हम धौली की ओर जा रहे हैं। रास्ते में नदी देखते ही मैं नरेंद्र से उसका नाम पूछती हूं। वह बताता है," यह दया नदी है।" सुनकर मुझे कलिंग युद्ध स्कूल में पढ़ा याद आने लग जाता है कि सम्राट अशोक ने अंतिम कलिंग युद्ध 261 ईसा पूर्व में लड़ा और इस युद्ध में कलिंग का पूरी तरह विनाश कर दिया था। कहते हैं कि दया नदी खून से लाल हो गई थी। सम्राट अशोक का एकदम हृदय परिवर्तन हो गया था। धौली वह स्थान है जिसने चंडाशोक को धर्माशोक में बदल दिया था और हम धौली पहुंच गए। यह एक विशाल हरे भरे मैदान में जहां दया नदी बहती है, धौली की पहाड़ियां है, पहाड़ी के शिखर पर है शांति का प्रतीक 'विश्व पीस पगोडा' जिसे 'धौली शांति स्तूप' कहते हैं। जो विश्व को शांति और सद्भाव का संदेश देता है। यहां एक चट्टान पर अशोक के चार शिलालेखों में से एक शिलालेख उत्कीर्ण है। यह कलिंग का युद्ध क्षेत्र भी कहलाता है। यहां अशोक को युद्ध के बाद पश्चाताप की अग्नि में जलना पड़ा था और उसने बौद्ध धर्म अपना लिया था। वह पूरी दुनिया के कल्याण के लिए चिंता करने लगा। और यह स्थान बौद्ध गतिविधियों का केंद्र बन गया था। चैतिय, स्तूपों, स्तंभों के साथ यहां पर बाजू में शिवालय भी है, जिसमें अन्य देवी देवताओं की भी मूर्तियां है। इस स्थान ने अशोक को इस तरह से बदल दिया कि वह पूरी दुनिया के कल्याण के लिए लग गया। युद्ध का अंत भयावह स्थिति है। ऐसी घटना कहीं और ना घटे। इसलिए वह अहिंसा का संदेश देने लगा।
भुवनेश्वर से 8 किलोमीटर दक्षिण की ओर धौली है। यहां बहुत बड़ी पार्किंग बस के लिए है और गाड़ियां काफी ऊपर तक चली जाती हैं, वहां पर टू व्हीलर फोर व्हीलर पार्किंग है। मीताजी के लिए तो यह यात्रा बहुत थकान भरी थी और वे वहां रहती हैं, अनगिनत बार आ चुकी हैं इसलिए वह गाड़ी में ही रुक गई। नरेंद्र पार्किंग के लिए जगह तलाश में लगा और मैं तो जल्दी-जल्दी चल दी। कुछ चढ़ाई के बाद शांति का प्रतीक सफेद रंग का सामने! और सीढ़ियां। यह देखकर मैंने सोचा 1970 में जापान बुद्ध संघ और कलिंग निष्पान बुद्ध संघ द्वारा निर्मित आधुनिक वास्तु कला की यह एक बड़ी उपलब्धि है। ऐसा हो नहीं सकता कि यहां लिफ्ट ना हो। आसपास नजर घुमाई, बाएं हाथ पर लिफ्ट का निशान दिखा। मैं खुश हो गई। और लिफ्ट से ऊपर आ गई। मेरे बांई ओर बहुत सुंदर नज़ारा ऊपर से भी नज़र आ रहा था। दया नदी बह रही थी। साथ ही ड्रम बजने की आवाज आ रही थी जिसकी ताल ऐसी थी जो अलग सा सुकून दे रहा था। मैं वहां गई खूब भीड़ थी पर जरा भी कोलाहल सा नहीं था। अलग तरह की शांति थी और ड्रम की भी आवाज थी। मैंने वहां घूमना शुरू किया। सफेद रंग में एकदम सफाई वाला, यह स्थान बहुत अच्छा लगा था। यहां आकर, सुबह से जो मन स्थिति थी, उससे अलग सी हो गई थी। ऊपर फिर सीढ़ियां, वहां जाते हैं, वहां बुद्ध की बहुत बड़ी प्रतिमा है और चारों ओर बुद्ध के जीवन से संबंधित अलग-अलग उनकी मूर्तियां उकेरी गई हैं। अकेली एक विश्राम की जो अवस्था में मूर्ति है, वह काठमांडू के स्वयंभू में भी उसी तरह की मैंने देखी थी। खूब फोटोग्राफर घूमते हैं, जो तुरंत आपकी फोटो बना देते हैं। यहां से बाजू में रास्ता है जिसके दोनों ओर काजू और पूजा के समान, गिफ्ट की दुकान हैं और आगे साफ सुथरा शिवालय है और अन्य देवी देवताओं के मंदिर है लेकिन इसे धौली शिवालय कहा जाता है। यहां से लौटते समय दीवार के बाजू में खूब पेड़ है वहां कुछ लोगों ने सीढ़ियों पर रैपर वगैरा फेंके हुए थे। क्योंकि इतनी सफाई देखने के बाद यह थोड़ी सी चीज भी ऐसे लोगों के प्रति क्रोध उत्पन्न कर रही थी। मेरा पाठको से निवेदन है कि किसी को भी ऐसा करते देखें तो फिर टोक जरूर दें। यह विश्व पर्यटन स्थल है। सीढ़ियां उतरकर मैं नीचे आती हूं। खाने पीने की दुकाने , नारियल पानी की दुकाने काजू तो हद से ज्यादा और बहुत सस्ता! सबसे अच्छा मुझे लगा कि उड़ीसा टूरिज्म की बस वहां खड़ी जबकि हमें तो पार्किंग तक जाना था। मैंने फटाफट उसकी वेबसाइट की फोटो ली, आपको शेयर कर रही हूं। रेट भी बहुत कम है। धौली शांति स्तूप का कोई प्रवेश शुल्क नहीं है। सभी दिन खुला रहता है, सुबह 6:00 से शाम 6:00 तक। मैं यहां मानवीयता के विजय का महान प्रतीक धौली शांति स्तूप पर दूसरी बार आई हूं। यहां आने पर बिल्कुल अलग सी फीलिंग होती है। आसपास देखती हुई, मैं पार्किंग पर पहुंच गई। उस दिन बहुत भीड़ थी। नरेंद्र आकर मुझे गाड़ी तक ले गया।
क्रमशः
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