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Saturday, 23 April 2022

सकारात्मक सोच!! मुक्तिनाथ की ओर नेपाल यात्रा भाग 13 नीलम भागी Nepal Yatra Part 13 Neelam Bhagi





जब भी कोई झरना निकलता गुप्ता जी राजू को आकर कहते कि यहाँ गाड़ी रोक दे। सब वहाँ पर सेल्फी ले लेंगे पर राजू उसी स्पीड से ड्राइविंग करता रहता है। वैसे ही हमसे आगे वाली गाड़ियां चल रहीं हैं। बायीं ओर चट्टानी पर्वत तो दायीं ओर काली गंडकी नदी और बस की गति यात्रा का रोमांचक एहसास कराती है। अब धूल मिट्टी का रास्ता नहीं है पर पथरीला है। कई बार नीचे से पानी भी बह रहा होता है। जब कोई छोटा झरना आता तो जू0 राजू चिल्लाता,’’देखो देखो लेफ्ट पर बच्चा झरना।’’ मैं भी तस्वीरें चलती बस के अन्दर से ही ले रही थी। अचानक देखा हल्की बूंदाबांदी में गाड़ियों के बीच से भाग भाग कर आड़े तिरछे होकर लड़के फोटोग्राफी कर रहें हैं। जू0 राजू जोर से बोलने लगा,’’देखो देखो लैफ्ट में बाहुबली झरना।’’


मैं हैरान! पहाड़ की चोटी से झरना गिर रहा है फिर दिखता नहीं फिर नीचे से प्रकट होता है। ऐसा दो बार है छिपना और दिखना। अब तो सब वहां रुकना चाह रहीं थीं पर बस उसी चाल से चलती जा रही थी। कई बार तो दूर से ऐसा लगता था कि सामने खड़े पहाड़ ने आगे रास्ता रोका हुआ है। पास जाने पर खतरनाक रास्ता होता। कहते हैं न ’जहां चाह वहां राह’। सबकी झरने के पास कुछ देर रुकने की इच्छा थी। अब मुक्तिनाथ बाबा सबकी इच्छा कैसे न पूरी करते भला! देखा लाइन से गाड़ियां रुकी हुई हैं। हमारी भी रुक गई। बाजू में छोटा सा झरना था जिससे निकलने वाला पानी रास्ता पार कर निचाई की ओर जा रहा था। ऐसे ही सीन इस रास्ते पर जगह जगह थे। पर ये तो पूरी श्रद्धा भक्ति से बस में भजन गा रहीं थीं जिसका वीडियो लगाऊँगी। 

ये बस से उतरीं इन्होंने झरने का, उसकी आवाज़ का आनन्द उठाया और वहाँ खूब नाचे भी। और मैं.... कुछ लोगों की तरह ये पता लगाने में लगी रही कि रास्ता क्यों बंद हो गया है!! पता चला कि कुछ दूरी पर गाड़ी को एक दम ऊपर चढ़ना है। वहां बीच में एक छोटी गाड़ी बंद हो गई। अब उसे धीरे धीरे उतारा जा रहा था। एक घण्टा तालियों की ताल पर श्रद्धालुओं का होली के गीतों पर नाचते हुए बीत गया। इन श्रद्धालुओं की कितनी पॉजिटिव सोच है कि बाबा ने बुलाया है तभी तो हम आएं हैं।

वही रास्ता बनाएंगे। कहीं से आवाज़ आई कि अब तो चाय होनी चाहिए। मैं राजू के पास खड़ी थी। वह चाय का सुन कर मुझे बताने लगा कि इस रास्ते का कोई भरोसा नहीं है, जितनी जल्दी हो सके ये खराब रास्ता दिन में पार करना है। उसी समय रास्ता खुल गया। राजू ने फुर्ती से जाकर बस र्स्टाट कीं दौड़ दौड़ के हमारे सहयात्री बस पर चढ़े। रास्ते का काम तो वहां पर लगातार चलता रहता है। इसलिए लोग भी आ गए। एक बस चढ़ती और उधर उतरनी शुरु होती तब अगली बस चढ़ना शुरु करती जो बस जरा भी अड़ने लगती तो तुरंत लोग गाड़ी को धक्का लगाने लगते। जबकि उस समय हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। हमारी बस चढ़ने लगी मैं तो मन में जाप ही करने लगी। इसके चढ़ते ही नाज़िर बोला,’’हमारी सब गाड़ियां चढ़ जायेंगी। फिर एक एक कर गाड़ी चढ़ गई। इस यात्रा में लगता है मेरा दिल बहुत मजबूत हो गया है। कुछ समय बाद हमारी बस चौड़े पाट की नदी में उतर गई। जिसमें कहीं कहीं पानी दूर पानी बह रहा था। बस पत्थरों पर चल रही थी।

ये क्या!! धूप अच्छी थी दोपहर बाद बर्फ पिघलने से तेजी से पहाड़ से पानी आने लगा। पहले भी ऐसा हुआ होगा तभी तो गाड़ी निकालने के लिए तीन पाइप बराबर लगा रखे थे। जू0 राजू और दूसरी बस का क्लीनर दोनों बस से कुछ दूर झुके हुई मोबाइल में देखते हुए हाथ से इशारा दे रहे थे और राजू उनके हाथों के इशारों से उन पाइपों पर बस खिसका रहा था। मैं इतनी सहमी हुई थी कि विडियो बनाना भी याद नहीं आया।

बस पार होते ही मुक्ति नाथ का जयकारा लगाया। अब बहुत खूबसूरत रास्ता और जोमसोम आ गया।       

 दिसम्बर से जनवरी फरवरी तक मुक्तिक्षेत्र पर बर्फबारी होती है। मार्च, अप्रैल, मई और सितम्बर अक्टूबर और नवम्बर ये पीक सीज़न हैं। बरसात में भी यह रास्ता बहुत खतरनाक हो जाता है। क्रमशः 






Sunday, 17 April 2022

पोखरा के दर्शनीय स्थल मुक्तिनाथ की ओर नेपाल यात्रा भाग 8 नीलम भागी Places To Visit in Pokhara Nepal Yatra Part 8 Neelam Bhagi


 

22 मार्च को मौसम ऐसा नहीं था कि पंखा चलाया जाए। मैंने बाल धोए थे। कंबल ओढ़़ कर सो रही थी। बाल सूखे नहीं थे। मैम लंच करके आईं, आते ही पंखा चला दिया। मुझे बहुत जोर से ठंड लगी, जिससे मैं उठ गई और लंच के लिए गई तो वहां आलू के परांठों और दहीं, उस समय और साठ से ज्यादा लोगों में ठीक नहीं बैठा। परांठें एक बार में दो ही सिक रहे थे। मैं ये सोच कर देर से गई कि सब खा चुके होंगे। प्रेशर कूकर इनके पास था ही नहीं। कभी मसाला खत्म हो जाता था और आलू उबल रहे होते थे। यहां महिलाओं की विशेषता थी, कोई भी कूक की मदद करने लग जाती थी। यहाँ भी मिसेज़ कपिल परांठे सेकने में लग गई तीनों हलवाई बनाने में लगे थे। मैंने धूप में ही लंच किया क्योंकि मुझे धूप अच्छी लग रही थी। लंच के बाद पोखरा घूमने जाना था। किसी तरह लंच निपटा साथ ही जो इस गलत मैन्यु पर जो गोष्ठियां चल रहीं थीं वह समाप्त हुईं। 

     सबके बैठते ही गाड़ियां गुप्तेश्वर महादेव की ओर चल पड़ी। आठ झीलों वाला गेटवे ऑफ अन्नपूर्णा सर्कट पोखरा का तो कोना कोना दर्शनीय है। लेकिन विशेष जगहों का अपना महत्व है। काठमाण्डु के बाद यह नेपाल का दूसरा बड़ा शहर है जो गण्डकी अंचल का कास्की जिला के पोखरा घाटी में स्थित पर्यटन केन्द्र है। यह बड़ा शांत, सादगी भरा, प्राकृतिक खूबसूरती से भरा और हिमालयी पहाड़ों से घिरा शहर है। पोखरा बाग्लुंग बेनी सड़क पोखरा को उत्तर पश्चिम के भूभागों(मुक्तिनाथ, मुस्तांग) से जोड़ता हैं।  

   सबसे पहले हम गुप्तेश्वर महादेव मंदिर गये। यह नेपाल का सबसे खास धार्मिक और पर्यटक स्थलों में से एक है। यह गुफावाला मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर तक जाने के लिए घुमावदार सीढ़ियां हैं। गुफा के अंदर फोटो खींचने की सख्त मनाही है। गुफा के अन्दर टपकते हुए पानी में जाने से कुछ अलग सी अनुभूति होती है। इस गुफा के अंदर जाने के बाद एक बड़ी जगह है जहाँ शिवलिंग स्थापित हैं। 





महेन्द्र गुफा का नाम बीर बिक्रम शाह देव के नाम पर रखा था। इस गुफा में इसमें भगवान शिव की एक प्रतिमा के साथ कई स्टैलेक्टाइट्स और स्टैलेग्माइट्स हैं। इससे दस मिनट की दूरी पर चमगादड़ गुफा है।

मंदिर की सौ रुपये टिकट है।   





 शांंित स्तूप इसे वर्ड पीस पगोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। हर तरफ पहाड़ ही पहाड़ हैं। यह अनाडू पर्वत पर स्थित है। उनमें बसा यह स्तूप दर्शनीय है। यह बौद्ध स्मारक है जो विश्व शांति को समर्पित है। यहां से फेवा झील भी दिखती है। 




  फेवा झील यह मीठे पानी की नेपाल की दूसरी सबसे बड़ी झील है। पारदर्शी पानी में पर्वतों के प्रतिबिंब दिखाई देते हैं। पुराना बाजार में स्थानीय हस्तशिल्प, सांस्कृतिक पोशाक और धातु की वस्तुएं आप ले सकते हैं। शाम को हमें मंदिर में आरती देखनी थी हम पहुंचे हल्की बूंदा बांदी हो रही थी पर श्रद्धालु भीगते हुए पहुंच रहे थे। आरती के बाद जैसे ही हम गाड़ी में बैठे। खूब तेज बारिश, सड़कों पर ऐसे पानी हो गया था जैसे बाढ़ आ गई हो। बारिश रुकते ही सड़कों का पानी गायब!

 ट्रैकिंग करने के लिए बहुत बढ़िया जगह है। ज्यादा दिन के लिए जाएं तो इन दर्शनीय स्थानों पर जरुर जाना चाहिए। इंटरनेशनल माउंटेन म्यूजियम, सारंगकोट पोखरा नेपाल, गोरखा मेमोरियल संग्राहलय यह संग्राहलय सुबह 8ः30 बजे से शाम 4ः30 बजे तक खुला रहता है। डेविस फाल पोखरा नेपाल, घोरपानी हिल्स पोखरा नेपाल, ताल बाराही मंदिर, विंध्यवासिनी मंदिर, सेटी गंडकी नदी, डेविस फॉल, अन्नपूर्णा तितली संग्राहलय, झंडों से सजा तिब्बती शरणार्थी शिविर आदि जा सकते हैं। इन सब दर्शनीय स्थलों को अच्छी तरह देखने के लिए समय लेकर आना चाहिए। 

होटल पहुंचते ही डिनर तैयार था। मुझे कुछ बुखार सा लग रहा था। खाना खाया। हमें कहा गया कि सुबह पांच बजे मुक्तिनाथ धाम के लिए निकलना है। सब जल्दी सोने चल दिए। क्रमशः

    

    


Saturday, 16 April 2022

पोखरा मुक्तिनाथ की ओर नेपाल यात्रा भाग 7 नीलम भागी Pokhara Nepal Yatra Part 7 Neelam Bhagi


   टूर मैनेज़र नाज़िर ने चाय का आर्डर किया सबको बिस्कुट का पैकेट दिया। फर्नीचर बहुत प्राकृतिक था। पेड़ का चौड़ा तना मेज के साइज़ में सेन्ट्रल टेबल था। पतले छोटे तने स्टूल की तरह थे। मैं बैठ गई। चाय आई मैंने लेकर पीनी शुरु कर दी। मेरे साथ बैठी महिलाओं ने ली। एक एक घूट भरा और मीठी है कह कर पीछे फैंक दी। मुझे उनका इस तरह चाय फैंकना अच्छा नहीं लगा। खाने की बर्बादी मुझे वैसे ही नहीं पसंद। फिर उनमें में एक अपने आप बोली कि जूठी हो गई थी न इसलिए फैंकी। अब फीकी चाय बनी तो उसका घूट भर कर बोलीं कि मज़ा नहीं आ रहा है। इसमें आधा आधा कप मीठी चाय मिलाते हैं। नेपाल में हर जगह चाय बहुत अच्छी मिली। चीनी पत्ती दूध सब दिल खोलकर और जम्बो कप। घर में मैं कई कप दिन में चाय पीती हूं इसलिए फीकी पीती हूं। बाहर जैसी मिल जाए वैसी पी लेती हूं। यहाँ की लाजवाब चाय दिन में दो बार ही पीती थी। मेरी चाय खत्म हो गई थीं। मैं इतनी खूबसूरत जगह में टहलना अपना सौभाग्य समझ रही थी। बस चलते ही मेरी आँखें फिर बाहर टिक गईं। बीच बीच में छोटे छोटे गांव आते। नदी पर बीच बीच में लोहे का पुल पार करने के लिऐ था।

कभी कभी पहाड़ों में ऐसा लगता जैसे पौधे चल रहे हों पास आने पर पता चलता कि वह इनसान पशुओं के लिए चारा ला रहा है।

नदी के दोनों ओर रेत की बजाय पत्थर हैं। इसलिए बड़ी मात्रा में थ्रैशर लगे हैं ब्लॉक बनाने का काम चल रहा है। रोड़ी बजरी बन रही है। रेत तो मिलती ही है। ये सब इमारतें बनाने में उपयोग हो रहीं हैं। और इमारतें भी बनी हुईं हैं मसलन गंडकी यूनिर्वसिटी का भवन दूर से दिखाई दे रहा है। अब पोखरा शहर में चल रहे हैं।



लोगों ने घरों के आगे बहुत सुन्दर गार्डिनिंग की हुई है। 11 बजे का समय हो गया। बस में एक महिला ने सलाह देनी शुरु कर दी कि अब तो पहुंच कर आलू के परांठे और दहीं कर दो बस, खाना भी हो जायेगा और नाश्ता भी क्योंकि इतनी जल्दी तो यही हो सकता है। उनकी सखियों ने हामी भर दी। ये मैन्यू पास हो गया। 11ः45 पर हम पहुंचे। मैं इस हिसाब से चलती थी कि ये लाए हैं स्टे भी देगें और खाना भी इसलिए आराम से इंतजार करती थी। कुछ लोग तो गुप्ता जी का घेरा बना कर भगदड़ सी मचा देते थे कि हमें इस मंजिल में, उस मंजिल में हल्ला, क्लेश सा मचा देते थे। इडन होटल में रुम खत्म हो गए तो सामने ही लांज में हमें ग्राउण्ड फ्लोर पर रुम दिया गया। औरो को भी वहीं मिला। मैम का फिर मुझे पर बरसना शुरु,’’ अगर पहले चाबी लेती तो हमें होटल मिलता। मैं यहां नहीं रहूंगी। मैं वापिस लौट रही हूँ।’’एक जूनियर राजू छोटी उमर का क्लीनर है वो मैम से बोला,’’इधर बस अड्डा, उधर एयरर्पोट, थोड़ी दूर स्टेशन, जिससे भी जाना है जाओ।’’मैम उसकी तरफ गुस्से से झपटी। मैंने मुड़ कर नहीं देखा क्योंकि जब से आई थी, मैं जा रही हूं का जाप कर रही थी। मैंने सोचा चली जायेगी। मुझे ये जगह पसंद आई। खूब हरियाली और फूलों की क्यारियों की बाउण्ड्री पौदीने की थी। दूर से देखने पर रंग बिरंगे फूलों को गहरे हरे रंग के बॉडर ने घेर रखा था। रुम खोलते ही सब कुछ सफेद और साथ ही मैम की एन्ट्री। वह गुस्से में वाहियात गालियां दे रही थी क्योंकि कोई पूछ रहा था कि ये आदमी है या औरत। मैं मोबाइल लेकर लग गई। ये सोच कर कि जब ये तैयार हो जायेगी तब मैं अपनी तैयारी करुंगी। क्रमशः     





Thursday, 14 April 2022

खूबसूरत रास्ता!! वीरगंज से पोखरा, मुक्तिनाथ की ओर नेपाल यात्रा भाग 6 नीलम भागी Birganj to Pokhara Nepal Yatra Part 6

 


बस के चलते ही एक सज्जन मैम के बाजू में खाली सीट देखकर अभी बैठे ही थे कि मैम अंग्रेजी में गुर्रायीं,’’यहां कोई पुरुष नहीं बैठेगा।’’वो हैरान से होकर कहीं और बैठ गए। महिलाओ को फिर मैम का टॉपिक मिल गया। मेरे साथ मंजुषा कौशिक(दिल्ली), बैठीं थीं और बाकि सीट पर सामान था। मेरे आगे की सीट पर चंद्रा कौशिक(गुरुग्राम) और जयंती देबनाथ(नागपुर),उनके  बराबर की सीट पर सुदेश मेहरा और सुनिता गुप्ता दोनों गुरुग्राम से बैठीं थीं। अब गुप्ता जी जाकर मैम के बाजू की सीट पर बैठ गए। इस बार मैम चुप रहीं। अब फिर मैम पर चर्चा। मैंने अपने साथ की इन महिलाओं से कहा,’’प्लीज़ मैम पर ध्यान मत दो, ये गिर गई थी। नई जगह है और वैसे भी अकेली है शायद अपसेट है।’’इन भली महिलाओं ने आगे तक माहौल अच्छा बना दिया। अब मेरे आस पास इस तरह बतियाना शुरु हो गया कि लग ही नहीं रहा था कि हम कुछ समय पहले के परिचित हैं। कान मेरे सुन रहे थे और आंखें वीरगंज से परिचय कर रहीं थीं। चौड़ी अच्छी बनी हुई सड़कों के दोनों और अच्छे बने हुए भवन मार्किट आदि थीं। मौसम तो बस चलते ही बदल गया था। हवा बहुत प्यारी थी। ज्यादा उद्योग और व्यापारिक प्रतिष्ठानों के नाम पवित्र नदी गंडकी और मुक्तिनाथ पर थे मसलन मुक्तिनाथ विकास बैंक आदि। शहर खत्म होते ही दोनों ओर पेड़ ही नज़र आ रहे थे। हम वीरगंज से चले ही रात 11.05 पर थे। मैंने अब तक जितनी भी यात्राएं की हैं, उसमें एक बात समान मिली है वो ये कि ड्राइवर गाने बहुत अच्छे लगाते हैं। यहां भी हमारे ड्राइवर राजू मानन्दर ने शंकर जी के बहुत ही बढ़िया भजन लगाये। धुने एैसी की सब बतियाना बंद करके सुनने लगे और सुनते हुए मैं भी सो गई।


अचानक म्यूजिक बंद होते ही नींद खुली देखा बस रुकी और राजू ने कहा,’’ये यहां का बड़ा बाजार है। जिसने चाय वगैरहा पीनी है तो पी लीजिए और चाय पीने चल दिया। ये देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि रात को दुकाने महिलाएं चला रहीं थीं। इसका मतलब है यहां महिलाएं बहुत सुरक्षित हैं।

बस में एक महिला खड़ी होकर बोलने लगी कि ये चाय पोखरा जाकर भी तो पी सकता था। किसी ने उसकी बात पर हामी तक नहीं भरी क्योंकि सब जानते हैं कि उसे भी थोड़ा ब्रेक चाहिए। दूसरा टी ब्रेक उसने पौं फटने से पहले लिया। तब भी उस महिला ने यही बोलना शुरु किया। अभी गहरा अंधेरा था। बस चली मैं बिल्कुल एर्लट होकर बैठ गई और नींद भगाई क्योंकि मुझे तो उजाला होते हुए यहां कि खूबसूरती देखनी थी। जिस प्राकृतिक सौन्दर्य को मैंने देखा और महसूस किया उसका वर्णन करने की तो मेरी औकात ही नहीं है। विस्मय विमुग्ध सी मैं बाहर देखती जा रही हूं। बस चलती जा रही है। ख्याल आता है फोटो लूं कहीं ये दृश्य न मिस हो जाए। जल्दी से मोबाइल से फोटो लेती हूं। कितनी सुन्दरता कैमरे में कैद करुं!! यहां तो प्रकृति ने चारों ओर सौन्दर्य बिखेरा हुआ है। बस के दाएं ओर पहाड़ है। बाएं ओर नदी है नदी के बराबर में पहाड़ है। पहाड़ की चोटी देखने के लिए गर्दन पीछे को मुड़ जाती है।




अचानक मन में विचार आया कि यहां तो अच्छी सड़क है। पर इतने ऊंचे पहाड़ों को देख कर मुझे यू ट्यूब पर मुक्तिनाथ के खराब रास्तों के विडियो याद आने लगे। मैं बोली,’’मैं मुक्तिनाथ नहीं जाउंगी। पोखरा में रुक कर यहां की सुन्दरता ही देखती रहूंगी।’’अधीर देबनाथ बोले,’’आप वहां न जाकर बहुत पछताओगी।’’इतने में हमारी बस चाय की दुकान पर रुकी, जिसके आस पास बहुत से टॉयलेट थे। सबके उतरते मैंने सोचा थोड़ा लेट लेती हूं। जयंती तो सबकी प्रिय भाभी हो गईं। वे मुझे आकर बोलीं,’’दीदी आप रात से एक जगह पर ही बैठी हो। चलो नीचे थोड़ा टहलो।’’मुझे उनका ये व्यवहार बहुत अच्छा लगा। मैं नीचे उतर कर घूमने लगी। क्रमशः       





      


Wednesday, 13 April 2022

वीरगंज से पोखरा को प्रस्थान, मुक्तिनाथ की ओर नेपाल यात्रा भाग 5 नीलम भागी Nepal Yatra Part 5 Neelam Bhagi

 

डिनर करने के बाद बाहर आकर देखा, महिलाओं के ग्रुप बने हुए थे जो बड़बड़ा रहीं थीं कि कैसी औरत है! हमारा सामान नीचे फैंक कर बैठ गई। अंग्रेजी बोले जा रही है। हिन्दी बोलें तो हम अभी इसकी बोलती बंद कर दें। मैंने अपना और मैम का लगेज़ छत पर रखवाया। बस में चढ़ी। मुझे देखते ही मैम ने प्रश्न दागा,’’लगेज़ ऊपर चढ़वा दिया?’’मैंने जवाब दिया, ’’हां।’’ उन्होंने अपने बराबर सीट पर बैठने का इशारा किया। किसी का सामान फैंक कर, खिड़की की सीट पर मैम बैठी है और अपने बराबर में मेरा बैग रखा हुआ है। सब सीटों पर कुछ न कुछ रख कर सीट घेरी हुई थीं। आखिरी सीट खाली थी। मैंने  अपना बैग उठाया और सबसे पीछे विंडों सीट पर जाकर बैठ गई। अब मेरे दिमाग में प्रश्न उठने लगे कि गुप्ता जी(66 वर्षीय) पहली बार मुकितनाथ और नेपाल का दस दिवसीय 60 लोगों का टूर लेकर जा रहें हैं। अकेले मैनेज़ कर लेंगे! अब तक मैं परिवार या विद्वानों के ग्रुप के साथ गई हंूु यानि ’ए टूर ऑफ लाइक मांइडेड पीपुल’। कई बार तो ऐसा भी हुआ था कि किसी टूर पर गए। अचानक सबसे उच्चपद पर आसीन विद्वान ने किसी ग्रन्थ में लिखी कोई जगह पढ़ी। वहीं मार्ग बदल गया। वह जगह दिखाने के लिए हमें लगातार 2 दिन गाड़ियों में घूमाते रहे। जिसमें रात 3 बजे से सुबह पांच बजे तक होटल में सोए। सोने से पहले उस वास्कोडिगामा उच्च अधिकारी ने घोषणा कर दी थी कि वे सुबह 5.30 बजे गाड़ियां लेकर ’कखग’ देखने चले जायेंगे। और वहीं से पटना जायेंगे। जो उनके साथ नहीं जायेंगे, वे अपने आप पटना पहुंचें क्योंकि हमारी शाम 7 बजे से पटना से राजधानी गाड़ी में रिजर्वेशन थी। जी सर करते सब सुबह तैयार थे। ये वास्कोडिगामा गूगल देखकर हमें सड़कों पर ही भटकाते रहे। अब लौटने का समय हो गया था। ’कखग’ पर जाये बिना हमारा पटना पहुंचना जरुरी था। मैने कह दिया,’’सर अगर हम रात को दो घण्टे रैस्ट न करते तो ’कखग’ पहुंच जाते।’’ उन्होंने गाड़ी रुकवाई और गुस्से से जाकर दूसरी गाड़ी में बैठ गए। किसी और को यहां भेज दिया। ख़ैर हमने पटना से हिलती हुई राजधानी ट्रेन बड़ी मुश्किल से पकडी। वास्कोडिगामा सर और उनके लाइक मांइडेड पीपुल यानि दोनों गाड़ियों की सवारियों की राजधानी ट्रेन छूट गई क्योंकि वे इवनिंग टी और स्नैक्स के लिए रुके थे। कोरोना के बाद मेरी पहली यात्रा जल वाले गुरु की 6 बसों के साथ आठ दिन का टूर था और विभिन्न तरह के लोगों के साथ थी। यहां गुरु जी की श्रद्धा से कोई ऊंची आवाज में भी नहीं बोलता था। अचानक बाहर हंगामा देख कर, मैं बस से उतरी और एक कुर्सी लेकर बैठ गई और मसला समझने लगी। दो 2by 2 की 2 बसें थीं। रसोइयों और किचन के सामान के लिए एक सुम्मों थीं। पैकेज़ में भी लिखा था कि यात्रा नेपाल में 2by 2 बसेां द्वारा होगी। यहां कुछ सहयात्रियों को देख कर अंदाज हो गया कि ये टूर बहुत मजेदार रहेगा। गुप्ता जी के पास कई ग्रुप से केस आए। शिकायत के  बाद में सब यही बोलते कि हम वापिस जा रहें हैं, हमारे पैसे वापिस दो। उनके तेवर देख कर, मुझे यकीन था कि अब तो एक ही बस जायेगी। गुप्ता जी इनके पैसे मुंह पर मार देंगे क्योंकि इनकी किच किच कौन सुनेगा? 

       पहले मोटी सवारियों ने गुप्ता जी को घेरा कि सीटें छोटी हैं। दो सीटों पर एक सवारी बैठेगी! दूसरा ग्रुप बोला,’’ए.सी. वाली बस मंगाओ। हमने तो ए.सी. के बिना कभी सफ़र ही नहीं किया।’’कुछ सवारियों ने ही समझाया कि पहाड़ों पर इसी साइज़ की बसें चढ़ती हैं। आप पोखरा तक जाओ। जरा भी ए.सी. की जरुरत होगी तो बसें बदल देंगे। एक महिलाओं का ग्रुप आया उन्होंने कहाकि हम सुम्मों का जो भी खर्च होगा दे देंगे, आप हमारे लिए मंगा दीजिएगा। ट्रांसर्पोटर ने कहा कि मुक्तिनाथ ड्राइवर को मिला कर जीप में सिर्फ 6 लोग ही बैठेंगे। 5 सहेलियों ने हां कर दिया। इसके बाद तो बस की सीट का साइज़ भी ठीक हो गया। बस में भी 5 सीट खाली। एक महिला के पैर में कुछ था वह डण्डे के सहारे आई कि बस में उसे परेशानी होगी। गुप्ता जी ने कह दिया,’’बहन जी ऐसे में आपको आना नहीं चाहिए था।’’यह सुनते ही वह नाराज हो गई। उसके पति के साथ, उनके ग्रुप को भी बहुत बुरा लगा, उनमें से एक, गुप्ता जी को ऐसे पकड़ने दौड़ा जैसे वह उन्हें जान से खत्म कर देगा, दूसरा उसको दोनों बाहों में कस कर रोकते हुए कह रहा था,’’ जाने दे, जाने दे।’’ जिसे पकड़ा हुआ है वो बोल रहा है,’’ तूने मुझे रोक रखा है, नहीं तो आज कुछ हो जायेगा।’’गुप्ता जी वैसे ही शांत रहे। अब इन्हें सुम्मों में बिठा दिया गया और सुम्मो वाले रसोइए, सामान सब बस में आ गया। पैसे किसी को नहीं वापिस मिले। अब कोई भी सवारी नीचे नहीं थी। इसलिए मैं भी बस में आकर बैठ गई। गुप्ता जी ने जयकारा लगाया,’’बोलो, मुक्तिनाथ धाम की।’’और हमारी बसें और दोनों सुम्मों चल पड़ीं।  क्रमशः     




                


Saturday, 9 April 2022

रक्सौल से वीरगंज नेपाल यात्रा भाग 3 मुक्तिनाथ धाम की ओर नीलम भागी Nepal Yatra Part 3 Neelam Bhagi

 


मैं लेटी हुई थी। इतने में चार बैच लगाए महिलाएं आईं। मेरे चारों ओर बर्थ खाली देख कर पूछने लगीं यहां कोई बैठा तो नहीं है। मेरे न करते ही वहां बैठ गईं और बोलीं,’’हमारा डिब्बा तो बहुत ही ठंडा है। यहां का टैंपरेचर ठीक है। अब वे खूब ठहाके लगा कर बतियाने लगी। बातों से ऐसे लग रहा था जैसे स्कूल कॉलिज की छात्राएं हों। मैं भी उनकी बातों का आनन्द उठा रही थी। इतने में एक ने मुझसे पूछा,’’आपको कहां जाना है?’’ मैंने जवाब दिया,’’आपके साथ।’’वे बोलीं,’’नेपाल टूर! आपने बैच क्यों नहीं लगाया?’’मैं बोली,’’लेना भूल गई।’’ अब उन्होंने अपना परिचय दिया सुनिता अग्रवाल (दिल्ली), रेखा सिंघानियां (कानपुर), अनिता अग्रवाल (गुरुग्राम) और रेखा गुप्ता (कानपुर) पांचवी सहेली इनकी किसी कारणवश नहीं आई। बचपन की सहेलियां हैं साथ ही पढ़ी खेलीं हैं। इनमें कोई दादी भी है सास भी है पर इस समय ये सखियां हैं। बराबर से अधीर और जयंती जी के कुछ खाने पर शब्द सुनकर, यहीं से रेखा गुप्ता ने आवाज लगाई,’’भाभी मैं गोरखपुर से बैठी हूं। कानपुर से दिल्ली क्या करने आती? इसलिए गोरखपुर से चढ़ी। खूब खाना लाईं हूं। आपके लिए लाती हूं न।’’ उसी समय जयंती जी उठ कर आकर बोलीं,’’मेरा आज व्रत है। खाना एक समय वीरगंज में ही खाउंगी। नागपुर से आते समय मिठाई वगैरह साथ लाये थे वो खा लिया है।’’ गाड़ी में खाना हमारा था। बाकि नाश्ता दो समय का खाना और पानी, किराया भाड़ा, मंदिरों की टिकट, ट्रॉली टिकट आदि सब कुछ पैकेज़ में था। अब वे फिर दीनदुनिया से बेख़बर बतियाना शुरु हो गई। गुप्ता जी आए और मुझे बैच देकर, सबसे बोेले कि एक स्टेशन के बाद रक्सौल आने वाला है। इन सखियों के आने से बड़ी जल्दी रक्सौल आ गया। मैंने भी बैच लगा लिया। बहुत सुन्दर स्टेशन, रंग बिरंगी टाइल्स लगी हुई। पर उसमें लगेज़ के व्हील्स चलने में मजेदारी नहीं थी। कार्यक्रम मे लिखा था कि रक्सौल से टांगे में बैठ कर वीरगंज जायेंगे। मैं बहुत खुश थी कि टांगे पर बैठूंगी। पर वहां टांगे नहीं थे। टैंपुओं की लाइन लगी थी। उसमें सब बैठ गए। अंधेरा हो चुका था। अब सब होटल की ओर चल दिए। यहां खाना खाकर रात 11 बजे पोखरा के लिए निकलना था। बॉडर पर मेरा टैंपू पहला था।


सिक्योरटी ने पूछा,’’कहां जा रहे हो? मैं बोली,’’मुक्तिनाथ।’’वह बोला,’’जाओ।’’ सब वहां से निकले। बॉर्डर के दोनों और मनी एक्सचेंज करने वालों के स्टॉल लगे हुए थे।

और एक किमी दूर होटल पर रुके। एक रुम में दो के हिसाब से उन्होंने कमरे खोल दिए। मैं देखने लगी और कौन सी सिंगल महिला है। गुप्ता जी ने एक महिला की ओर इशारा किया। मैंने कहा,’’इन्हे मेरे साथ कर दो।’’इतनी देर में ग्राउण्ड फ्लोर के रुम खत्म और हम पहली मंजिल में गए, हमें रुम दिया। मैंने लगेज़ रखा कि कल से उन्हीं कपड़ों में हूं, उनसे पूछती हूं कि पहले उन्हें र्फैश होना है तो वे हो लें। फिर खाना खाकर सो लेगें, रात को फिर सफ़र करना है। वह 70 +  मैम आई। और अंग्रेजी बोल बोल कर चिल्लाने लगीं कि उन्हें ये रुम पसंद नहीं है। इतने में ये फ्लोर भी भर गया। अब सेकेंड फ्लोर पर रुम मिला। दोनो बैड अलग थे। मैं रुम में जाते ही एक बैड पर लेट गई। ये सोच कर कि इनके बाद मैं बाथरुम इस्तेमाल करुंगी। मुंह से उनका अंग्रेजी में सबको कोसना चालू था और हाथों से सामान निकालना। क्रमशः