संवाद पत्रिका के लिए शहर में होने वाली राम कथा में मैं जाती। उसमें छापने के लिए नौ दिन की कथा को, एक पृष्ठ में भी शब्द सीमा है। एक जिज्ञासा है कि राम कथा जिसे सब कोई जानता है रामायण का अलग अलग चैनल में प्रसारण हुआ है। फिर भी विशाल जनसमूह राम कथा स्थल पर आता है जो नहीं आ पाते वे घर बैठे सीधा प्रसारण देखते हैं। अलग अलग राम कथावाचकों और सैक्टरों में होने वाली राम कथा के पण्डालों में, मैं राम कथा सुनने गई। नौएडा में तो वैसे ही सभी राज्यों के लोग रहते हैं और श्रोता भी प्रवासी हैं। हर पंडाल में लोग अलग मिलते पर सुनते हुए उनके भाव एक से होते हैं। व्यास पीठ से गुरूजी जब चौपाई गाते हैं तो श्रोता समवेत स्वर में साथ साथ गाते हैं। जिन्हें नहीं आता वे ताल के साथ ताली बजाते हैं। मैं तो राममय श्रद्धालुओं को देखती रह जाती हूँ। बीच बीच में प्रसंग के अनुसार लोकगीत गाए जाते हैं। जैसे राम जन्म पर हर्षोल्लास से ’भए प्रकट कृपाला’ गाया तो जिन्होंने पढ़ा है वे साथ गाते हैं। लोक धुन के साथ लोकगीत
प्रगटे हैं चारों भइया, अवध में बाजे बधैया।
राजा लुटावैं हीरे मोती, रानी लुटावे रुपैया। अवध में.....
राम के जन्म पर खुशी में जमकर नाचते हैं।
राम कथा में हर आयु के लोग आते हैं क्योंकि राम की जीवनगाथा में आदर्श परिवार का मूल मंत्र है। विवाह पंचमी’ श्री राम और सीता जी की शादी की वर्षगांठ को हम उत्सव की तरह मनाते हैं। सीतामढ़ी से जनकपुर नेपाल यात्रा के दौरान मैंने इन दिनों महसूस किया कि ज्यादातर गीत जानकी विवाह या उनकी विदाई के सुनने को मिले। हमारे पहुंचने पर नौलखा मंदिर चार बजे खुलना था। उत्तर की ओर ’अखण्ड कीर्तन भवन’ है। यहाँ 1961 से लगातार कीर्तन हो रहा है। वहाँ के कीर्तन में बैठी तो गीतों में जन जन में राम को पाया।
अब भी पाँच साल में अयोध्या जी से श्री राम बारात जगह जगह स्वागत करवाती हुई 15 दिन में जनकपुर नेपाल विवाह पंचमी के दिन पहुंचती है।
लोक, राम को संसार की आँखों से नहीं देखता। तभी तो राम को रामचरितमानस से, रामलीलाओं से हमारे रामकथा वाचकों के माध्यम से, लोक जीवन में रचे बसे राम, आस्था के इतने बड़े आराध्य हो गए हैं। अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा आयोजित साहित्य संवर्धन यात्रा में मिथिला प्रदेश जनकपुर नेपाल में महसूस किया कि यहाँ के लोकजीवन में राम प्रभु के रूप में कम और दामाद के रूप में अधिक देखे जाते हैं। महिलाओं के लिए उनके पति राम हैं जो परदेस में कमाने गए हैं। सप्तपदी में भावंरों में राम हैं
आज मिथिला नगरिया निहाल सखी री.....
सिया रघुवर जी के संग हरे हरे, भांवराई पड़न लागी।
चहु दिश में प्रेम को रंग....
राम तो हमारे लोकजीवन में रमे हुए हैं। सुबह हमारे अभिवादन में रामराम जी किया जाता है, मुहावरों, लकोक्तियों में राम हैं और संसार छोड़ते हुए राम नाम सत्य के साथ अंतिम यात्रा जाती है।
समाप्त
No comments:
Post a Comment