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Thursday, 14 April 2022

खूबसूरत रास्ता!! वीरगंज से पोखरा, मुक्तिनाथ की ओर नेपाल यात्रा भाग 6 नीलम भागी Birganj to Pokhara Nepal Yatra Part 6

 


बस के चलते ही एक सज्जन मैम के बाजू में खाली सीट देखकर अभी बैठे ही थे कि मैम अंग्रेजी में गुर्रायीं,’’यहां कोई पुरुष नहीं बैठेगा।’’वो हैरान से होकर कहीं और बैठ गए। महिलाओ को फिर मैम का टॉपिक मिल गया। मेरे साथ मंजुषा कौशिक(दिल्ली), बैठीं थीं और बाकि सीट पर सामान था। मेरे आगे की सीट पर चंद्रा कौशिक(गुरुग्राम) और जयंती देबनाथ(नागपुर),उनके  बराबर की सीट पर सुदेश मेहरा और सुनिता गुप्ता दोनों गुरुग्राम से बैठीं थीं। अब गुप्ता जी जाकर मैम के बाजू की सीट पर बैठ गए। इस बार मैम चुप रहीं। अब फिर मैम पर चर्चा। मैंने अपने साथ की इन महिलाओं से कहा,’’प्लीज़ मैम पर ध्यान मत दो, ये गिर गई थी। नई जगह है और वैसे भी अकेली है शायद अपसेट है।’’इन भली महिलाओं ने आगे तक माहौल अच्छा बना दिया। अब मेरे आस पास इस तरह बतियाना शुरु हो गया कि लग ही नहीं रहा था कि हम कुछ समय पहले के परिचित हैं। कान मेरे सुन रहे थे और आंखें वीरगंज से परिचय कर रहीं थीं। चौड़ी अच्छी बनी हुई सड़कों के दोनों और अच्छे बने हुए भवन मार्किट आदि थीं। मौसम तो बस चलते ही बदल गया था। हवा बहुत प्यारी थी। ज्यादा उद्योग और व्यापारिक प्रतिष्ठानों के नाम पवित्र नदी गंडकी और मुक्तिनाथ पर थे मसलन मुक्तिनाथ विकास बैंक आदि। शहर खत्म होते ही दोनों ओर पेड़ ही नज़र आ रहे थे। हम वीरगंज से चले ही रात 11.05 पर थे। मैंने अब तक जितनी भी यात्राएं की हैं, उसमें एक बात समान मिली है वो ये कि ड्राइवर गाने बहुत अच्छे लगाते हैं। यहां भी हमारे ड्राइवर राजू मानन्दर ने शंकर जी के बहुत ही बढ़िया भजन लगाये। धुने एैसी की सब बतियाना बंद करके सुनने लगे और सुनते हुए मैं भी सो गई।


अचानक म्यूजिक बंद होते ही नींद खुली देखा बस रुकी और राजू ने कहा,’’ये यहां का बड़ा बाजार है। जिसने चाय वगैरहा पीनी है तो पी लीजिए और चाय पीने चल दिया। ये देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि रात को दुकाने महिलाएं चला रहीं थीं। इसका मतलब है यहां महिलाएं बहुत सुरक्षित हैं।

बस में एक महिला खड़ी होकर बोलने लगी कि ये चाय पोखरा जाकर भी तो पी सकता था। किसी ने उसकी बात पर हामी तक नहीं भरी क्योंकि सब जानते हैं कि उसे भी थोड़ा ब्रेक चाहिए। दूसरा टी ब्रेक उसने पौं फटने से पहले लिया। तब भी उस महिला ने यही बोलना शुरु किया। अभी गहरा अंधेरा था। बस चली मैं बिल्कुल एर्लट होकर बैठ गई और नींद भगाई क्योंकि मुझे तो उजाला होते हुए यहां कि खूबसूरती देखनी थी। जिस प्राकृतिक सौन्दर्य को मैंने देखा और महसूस किया उसका वर्णन करने की तो मेरी औकात ही नहीं है। विस्मय विमुग्ध सी मैं बाहर देखती जा रही हूं। बस चलती जा रही है। ख्याल आता है फोटो लूं कहीं ये दृश्य न मिस हो जाए। जल्दी से मोबाइल से फोटो लेती हूं। कितनी सुन्दरता कैमरे में कैद करुं!! यहां तो प्रकृति ने चारों ओर सौन्दर्य बिखेरा हुआ है। बस के दाएं ओर पहाड़ है। बाएं ओर नदी है नदी के बराबर में पहाड़ है। पहाड़ की चोटी देखने के लिए गर्दन पीछे को मुड़ जाती है।




अचानक मन में विचार आया कि यहां तो अच्छी सड़क है। पर इतने ऊंचे पहाड़ों को देख कर मुझे यू ट्यूब पर मुक्तिनाथ के खराब रास्तों के विडियो याद आने लगे। मैं बोली,’’मैं मुक्तिनाथ नहीं जाउंगी। पोखरा में रुक कर यहां की सुन्दरता ही देखती रहूंगी।’’अधीर देबनाथ बोले,’’आप वहां न जाकर बहुत पछताओगी।’’इतने में हमारी बस चाय की दुकान पर रुकी, जिसके आस पास बहुत से टॉयलेट थे। सबके उतरते मैंने सोचा थोड़ा लेट लेती हूं। जयंती तो सबकी प्रिय भाभी हो गईं। वे मुझे आकर बोलीं,’’दीदी आप रात से एक जगह पर ही बैठी हो। चलो नीचे थोड़ा टहलो।’’मुझे उनका ये व्यवहार बहुत अच्छा लगा। मैं नीचे उतर कर घूमने लगी। क्रमशः       





      


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