Search This Blog

Showing posts with label # Towards Muktinath by Bus. Show all posts
Showing posts with label # Towards Muktinath by Bus. Show all posts

Sunday 24 April 2022

जोमसोम की हावा सरर!!Chilly breeze at JomSom मुक्तिनाथ की ओर नेपाल यात्रा भाग 14 नीलम भागी Nepal Yatra Part 14 Neelam Bhagi


 

 जोमसोम प्रहरी पोस्ट पर हमारी गाड़ियां रुकीं उन्होंने परमिट लेते हुए पूछा,’’कहां से?’’ भारत सुनते ही बोला,’’जाओ।’’यहां विकास कार्य तेजी से चल रहा था वैस तो पोखरा से जोमसोम तक कि 159 किमी की दूरी पर सड़क निर्माण कार्य लगातार चल ही रहा था। जोमसोम में तो हिमालय ऐग्रो फार्म द्वारा जानवरों से बचाते हुए जालीदार कैबिन में पेड़ पौधे भी लगाने में जुटा हुआ है। जोमसोम नेपाल के गंडकी प्रदेश में 2700 मीटर(8,900 फीट) की ऊँचाई पर है। धौलागिरी और नीलगिरि की ऊँची चोटिया ंतो हैं। काली गंडकी पवित्र नदी इसके बीच से होकर बहती है। जिसके  किनारों पर शालिग्राम पाए जाते हैं जो हमारी संस्कृति में भगवान विष्णु के प्रतीक हैं। ये सिर्फ काली गंडकी में ही पाए जाते हैं। यहां की जलवायु के अनुसार कई क्यारियों में तरह तरह की वनस्पितियां बोई हुई हैं। जो बस से देखने पर रास्ते को और भी खूबसूरत बना रहीं हैं। सेब के बाग तो है ही पर उस समय पत्ते झड़े हुए थे लेकिन कुछ पेड़ सिर्फ परपल फूलों से भरे हुए थे। कुछ ही समय में जोमसोम एयरर्पोट आया। यहां से मुक्तिनाथ की दूरी 23.9 किमी. है। पोखरा से जोमसोम की फ्लाइट सुबह आती है जो 20 मिनट में पहुंचा देती है। वही फ्लाइट वापिस जाती है। जो श्रद्धालु आते हैं। वे दर्शन करते हैं एक रात रुक कर अगले दिन जाते हैं। 11 बजे से यहाँ तेज हवाएं चलने लगती हैं। जिसमें प्लेन नहीं उड़ सकता। लेकिन काठमांडू से पोखरा दिन भर फ्लाइट आतीं हैं। कहीं पर सस्पेंशन ब्रिज भी दिखा जो एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर जाने के लिए बना होता है। जोमसोम से गुजरने वाली पगडंडी काली गंडकी नदी का अनुसरण करती हुई दुनियां की सबसे गहरी घाटी बनाती है। यहां हरियाली अधिक नहीं है। लेकिन जिस तरह से कोशिश चल रही है आने वाले वर्षों में हो भी सकती है। 







   घर यहां की बर्फबारी और हवा से बचाव के अनुसार बने हैं। ज्यादातर दिवारों पर पत्थर चुने हुए थे। लेकिन फ्लैट छत की मुंडेरों पर लकड़ियां चिनी हुई हैं। आबादी के बीच में से निकलने पर रास्ता बड़े बिना किसी शेप के पत्थरों से बना है जो उबर खाबड़ नहीं है। दोनों ओर थकाली खाजा घर यानि रैस्टोरैंट और होटल हैं। आबादी से बाहर आते ही राजू ने बस रोक कर कहा कि बस की खिड़कियां खोल दो। जैसे ही खिड़कियां खोलीं। ऐसा लगा कि सररर करती ठंडी हवा बस को अपने साथ ले जायेगी। कोई धूल मिट्टी नहीं। तभी जोमसोम की हवा पर नेपाली गाने बहुत सुनने को मिले। जोमसोम आने पर यहां की हवा से परिचय होने पर हवाई गाने बहुत अच्छे लगने लगे।

      हे हे हे हे हो हो हो हवा सरर

      जोमसोमै बजारमा  बाह्र बजे हावा सरर

      जोमसोमै बजारमा  बाह्र बजे हावा सरर

जल्दी से सबने खिड़कियां बंद की और बस चल पड़ी। राजू की ये बहुत बड़ी विशेषता है वो कुछ भी विशेष आने से पहले ड्राइविंग करते हुए बोलता है। जू0 राजू सुनते ही उसी समय देखो देखा करता हुआ यात्रियों की ओर मुंह करके जोर से बताने लगता है जिससे नेपाल और भी प्यारा लगने लगता है। अब बिल्कुल सूखे पहाड़ हैं। धूप और कहीं बादलों के कारण रंग काला, भूरा आदि और कहीं बर्फ भी है। एक ही रास्ते में हमने प्रकृति के कई रुप देखे। अचानक राजू ने बस रोक कर कहा,’’यहां आप सेल्फी ले लो।’’ जैसे ही उतरे खिली हुई धूप साथ ही ठंडी कटीली तेज हवा। मैं तो पोखरा से ही थर्मल पहन कर चली थी। तब भी यहां ठंड लग रही थी। मुझे तो ऐसा लगा कि अपनी पोजिशन हवा की दिशा के अनुसार बदलते रहो। कंघी करने की जरुरत ही नहीं! हवा ही बाल सैट कर रही थी। मैं बंधे बालों से हवा के विपरीत दिशा में खड़ी हो गई तो बालों को हवा ने आजाद करना शुरु कर दिया। मैंने बाल खोल ही दिए बाकि काम हवा ने कर दिया। जल्दी से बस में बैठ कर हुडी पहनी और कंबल जैसी शॉल ओढ़ी। 5 बजे के करीब हम मुक्तिधाम पहुंचे। यहां अंदर केवल पास से छोटी गाड़ी ही जा सकती थी। हमें मोनालिसा होटल में ठहरना था। बाकि गाड़ियां अभी पहुंची नहीं थीं। मैंने अपना झोला उठाया पैदल होटल की ओर चल दी। क्रमशः   















Friday 22 April 2022

मनोहारी रास्ता पर खतरनाक! बेनी से तातोपानी मुक्तिनाथ की ओर नेपाल यात्रा भाग 12 नीलम भागी




    बेनी से जॉमसोम मुक्तिनाथ की यात्रा में प्राकृतिक सौन्दर्य जितना मनोहारी है रास्ता उतना ही खतरनाक है।


यात्रा मुश्किल है क्योंकि 75% रास्ता कच्चा है यानि ऑफ रोड है फिर भी हम बड़ी संख्या में तीर्थाटन के लिए जाते हैं।

इस यात्रा के दौरान हिमालय के एक बड़े हिस्से को लांघना होता है। बायीं ओर चट्टानी पर्वत तो दायीं ओर काली गण्डकी नदी की जलधारा अठखेलियां करती हुई बहती है। कहीं कहीं तो बड़ी बड़ी चट्टाने दोनों ओर के पहाड़ों से टूट कर काली गंडकी में गिर गई होंगी जो अब देखने में ये पत्थर लगातार पानी के तेज बहाव से टकराने से गोल शेप में आ गए हैं। अब प्रकृति द्वारा बना छोटा सा डैम लगता है। जिस पर से छलांगे मारता पानी आवाज करता है। मैं विस्मय विमुग्ध सी देखती हूं और कल्पना में खो जाती हूं। जैसे ही फोटो लेने का ध्यान आता है वो सीन निकल जाता है। तीर्थ यात्रा है जिसमें लगातार महिलाओं द्वारा बस में भजन गाए जा रहें हैं। इस रास्ते पर राजू ने बिल्कुल म्यूज़िक नहीं बजाया। अनगिनत छोटे बड़े झरने रास्ते की खूबसूरती को और बढ़ा रहें हैं।  जब बस बहुत ऊंचाई पर होती है तब मैं दाएं बाएं नहीं देखती। कभी उत्सुकता वश देखती हूं तो गहराई का अंत नहीं दिखता। फिर सामने आँखें गड़ाए रखती हूं। सामने दाएं बाएं झूमती पतले मोड़ों को पार करती कोई गाड़ी दिखाई देती है। कई बार तो ऐसा धूल का गुब्बार उठता है कि वह  भी दिखनी बंद हो जाती हैं।

यहां बस गाड़ियों की मोड़ पर हॉर्न बजाने की आवाज़ है या कल कल करते पानी की आवाज है। यहां मेरा गाइड जू0 राजू है वह राजू के साथ आता है। इतनी धूल देखकर बताने लगता है कि ये तो अच्छा है बारिश नहीं पड़ रही है वरना रास्ता बहुत स्लीपरी हो जाता है फिर कीचड़ में गाड़ी चलानी ज्यादा मुश्किल हो जाती है। अच्छा लगा सुन कर कि उसने ’असम्भव’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। जब सामने से लौटती कोई मुक्तिनाथ से बेनी, मुक्तिनाथ से पोखरा आदि बस देखती हूं तो बचा खुचा डर जो दिल के किसी कोने में बैठा होता तो वह भी भाग जाता है। मन में उसी वक्त आता है कि ये भी तो इसी रास्ते से कल गए होंगे और आज दर्शन करके लौट रहें हैं। ऐसे ही हम भी कल वापिस आएंगे। युवा बाइक सवार तो लगातार आ रहे थे और जा रहे थे। पता नहीं कि उन्हें क्या जल्दी है!! उनके चेहरे से लगता है कि वे एडवेंचरस यात्रा पर हैं। वे तो खुद ही ड्राइव कर रहे होते और साथ ही रिकार्डिंग कर रहे होते हैं। जिसके पीछे लड़की बैठी होती, वह तो बाइक ऐसे चला रहा होता है मानों करतब दिखा रहा हो। गाड़ियों के ड्राइवर मुस्कुराते हुए इन्हें शायद नादान समझ कर रास्ता देते हैं। इस रुट पर सभी ड्राइवर ध्यान से और कम स्पीड पर चलाते हैं।

https://youtu.be/b78RJIAWw04
 मैं तो बैठी यात्रा में अपने साथ समय व्यतीत कर रहीं हूं और स्वयं के बारे में बेहतर जानने की कोशिश कर रही हूं। तभी तो कहते हैं यात्रा हमें बदल देती है। कंर्फट ज़ोन से बाहर निकालती है। कहीं पढ़ा है ’’यात्रा हमें दुनिया के बारे में सिखाती है।’’  

रास्तों पर रुकने के लिए निजी लॉज होटल मिल जाते हैं। विदेशी तो टैªकिंग करते हुए आते हैं इसलिए इनमें मूलभूत सभी सुविधाएं होतीं हैं। जहां शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह का भोजन मिलता है।




 तातोपानी जिला म्याग्दी में है तातोपानी कुंड गर्म पानी में नहाने के लिए प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि इस पानी में नहाने से विभिन्न रोग ठीक हो जाते हैं। शोध में पाया गया है कि तातो पानी में काला नमक और फास्फोरस की अधिकता होती है जो नैचुरल एंटी बायोटिक हैं। कुंड में नहाने से कई बीमारियां ठीक हो जातीं हैं। कुछ लोग तो यहां कई दिन तक स्नान करने के लिए ठहरते हैं। इस कुण्ड में एक बार में 300 व्यक्ति स्नान कर सकते हैं। क्रमशः        


Monday 18 April 2022

पोखरा से बस के द्वारा मुक्तिनाथ की ओर नेपाल यात्रा भाग 9 नीलम भागी Nepal Yatra Part 9 Neelam Bhagi





रुम में आते ही मैंने बुखार की गोली खा ली और सोने लगी। मैम का सबको कोसने का अंग्रेजी टेप, अश्लील गालियों के साथ चालू हो गया कि सबके ग्रुप हैं। ढेरो ढेर खाने का सामान लाईं हैं और खाती रहती हैं। फिर कुछ मुझे आदेश दिए कि वो सोने से पहले उधर की लाइट बंद करेंगी। मुझे सामने की बंद करने को कहा। वे पैकिंग करतेे हुए बोलीं कि हर फ्लोर में एक रुम में सामान रखना है। रुम छोडना है। लौटने पर यही रुम लेना है। रात को मुक्तिनाथ रुक कर सुबह दर्शन करके लौटना है। सर्दी के हिसाब से पहनने के कपड़े लेकर जाने हैं। ये सुनते हुए मैं गहरी नींद में सो गई। सुबह 4 बजे सबके रुम के आगे गुप्ता जी ’जय श्रीराम’ बोल कर जगाते जा रहे थे। साथ ही मैम का अर्लाम बज रहा था और जुबान चल रही थी कि गुप्ता को शोर मचाने की क्या जरुरत है! अब मेरे हैरान होने की बारी थी। मुझे मैम का नाम ही नहीं पता था। मैं दीदी कह देती थी। मैम तैयार होकर मुझसे पूछने लगीं,’’ तुम नहीं जाओगी!’’मैंने जबाब दिया,’’मुझे रात को बुखार था, मैं यहीं रुक रही हूं।’’ वह बोली,’’यहां कोई नहीं होगा। दवा तुम्हारे पास है, चलो।’’और चाय पीने के लिए चल दी। मैंने स्नान नहीं किया। र्थमल पर जिंस कुर्ता पहना। एक बैग में वहां पहनने के लिए कपड़े लिए और बाहर आई तो जुनियर राजू खड़ा था मैंने उसे बैग दिया कि सीट पर रख देना और पूछा,’’कितनी देर में निकलोगे?’’उसने हंसते हुए अपने बॉस राजू की ओर देखते हुए कहा,’’एक घण्टे में चल देंगें। आज तो दीदी आप ऐसे सफ़र करोगी।’’साथ ही दाएं बाएं झूमने लगा। मैंने राजू मानन्दर से पूछा,’’सच।’’उसने हां में थोड़ा हंसतेे हुए सिर हिलाया और कहा कि मुक्तिनाथ की कृपा से मुझे बीस साल हो गए गाड़ी चलाते हुए। मैं रुम में आकर आराम करने लगी। अब फिर मेरे दिमाग में डिबेट शुरु हो गई कि भगवान नहीं चाहते कि मैं जाऊँ, तभी तो मुझे बुखार हो गया था। सोशल मीडिया पर कोई ये भी ज्ञान बांट रहा था कि मुक्तिनाथ बस से नहीं जीप से जाना चाहिए। उसके कारण भी बता रहा था। रास्ते के वीडियो के विस्मय विमुग्ध करने वाले प्राकृतिक सौन्दर्य नहीं याद आ रहे थे बल्कि वो सीन आँखों के आगे ज़ूम हो रहे थे जिसमें बाइक सवार खराब रास्ते के पानी के गड्ढे को बड़ी मुश्किल से पार करके कह रहा है मेरी तो........। सब मुझे एक एक करके याद आने लगे।

     अचानक मुझे मेरी बड़ी बहन डॉक्टर शोभा भारद्वाज के कभी कहे शब्द याद आए उसने किसी संदर्भ में मुझे कहा था,’’जिसने चार वेद पढ़े हैं, वो सुखी है। जिसने पांचवां वेद पढ़ा है वो दुखी है यानि अविश्वास और प्रश्न चिन्ह लगाए हैं। इसी तरह जो डॉ0 पर विश्वास करके दवा खाता है वो जल्दी ठीक हो जाता है। जो दवा के साइड इफैक्ट पढ़कर दवा खाता है। उस पर साइड इफैक्ट जल्दी असर दिखाते हैं। अब मेरी सोच बदली कि सब मुक्तिनाथ के दर्शनों पर जाने की खुशी में चहक रहें हैं। एक मैं हूं रास्ते को लेकर इधर उधर से ज्ञान बटोरे जा रही हूं और अपने दिमाग में मनहूसियत सी भरे जा रही हूं। बाहर आने से पहले बाल बनाये तो शीशे में अपनी शक्ल शमशान भूमि जैसी लगी। तुरंत अपनी सोच बदली। बाहर कपिल जी मिले उन्होंने पूछा,’’सामान रख दिया।’’सुनते ही मैंने अपना लगेज़ लिया



, उन्होंने मैम का, दूसरे रुम में रख दिया। बस में जू0 राजू ने आगे की सीट मेरे लिए रखी थी। उस पर बैठीं। कोई तरह तरह की ताज़ी बनी ब्रेड बेचने के लिए बस पर चढ़ा।


कुछ महिलाओं ने खरीदी उनमें से कोई ऐसी भी थीं जो नया ट्राई नहीं करतीं उनकी जुबान पर स्वाद नहीं चढ़ा। उन्होंने बाहर फैंक दी। उसी समय सामने स्टोर वाला आया और फेंकने वाले से ही उठवा कर डस्टबिन में डलवाई और मुझे समझ आ गया कि नेपाल साफ सुथरा क्यों है? मुक्तिनाथ के जयकारों से हमारी बस चली। जयंती देबनाथ ने लड्डू गोपाल को भोग लगा कर सबकोे प्रशाद दिया। हमारी बस सबसे आगे थी पीछे दूसरी बस और दो जीपें। हमें तो यात्रा लड्डू गोपाल करवा रहे थे न। बस मुक्तिनाथ जी की ओर बढ़ रही है मेरी तबीयत सुधरती जा रही है। क्रमशः