ये 56वीं यात्रा थी। लेकिन इस बार इसमें दो धार्मिक स्थल और बढ़ाए गये। मैंने याद रखने की कोई जरुरत ही नहीं समझी। क्योंकि सब यात्रियों के बस में बैठने पर ही जलवाले गुरु जी बसें चलाने का आदेश देते थे। इसलिए मैं निश्चिंत होकर यात्रा का आनन्द ले रही थी ये सोचकर कि जहां ले जायेंगे वहां जाकर दर्शन करेंगे जो देखूंगी वह मेरी मैमोरी में फीड हो जायेगा और लिखते समय फिर से यात्रा का आनन्द उठाउंगी। बस में भजन कीर्तन चल रहा था अशोक भाटी जल और मेवे का प्रशाद बांट रहे थे।
मेरी तो आंखें ही बाहर के खूबसूरत प्राकृतिक नजारों से नहीं हट रहीं थीं। मैं अपने आप से ही कहने लगी,’’माता रानी मुझे माफ करना, मैंने पहले आपका नाम नहीं सुना था। आपका तो रास्ता ही अजब मनमोहक, मन को मोह रहा है। साधूवाद आयोजकों को जिन्होंने हमें यहां लाने का प्रोग्राम बनाया। खूबसूरत रास्ता जो ज्वाला देवी मंदिर से 22 किमी. दूर था, पलक झपकते ही बीत गया।
बस रुकी देवेन्द्र भडाना बोले,’’अरे! सब देवियों के मंदिर ऊंचाई पर बगलामाता रानी का भवन तलहटी पर।’’कुछ देर तो मैं खड़ी आस पास के नज़ारों को देखती रही। फिर मैंने मंदिर की ओर चलना शुरु किया। जूताघर में चप्पल रख कर हैंडटच फ्री सैनेटाइज़र मशीन से हाथ सैनेटाइज़ किए। थर्मल स्क्रीनिंग मशीन से सब गुजरे और हम सीढ़ियां उतर कर मां के भवन में लाइन में लग गए। मां के दर्शनों के अभिलाषी लाइन में चल भी रहे थे और मां की स्तुति भी श्रद्धा से कर रहे थे। सुधा ने पूछा,’’नीलम दीदी, आपको पता था कि यहां पीले कपड़े पहन कर आते हैं!! मेरे दिमाग में तो अब तक रास्ते की और यहां कि हरियाली छाई हुई थी। अब मैंने गा़ैर किया मेरे कुर्त्ते का रंग तो यहां मंदिर के रंग से मिल रहा है।
मेरे आगे खड़ा कोई श्रद्धालु बोला,’’माता को पीला रंग पसंद है। दर्शन करोगी तो देखना मां के वस्त्र, आभूषण, फूलों की माला आदि सब पीला होगा इसलिए इन्हें पिताम्बरी भी कहते हैं।’’मैं सोचने लगी कि मैंने पीला कुर्ता क्या सोच कर पहना? पर मैंने तो कुछ सोचा ही नहीं था। यात्राओं में मैं जिंस और लंबे कुर्त्ते पहनती हूं। मैंने 8 दिन की यात्रा के लिए 8 कुत्ते पैक किए। लगेज़ हमारा बस की डिक्की में रहता था। जब स्टे होता तो सुबह स्नान के बाद एक ड्रेस बदल कर, एक एक्स्ट्रा छोटे से जरुरी सामान के बैग में रख लेती। ये बस में साथ रहता। सुबह मैं ज्वालादेवी के दर्शन नीले कुर्त्ते में करके आई थी। जब बगलामुखी मां के लिए बस में बैठने से पहले वाशरुम गई तो छोटा बैग मेरे साथ था। मैंने बिना सोचे पीला कुर्ता पहन लिया और नीला बैग में रख लिया। अब सोचने लगी मैंने पीला कुर्ता ही क्यों निकाला? अगले दिन पहनने वाले इस कुर्ते को यहां आने से पहले क्यों बदला? फिर अपने आप ही जवाब आ गया कि मां चाहतीं होंगी कि मैं उनके दर्शन उनके पसंद के रंग को पहन कर करुं। ऐसा उन्होंने मुझसे करवा लिया। ये विचार आते ही मैं बहुत खुश हो गई। अब मैं दरबार के सामने खड़ी हूं। मुझसे आगे दो भक्त हैं। भवन के द्वार के एक ओर भैरव हैं और एक ओर हनुमान जी हैं। इतने में पीछे से हमारी बस के सबसे शैतान बच्चे पार्थ ने अपनी मां संगीता से प्रश्न किया,’’मम्मी यू मूंझोवाला कौन है?’’
सब सुनकर हंसने लगे और गर्दन घुमाकर देखने लगे। उसे संगीता ने गोद में ले रखा था, उसने पार्थ को प्यार से समझाते हुए बताया कि ये भैरव बाबा हैं। अब पार्थ ने अगला प्रश्न किया,’’ये गुस्सा क्यों कर रहें हैं?’’और मैं मां पिताम्बरी के सामने हाथ जोड़े खड़ी हूं। क्रमशः