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Monday, 18 April 2022

पोखरा से बस के द्वारा मुक्तिनाथ की ओर नेपाल यात्रा भाग 9 नीलम भागी Nepal Yatra Part 9 Neelam Bhagi





रुम में आते ही मैंने बुखार की गोली खा ली और सोने लगी। मैम का सबको कोसने का अंग्रेजी टेप, अश्लील गालियों के साथ चालू हो गया कि सबके ग्रुप हैं। ढेरो ढेर खाने का सामान लाईं हैं और खाती रहती हैं। फिर कुछ मुझे आदेश दिए कि वो सोने से पहले उधर की लाइट बंद करेंगी। मुझे सामने की बंद करने को कहा। वे पैकिंग करतेे हुए बोलीं कि हर फ्लोर में एक रुम में सामान रखना है। रुम छोडना है। लौटने पर यही रुम लेना है। रात को मुक्तिनाथ रुक कर सुबह दर्शन करके लौटना है। सर्दी के हिसाब से पहनने के कपड़े लेकर जाने हैं। ये सुनते हुए मैं गहरी नींद में सो गई। सुबह 4 बजे सबके रुम के आगे गुप्ता जी ’जय श्रीराम’ बोल कर जगाते जा रहे थे। साथ ही मैम का अर्लाम बज रहा था और जुबान चल रही थी कि गुप्ता को शोर मचाने की क्या जरुरत है! अब मेरे हैरान होने की बारी थी। मुझे मैम का नाम ही नहीं पता था। मैं दीदी कह देती थी। मैम तैयार होकर मुझसे पूछने लगीं,’’ तुम नहीं जाओगी!’’मैंने जबाब दिया,’’मुझे रात को बुखार था, मैं यहीं रुक रही हूं।’’ वह बोली,’’यहां कोई नहीं होगा। दवा तुम्हारे पास है, चलो।’’और चाय पीने के लिए चल दी। मैंने स्नान नहीं किया। र्थमल पर जिंस कुर्ता पहना। एक बैग में वहां पहनने के लिए कपड़े लिए और बाहर आई तो जुनियर राजू खड़ा था मैंने उसे बैग दिया कि सीट पर रख देना और पूछा,’’कितनी देर में निकलोगे?’’उसने हंसते हुए अपने बॉस राजू की ओर देखते हुए कहा,’’एक घण्टे में चल देंगें। आज तो दीदी आप ऐसे सफ़र करोगी।’’साथ ही दाएं बाएं झूमने लगा। मैंने राजू मानन्दर से पूछा,’’सच।’’उसने हां में थोड़ा हंसतेे हुए सिर हिलाया और कहा कि मुक्तिनाथ की कृपा से मुझे बीस साल हो गए गाड़ी चलाते हुए। मैं रुम में आकर आराम करने लगी। अब फिर मेरे दिमाग में डिबेट शुरु हो गई कि भगवान नहीं चाहते कि मैं जाऊँ, तभी तो मुझे बुखार हो गया था। सोशल मीडिया पर कोई ये भी ज्ञान बांट रहा था कि मुक्तिनाथ बस से नहीं जीप से जाना चाहिए। उसके कारण भी बता रहा था। रास्ते के वीडियो के विस्मय विमुग्ध करने वाले प्राकृतिक सौन्दर्य नहीं याद आ रहे थे बल्कि वो सीन आँखों के आगे ज़ूम हो रहे थे जिसमें बाइक सवार खराब रास्ते के पानी के गड्ढे को बड़ी मुश्किल से पार करके कह रहा है मेरी तो........। सब मुझे एक एक करके याद आने लगे।

     अचानक मुझे मेरी बड़ी बहन डॉक्टर शोभा भारद्वाज के कभी कहे शब्द याद आए उसने किसी संदर्भ में मुझे कहा था,’’जिसने चार वेद पढ़े हैं, वो सुखी है। जिसने पांचवां वेद पढ़ा है वो दुखी है यानि अविश्वास और प्रश्न चिन्ह लगाए हैं। इसी तरह जो डॉ0 पर विश्वास करके दवा खाता है वो जल्दी ठीक हो जाता है। जो दवा के साइड इफैक्ट पढ़कर दवा खाता है। उस पर साइड इफैक्ट जल्दी असर दिखाते हैं। अब मेरी सोच बदली कि सब मुक्तिनाथ के दर्शनों पर जाने की खुशी में चहक रहें हैं। एक मैं हूं रास्ते को लेकर इधर उधर से ज्ञान बटोरे जा रही हूं और अपने दिमाग में मनहूसियत सी भरे जा रही हूं। बाहर आने से पहले बाल बनाये तो शीशे में अपनी शक्ल शमशान भूमि जैसी लगी। तुरंत अपनी सोच बदली। बाहर कपिल जी मिले उन्होंने पूछा,’’सामान रख दिया।’’सुनते ही मैंने अपना लगेज़ लिया



, उन्होंने मैम का, दूसरे रुम में रख दिया। बस में जू0 राजू ने आगे की सीट मेरे लिए रखी थी। उस पर बैठीं। कोई तरह तरह की ताज़ी बनी ब्रेड बेचने के लिए बस पर चढ़ा।


कुछ महिलाओं ने खरीदी उनमें से कोई ऐसी भी थीं जो नया ट्राई नहीं करतीं उनकी जुबान पर स्वाद नहीं चढ़ा। उन्होंने बाहर फैंक दी। उसी समय सामने स्टोर वाला आया और फेंकने वाले से ही उठवा कर डस्टबिन में डलवाई और मुझे समझ आ गया कि नेपाल साफ सुथरा क्यों है? मुक्तिनाथ के जयकारों से हमारी बस चली। जयंती देबनाथ ने लड्डू गोपाल को भोग लगा कर सबकोे प्रशाद दिया। हमारी बस सबसे आगे थी पीछे दूसरी बस और दो जीपें। हमें तो यात्रा लड्डू गोपाल करवा रहे थे न। बस मुक्तिनाथ जी की ओर बढ़ रही है मेरी तबीयत सुधरती जा रही है। क्रमशः     

       



      



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