स्कूल में प्रवेश से पहले ही हमें राम कथा दादी नानी की कहानी में सुना दी जाती है। उसी कहानी को हर साल रामलीला मंचन में ऐसे देखते थे जैसे पहली बार देख रहे हों। रामकथा की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है, राम हमारे सुख दुख, हानि लाभ, जीवन मरण, यश अपयश से जुड़े हैं। अपने लगते हैं। वे सबके हैं जन जन के हैं। प्रत्येक भारतीय रामकथा जानता है फिर भी जब दूर दर्शन पर रामायण का प्रसारण होता था तो सड़के सूनसान हो जातीं थीं। राम ने पूरा देश एक सूत्र में बांध दिया। एक सीन को तो मैं कभी भूल नहीं सकती। तब घर दुकान के पास था। रविवार को भाई रामायण घर में देखने के बाद दुकान खोलते थे। एक दिन रामायण के प्रसारण के समय पर बिजली चली गई। भाई बिना समय गवाए कायनैटिक होंडा स्कूटर पर सवार होकर, जाते हुए बोल गए कि वह दुकान में कोई जुगाड़ करेगें। हम भी उसके पीछे लगभग दौड़ते हुए गए। उसने कायनैटिक होंडा की बैटरी से पोर्टेबल ब्लैक एंड व्हइट टी.वी. मार्किट के ग्राउण्ड में फुल वाल्यूम पर लगा दिया। जहाँ तक आवाज़ जा रही थी। वहाँ तक लोग थे। बाजू में कौन बैठा है! किसी को नहीं मतलब। जो आता चुपचाप बैठ जाता था। समापन पर घर आए तो देखा! घर के दरवाजे खुले छोड़ गए थे। राम का व्यक्तित्व प्रेरणादायी है। उनकी कथा में उनका जीवन प्रतिकूल परिस्थियों का सामना करता है। अयोध्या जी से खाली हाथ पैदल तीन लोग वन में गए थे, लौटे तो दो राज्य जीत कर, मित्र और सेना बना कर विमान के द्वारा!
राम तो लोक के हैं तो लोक ने अपने संस्कारों में राम को हर पल अपने निकट पाया है। हर संस्कार पर महिलाएं लोकगीत गातीं हैं, उसमें भी राम ही दीखते हैं। लोक गीतों में राम जैसे पुत्र की कामना करते हैं। मसलन परिवार में बेटे का जन्म होता तो सोहर में गाया जाता है
’जन्म लियो मेरे रघुराई, अवधपुरी में बहार आई।’
लल्ला जन्म सुन आई, कौशल्या माता दे दो बधाई।
यानि नवजात राम है और जच्चा कौशल्या है। बेटी के विवाह से पहले गीतों का न्यौता दिया जाता है। महिलाएं लोकगीत अपने प्रदेश के गाती हैं। जिसमें वर में राम को देखते हैं। पंजाब में तो पहले पाँच सुहाग बिना साज के गाए जाते हैं। इन गानों में संवाद की तरह ये महिलाएं कन्या के मन के उद्गार व्यक्त करती हैं। जैसे
नी बेटी, चंदन दे ओले ओले क्यूं खड़ी?
नी मैं तां खड़ी सी बाबा जी दे कोल, बाबुल वर लोड़ीए।
नी तीए केहो जेया, वर लोड़ीए(बेटी तुझे कैसा वर चाहिए?)
बेटी कहती है मुझे राम जैसा वर, कौशल्या जैसी सास उनके भाइयों जैसे देवर हों, ऐसा वर चाहिए। गीत में बेटी के पिता, ताऊ, चाचा और मामा सब उसे कहते हैं कि हम कंधे पर गुमछा रख कर, लोटा लेकर, राम जेैसा वर खोजने जाते हैं। अब ये तो ’राम’ जाने कि तेरे भाग्य में राम जैसा पति है या नहीं। क्योंकि राम आर्दश, पत्नीव्रत पति थे। उन्होंने सदैव सीता का मान रखा। राम ने जनमत से विवश होकर सीता को त्याग दिया। अग्नि परीक्षा लेने के बाद भी राम नहीं चाहते थे कि उनके राजतंत्र में एक भी विरोध का स्वर हो। उन्हें त्यागने के बाद राम ने दूसरा विवाह नहीं किया। लोक मन हर स्थिति में राम को साक्षी बनाने का आदि है। क्रमशः
2 comments:
भारतीय परम्परा में श्रीराम युगों - युगों से भारतीयों आदर्श रहे हैं.. हमें भी बचपन से श्रीराम के आदर्श की बातें समझायी गयी,, और हमने अपनी आगे की वाली पीढ़ी को भी श्रीराम की महिमाऔर उनके आदर्शों पर चलने की सीख दी है।
हार्दिक धन्यवाद रितु जी
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