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Wednesday 10 January 2024

हम कहीं भी रहे अपनी भारतीय जीवन शैली नहीं छोड़ते नीलम भागी Part 6

 


मनीषा रामरक्खा(अवकाश प्राप्त प्रवक्ता यूनीर्वसटी ऑफ फीज़ी) से मैंने उनसे पूछा,’’ आपके तीनों बच्चे अलग अलग देशों में सैटल हैं अब आप वहाँ अकेली फी़जी में हो भारत आ जाओ परिवार में।’’उन्होंने उत्तर दिया कि वे शादी करके वहाँ गई थीं। हिंदी के लिए काम किया उनकी वह कर्म भूमि है। जो संस्कृति हमारे भारतीय पूर्वज अपने साथ लेकर गए थे वे आज भी संस्कारों में उसका पालन करते हैं। भारत मे विवाह आदि पर आती हूँ बहुत कुछ बदल गया है पर फीज़ी में भारतीय लोक जीवन की वही छवि है। जिसे पर्यटकों से भी सराहना मिलती है। 

उत्कर्षिनी वशिष्ठ (इस वर्ष दो राष्ट्रीय फिल्म पुरुस्कार, जी सिनेमा अर्वाड, फिल्म फेयर अर्वाड, दो आइफा अर्वाड से सम्मानित अंर्तराष्ट्रीय लेखिका) का कहना है कि हमारा परिवार जमीन से जुड़ा है। हम जहाँ भी जायेंगे अपनी भारतीय जीवन शैली नहीं छोडते। अमेरिका में रहती हूँ पर उत्सवों में घर में फैली पकवानों की महक दिमाग पर छाने लगती है। वही महक मैं यहाँ पकवान बना कर फैलाती हूँं। मेरी बेटियाँ मदद करती हैं। त्यौहारों पर सुनी कहानियाँ गीता अपने मित्रों को सुनाती है और उन्हें बुलाती है। हमारे पर्वों का मित्र इंतजार करते हैं। हमारी भारतीय लोक जीवन शैली की विश्व में छवि का ही तो प्रभाव है कि कात्या मूले बुढ़ापा अपने देश के ओल्ड एज होम की जगह परिवार में काटना चाहती है। यूनी भारतीय खाना बनाना सीखना चाहती है। गीता के नन्हें मित्र भी हमारे त्यौहारों का इंतजार करते हैं। धर्म, कर्म और संतुष्ट रहना भारतीय लोक जीवन का आधार है। समाप्त

यह आलेख मध्य भारतीय हिंदी साहित्य सभा द्वारा प्रकाशित इंगित पत्रिका के राष्ट्रीय संगोष्ठी विशेषांक से भारतीय जीवन शैली का वैश्विक रूप से लिया गया है।






लोग बुद्ध को देख रहे थे मैं उनके चेहरे से टपकती श्रद्धा!भारतीय लोक जीवन का वैश्वीक रूप नीलम भागी, Neelam Bhagi Part 5

 


हांग कांग मे जिंजर ब्राउन शुगर चाय भारत जैसी थी। मैजिस्टिक ब्रांच बुद्धा विश्व में खुले मैदान में बुद्ध की कांस्य प्रतिमा की ऊँचाई 23 मीटर और कमलासन व केन्द्र को जोड़ कर कुल ऊँचाई करीब 34 मीटर और वजन करीब 250 टन है। बुद्ध के मुख पर करीब 2 किग्रा सोना जड़ा है। मूयवू पर्वत की तलहटी से थ्येनथेन बुद्ध की प्रतिमा तक जाने के लिये 260 पत्थरों की सीढ़ियाँ हैं। सबसे हैरान किया पूजा करने के तरीके ने लाइनों में हवन कुण्ड की तरह आयताकार बड़े बड़े बर्तन लगे थे। गुच्छों में अगरबत्तियाँ श्रद्धालु खरीद कर, हमारे देश की तरह दूर से दिखने वाली बुद्ध की प्रतिमा की ओर विश्व से आए पर्यटक मुँह करके अगरबत्तियाँ जलाकर भारत की तरह प्रार्थना कर रहे थे। अगरबत्ती की राख उन बर्तनों में गिर रही थी। मैंने भी 260 सीढ़ियाँ चढ़ीं, बुद्ध के दर्शन किये मुझे अपने पर गर्व होने लगा! हमारे देश से फैला धर्म है। लोग बुद्ध को देख रहे थे और मैं उनके चेहरे से टपकती श्रद्धा को देख रही थी। मेरा देश महान लेकिन मैंने पूजा, पूजा के स्थान पर ही की।

मकाऊ में हमें पुर्तगाली रैस्टोरैंट मिल गया। उत्तकर्षिनी खोजती है कि उसके व्यंजन में बीफ न हो और मैं नानवेज न हो। मैंने मैन्यू कार्ड खंगाला और एक कैप्सीकम डिश और एक साइड डिश, बींस विद राइस आर्डर की। र्स्टाटर में ब्रैड के स्क्वायर साथ में कई तरह के सॉस और मक्खन। मक्खन के स्वाद ने तो मुझे गंगा यमुना के दूध से अपने हाथ से बनाये मक्खन की याद दिला दी। मेरी डिश थी लाल, हरी और पीली ऑलिव ऑयल में सौटे की पतली पतली कटी नमकीन शिमला मिर्च, दूसरी डिश देखते ही मेरे मुंह से निकला, अरे! ये तो हमारे राजमां चावल हैं।

   मकाउनिस की आस्था का प्रतीक, अमा टैम्पल गये। जो लगभग 1488 से बना प्राचीन, समुद्र की देवी, मछुआरों की रक्षक का देवी टैम्पल है। यहाँ भी मोटी मोटी पीली या रंगीन अगरबत्तियाँ जला कर लोग, हमारी तरह हाथ जोड़ कर प्रार्थना कर रहे थे। लेकिन जलाने की जगह फिक्स थी। 

हिन्दू और बौद्ध दोनों की आस्था है मुक्तिनाथ धाम में यह धाम यह दिखाने का एक आदर्श उदाहरण है कैसे 3800 मीटर की ऊँचाई पर नेपाल में दो धर्म एक ही पवित्र स्थान को आपसी सम्मान और समझ के साथ साझा कर सकते हैं। क्रमशः

यह आलेख मध्य भारतीय हिंदी साहित्य सभा द्वारा प्रकाशित इंगित पत्रिका के राष्ट्रीय संगोष्ठी विशेषांक से भारतीय जीवन शैली का वैश्विक रूप से लिया गया है। क्रमशः

यह आलेख मध्य भारतीय हिंदी साहित्य सभा द्वारा प्रकाशित इंगित पत्रिका के राष्ट्रीय संगोष्ठी विशेषांक से भारतीय जीवन शैली का वैश्विक रूप से लिया गया है।






सिनेमा समाज का दर्पण है शायद उसका असर!! भारतीय लोक जीवन शैली का वैश्विक रूप नीलम भागी Neelam Bhagi Part 3

 


डॉ. अशोक भारद्वाज(पूर्व डॉक्टर भारत सरकार और ईरान) 

कई वर्ष ईरान में रहा हूँ। मेरे पास एक आगा(भद्र पुरूष) जरअली अपने बीमार पुत्र मुहम्मद राघव सलवती(सलवताबाद) को इलाज के लिए लाए। राघव सुन कर मैं चौंका तो काका जरअली ने बताया कि अस्पताल के नीचे से पहले एक कच्ची सड़क तेहरान की तरफ जाती थी। जहाँ दूसरे विश्व युद्ध में भाग लेने एक हिंद की सेना (ब्रिटिश इंडिया) की टुकड़ी यहाँ ठहरी थी। इस टुकड़ी का नायक फारसी जानता था। बिटिश काल में हमारे यहाँ बहुत से लोग अरबी, फारसी पढ़ना लिखना जानते थे। उस टुकड़ी के नायक से काका को बहुत प्रेम था। काका बताते उस नायक  के सिर के पीछे बड़े बालों का गुच्छा था(चोटी), जिसमें वे गाँठ बांध कर रखते थे। वह अपना खाना खुद बनाते थे। किसी को अपनी रसोई छूने नहीं देते थे। पकाने के बाद अपना पका खाना मुझे भी खिलाते थे। खाने में मिर्च ज्यादा होती थी पर मुझे खुश मजेे़(स्वाद) लगता था। मेरी बेगम नान’(ईरानी रोटी) बहुत बारीक़ बनाती है। मैं जब भी उनके लिए लेकर गया वे एक टुकड़ा तोड़ कर, माथे से लगा कर पेड़ की जड़ के पास रख देते। हाँ, मेवे व फल ले लेते। मेरे इस पुत्र का जन्म हुआ तो वह हमारे घर आए। मैंने अपना बेटा उनकी गोद मंे दिया और कहा कि आप दानिशमंद(विद्वान) हैं। इसका नाम रख दीजिए। उन्होंने खुदाई जुबान(संस्कृत) में कुछ कहा, बच्चे के भाल पर केसर लगा कर, फिर खुदाई जुबान में एक छोटा सा तराना गाया और इसका नाम राघव रखा। मैंने उनसे पूछा,’’आप राघव का मतलब जानते हैं!’’ उसने जवाब दिया,’’हाँ, हिन्दुओं के खुदा को कहते हैं।’’उस आगा ने मुझसे कहा था कि तुम्हारा बेटा बहुत फरमाबदार होगा। मेरे बेटे जैसा बेटा पूरे खुर्दीस्तान में नहीं है। राघव का स्वभाव आर्दश बेटे का था। काका जरअली की मृत्यु के बाद वह हमारे परिवार का ध्यान अपने परिवार की तरह रखता था। इधर लोग हिंदी के शौकीन थे। सिनेमा समाज़ का दर्पण हैं। शायद उसका असर था। वहाँ ऐसे महसूस होता था कि अपने देश में डॉक्टरी कर रहा हूँ। सास बहू बहुत मजे़दार था। पहले सास आती सिर पकड़े हुए। मैं पूछता,’’क्या हुआ अडूस(बहू) से लड़ाई हो गई?’’सास कहती बहू अच्छी नहीं मिली। दूसरी ले आऊँ पर क्या करूँ, बेटा उसे बहुत प्यार करता है, मानता नहीं है। सास जाती तो सिर पर पट्टा बाँधे बहू आती, मेरा वही पुराना सवाल,’’सास ने तंग किया?’’ बहू का भारतीय महिलाओं वाला उत्तर कि बेटा माँ की सुनता है, मेरी नहीं। वहाँ बहु विवाह प्रथा थीं लेकिन भारतीयों के संपर्क में आने से वे बदल रहे थे और समझ गए थे कि बच्चों के लिए माँ बाप दोनों जरूरी हैं। वहाँ के खुर्दी लोग हर चीज महल्ली पसंद करते थे। हमारे यहाँ भी देसी का रिवाज है। एक बार एक महिला का अप्रेशन होना था। परिवार का कोई खून देने को तैयार नहीं था। एक भारतीय सर्जन ने पहले उसे अपना खून दिया फिर अप्रेशन कर महिला की जान बचाई। वहाँ के सभी लोग हैरान थे। उन्हें समझ आ गया था कि इंसानियत से बड़ा कुछ नहीं है। वहाँ के पढ़े लिखे पूछते,’आपका दीन क्या है?’’वही जो 1400 सौ साल पहले तुम्हारा था। हमारे यहाँ  आतिश(यज्ञ) होते थे। आप भी आतिश परस्त थे।’’ वे दबी जुबान से कहते आप बदल गए, हम नहीें बदले। हिंदू रेस बहुत मजबूत है। उनके दिल में भारत की बहुत इज्जत थी। भारत को हिंद और भारतीयों को हिंदी कहते थे। संस्कृत को खुदाई जुबान। हिंद शब्द का प्रयोग प्राचीन काल में शरफुद्दीन यजदी की पुस्तक ज़फर नामा में मिलता हैं। जिसे 1424 में लिखा गया था।

  हम तेरहवीं को भोज करते हैं। आगा आयतुल्ला खुमैनी के स्वर्गवास के 40वें दिन हर घर में हलुआ बना और बाँटा गया। हिंदवाना(तरबूज) भारत से वहाँ गया था। इसीलिए वहाँ उसे हिंदवाना कहते हैं। क्रमशः

यह आलेख मध्य भारतीय हिंदी साहित्य सभा द्वारा प्रकाशित इंगित पत्रिका के राष्ट्रीय संगोष्ठी विशेषांक से भारतीय जीवन शैली का वैश्विक रूप से लिया गया है।

 यह लेख ग्वालियर से प्रकाशित इंगित पत्रिका के राष्ट्रीय संगोष्ठी विशेषांक में प्रकाशित हुआ है।






जीवन शैली और जीवन मूल्य दोनों ही बदल रहे हैं प्रो. लल्लन प्रसाद (अध्यक्ष कौटिल्य फाउएडेशन, लेखक कवि, अर्थशास्त्र और राजनीतिक विश्लेषक, मैनेजमैंट गुरू Part 2

 


प्रो. लल्लन प्रसाद (अध्यक्ष कौटिल्य फाउएडेशन, लेखक कवि, अर्थशास्त्र और राजनीतिक विश्लेषक, मैनेजमैंट गुरू) 

  भारत के प्रति पश्चिम का दृष्टिकोण अब बदल रहा है। भौगोलिकरण के कारण विश्व एक होता जा रहा है। जीवन शैली और संस्कृतियों का मिलन तेजी से हो रहा है। खानपान , रहन सहन, वेशभूषा, तीज त्यौहार मनाने के तरीके सभी प्रभावित हो रहें हैं। सब की सीमाएं अपने देश तक न सीमित रहकर दूर दूर तक फैल रहीं हैं। जीवन शैली और जीवन मूल्य दोनों ही बदल रहें हैं। भारतीय जीवन शैली का विदेशों में बढ़ने का एक बड़ा कारण है विश्व के कोने कोने मेे प्रवासी भारतीयों का होना। भारतीय नवयुवकों का अध्ययन के लिए विदेश में जाना, भारतीय वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, प्रबंधकों, प्रोफेसरों, डॉक्टरों, कलाकारों और उच्चशिक्षा प्राप्त विशेषज्ञों का बड़ी संख्या में विदेशों में जाकर बसना और वहाँ की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देना, अपनी सामाजिक और पारिवारिक परंपराओं, जीवन मूल्यों का पालन करते हुए सभी धर्मों, संप्रदायों के साथ मिलकर रहना भारतीय लोक जीवन शैली को दुनिया के कोने कोने तक ले जा रही है। योग अब भारत तक सीमित नहीं है दुनिया के अधिकांश देशों के लोग इसकी उपयोगिता समझने लगे हैं और इसे अपने जीवन शैली का अंग बना रहें हैं। शाकाहारी खाने का प्रचलन बढ़ रहा है। शाकाहारी रैस्टोरैंट दुनिया के अधिकांश शहरों में खुलने लगे हैं। भारत में मनाए जाने वाले वाले त्यौहरों के प्रति जैसे दीपावली होली आदि के प्रति आर्कषण बढ़ रहा है। लाखों की संख्या में विदेशी पर्यटक जो भारत आते हैं और यहाँ के तीज त्यौहारों को मनाते हुए देखते हैं और स्वभाविक रूप से आर्कषित होते हैं। उदाहरण के लिए वृदावन में होली के अवसर पर विदेशी पर्यटकों में आम लोगों के साथ होली खेलने का उत्साह देखा जाता है। अमेरिका, और इंग्लैंड के राज्य अध्यक्षों के निवास पर भी अब दिवाली मनाई जाने लगी है। भारत के बड़े बड़े त्यौहार विश्व भर में फैल रहें हैं जिसमें वहाँ के नागरिक भी रूचि लेते हैं। भारत की जीवन शैली और रहन सहन में जो विविधता है, वह अन्य देशों में देखने को नहीं मिलती। उदाहरण के लिए यहाँ का खान पान, जैसे उत्तर भारत की कढ़ी चावल, पूरी सब्जी, दक्षिण भारत की इडली डोसा आदि दुनिया भर के वैजिटेरियन रैस्टोरैंट में उपलब्ध हैं और वहाँ के निवासी समय समय पर बड़े चाव से उनका स्वाद लेने पहुँचते हैं। भारतीय महिलाओं की पोशाक, उनके श्रृंगार के तरीके, वस्त्र आभूषण, विदेशी महिलाओं को आकर्षित करते हैं। संयुक्त परिवार के प्रति पहले जो विदेशियों में भ्रम  था वह अब दूर हो रहा है। बच्चों महिलाओं, बड़े बूढ़ों को संयुक्त परिवार जो सुरक्षा देता है वह सरकारी व्यवस्था में संभव नहीं है। इसका अहसास उन्हें भी हो रहा है। भारतीय मनीषियों का चिंतन कि सारा विश्व एक परिवार है। धीरे धीरे पश्चिम के लोगों को भी समझ आ रहा है। क्रमशः

यह आलेख मध्य भारतीय हिंदी साहित्य सभा द्वारा प्रकाशित इंगित पत्रिका के राष्ट्रीय संगोष्ठी विशेषांक से भारतीय जीवन शैली का वैश्विक रूप से लिया गया है।