पर्वों पर नदी स्नान करना हमारे धर्म में है और #कार्तिकपूर्णिमा का पर्व पूरे देश में मनाया जाता है और यहां तो पवित्र महानदी के किनारे बाली यात्रा का आयोजन किया जाता है तो श्रद्धालु 'बोइता वंदना' के बाद महानदी में स्नान कर, धार्मिक महत्व की बाली यात्रा में शामिल होते हैं।  कार्तिक पूर्णिमा को महानदी में स्नान करने के बाद मेले का आनंद उठाया जाता है। यह व्यापार, वाणिज्य सांस्कृतिक खुला मेला है। लाखों की संख्या में यहां लोग आते हैं। एक ही स्थान पर सबके लिए सब कुछ है। युवाओं के लिए आधुनिक संगीतमय, सांस्कृतिक कार्यक्रम है, पारंपरिक कार्यक्रम है। विभिन्न विषयों पर चर्चा के लिए मंडप है। लोक संस्कृति की झलक है। स्थानीय व्यंजन दही बड़ा आलू दम, धुनका पुरी, कुल्फी गुपचुप आदि के खाद्य स्टॉल हैं, खिलौने अनोखी वस्तुएं है व्यापार मेले  का इतिहास है।  हथकरघा,  हस्तशिल्प, कला, अनुष्ठान हैं। प्राचीनता और नवीनता  है।

कलिंग(पूर्व में उड़ीसा) प्रसिद्ध शक्तिशाली समुद्री शक्ति थी। बाली जात्रा उड़ीसा के समृद्ध समुद्री विरासत का प्रतीक है।

क्रमशः 









Thursday, 28 March 2024

महानदी, Mahanadi उड़ीसा यात्रा भाग 12 नीलम भागी Part 12 अखिल भारतीय सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह

 


श्री मां चंडी मंदिर कटक के दर्शन के बाद दूसरी मां  महानदी से से भी तो मिलना था। जो मेरे ज़हन में बसी हुई थी। जब पहली बार रेल से पुल पार किया था तो किनारा आ ही नहीं रहा था। तब हम सभी बहन भाई बहुत आश्चर्यचकित थे। अब तो इसके किनारे पर सड़क पर चल रहे हैं। गोदावरी, कृष्णा के बाद भारत की यह तीसरी  सबसे बड़ी नदी है। जिसे राजसी महानदी या महान नदी भी कहते हैं। छत्तीसगढ़ रायपुर के सिहावा की पहाड़ियों में इसका उद्गम हुआ है। कटक में इसका मुख्य पर्यटन महानदी बैराज है जो पानी का नियंत्रण है। महानदी बेसिन समृद्ध खनिज, पर्याप्त विद्युत और कृषि लाभ देता है। 2.7 किमी लंबाई का कटक में इस पर नया पुल बना है। भारत का सबसे लंबा बांध हीराकुंड इस पर ही बना है। कुछ समय मुझे महानदी के पास भी ऐसे ही रुकना था। गाड़ी रूकवाई, मीताजी चंडी मां के दर्शन के इंतजार में बहुत देर खड़े होने के कारण थक गई थीं। वे गाड़ी में ही रुकी रहीं। सड़क के साथ फुटपाथ बहुत सुंदर बनाया हुआ है जिस पर कहीं भी अतिक्रमण नहीं है। दीवारों पर चित्रकारी है। कुछ कुछ दूरी पर नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां है, विशाल पेड़ हैं और वहां मंदिर हैं।  ऐसी ही एक सीढ़ियों से  मैं उतर गई और कुछ देर महानदी के आपार विस्तार को निहारती रही, मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। मन कर रहा था, वहीं कुछ घंटे बैठी रहूं लेकिन समय! कुछ देर उसके किनारे किनारे चलती रही फिर लौट आई। नरेंद्र से कहा, "मैं थोड़ा सा पैदल फुटपाथ पर भी चलूंगी।" चलती रही वहां से रोज गुजरने वाले लोग महानदी को गाड़ी से प्रणाम करते हुए जाते, नदियों के प्रति कितनी श्रद्धा है!! क्योंकि नदी है तो हम हैं। महानदी गंगा के समान पवित्र मानी जाती है। इसके 885 किमी की लंबाई की दूरी के तट पर धार्मिक, सांस्कृतिक और ललित कला केंद्र हैं। बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले 7 किलोमीटर का डेल्टा बनाती है। कहते हैं कि त्रेता युग में श्रृंगी ऋषि, जिनका आश्रम सिहावा की पहाड़ियों में था उन्होंने राजा दशरथ का पुत्रेष्ठी  यज्ञ करवाया था। उनके कमंडल का अभिमंत्रित गंगाजल महानदी में गिर गया और यह उन्हीं के समान पवित्र हो गई। जुलाई से फरवरी तक यातायात का साधन है। समुद्र तट के बाजारों में इसके द्वारा समान जाता है। कुछ देर बाद मैं गाड़ी पर बैठी, जब तक महानदी दिखाई देती रही, मेरी गर्दन उसी दिशा में रही।  

https://youtu.be/VniDiy7erdk?si=5nVODMNnenaU5U1s


https://youtu.be/YfWgX-JPW88?si=yfZPYN4bKOtSLIEV

क्रमशः 

 






Wednesday, 20 March 2024

नेताजी जन्म स्थल संग्रहालय, उड़ीसा यात्रा भाग 11 नीलम भागी Netaji Birthday Place Museum Cuttack Odisha Yatra Part 11 अखिल भारतीय सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह

 



चंडी मंदिर में समय बहुत अधिक लगने के कारण अब समय कम था। नेताजी की जन्मस्थली पहले देखी हुई थी। मुझे वहां की तस्वीर लेनी है। पता चला कि फोटोग्राफी मना है। उड़िया बाजार में स्थित जानकीनाथ भवन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23.1.1897 को हुआ था। यह उनका हरे भरे बगीचे से गिरा पैतृक निवास है जहां वे बचपन से लेकर स्वतंत्रता सेनानी बनने तक रहे। उनके पिता प्रतिष्ठित वकील थे इसलिए उनका बचपन बहुत संपन्नता में बीता। 2007 में पुनर्निर्माण कर उनके पैतृक निवास को नेताजी सुभाष चंद्र बोस संग्रहालय बना दिया गया। यहां प्राचीन वस्तुएं दस्तावेज  का अनूठा संग्रह है। उनकी वह घोड़ा गाड़ी भी है, जिस पर वे  परिवार के साथ घूमने जाया करते थे। लाइब्रेरी में विभिन्न भाषाओं में लिखी, उन पर 500 से अधिक पुस्तकें हैं। लिविंग रूम को दीर्घा में बदल दिया गया है। संग्रहालय में दिलचस्प संग्रह में जिनेवा, इटली के मिलान, मांडले जेल, म्यांमार की रंगून जेल, प्रेसीडेंसी जेल, कलकत्ता के अलीपुर न्यू सेंट्रल जेल और बर्लिन से अपने माता-पिता और परिवार के सदस्यों को लिखे गए 22 मूल पत्र शामिल हैं। उनके जन्मदिन पर रक्तदान, जागरूकता कार्यक्रम, सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और जानकी नाथ भवन को बहुत सुंदर सजाया जाता है। यह संग्रहालय सुबह 10 से सायं 5 तक मंगलवार से रविवार को खुलता है। भुवनेश्वर से 30 किलोमीटर दूर है। जाने से पहले फिर भी समय का पता करके जाना उचित रहेगा। प्रोफेसर श्यामा घोनसे मराठी  साहित्यकार पूना से जो इस वर्ष अखिल भारतीय साहित्यकार सम्मान 2023 से सम्मानित हुई हैं, का हार्दिक धन्यवाद उनसे नेताजी जन्म स्थान संग्रहालय की तस्वीरें  प्राप्त हुई ।
क्रमशः








Tuesday, 19 March 2024

श्री मां कटक चंडी मंदिर, उड़ीसा यात्रा भाग 10 नीलम भागी Shri ma Chandi Mandir Cuttack Odisha Yatra Part 10 अखिल भारतीय सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह

 


महानदी के तट से पुराने शहर कटक से गुजरते हुए, प्राचीन मंदिर चंडी देवी की ओर जा रहे थे। दुकान बाजार सामान से लगे हुए थे, खूब चहल पहल थी। मंदिर पर पहुंच गई तो अपनी आदत के अनुसार पहले मंदिर में न जाकर, आसपास देखने लगी और जो नियम कायदे लिखे हुए हैं, उन्हें पढ़ने लग गई । जूता रखने की व्यवस्था थी। जूते  उतारे। जैसे ही मंदिर में प्रवेश किया, देवी के आगे पर्दा कर दिया गया। वहां का जो भी म्यूजिक था ड्रम आदि बजने लगा। कौन सी पूजा थी! नहीं जानती लेकिन शायद  भोग लग रहा था। पर वहां पर  बहुत ही अलग सा माहौल था। श्रद्धालु हाथ जोड़ खड़े थे, मैं भी खड़ी हो गई। यहां पर  खड़े हुए कुछ भी याद नहीं आ रहा था, हमारे बाजू में कौन खड़ा है! बस मन में श्रद्धा भाव था। यह भी प्रश्न नहीं उठ रहा था कि कितनी देर में दर्शन होंगे!

और हमें मां  के दर्शन हुए।  देवी के एक हाथ में पासा, दूसरे में अंकुशा, तीसरे में अभया, चौथे में बारा। यहां भुवनेश्वरी मंत्र, से मां के भुवनेश्वरी रूप की पूजा की जाती है। दुर्गा पूजा और काली पूजा को यहां मेले जैसा माहौल होता है। अश्वनी कृष्ण अष्टमी के अंधेरे पखवाड़े से, अश्वनी शुक्ल नवमी विजयदशमी को प्रतिदिन विशेष पूजा के साथ 16 दिन का यह उत्सव संपन्न होता है।

 मंदिर के बारे में दंत कथाएं मशहूर हैं स्वर्गीय हंसा  पांडा मंदिर के संस्थापक थे। इस क्षेत्र में जब यह भूमि खाली थी, वे अपनी भेेड़ बकरियां चरा रहे थे। थक कर सुस्ताने के लिए इस स्थान पर बैठे हुए थे। उन्हें विशेष अनुभूति  महसूस हुई। उन्होंने उसी रात सपने में देवी को देखा और वैसी अनुभूति फिर महसूस हुई। वे कनिका के राजा के पुरोहित थे। अगले दिन वे राजा के पास गए,  उन्हें अपने मन का हाल बताया। राजा ने तुरंत वहां खुदाई करवाई और अन्य सामान के साथ यह देवी की मूर्ति मिली, जिस स्थान पर यह मंदिर है। माना जाता है कि मध्यकाल में यह चंडी राजवंश की कुलदेवी थी। गैर हिंदू हमलावरों के कारण राजा उन्हें धरती में स्थापित कर, पूरी चले गए। आज देवी अपने स्थान पर स्थापित हैं। वार्षिक  दुर्गा पूजा और काली पूजा के उत्सव पर तो देश दुनिया से लोग आते हैं और वैसे भी प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।

वैसे मंदिर खुलने का समय सुबह 6:00 से शाम 6:00 तक है। लेकिन तू दुर्गा पूजा और काली पूजा के समय मंदिर आधी रात तक खुलता है। दूर-दूर से दर्शनार्थी मां के दर्शन करने आते हैं। मंदिर में फोटोग्राफी मना है इसलिए यहां देवी को मन की आंखों से दिल में उतारा है। यहां खड़े रहना बहुत अच्छा लग रहा था।  मानसिक संतोष मिल रहा था। काफी देर रुकने के बाद हम चले। 

मंदिर का पता स्टेडियम रोड तुलसीपुर कॉलोनी कटक उड़ीसा

क्रमशः










Monday, 18 March 2024

कटक की ओर रसगुल्ला मार्केट, उड़ीसा यात्रा भाग 9 नीलम भागी way to Cuttack Odisha Yatra Part 9 अखिल भारतीय सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह

 


उड़ीसा की राजधानी रहा कटक, मेरी इस यात्रा में नहीं था। काठजोड़ी और महानदी के मिलन स्थल पर बसे उड़ीसा की व्यवसायिक राजधानी कटक में, कई साल पहले जब हम इस प्राचीनतम कटक में आए थे तो यहां के पर्यटन स्थल नंदनकानन, जूलॉजिकल पार्क, बरबटी फोर्ट, श्री मां कटक चंडी मंदिर, नेताजी बर्थ प्लेस म्यूजियम, स्टेट बोटैनिकल गार्डन, महानदी बराज, उड़ीसा स्टेट मैरिटाइम, श्री श्री धवलेश्वर मंदिर, डियर पार्क, जोब्रा पार्क और विशेष महानदी मेरे ज़ेहन में बसे हुए थे और 'वे टू कटक  Way to Cuttack' देखते ही, मैं कटक की ओर चल पड़ी। क्योंकि भुवनेश्वर में इतना परिवर्तन और विकास देखा है मन में यही आया कि कटक कैसा होगा! जब मैं  1978 में  यहां आई थी तब मैं बीएससी की छात्रा थी। मोबाइल तो कल्पना में भी नहीं था और कैमरा भी नहीं था। जो भी देखा था और गाइड से सुना था, वह मन में बसा हुआ था। भुवनेश्वर से लगभग 30 किमी दूर है। इस मार्ग पर आते ही विकास नज़र आने लगा। चौड़ी साफ सुथरी सड़के, फ्लाईओवर, व्यवस्थित ट्रैफिक, नारियल के पेड़ के साथ हरियाली, रास्ता बहुत खूबसूरत! आना बहुत अच्छा लगा। रास्ते  में मंदिर देख, मैं दर्शन के लिए फिर गाड़ी से उतर गई। याद आया कि इस तरह तो मेरा पुरी जाना छूट जाएगा। बाहर से हाथ जोड़कर गाड़ी में बैठ गई। पर  रसगुल्ला मार्केट देखकर, मैं अपने को रोक नहीं सकी क्योंकि यह पहले नहीं था। मैं अकेली ही वहां जाती हूं। हर तरह के रसगुल्ले छेना पोडा की दुकाने थीं। सबसे ज्यादा मुझे आकर्षित किया! वह था, रसगुल्ला बहुत प्यारी मिट्टी की हांडी में देते हैं। हांडी के ऊपर चित्रकार की गई है और छेना पोडा नारियल के पत्तों से बनी हुई छोटी सी ढक्कनदार टोकरी में देते हैं। कई तरह के रसगुल्ला! रसगुल्ला तो वही, पर उनको पकाने के तरीके अलग-अलग थे आंच और पकाने के समय के कारण उनके सुनहरी रंग के शेड कई थे, तो लाजमी है स्वाद में भी फर्क होगा!   सिर्फ केसर रसगुल्ला में रंग केसर के कारण था। अब हम काठजोरी नदी के  बाजू में चल रहे हैं। बड़े-बड़े  मॉल, बहुमंजिला भवन, सड़के कटक की आधुनिकता को दर्शा रहे हैं। यह उड़ीसा का शहर राज्य की व्यवसायिक राजधानी है, जो अपने किलो, मंदिरों और हस्तशिल्प कला के कारण पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहां का  पीपली गांव हस्तशिल्प कला के कारण जाना जाता है। भुवनेश्वर से यहां आने के लिए सार्वजनिक वाहन, पब्लिक ट्रांसपोर्ट उत्तम है और सस्ता है। बस 20₹, ऑटो, शेयरिंग ऑटो40₹ आदि खूब चलते हैं। और हम प्राचीन भुवनेश्वर में प्रवेश कर रहे हैं।

भुवनेश्वर से कटक की ओर विकास https://youtu.be/7ByFDz73Vp4?si=nJb4GHdrdaevGVWI

 क्रमशः 










Saturday, 16 March 2024

श्री राम मंदिर भुवनेश्वर, Shri Ram Mandir Bhuvneshwer भुवनेश्वर, उड़ीसा यात्रा भाग 8 नीलम भागी Odisha Yatra Part 8 Neelam Bhagi

  


रेलवे स्टेशन से मात्र डेढ़ किमी की दूरी पर खारवेल नगर, जनपथ के पास श्री राम मंदिर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए सब तरह के वाहन मिलते हैं। पार्किंग व्यवस्था अति उत्तम है। जूता घर है, जहां आप निशुल्क जूता, हेलमेट रख सकते हैं। बाहर एक स्थान पर कबूतरों को दाना खिलाया जाता है। कलिंग वास्तुशैली में बना यह भव्य खूबसूरत मंदिर है।  मंदिर का मुख्य द्वार ही बहुत आकर्षक है, जिसमें लगभग सभी देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित गई हैं। यहां अंदर चित्र लेना मना है। जहां मना होता है, मैं वहां कभी नहीं चित्र लेती। न ही नियम का उल्लंघन करती हूं। लेकिन बाहर  के ही लिए। अंदर सभी भगवान के मंदिर हैं । मंदिर का रखरखाव और प्रबंधन एक नीजी ट्रस्ट के द्वारा किया जाता है।  रामनवमी, विवाह पंचमी, जन्माष्टमी, दशहरा, शिवरात्रि, पन संक्रांति को विशेष आयोजन किए जाते हैं। रक्षाबंधन को यहां वार्षिक मेला लगता है। मंदिर में हर समय भीड़ रहती है। बाहर बैठने के बेंच लगे हैं। आप अंदर सभी भगवान के दर्शन करते हैं, बड़ा परिसर है। थक जाए तो  बाहर बेंच पर बैठकर, आप देश दुनिया से आए श्रद्धालुओं के भी दर्शन कर सकते हैं जो दूर दूर से भगवान को श्रद्धा सुमन अर्पण करने आए हैं। मंदिर के एक कोने पर खाने पीने की बहुत कम रेट में स्थानीय व्यंजनो की दुकान है। दूसरे कोने पर पूजा की, सौभाग्यवती महिलाओं के सामान की, खिलौने की दुकानें हैं। सुबह 6से रात 9.30 तक दर्शन कर सकते हैं। परिवार के साथ आने के लिए बहुत  प्यार धर्म स्थान है जहां से आप धर्म लाभ के साथ खाकर, शॉपिंग करके जा सकते हैं। क्रमशः